20 दिसंबर, 2019 को पूरे उत्तर प्रदेश में जो हुआ वो बहुत ही भयावह है। उस घटना को एक महीने से ऊपर हो गये हैं। उस दिन पुलिस ने जिस तरीके मुसलमानों को निशाना बनाकर दमनात्मक कार्रवाई की उससे उस कौम में आज भी बहुत ज़्यादा खौफ का माहौल है। लोग कुछ भी खुलकर बोलने या बताने से डर रहे हैं। पुलिस के आतंक से लोग इतने भयभीत हैं कि अनेक लोग अपना घरबार तक छोडक़र जा चुके हैं। यह माहौल आपको उत्तर प्रदेश के हालात से वािकफ कराने के लिए काफी है।
जब हम उत्तर प्रदेश की हकीकत जानने के लिए वहाँ गये, तो हर जगह लोगों ने यही बताया कि 20 दिसंबर, 2019 दिन शुक्रवार को जुमे की नमाज़ के बाद जब लोग सीएए और एनआरसी के िखलाफ शान्तिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे, तभी पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया, आँसू गैस के गोले छोड़े और गोलियाँ दागीं, जिससे 27 लोगों की मौत हो गयी। उसके बाद पुलिस ने पूरे प्रदेश में हज़ारों लोगों को गिरफ्तार किया और उनके िखलाफ दंगा कराने, बलवा, आगजनी और अवैध हथियार रखने जैसे फर्ज़ी मुकदमे दर्ज किये। जिन लोगों को गोलियाँ लगी थीं मगर वे बच गये, उनके िखलाफ पुलिस ने दंगे में शामिल होने तथा सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने का मुकदमा दर्ज किया। इतना ही नहीं, सरकारी सम्पत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए नोटिस भेज दिया। इससे लोग बहुत बुरी तरह से डर गये और आज भी डर के साये में जी रहे हैं।
एक महीने बाद भी िफरोज़ाबाद की लोहार गली में रहने वाला असद (बदला हुआ नाम) बुरी तरह डरा हुआ है। उसका परिवार इतना डरा हुआ है कि वो सत्तार को गोली लगने तक से इन्कार कर रहा है। जब हम सत्तार से 17 जनवरी की शाम को मिले, तो असद के भाई ने उनके घर पर किसी शख्स को गोली लगने से साफ इनकार कर दिया। धीरे-धीरे बातचीत के दौरान सत्तार के पिता ने बताया कि 20 दिसंबर को असद घर लौट रहा था, तो अचानक से एक गोली उसके पेट में आकर लगी। काफी पूछने पर उस दिन भी उन लोगों ने इसके सिवाय कुछ नहीं बताया। जब हम अगले दिन 18 जनवरी को फिर से उसके घर गये तो, सत्तार के मोहल्ले के लोगों ने हमें घेर लिया और कहने लगे आपको जो पूछना है, उसका हम लोग जवाब देंगे। लेकिन वे लोग डरे हुए भी थे। जब हमने उन्हें ये भरोसा दिलाया और असद की अम्मी से जब हमने बात की तब उन्होंने असद से मिलवाया।
हमने उनके डर को साफ महसूस किया; क्योंकि असद घर में ही था। जबकि 17 जनवरी की शाम को उसके के भाई और पिता ने हमसे कहा था कि वह ससुराल में अपना इलाज करवा रहा है। उसके परिवार के लोग और मोहल्ले के लोग यह बात भी बार-बार पूछ रहे थे कि आप हमसे किसी कागज़ पर हस्ताक्षर तो नहीं कराएँगे? हस्ताक्षर न कराने के आश्वासन पर लोग कुछ बताने को राज़ी हुए। पूछने पर पता चला कि वहाँ कुछ दिनों पहले भाजपा के लोग आकर सीएए और एनआरसी के समर्थन में उससे जबरन हस्ताक्षर करा कर ले गये हैं। यह बात उनके अंदर के डर को बता रही थी। लोकल लोगों ने बताया कि यहाँ और लोगों को भी गोलियाँ लगी हैं, लेकिन किसी को पता नहीं है; क्योंकि सब पुलिस से डरे हुए हैं।
बिजनौर में भी सलमान, कफील और ओमराज सैनी को गोली लगी है। इन तीनों में से सिर्फ सलमान ये बात कह रहा है कि पुलिस ने गोली मारी है, बाकी दोनों डर के मारे एफआईआर कराना तो दूर कुछ भी बोलने से डर रहे हैं। पूछने पर कुछ बताने से साफ इन्कार कर रहे हैं। बिजनौर के ही नगीना में लोगों को, यहाँ तक कि नाबालिगों और बच्चों को भी पुलिस उठाकर ले गयी। नगीना में हमें एक 15-16 साल का एक लडक़ा मिला। वह इतना डरा हुआ था कि बहुत देर तक प्यार से पूछने के बाद उसने अपना नाम न बताने की शर्त पर बताया कि उसको 20 दिसंबर, को पुलिस उठाकर ले गयी थी और थाने में नंगा करके बहुत मारा। उसे पुलिस ने दो दिन बाद छोड़ा। इस दौरान उसकी खूब पिटाई की गयी। नगीना में