उत्तर प्रदेश में पूर्ववर्ती बसपा सरकार में मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या व भाई शिवसरन कुशवाहा ने हाल ही में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. कुशवाहा नेशनल रूरल हेल्थ मिशन में हुए सैकड़ों करोड़ रुपये के घोटाले के मुख्य आरोपी हैं और फिलहाल गाजियाबाद की डासना जेल में बंद हैं. कुशवाहा परिवार की ताजपोशी गुपचुप तरीके से नहीं बल्कि सपा के प्रदेश मुख्यालय में कार्यक्रम आयोजित करके की गई. इस पर विपक्ष ने पार्टी पर हमला बोल दिया लेकिन चुनावी साल में जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए सपा ने विपक्ष के हमलों को नजरंदाज कर दिया. दरअसल लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सपा ही नहीं बल्कि दूसरी पार्टियां भी दागी व आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को अपने पास बैठाने से परहेज नहीं कर रही हैं.
सबसे पहले बात सत्तासीन समाजवादी पार्टी की. करीब डेढ़ साल पहले 2012 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हुए थे. उस समय वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से बाहुबली डीपी यादव सहित कई ऐसे लोगों का टिकट यह कहते हुए काट दिया था कि सपा में दागी व आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए कोई जगह नहीं है. लेकिन डेढ़ साल का समय बीतते-बीतते ही लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी सब भूल गई. अब पार्टी में दागी और आपराधिक छवि वाले लोगों का स्वागत है. जब ऐसे लोगों ने सत्ता का दामन थामा है तो उनके उपर सत्ता का करम होना भी लाजिमी है. जेल में बंद बाबू सिंह कुशवाहा को ही लीजिए.
कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या व भाई शिवसरन ने जैसे ही सत्ता का दामन थामा वैसे ही जेल प्रशासन ने उन्हें गाजियाबाद की डासना जेल से बाहर निकालकर उन्हें उपचार के लिए लखनऊ के पीजीआई में भर्ती करवा दिया. वे कार्डियालोजी विभाग के प्राइवेट वार्ड में भर्ती हुए. डाक्टरों ने जांच के बाद उनको स्वस्थ बताया और उन्हें अस्पताल छुट्टी दे दी. लेकिन कुशवाहा ने अपना प्राइवेट वार्ड नहीं छोड़ा. सूत्र बताते हैं कि पीजीआई के रवैये को देखते हुए शासन की ओर से मामले में हस्तक्षेप किया गया. कुछ घंटे में ही स्थितियां फिर से कुशवाहा के पक्ष में हो गईं और डाक्टरों ने उन्हें कार्डियालॉजी से यूरोलॉजी विभाग में कर दिया. सपा के कई नेता पीजीआई में कुशवाहा से मिलने भी गए. परिवार की सत्ता में घुसपैठ का लाभ यहीं नहीं थमा. सरकार की ओर से कुशवाहा के खिलाफ कथित घोटालों की जांच का जो शिकंजा लगातार कसता जा रहा था वह भी थोड़ा कमजोर हुआ है. पुलिस विभाग के एक बड़े अधिकारी बताते हैं, ‘कुशवाहा के खिलाफ झांसी व इलाहाबाद में दर्ज मामलों की जांच विजिलेंस से कराए जाने की मांग की गई थी जिसे अब वापस लेकर उन्हें कुछ राहत दी गई है.’
बसपा से निकाले जाने के बाद विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जब कुशवाहा ने भाजपा का दामन थामा तो इसी सपा ने काफी शोर-शराबा करते हुए इसे बड़ी डील करार दिया था. आखिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि उसी कुशवाहा के परिजनों को सपा ने अपना दामन ही नहीं पकड़ाया बल्कि बाबू सिंह की पत्नी शिवकन्या को पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसी जिले से टिकट देने की बात तक अंदर खाने चल रही है? दरअसल यह सारी कवायद एक दिन की नहीं है. तीन-चार माह पूर्व सपा के एक बड़े नेता ने डासना जेल जाकर कुशवाहा से भेंट की थी. उसके बाद से ही ये समीकरण बनने लगे थे. सपा के बड़े नेता की कुशवाहा से मुलाकात की बात जेल प्रशासन ने भी गोपनीय रखी. सवाल उठता है कि जब सपा दागियों व आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से चुनाव में दूरी की बात करती आ रही थी तो अचानक ऐसी कौन सी मजबूरी बन गई कि बाबू सिंह कुशवाहा के परिवार को पार्टी में शामिल किया गया. इस पर सपा के ही एक नेता कहते हैं, ‘जैसे बसपा ब्राह्मणों और दलितों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रही है उसी तरह सपा भी अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्ग के वोट बैंक में अपनी पैठ मजबूत करने के इरादे से ऐसा कर रही है. बाबू सिंह कुशवाहा अभी जेल में हैं, ऐसे में सपा के टिकट पर यदि उनकी पत्नी किसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ती हैं तो कुशवाहा की सिंपैथी में एक सीट निकलना कोई बड़ी बात नहीं है. क्योंकि लोकसभा चुनाव में एक-एक सीट काफी मायने रखती है.’
