शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’
दिल्ली नगर निगम के चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) की जीत के बाद सवाल उठ रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल इस छोटी सरकार को कैसे चलाएँगे? क्या आम आदमी पार्टी दिल्ली से गन्दगी साफ़ कर सकेगी? दिल्ली में हर रोज़ हज़ारों मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है। भाजपा के नगर निगम के शासन-काल में गीला कूड़ा और सूखा कूड़ा मुहिम चलायी गयी; लेकिन इसका कोई ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ।
अब दिल्ली नगर निगम को भाजपा के हाथ से छीनकर आम आदमी पार्टी ने नये सिरे से काम का आग़ाज़ कर दिया है। आप सरकार ने दिल्ली नगर निगम के सभी 12 क्षेत्र पार्टी के चार वरिष्ठ नेताओं आतिशी, सौरभ भारद्वाज, दुर्गेश पाठक और वरिष्ठ नेता आदिल को सौंपे हैं। चारों नेता चार भागों में बँटी दिल्ली के तीन-तीन क्षेत्रों से मिलकर बनाये गये एक-एक भाग की ज़िम्मेदारी सँभालेंगे। चार नेताओं की ये नयी टीम नवनिर्वाचित पार्षदों का मार्गदर्शन करेगी और पार्षदों की रिपोर्ट तैयार करेगी। रिपोर्ट के आधार पर पार्षदों को समितियों में शामिल किया जाएगा।
भाजपा इस ताक में बैठी है कि नगर निगम में आप की नवनिर्वाचित दिल्ली की इस छोटी सरकार को उसके काम को लेकर किस तरह घेरा जाए। वास्तव में दिल्ली में साफ़-सफ़ाई और कूड़े का निस्तारण दो ऐसी चुनौतियाँ हैं, जिनसे पार पाना आसान नहीं है। हालाँकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नगर निगम चुनाव से पहले ही दिल्ली वालों से यह वादा कर चुके हैं कि वह दिल्ली में जमा हो चुके कूड़े के पहाड़ हटाएँगे। उनसे पहले भाजपा ने भी यही वादा किया था; लेकिन वह अपने वादे पर खरी नहीं उतर सकी। बदबू, गर्मी, कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैस समेत कई ज़हरीली गैसें उगलते दिल्ली के कचरे के पहाड़ हटाना दिल्ली से झुग्गी-झोपड़ी हटाने से भी मुश्किल काम है। इसका प्रमुख कारण हर रोज़ पैदा होता हज़ारों मीट्रिक टन कूड़ा है। अकेले ग़ाज़ीपुर में 65 मीटर लगभग 213 फीट ऊँचा कूड़े का पहाड़ है।
रिपोट्र्स बताती हैं कि ग़ाज़ीपुर लैंडफिल से हर घंटे लगभग डेढ़ से दो मीट्रिक टन और कई बार इससे भी अधिक मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है, जो इसके आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत ख़तरनाक है। केवल इसी लैंडफिल पर हर रोज़ लगभग 2,300 टन से ज़्यादा कूड़ा पहुँचता है। इसी तादाद में भलस्वा और ओखला लैंडफिल पर हर रोज़ कूड़ा इकट्ठा होता है। कूड़े के पहाड़ों के निस्तारण में सबसे बड़ी समस्या प्लास्टिक है, जिसमें सबसे ज़्यादा ख़तरनाक पॉलिथीन, जिसकी निकासी हर घर से ख़ूब होती है। पिछले दिनों पॉलिथीन पर लगी रोक का कोई असर न होने से पॉलिथीन पर प्रतिबंध का कोई मतलब नहीं रह गया है।
