उत्तर पूर्वी दिल्ली में 72 घंटे तक आगजनी, लूटपाट, मार-काट का नंगा खेल होता रहा और इस बीच केंद्र व दिल्ली सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। कहने को तो दिल्ली पुलिस ने हिंसा प्रभावित इलाकों में धारा-144 लगा दी, पर दंगाई और गुंडे खुलेआम हेलमेट पहनकर लोहे के रॉड, डंडे, पेट्रोल बम के साथ घरों, दुकानों और वाहनों को आग लगाते रहे। लोगों को पकड़-पकडक़र धार्मिक पहचान के आधार पर पीटते और लहूलुहान करते रहे। समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटकर नफरत फैलाते रहे।
इस बीच, केंद्र की मोदी सरकार, अमित शाह के तहत आने वाला केंद्रीय गृह मंत्रालय जिसके अंतर्गत दिल्ली पुलिस है, जिसकी राजधानी में कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी है। वह निष्क्रिय रही या कहें कि कुछ जगह तो दंगाइयों के साथ खड़ी दिखी। दंगाई यहां तक कि आगजनी मार-काट करने के बाद जब वापस निकले तो दिल्ली पुलिस जिंदाबाद और जयश्रीराम जैसे नारे लगाए।
शुरुआत में दंगों की जानकारी मिलने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शांति के लिए राजघाट जाकर ‘नाटक’ करते दिखे। बाद में हालात न संभलते देख सीएम कहते हैं कि प्रभावित इलाके में सेना की तैनाती की जाए। इससे बेकाबू हालात का अंदाजा लगा सकते हैं। यानी कि धारा-144 और कर्फ्यू भी दंगों को काबू करने में नाकाम रहे।
बुधवार को जब दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई और कहा कि जेड प्लस सेक्योरिटी वाले दंगा से प्रभावित इलाकों का दौरा करें और लोगों में भरोसा जताएं। इसके बाद कहीं कुछ हद तक नेताओं, पुलिसकर्मियों की आंखें खुलती हैं। कोर्ट ने सीधे तौर पर भडक़ाऊ बयान देने वाले भाजपा नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया और कहा कि हम दूसरा 1984 नहीं बनने देंगे। इस सबके बावजूद, मामला शांत होता फिर भी नहीं दिखता।
यह भी अलग बात है कि दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एस मुरलीधर का बुधवार रात ही तबादले का आदेश जारी कर दिया जाता है। इससे अब इन नेताओं के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई होगी या नहीं, इस पर संशय कायम है। जज का ट्रांसफर किए जाने के बाद भी सियासी तूफानी भी खड़ा हो गया है। कांग्रेस ने जहां केंद्र को निशाना बनाया तो भाजपा ने इस पर सफाई दी है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के प्रभावित इलाकों में दौरे के बावजूद बुधवार देर रात भी मौजपुर, मुस्तफाबाद, खजूरी खास के कुछ इलाकों में हिंसक घटनाएं हुईं, जबकि दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश हैं। इन सबसे इतर जब लोगों को पुलिस पर से भरोसा उठता दिखा तो वे खुद ही दंगाइयों से निपटने की रणनीति बनाते हैं और दोनों समुदाय के लोग मिलकर उनको खदेड़ते हैं और मोर्चा संभालकर एक नई मिसाल कायम कर रहे हैं।
तीन दिनों के बाद देश के प्रधानमंत्री का बयान भी आता है, वह भी ट्विटर पर, जिसमें वे लोगों से शांति और भाईचारा बनाए रखने की अपील करते हैं। इससे पहले तो वे अपने दोस्त अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अगवानी में मशगूल थे। यह अलग बात है कि उनके दोस्त ट्रंप को दंगों की खबर मिल चुकी थी, पर मोदी से इस पर चर्चा करके उन्हें ‘असहज’ नहीं करना चाह रहे थे। इस पर अमेरिका में राष्ट्रपति की आलोचना भी की जा रही है।