दागी कुशवाहा ही नहीं, कई संगीन मामलों में आरोपी गुड्डू पंडित को बसपा ने जब विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया तो सपा ने उन्हें अपना सहारा दिया. सपा के टिकट पर गुड्डू बुलंदशहर जिले से विधायक ही नहीं बने बल्कि 2014 के लोकसभा चुनाव में अपनी पत्नी को पड़ोसी जिले अलीगढ़ से टिकट दिलवाने में भी सफल रहे. लेकिन अलीगढ़ में सपा की जिला कार्यकारिणी के सदस्यों का खुलकर विरोध देखते हुए टिकट कुछ दिन पहले काट दिया गया. बसपा के मंत्री रहे नंद गोपाल नंदी पर इलाहाबाद में हुए बमों से हमले के आरोपी सपा विधायक विजय मिश्र की बेटी सीमा मिश्र को भी सपा ने भदोही से लोकसभा का उम्मीदवार बनाया है.
यदि बात बसपा की करें तो आम दिनों में उसे भले ही दागियों और दबंगों से पहरेज हो लेकिन चुनाव में इन सब को मिला कर चलना ही उसकी भी आदत में शुमार है. कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाए जाने सहित कई मामलों के आरोपी फैजाबाद के बाहुबली नेता बबलू सिंह को विधानसभा चुनाव से पहले बसपा ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इसके बाद बबलू पीस पार्टी के बैनर तले विधानसभा का चुनाव लड़े और हार गए. लेकिन चुनाव बाद स्थितियां बदली और बसपा ने बबलू को फिर से घर वापसी का मौका ही नहीं दिया बल्कि फैजाबाद लोकसभा सीट से उन्हें प्रत्याशी भी बनाया है. इसी तरह जौनपुर के बाहुबली सांसद धनंजय सिंह पर एनआरएचएम की आंच आई तो विधानसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती ने उनके पिता का टिकट ही नहीं काटा बल्कि धनंजय को भी कुछ दिनों बाद बाहर का रास्ता दिखा दिया. बसपा प्रमुख की यह सख्ती दागियों और दबंगों के लिए कुछ दिन ही रही. कुछ माह पूर्व धनंजय भी धीरे से बसपा में फिर से सक्रिय हो गए. धनंजय को फिर से जौनपुर लोकसभा सीट से पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया है.
नैतिकता व आदर्श की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी भी इस चुनावी मौसम में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के प्रेम से अछूती नहीं है. वरूण गांधी की नई लोकसभा सीट सुल्तानपुर जिले की इसौली विधानसभा से पूर्व विधायक सोनू सिंह ने भाजपा का दामन थामा है. 2010 के पंचायत चुनाव के समय सोनू सिंह बसपा के विधायक थे. उसी समय उनके गांव मायंग निवासी लेखपाल की हत्या हो गई थी. लेखपाल के परिजनों ने सोनू सिंह व उनके ब्लाक प्रमुख भाई मोनू सिंह को नामजद किया था. सोनू सिंह पर लेखपाल की हत्या सहित कई अन्य संगीन मामले भी हैं. हत्या में अपने विधायक का नाम आने पर बसपा ने सोनू सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. 2012 का विधानसभा चुनाव सोनू सिंह पीस पार्टी से लड़े और हार गए. सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर जातीय समीकरणों को देखते हुए सोनू सिंह पर लगने वाले सभी आरोपों को दर किनार करते हुए भाजपा ने उन्हें शरण दे दी है. ऐसा नहीं कि सोनू सिंह भाजपा में गुपचुप तरीके से षामिल हुए हैं. वरूण की सुल्तानपुर में हुई रैली में पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी की उपस्थिति में सोनू सिंह ने भाजपा का दामन थामा.
दागियों और दबंगों की इस फेहरिस्त में शामिल जेल में बंद माफिया बृजेश सिंह, मुन्ना बजरंगी और मुख्तार अंसारी भी लोकसभा चुनाव में ताल ठोकने की तैयारी कर रहे हैं. इनमें से मुख्तार अंसारी 2009 का लोकसभा चुनाव बनारस से बीएसपी के टिकट पर लड़ चुके हैं. मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी 2004 का लोकसभा चुनाव सपा के टिकट पर लड़े और जीते भी. लेकिन अंसारी भाइयों ने अब अपनी पार्टी कौमी एकता दल बनाया है. बृजेश और मुन्ना को चुनाव से पहले किस पार्टी का दामन मिलेगा, अब यह देखना बाकी है. फिलहाल दोनों ही जेल से राजनीति का आनंद लेने के लिए तैयार हैं.