दिल्ली में लगे इन कूड़े के पहाड़ों से कम-से-कम 1,600 फीट के दायरे में भूजल दूषित हो चुका है। भलस्वा साइट के पास तो पानी का टीडीएस 3,000 से 4,000 एमजी/लीटर के आसपास तक पहुँच गया है, जो बहुत ही घातक है। पिछले लगभग चार से पाँच दशक के बीच ही दिल्ली की यह हालत हो चुकी है, तो आने वाले चार-पाँच दशक में क्या हालत होगी? इस सवाल पर केंद्र और दिल्ली सरकारों को गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए।
आप की नगर निगम सरकार ने अगर इस चुनौती से निपट लिया, तो यह मुख्यमंत्री केजरीवाल के दिल्ली को हरित शहर बनाने के सपने की सबसे बड़ी सफलता होगी। विदित हो कि दिल्ली में नगर निगम पर भाजपा के शासनकाल में कूड़े के निस्तारण की गति बहुत धीमी रही है। भाजपा ने इस पर काम करने के बजाय दिल्ली सरकार पर आरोपों और नगर निगम को एक करने में ही समय ख़राब कर दिया। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में कचरे के पहाड़ों की ऊँचाई कम करने के लिए कोई प्रभावी योजना नहीं बनायी गयी है। नगर निगम में भाजपा शासन में कूड़े के निस्तारण के लिए महँगी-महँगी मशीनें तो आयीं; लेकिन उसका काम ऊँट के मुँह में जीरा ही साबित हुआ है।
अब देखना होगा कि दिल्ली में अपने कई कामों की पूरे देश में चर्चा करने वाली आप सरकार नगर निगम में क्या-क्या सुधार करती है? वास्तव में दिल्ली सरकार के सामने कूड़े के निस्तारण के अलावा नगर निगम से सम्बन्धित कार्यों में सुधार की चुनौती भी है, जिसमें नगर निगम के स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, गलियाँ और सडक़ें ठीक करना महत्त्वपूर्ण है। कारण, दिल्ली में हर दिन 2,000 टन ताज़ा कचरा बढ़ रहा है।
आप के नेता और पार्षद इस चुनौती को अगर ज़िम्मेदारी के तौर पर लें, तो ऐसा भी नहीं कि कूड़े के इन पहाड़ों का निस्तारण न हो सके; लेकिन इसके लिए आप की सरकार को पाँच साल कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। दिल्ली नगर निगम की सत्ता हाथ में आने के बाद आप के सामने ख़ुद को काम वाली पार्टी साबित करने का एक ऐसा मौक़ा है, जिसे वह किसी भी हाल में गँवाना नहीं चाहेगी। यही कारण है कि दिल्ली सरकार ने अपने मातहत नगर निगम के हर पार्षद को एक नये तरीक़े से प्रशिक्षित करने की ठानी है, जिससे वह अपने क्षेत्र में आने वाली नगर निगम की समस्याओं से जूझ रहे लोगों को राहत पहुँचा सकें। दिल्ली सरकार की तरह ही दिल्ली नगर निगम में बिना किसी भेदभाव के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का सभी को साथ लेकर चलने का फ़ैसला स्वागत योग्य है। नगर निगम में स्थायी समिति का मतलब ही नगर निगम क्षेत्र में होने वाले विकास कार्यों में तेज़ी लाना होता है, जिसे और गति देने के लिए आप के चारों वरिष्ठ नेता पार्षदों को इन समितियों में शामिल करने का फ़ैसला लेंगे। पार्षदों को उनकी क्षमता के आधार पर समितियों में शामिल करने सम्बन्धी रिपोर्ट तैयार करके ये नेता इन्हीं पार्षदों में से अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य बनाएँगे।
