क्या दारू स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हो सकती है? क्या शुगर फ्री टाइप की चीजें या जीरो कैलोरी ड््रिंक्स वगैरह लेने से वजन नहीं घटता? आपका लेख पढ़कर तो ऐसा ही लगा. कभी एंटीऑक्सीडेंट्स क्या होते हैं, यह भी तो बतला दें. कहते हैं कि स्वस्थ रहने में इनका भी बड़ा रोल होता है, साहब.
मेरे पिछले कॉलम (मेटाबॉलिक सिंड्रोम) के छपने के बाद बहुतों ने मुझे फोन करके ये बातें कीं. विशेष तौर पर अल्कोहल को लेकर तो कई पाठक आश्चर्य प्रकट करने लगे कि दारू भी क्या स्वास्थ्यप्रद हो सकती है? एक-दो ने तो इसे मेरे व्यंग्यकार पक्ष से जोड़ने की कोशिश की और माना कि बात मजाक में लिखी गई होगी. कॉलम की अपनी सीमा होती है. मेटाबॉलिक सिंड्रोम में कदाचित ये बातें इस विस्तार से नहीं बता पाया तभी इतने भ्रम तथा प्रश्न उठे हैं. आज मैं दारू, बनावटी मिठास वाले प्रॉडक्ट्स औैर एंटीऑक्सीडेंट नाम की बला के बारे में कुछ ऐसी बातें बताता हूं कि आप भी कहेंगे कि वाह, क्या बात है.
दारू लाभदायक भी हो सकती है.
दारू से हमारा तात्पर्य है- बीयर, वाइन और व्हिस्की जैसी अन्य कोई भी दारू. सुना तो यही था कि दारू पीना बुरी बात है. इससे अल्सर, लीवर सिरोसिस और न जाने क्या बीमारियां हो जाती हैं. यह भी पता था. पी के नाली में घुस जाते हैं, यह तो स्वयं देखा भी था, बल््कि एकाध बार तो स्वयं ही घुस गए थे. फिर? फिर कोई कैसे कह सकता है कि यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, मेटाबॉलिक सिंड्रोम कंट्रोल करती है, डायबिटीज, हार्ट अटैक आदि खतरे भी कम कर सकती है?
हां, यह सत्य है.
दारू यदि कंट्रोल डाेज में ली जाए तो ये सारे फायदे हो सकते हैं, ऐसा कई अध्ययनों से सिद्ध हो चुका है. पर यह कंट्रोल डोज क्या है? फिर कब लेना ठीक कहाएगा? यह माना गया है कि रात के खाने से ठीक पहले यदि दो (पुरुषों के लिए) या डेढ़ (महिलाओं के लिए) ड्रिंक्स लिए जाएं तो यह फायदा पहुंचाएगी. अब आप पूछोगे कि एक ड्रिंक का क्या मतलब? तो सुनिए, एक ड््रिंक का मतलब है 360ml बीयर, 150ml वाइन या फिर 45ml की तथाकथित हार्ड ड्रिंक्स. अब इसे डेढ़ से दो ड््रिंक्स के हिसाब से लगा लें. बस इतना लें. वाइन में भी रेड वाइन.
हां! इस डाेज को पार किया कि दारू के उल्टे असर शुरू. वहां फिर वे सारी बीमारियां शुरू जिनके कारण दारू बदनाम है. यदि दारू को नशे या किक प्राप्त करने के लिए न पीकर स्वास्थ्यवर्धक दवाई के तौर पर पीना चाहते हैं तो पी सकते हैं. नशे के लिए पीने वाला कुछ समय बाद ही इस सुरक्षित डोज को पार कर जाता है और कहीं का नहीं रह जाता. गड़बड़ बस इतनी है. वर्ना इस सुरक्षित डोज में दारू क्या-क्या लाभ पहुंचा सकती है, इसकी लिस्ट लंबी है. बताता हूंः
क्या आप जानते हैं कि इस मात्रा में दारू एक बेहतरीन इंसुलिन सेेंसीटाइजर है?
तात्पर्य यह कि दारू का डोज इंसुलिन के प्रभाव को बढ़ाता है जिसके कारण ब्लड शुगर बेहतर कंट्रोल होता है. देखा गया है कि रात में खाने से ठीक पहले यदि ‘रेड वाइन’ का एक ग्लास पी लें तो एक स्वस्थ व्यक्ति में भोजन के बाद का ’ब्लड शुगर लेवल’ 30% तक कम हो सकता है. यही प्रभाव डायबिटीज और मेटालॉजिक सिंड्रोम में भी देखा गया है. बीयर और अन्य दारूओं से भी यह 20 % तक कम हो सकता है.
