उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा प्रभाव रखने वाली समाजवादी पार्टी खुद को धर्मनिरपेक्ष और अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा हितैषी बताती है. एक समय यहां सबसे ज्यादा प्रभाव रखने वाली भारतीय जनता पार्टी को सपा धुर-सांप्रदायिक और अल्पसंख्यकों के साथ पूर्वाग्रह रखने वाली पार्टी मानती है. तहलका की खोजबीन में इस तरह के तमाम उदाहरण सामने आते हैं जो बताते हैं कि ये दोनों पार्टियां प्रदेश में कई स्तरों पर जैसे भी संभव हो एक-दूसरे का सहयोग करने को तैयार रहती हैं. यह सहयोग पार्टी की घोषित मूल विचारधारा के साथ समझौता करके भी किया जा सकता है. इस मिलीभगत का एक उदाहरण तहलका की हालिया तहकीकात में भी दिखा था. तहलका ने पिछले माह खुलासा किया था कि कैसे सपा ने भाजपा महासचिव वरुण गांधी को 2009 के लोकसभा चुनाव में दिए गए उनके भड़काऊ भाषण से संबंधित मामलों में बरी करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. खुद समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बयान देकर वरुण गांधी पर दर्ज तीनों मामले वापस लेने की बात कही थी.
हालांकि ऐसा हो नहीं सका क्योंकि जिन मुसलमानों के हित की राजनीति वे करते हैं उन्हें ही यह बात रास नहीं आई. इसके बाद उनकी पार्टी के एक नेता और उत्तर प्रदेश सरकार में खादी एवं ग्रामोद्योग मंत्री रियाज अहमद इस काम में लग गए. तहलका की तहकीकात में कुछ महत्वपूर्ण लोगों ने बताया कि रियाज अहमद ने वरुण गांधी के खिलाफ गवाही देने वाले मुसलिम गवाहों को मुकरने के लिए तैयार किया. ऐसा नहीं है कि सिर्फ सपा ही वरुण का साथ दे रही थी. 2012 के विधानसभा चुनावों के दौरान वरुण गांधी ने भी पीलीभीत से अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार सतपाल गंगवार को हराकर सपा के इन्हीं उम्मीदवार रियाज अहमद को जिताने के निर्देश दिए थे. इसकी पुष्टि करते ऑडियो टेप तहलका ने जारी किए थे. भड़काऊ भाषण से संबंधित मामलों में वरुण गांधी की रिहाई हो गई. सरकार इस मामले में वादी थी, मामला मुसलमानों के खिलाफ घृणा फैलाने का था. इसके बावजूद खुद को मुसलमानों की हितैषी कहने वाली सपा सरकार ने आखिरी तारीख बीत जाने दी और ऊपरी अदालत में अपील नहीं की. तहलका की रिपोर्ट के बाद मचे शोर के दबाव में सरकार ने अब सेशन कोर्ट में अपील दायर की है. जीवविज्ञान का एक शब्द है सहजीवन. भिन्न-भिन्न जीव-जंतु या पेड़-पौधे अपनी जरूरतों के लिए एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं. सपा-भाजपा की आपसी निर्भरता इसी सहजीवन का आदर्श उदाहरण है. वरुण गांधी रिहाई का मामला इसे साबित करती अकेली कहानी नहीं है. तहलका की खोजबीन में इस तरह के तमाम उदाहरण सामने आए.