फ़िलहाल तो दिल्ली नगर निगम में अब महापौर (मेयर) का चुनाव होना है, जिसके लिए उप राज्यपाल को प्रस्ताव भेज दिया गया है। अब उप राज्यपाल को इस पर मुहर लगानी है। दिल्ली नगर निगम में हर वर्ष महापौर का चुनाव होता है, जिसके लिए चुनाव परिणाम आते ही दावा किया था कि जीत भले ही आप की हुई हो; लेकिन महापौर तो उनका ही बनेगा। जल्द ही भाजपा अपने इस दावे से मुकर गयी, शायद थू-थू के डर से। अब माना जा रहा है कि आप के नगर निगम के पहले शासन में दिल्ली में पहला महापौर महिला पार्षद को चुना जाएगा। कुल 250 सीटें करके नगर निगम के एकीकरण के बाद पहली बार एकीकृत निगम का पहला मेयर चुना जाएगा। महापौर के चुनाव के लिए सभी चुने गये पार्षदों के अलावा तीन राज्यसभा सांसद, सात लोकसभा सांसद और 13 विधानसभा सदस्य भी मतदान करते हैं।
कुल मिलाकर 273 सदस्य महापौर का चुनाव करते हैं। महापौर के लिए कुल 137 बहुमत का आँकड़ा होगा। आप के 134 पार्षद, तीन राज्यसभा सांसद हैं, जो कि पूरे हैं। दो पार्षद कांग्रेस के भी आप में जा चुके हैं। इस तरह आप के पास अब 136 पार्षद हैं। क़ानून के मुताबिक, दिल्ली में महापौर का चुनाव अप्रैल में ही हो सकता है। हालाँकि केंद्र सरकार चाहे, तो महापौर का चुनाव पहले भी करा सकती है। इस बीच पार्षदों को जोडऩे-तोडऩे की राजनीति चल रही है। भाजपा नेता और दिल्ली से लोकसभा सांसद मनोज तिवारी दावा करते फिर रहे हैं कि आप के कई पार्षद उन्हें फोन करके कह रहे हैं कि उन्हें भाजपा में शामिल कर लिया जाए, आप में तो सब गड़बड़ है। मनोज तिवारी ने कुछ दिन पहले ही एक टेलीविजन चैनल पर यह दावा किया था। उन्होंने कहा था कि उन्होंने आप के पार्षदों से इस बारे में कोई बात करने से मना कर दिया।
मनोज तिवारी का यह दावा कितना सही है, यह तो नहीं पता, लेकिन उनकी पार्टी दूसरी पार्टियों की सरकारों को तोडक़र अपनी सरकार बनाने का जो रिकॉर्ड बना चुकी है, उसे देखकर तो नहीं लगता कि इस मामले में भाजपा नेता इतने ईमानदार भी हो सकते हैं कि विरोधी पार्टी के नेता भाजपा में शामिल होना चाहें और पार्टी का कोई नेता मना कर दे। साफ़ है जो पार्टी आप की जीत के बाद भी अपना पार्षद बनाने का दावा पहले ही कर चुकी हो, वह भला उसके पार्षदों को तोडक़र अपना महापौर बनाने की कोशिश क्यों नहीं करेगी? वह भी तब, जब विरोधी पार्टी के पार्षद ख़ुद उसके साथ आना चाह रहे हों।
भाजपा पर हमेशा झूठ की राजनीति का आरोप लगाने वाले आप के वरिष्ठ नेता भाजपा के दावे के बाद ही कह चुके हैं कि उनके पार्षदों को तोडऩे की कोशिशें हो रही हैं और पार्टी ने अपने पार्षदों से साफ़ कह दिया है कि अगर भाजपा का कोई नेता उन्हें फोन करके भाजपा में शामिल होने का निमंत्रण देता है, तो वे उनकी कॉल को रिकॉर्ड कर लें। फ़िलहाल आप की सतर्कता ही नगर निगम की सत्ता के निर्णायक व्यक्ति महापौर को उसे दिला पाएगी। इसके बाद उसके आगे वे तमाम चुनौतियाँ होंगी, जिन्हें लेकर आप भाजपा को घेरती रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाग्य आजमाने की कोशिश में लगे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए नगर निगम में उनके पार्षदों का काम भी रास्ते में रोशनी की किरण साबित होगा। इसलिए अगर वह नगर निगम के लिए बनायी अपनी योजनाओं को परवाज़ देते हैं, तो इसे बेहतर ही कहा जाएगा।