दारू के साथ दिक्कत यही है कि आदमी तय डोज पर रुकने को राजी नहीं होता. इसीलिए डॉक्टर लोग इस इलाज का जिक्र ही नहीं करते
खाना खाने के बाद की ’ब्लड शुगर’ कम होने से क्या फायदा है? फायदा है न. फायदा समझने के लिए पहले यह वैज्ञानिक तथ्य समझें कि जब हम भोजन करते हैं तो खाना खाने के बाद का ’ब्लड शुगर’ लेवल बढ़ सकता है जो शरीर चलाने के लिए जरूरी भी है. पर यह बढ़ा लेवल शरीर में ’फ्री रेडिकल्स’ नामक हानिकारक पदार्थ भी पैदा करता है. अचानक बढ़ी शुगर से पूरे शरीर में ऊतकों में ‘इन्फ्लेमेशन’ (एक किस्म की सूजन कह लें) भी हो जाता है. यह होता बहुत कम समय के लिए है पर होता तो है. ये फ्री रेडिकल्स और यह ‘सिस्टेमिक इन्फ्लेमेशन’ हार्ट अटैक, स्ट्रोक, डायबिटीज, हार्ट फेल्योर और डेमेंशिया आदि खतरनाक बीमारियों की जड़ में माने जाते हैं. कई स्टडीज से यह सिद्ध हुआ है कि यदि रात के खाने से ठीक पूर्व, बताए गए डोज में दारू ली जाए तो डायबिटीज होने का खतरा 30% से 40% तक कम किया जा सकता है. कहा तो यहां तक जाता है कि इससे हार्ट अटैक का खतरा भी लगभग 30% और ‘ओवर ऑल’ मृत्यु को लगभग 20% तक कम किया जा सकता है. अब और क्या चाहिए, यार?
परंतु मैं पुन: कहूंगा कि दारू के साथ दिक्कत यही है कि आदमी तय डोज पर रुकने को राजी नहीं होता. यही वह खतरा है जिसकी वजह से डॉक्टर लोग इस इलाज का जिक्र ही नहीं करते जिसकी चर्चा मैंने ऊपर विस्तार से की.
‘आर्टिफिशियल स्वीटनर्स’ वजन बढ़ा सकते हैं.
हम या तो मिठाइयां भकोसते हैं या एकदम से सैकरीन-एस्पार्टेम आदि कृत्रिम मिठास वाली चीजों पर उतर आते हैं. याद रखें कि हमारी जीभ को मीठा स्वाद पता तब चलता है जब 200 में से 1 पार्ट भी शक्कर का हो. जबकि कृत्रिम स्वीटनर्स मिठास का इतना ‘स्ट्रोग सेंसेशन’ पैदा कर सकते हैं कि हमारी जीभ को 1,000 में से एक पार्ट भी पता चल जाएगा. नतीजा? नतीजे दो हैं. विशेष तौर पर ऐसी ’जीरो कैलोरी’ ड्रिंक्स जो मीठी तो हैं पर कैलोरीज से खाली हैं. लोग इन्हें पीते हैं. सोचते हैं, कितना भी पिओ इनमें कैलोरीज तो हैं नहीं! पर इन्हें पीने, पीते रहने से हमारे शरीर में एक अनोखा बदलाव हुआ जाता है. अब हमारा शरीर मिठास और कैलोरी भक्षण के संबंध को समझना बंद कर देता है. यह महाखतरनाक है. इससे हार्मोंस तथा दिमाग के ‘न्यूरोबिहेवियर’ कनेक्शनों में गड़बड़ पैदा हो जाती है. ज्यादा खाते हैं और दिमाग के सेटइटी (तृप्ति) सेंटर को पता ही नहीं चलता. तृप्ति का भाव दब जाता है. आदमी पतले के बजाए मोटा हो सकता है. स्टडीज से पता चला है कि ये ’कृत्रिम मिठास’ वाले पदार्थ कोकीन के नशे से भी ज्यादा आदी बनाने वाले पदार्थ हैं. इनकी जीरो कैलोरी ड्रिंक्स के आप आदी भी हो सकते हैं.
देखिए कि फिर भी एंटीऑक्सीडेंट्स आदि के बारे में इस बार भी बताने को रह ही गए. क्या करें? कॉलम की सीमा पर खड़े होकर वायदा ही कर सकते हैं कि फिर कभी!