आजकल पूरे देश में, खासकर उत्तर भारत में महिलाओं पर अत्याचारों के मामले काफी अधिक हो रहे हैं। दु:खद यह है कि पुरुष-प्रधान समाज में आज भी लोग तब भी महिलाओं को प्रताडि़त करने वाली मानसिकता रखते हैं, जब वे किसी माँ के बेटे होते हैं, किसी बहन के भाई होते हैं, किसी महिला के पति होते हैं और शायद किसी बेटी के बाप भी। महिलाओं के िखलाफ ये अत्याचार कोई नये नहीं हैं, बल्कि सदियों से होते चले आ रहे हैं। अगर हम इतिहास को खँगालें अथवा प्रथाओं की पड़ताल करें, तो पायेंगे कि भारत में अनेक प्रथाएँ ऐसी हैं, जो महिलाओं को दासी की तरह रखने और उन पर पुरुषों के वर्चस्व को बनाये रखने के लिए ही शायद बनायी गयी हैं। यही कारण है कि महिलाओं को सदा से ही उपभोग की वस्तु की तरह इस्तेमाल किया गया है। आज जब महिलाएँ पुरुषों के कन्धे-से-कन्धा मिलाकर चल रही हैं; हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर का योगदान कर रही हैं, तब भी उन पर अत्याचार घट नहीं रहे हैं। इसके पीछे की वजहें क्या हैं? आिखर क्यों इस आधुनिक युग में, जब हम यह भी जानते हैं कि महिलाओं के बगैर पुरुष अस्तित्व की कृपना भी नहीं की जा सकती; महिलाओं पर अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे हैं?
इन सब कारणों की जड़ में जाने पर हमें कई ची•ों ऐसी मिलेंगी, जो बहुत ही गलत हैं और कुरीतियों के रूप में समाज में विद्यमान हैं और कुछेक जगहों को छोडक़र पूरे देश में फैली हुई हैं। यही कुरीतियाँ वे असली जड़ें हैं, जिनके चलते महिलाओं पर अत्याचार होते हैं। इन्हीं कुरीतियों में से एक कुरीति है- दहेज-प्रथा।
अगर कोई भी सामान्य आदमी देश में दहेज-प्रथा के चलते होने वाले अत्याचारों के आँकड़ों पर नज़र डाले और दहेज के लिए महिलाओं पर किये गये अत्याचारों की कहानी सुने, तो शॢतया रो पड़ेगा। एक अनुमान के मुताबिक, महिलाओं पर तकरीबन 70 फीसदी अत्याचार उनके अपने घर में ही होते हैं, जिनमें करीब 55 फीसदी अत्याचार दहेज को लेकर होते हैं।
हालाँकि, दहेज-प्रथा के िखलाफ कानून बना हुआ है; लेकिन लालची लोग परम्परा और प्रथा की आड़ लेकर दहेज की जमकर माँग करते हैं और विडम्बना यह है कि लडक़ी वाले अच्छे वर और घर के लालच में खुद को बर्बाद करके भी दहेज पूरा करते हैं। लेकिन कितने ही लालची भेडिय़े इतने पर भी उनकी मासूम बेटियों को अत्याचारों की असहनीय पीड़ा से गुज़ारने के बाद आिखर मौत के घाट तक उतार देते हैं।
इस कुप्रथा का अंत आिखर कब होगा? इस सवाल का जवाब यह है कि जब तक हम ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, तत्र रमंते देवता’ वाले श्लोक को पूरी तरह मन से स्वीकार करके जीवन में धारण नहीं कर लेंगे। जब तक लोग महिलाओं के प्रति खुद को जन्म देकर जीवन देने वाली माँ को ईश्वर नहींं मानेंगे; जब तक उसे अपनी पहली शिक्षक नहीं मानेंगेे; जब तक बेटी को बेटे के बराबर प्यार नहीं देंगे; जब तक बहिन को एक भाई की तरह नहीं मानेंगे; जब तक पत्नी को सच्चा दोस्त और सहयोगी नहीं मानेंगे; तब तक अत्याचार नहीं रुकेंगे। अगर ऐसा हो गया, तो दहेज-प्रथा का आसानी से अंत हो जाएगा।
कुल मिलाकर दहेज-प्रथा का अंत ज़रूरी है, ताकि महिलाओं पर अत्याचार रुक सकें। इसके लिए संस्कार, शिक्षा और महिलाओं के प्रति सम्मान आदि को बढ़ावा देना होगा। दहेज-प्रथा कानून की सबको जानकारी देनी होगी और उसका भय भी दिखाना होगा।
पहले यही जानते हैं कि दहेज-प्रथा कानून क्या है?
