इस कदम के पीछे की सोच यह है कि जब भी किसी पुलिस स्टेशन या एक जाँच एजेंसी में गम्भीर चोट या हिरासत में मौत की कोई घटना होती है और कोई भी व्यक्ति मानवाधिकार के तहत न्यायालयों में इसकी शिकायत करता है, तो आयोग ऐसी स्थिति में सीसीटीवी फुटेज तलब कर सकता है और उसे सुरक्षित रखने को कह सकता है। इस तरह के फुटेज पीडि़तों को मानवाधिकार के उल्लंघन की स्थिति में उपलब्ध कराये जाएँगे।
न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्देश दिया है कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (केंद्र शासित प्रदेशों) को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक पुलिस स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरे लगाये जाएँ, जिससे सभी प्रवेश और निकास बिन्दु, मुख्य द्वार, सभी लॉक-अप, गलियारे, लॉबी और रिसेप्शन क्षेत्र, लॉकअप रूम के बाहर के क्षेत्रों कवर हों। शीर्ष अदालत ने 2018 में मानवाधिकार हनन की जाँच के लिए पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था।
अदालत ने कहा कि सीसीटीवी सिस्टम को नाइट विजन से लैस किया जाना चाहिए और इसमें ऑडियो के साथ-साथ वीडियो फुटेज भी होना चाहिए। यह केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए अनिवार्य होगा कि वे ऐसी प्रणालियों की खरीद करें, जो अधिकतम अवधि- कम-से-कम एक साल तक के लिए डेटा को सुरक्षित रख सकें।
बेंच, जिसमें जस्टिस के.एम. जोसेफ और अनिरुद्ध बोस भी शामिल थे; ने कहा कि इसके अलावा भारत सरकार को भी केंद्रीय जाँच ब्यूरो, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी, प्रवर्तन निदेशालय, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, राजस्व खुफिया विभाग, गम्भीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय (एसएफआईओ), अन्य कोई एजेंसी जो पूछताछ करती है और गिफ्तारी की शक्ति रखती है; के दफ्तरों में सीसीटीवी कैमरे और रिकॉर्डिंग उपकरण लगाने के लिए निर्देशित किया जाता है। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि इनमें से अधिकांश एजेंसियाँ अपने कार्यालय (कार्यालयों) में पूछताछ करती हैं। सीसीटीवी उन सभी दफ्तरों में अनिवार्य रूप से स्थापित किये जाएँ, जहाँ आरोपियों से पूछताछ की जाती है और उन्हें पकड़कर रखा जाता है; वैसे ही जैसा एक पुलिस स्टेशन में होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस साल सितंबर में उसने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को मामले में सीसीटीवी कैमरों की सही स्थिति का पता लगाने के लिए और साथ ही 3 अप्रैल, 2018 के अनुसार, ओवरसाइट समितियों के गठन का पता लगाने के लिए कहा था। शीर्ष अदालत ने हिरासत में उत्पीडऩ से जुड़े एक मामले को निपटाते हुए इस साल जुलाई में 2017 के एक मामले का संज्ञान लिया था, जिसमें अदालत ने सभी पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था; ताकि मानवाधिकारों के हनन की जाँच की जा सके, अपराध स्थल की वीडियोग्राफी की जा सके और साथ ही प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में इस तरह का एक केंद्रीय प्रवासी समिति या इस तरह का एक पैनल गठित करने को कहा था। अपने 12 पृष्ठ के आदेश में पीठ ने कहा कि 24 नवंबर तक 14 राज्यों ने अनुपालन हलफनामे और कार्रवाई की रिपोर्ट पेश की थी और उनमें से अधिकांश प्रत्येक पुलिस स्टेशन और अन्य जगह सीसीटीवी कैमरों की सही स्थिति का खुलासा करने में विफल रहे हैं। इसमें कहा गया है कि राज्य स्तरीय निरीक्षण समिति (एसएलओसी) में गृह विभाग के सचिव या अतिरिक्त सचिव, वित्त विभाग के सचिव या अतिरिक्त सचिव, महानिदेशक या पुलिस महानिरीक्षक के अलावा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष या सदस्य शामिल होने चाहिए।
