कहीं सपा ने भाजपा नेताओं को गैरवाजिब फायदे पहुंचाए तो कहीं भाजपा नेताओं के ऊपर दर्ज आपराधिक मामले वापस लेने की बात चली. भाजपा ने भी कई मौकों पर बड़ी दोस्ती निभाई जिसका एक उदाहरण कन्नौज लोकसभा उपचुनाव है. यहां उसने जान-बूझकर सपा के खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया. अब इसके एवज में सपा उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी के खिलाफ खुद के ही एक नेता द्वारा दर्ज मामला खत्म करवाना चाहती है. 2012 में कन्नौज के लोकसभा उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव की बहू और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव चुनाव मैदान में थीं. इस चुनाव की कुछ घटनाएं बेहद दिलचस्प हैं. बसपा और कांग्रेस ने इस चुनाव में कोई उम्मीदवार खड़ा ही नहीं किया था. भाजपा ने आखिरी वक्त में अपना उम्मीदवार घोषित किया जो तय समय पर नामांकन करने पहुंच ही नहीं सका. इस पर उसकी काफी छीछालेदर भी हुई थी. नतीजा यह हुआ कि डिंपल यादव कन्नौज लोकसभा से निर्विरोध जीत गईं. भाजपा यह आरोप लगाती रही कि सपा कार्यकर्ताओं ने उनके उम्मीदवार को नामांकन भरने ही नहीं दिया. लेकिन सच्चाई यह नहीं है. दरअसल भाजपा की उम्मीदवार खड़ा करने की योजना ही नहीं थी.
समाजवादी पार्टी के प्रदेश सचिव मेरठ निवासी अब्बास अहमद तहलका को बताते हैं, ‘लक्ष्मीकांत वाजपेयी जी इस समय भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं. 2012 में उन्होंने कन्नौज के लोकसभा चुनाव में हमारी नेता डिंपल जी के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था. इसलिए अब हम उनके खिलाफ मेरठ में दर्ज एक मामले को वापस ले रहे हैं.’ मगर यह मामला है क्या, पूछने पर अब्बास बताते हैं, ‘2005 में मेरठ के विक्टोरिया पार्क में अग्निकांड हो गया था. मुलायम सिंह जी उस समय मुख्यमंत्री थे. वे पीड़ितों से मिलने के लिए मेरठ आए हुए थे. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने अपने समर्थकों के साथ नेताजी का घेराव किया था. उन लोगों ने नेताजी के ऊपर हमला कर दिया. किसी तरह से सुरक्षा बल नेताजी को सुरक्षित निकाल कर ले गए. मैं भी नेताजी के साथ ही था. तब वाजपेयी जी ने अपने समर्थकों के साथ मेरे ऊपर हमला कर दिया. मुझे अस्पताल में भरती होना पड़ा. मैं मरते-मरते बचा. तब मैंने सिविल लाइन थाने में वाजपेयी जी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी. यह आठ साल पुरानी बात है. यही मामला अब वापस लेने की चिट्ठी मैंने एसएसपी को लिखी है.’ जब हम अब्बास अहमद से पूछते हैं कि क्या इस संबंध में उन्हें मुलायम सिंह या अखिलेश यादव से कोई निर्देश मिला है तो उनका जवाब आता है, ‘इस मामले में नेताजी से मेरी बात हुई थी. उन्होंने कहा कि राजनीति में कोई दुश्मन नहीं होता. आप मामला वापस ले लेंगे तो मुझे कोई परेशानी नहीं होगी.’
अब्बास अहमद ने छह महीने पहले ही लक्ष्मीकांत वाजपेयी के खिलाफ दर्ज मामला वापस लेने का पत्र स्थानीय प्रशासन को भेज दिया था. जल्द ही वे इस संबंध में एक और पत्र लिखने वाले हैं. अब्बास अहमद की यह स्वीकारोक्ति दोनों पार्टियों के बीच चल रहे अंदरूनी गठजोड़ की सच्चाई है. हाल ही की बात है वरिष्ठ सपा नेता आजम खान ने भाजपा विधानमंडल दल के नेता हुकुम सिंह से विधानसभा में मुखातिब होते हुए कहा, ‘हुकुम सिंह जी अब आप समाजवादी हो जाइए. कहां वहां फंसे हैं.’ हालांकि आजम खान ने तो यह बात मजाक में कही थी मगर हुकुम सिंह पर सपा मेहरबान है इसका भी एक उदाहरण है. हुकुम सिंह मुजफ्फरनगर जिले से आते हैं. वे अपने जिले के पुलिसवालों की मनमानी से परेशान चल रहे थे सो उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इस बात की शिकायत कर दी. इस शिकायत के जवाब में मुख्यमंत्री ने अगले ही दिन जिले के तीन थानाध्यक्षों का ट्रांसफर नहीं किया बल्कि उन्हें लाइन हाजिर कर दिया. काबिले गौर तथ्य यह भी है कि ये सारे के सारे थानाध्यक्ष यादव जाति के थे. मेलभाव की इस स्थिति का बयान एक पुराने भाजपा कार्यकर्ता बेहद दिलचस्प अंदाज में करते हैं, ‘पार्टी तो एक दशक से सत्ता से बाहर है, लेकिन जैसे ही सपा की सरकार बनती है प्रदेश के सारे बड़े भाजपा नेताओं की आंख में चमक आ जाती है. उनमें यह साबित करने की होड़ लग जाती है कि वे ही सपा के सबसे बड़े पिछलग्गू हैं.’ यह तंबुओं में शिविर लगाकर अधिवेशन करने वाली पार्टी का सुविधाभोगी चेहरा है.