दहेज लेने-देने पर सज़ा का प्रावधान
भारतीय दहेज निषेध अधिनियम, 1961 कहता है कि दहेज लेना, देना अथवा इसके लेन-देन में सहयोग करना कानूनी जुर्म है और ऐसा करने-कराने वालों को छ: माह से 10 साल तक की कैद और प्रत्येक पर 10,000 रुपये या उससे अधिक ज़ुर्माना लगाने का प्रावधान है। वहीं, दहेज के लिए प्रताडि़त करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के अन्तर्गत पूरे तीन साल की कैद की सज़ा के साथ ज़ुर्माने का प्रावधान भी है। यह सज़ा पीडि़ता के पति, ससुराल वालों और ससुराल पक्ष के रिश्तेदारों के द्वारा सम्पत्ति अथवा दहेज की अवैधानिक माँग करने पर न्यायालय द्वारा दी जा सकती है। वहीं, धारा 406 के अन्तर्गत लडक़ी के पति और ससुराल वालों के लिए तीन साल की कैद अथवा ज़ुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान हैं, यदि वे लडक़ी को उसका अधिकार देने अथवा दहेज में मिला धन सौंपने से मना करते हैं।
दहेज-प्रथा रोकने के लिए सज़ा का प्रावधान
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा-2 को दहेज (निषेध) अधिनियम संशोधन अधिनियम-1984 और 1986 में संशोधित किया गया है, जिसके अंतर्गत दहेज को कुछ इस तरह से परिभाषित किया गया है :-
दहेज का अर्थ प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष तौर पर दी गयी कोई भी सम्पत्ति अथवा मूल्यवान प्रतिभूति सुरक्षा अथवा उसे देने की सहमति से है। इसके अंतर्गत विवाह के किसी एक पक्ष द्वारा, दूसरे पक्ष को अथवा विवाह के किसी पक्ष के अभिभावकों/माता-पिता/अन्य परिजनों द्वारा अथवा विवाह के किसी पक्ष के किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को विवाह के दौरान अथवा उससे पहले अथवा उसके बाद लेना कानूनन जुर्म है।
बता दें कि पहले दहेज के लेन-देन अथवा दहेज के लेन-देन के लिए उकसाने पर छ: माह की कैद की सज़ा थी। बाद में इसे बढ़ाकर न्यूनतम छ: माह और और अधिकतम 10 साल की कैद की सज़ा का प्रावधान किया गया। वहीं ज़ुर्माने की रकम बढ़ाकर 10,000 रुपये अथवा ली गयी अथवा दी गयी अथवा माँगी गयी दहेज की रकम; दोनों में से जो भी अधिक हो-के बराबर कर दिया गया है। हालाँकि दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 के अंतर्गत अदालत ने न्यूनतम सज़ा को कम करने का फैसला किया है; लेकिन ऐसा करने के लिए अदालत को ज़रूरी और विशेष कारणों की आवश्यकता होती है।
दहेज-प्रथा की धाराएँ और उनके प्रावधान
आइये जानते हैं कि दहेज के िखलाफ भारतीय कानून में कौन-कौन सी और कितनी धाराएँ हैं तथा इनके अंतर्गत किस तरह के प्रावधान हैं?
धारा-3 : इस धारा के अंतर्गत दहेज के लेन-देन अशवा दहेज के लिए उकसाने पर सज़ा और ज़ुर्माने का प्रावधान है। लेकिन यह भी नियम है कि यदि विवाह में के दौरान वर अथवा वधू को उपहार मिलते हैं, तो उन्हें सूचीवद्ध किया जाना चाहिए। ऐसा करने पर वह दहेज से बाहर माना जाएगा।
धारा-4 : इस धारा के अंतर्गत दहेज की माँग के लिए ज़ुर्माने और सज़ा का प्रावधान है। इस धारा के अंतर्गत यदि किसी पक्षकार के माता-पिता, अभिभावक, अन्य परिजन अथवा रिश्तेदार प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से दहेज की माँग करते हैं, तो उन्हें कम-से-कम छ: माह और अधिकतम दो साल की कैद की सज़ा के अलावा 10000 रुपये तक का ज़ुर्माना हो सकता है।
धारा-4 (ए) : इस धारा के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रकाशन अथवा मीडिया के माध्यम से पुत्र-पुत्री के विवाह में व्यवसाय अथवा सम्पत्ति अथवा हिस्से का कोई प्रस्ताव करना भी दहेज की श्रेणी में माना जाएगा। ऐसा करने अथवा करने को बाध्य करने पर कम-से-कम छ: माह और अधिकतम पाँच साल की कैद की सज़ा के अलावा 15000 रुपये तक का ज़ुर्माना हो सकता है।
धारा-6 : इस धारा में प्रावधान है कि अगर कोई दहेज वधु के अलावा अन्य किसी व्यक्ति द्वारा धारण किया जाता है, तो वह व्यक्ति दहेज लेने के तीन माह के अन्दर और अगर लडक़ी नाबालिग है, तो उसके बालिग होने के एक साल के अन्दर उसे हस्तांतरित कर देगा। यदि वधु/लडक़ी की मृत्यु हो गयी हो और संतान नहीं हो, तो उस दहेज को उसके अविभावकों अथवा माता-पिता अथवा परिजनों को दहेज-अन्तरण किया जाएगा और यदि संतान है, तो संतान को अन्तरण किया जाएगा।
धारा-8 (ए) : इस धारा में प्रावधान यह है कि अगर दहेज के लेन-देन की घटना से एक वर्ष के अन्दर इसके िखलाफ शिकायत की गयी हो, तो न्यायालय पुलिस रिपोर्ट के आधार पर अथवा क्षुब्ध/पीडि़त द्वारा शिकायत किये जाने पर अपराध का संज्ञान ले सकेगा और आरोपियों के िखलाफ फैसला सुनाते हुए सज़ा का प्रावधान कर सकेगा।
धारा-8 (बी) : आजकल आम लोगों को दहेज-प्रथा से सम्बन्धित बहुत-से कानून नहीं मालूम होते हैं, जिसके चलते नवविवाहिता आसानी से दहेज-लोभियों का शिकार हो जाती हैं। आपको बता दें कि हर राज्य में एक दहेज निषेद पदाधिकारी होते हैं। इस धारा के हिसाब से प्रावधान है कि दहेज निषेध पदाधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाएगी। अधिकारी बनाये गये नियमों का अनुपालन कराने अथवा दहेज की माँग के लिए उकसाने अथवा दहेज के लेन-देन को रोकने अथवा अपराध कारित करने से सम्बन्धित साक्ष्य जुटाने का कार्य करेगा, आरोपियों के िखलाफ न्यायोचित तरीके से कानूनी कार्रवाई की जा सके।