ही शारिक नाम के एक लडक़े का मार-मारकर पुलिस ने पैर तक तोड़ डाला। उसने बताया कि जब उसे बिजनौर पुलिस लाइन ले जाया गया, वहाँ बस से उतरते ही दर्ज़नों पुलिस वाले मिलकर एक-एक लडक़े और एक-एक व्यक्ति पर लाठियाँ बरसा रहे थे। पुलिस ने पैर टूट जाने के बाद भी 13-14 घंटे उसे कोई चिकित्सा उपलब्ध नहीं करायी। जब उसके पिता उसको लेने आये, तो पुलिस ने उनसे लिखवाया की उनका लडक़ा बलवा में आया है। ऐसा हमें शारिक के पिता ने बताया। उन्होंने बताया कि उन्हें अपने बेटे के इलाज के लिए लगभग एक लाख रुपये तक का कर्ज़ दो रुपये सैकड़ा के ब्याज पर लिया है। शारिक सिलाई का काम करता था। शारिक के पिता कंपाउंडर हैं। नगीना में मोहम्मद सैफ ने बताया की उनका लडक़ा कैफ आज भी जेल में है। उसकी उम्र 18 साल 3 महीने है। उसकी 11वीं की परीक्षा फरवरी से शुरू होने वाली है और वह जेल में ही (19 जनवरी तक) है। वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा है। सैफ ने बताया कि पुलिस ने पैर पर और कमर पर बहुत बुरी तरह मारा है। बच्चे बहुत डरे हुए हैं। मुजफ्फरनगर के सादात हॉस्टल के बच्चों को पुलिस ने बेरहमी से मारा है। घरों में घुसकर पीटा और लूटपाट भी की। मेरठ में भी यही किया है पुलिस ने।
दमन के तरीके
पुलिस के दमन के तरीके की पड़ताल करने पर पता चला कि उत्तर प्रदेश में जहाँ-जहाँ भी पुलिस ने दमनकारी कार्रवाई की है, वहाँ-वहाँ लगभग एक ही तरीका अपनाया गया था। पुलिस ने जुमे की नमाज़ के बाद शान्तिपूर्ण प्रदर्शन पर लाठीचार्ज, गोलियाँ दागने और लूटपाट जैसी कार्रवाइयाँ कीं। कई जगहों पर लोगों ने बताया कि पुलिस ने ही सरकारी सम्पत्ति तोड़ी और उसमें आग लगायी। फिरोज़ाबाद के आज़ाद ने बताया कि पुलिस ने गुंडों के साथ मिलकर उनके आरा मशीन के कारखाने में आग लगायी और यह भी कहा कि इसको भी उसी आग में फेंक दो। आज़ाद ने बताया कि पुलिस ने उन लोगों के साथ मिलकर न केवल आरा मशीन के कारखाने में आग लगायी, बल्कि गल्ले में रखे एक लाख 80 हज़ार रुपये भी लूट लिए। पीडि़तों और चश्मदीदों के अनुसार, पुलिस ने भाजपा नेताओं के साथ मिलकर बहुत से मुस्लिमों को मारा है। इस वीभत्स घटना के लिए लोग उत्तर प्रदेश पुलिस के अलावा मुजफ्फरनगर से भाजपा सांसद संजीव बालियान और बिजनौर के भाजपा नेताओं पर आरोप लगा रहे हैं।
दमन के प्रभाव
20 दिसंबर, 2019 को हुए पुलिसिया दमन का प्रभाव देखना है, तो आप फिरोज़ाबाद, मुजफ्फरनगर, मेरठ, अलीगढ़, भदोही बिजनौर आदि में से किसी भी ज़िले में चले जाइए। आपको वहाँ के लघु उद्योगों की स्थिति तथा लोगों के अंदर का भय उस दिन की सारी कहानी खुद ही बयाँ कर देगा। 20 दिसंबर के बाद से फिरोज़ाबाद के चूड़ी उद्योग पर बुरा प्रभाव पड़ा है; क्योंकि फिरोज़ाबाद के चूड़ी मज़दूरों की यदि सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखें, तो हमें यह पता चलेगा कि चूड़ी मज़दूर अधिकतर मुसलमान हैं, जो बहुत ही गरीब हैं। ये मुसलमान दिहाड़ी मज़दूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। जिनकी भी मौत हुई है फिरोज़ाबाद में उनमें से अधिकतर चूड़ी मज़दूर थे। जो गिरफ्तार हैं, उनमें से भी अधिकतर चूड़ी मज़दूर ही हैं। इस पुलिसिया दमन के बाद लोग घरों से निकलने से बच रहे हैं। इसका सीधा असर वहाँ के लघु उद्योगों पर पड़ रहा है। कई लोग डर से अपना घर भी छोड़ चुके हैं। मेरठ, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़ आदि जगहों पर जहाँ भी लोग मरे हैं, वो सब मज़दूर वर्ग से ताल्लुक रखते थे। इस तरह की कार्रवाई के बाद कई परिवारों ने डर से काम पर जाना बन्द कर दिया है। पूछने पर बताते हैं कि घर का खर्च कर्ज़ लेकर या बचाये हुए पैसे से चल रहा है। मज़दूरों के न जाने से उद्योगों पर भी असर पड़ रहा है। फिरोज़ाबाद में एक चूड़ी व्यवसायी ने बताया कि उस दिन के बाद से शादी का सीजन होने के बाद भी धन्धा मंदा हो गया है।