इसमें कहा गया है कि ज़िला स्तरीय निरीक्षण समिति (डीएलओसी) में सम्भागीय आयुक्त या क्षेत्रीय आयुक्त या ज़िले के राजस्व आयुक्त, ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक और ज़िले के भीतर एक नगर पालिका के महापौर या ग्रामीण क्षेत्रों में ज़िला पंचायत के प्रमुख शामिल होने चाहिए। पीठ ने एसएलओसी के कर्तव्यों को भी निर्दिष्ट किया, जिसमें सीसीटीवी और उपकरणों की खरीद, वितरण और स्थापना और उसके लिए पैसे के आवंटन का इंतज़ाम करना शामिल था। इसमें कहा गया है कि डीएलओसी का किसी भी मानव अधिकार उल्लंघन, जो हुआ तो है, लेकिन उसकी रिपोर्ट नहीं की गयी है; को लेकर स्टेशन हाउस अधिकारियों (एसएचओ) के साथ बातचीत करने और विभिन्न पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी से संग्रहीत फुटेज की समीक्षा करने का ज़िम्मा होगा। इसने कहा कि इसके लिए राज्यों और संघ शासित प्रदेशों द्वारा जल्द-से-जल्द पर्याप्त धन आवंटित किया जाना चाहिए।
आदेश में कहा गया है कि सीसीटीवी के काम, रखरखाव और रिकॉर्डिंग के लिए कर्तव्य और ज़िम्मेदारी सम्बन्धित थाने के एसएचओ की होगी। जिन क्षेत्रों में बिजली या इंटरनेट नहीं है, वहाँ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का यह कर्तव्य होगा कि वे सौर या पवनचक्की या अन्य स्रोतों से बिजली प्रदान करने के किसी भी तरीके का उपयोग शीघ्रता से करें। पीठ ने कहा- ‘जब भी पुलिस थानों में बल का प्रयोग होने की सूचना मिलती है, जिसके परिणामस्वरूप गम्भीर चोट या हिरासत में मौत की घटना होती है, तो यह आवश्यक है कि व्यक्ति इसकी शिकायत और समाधान करने के लिए स्वतंत्र हो।’
पीठ ने आदेश में कहा है कि एसएलओसी और केंद्रीय निरीक्षण निकाय सभी पुलिस स्टेशनों और एजेंसियों को प्रवेश द्वार पर और पुलिस स्टेशनों, सीसीटीवी द्वारा सम्बन्धित परिसर के कवरेज के बारे में जाँच एजेंसियों के कार्यालयों को प्रमुखता से प्रदर्शित करने के लिए निर्देश देंगे और यह अंग्रेजी, हिन्दी और स्थानीय भाषा में बड़े पोस्टरों द्वारा प्रदर्शित किया जाएगा। यह आगे उल्लेख करेगा कि सीसीटीवी फुटेज एक निश्चित न्यूनतम समय अवधि, जो छ: महीने से कम नहीं होगी; के लिए संरक्षित है और पीडि़त को अपने मानवाधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में समान सुरक्षित रखने का अधिकार है।
आदेश में कहा गया है कि अधिकारी आदेश को पूरी तरह और यथाशीघ्र लागू करेंगे। पीठ ने इस मामले, जिसकी अगली सुनवाई 27 जनवरी के लिए निर्धारित की है; में कहा है कि प्रत्येक राज्य और संघ राज्य क्षेत्र के प्रमुख सचिव या मंत्रिमंडलीय सचिव या गृह सचिव छ: सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करें, जिसमें आदेश के अनुपालन के लिए सटीक समयरेखा के साथ एक दृढ़ कार्य योजना की जानकारी हो।
शीर्ष अदालत, जिसने पहले मानवाधिकारों के हनन की जाँच के लिए पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था; ने कहा है कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, राजस्व खुफिया विभाग और गम्भीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय सहित अधिकांश जाँच एजेंसियों के सभी कार्यालयों में सीसीटीवी अनिवार्य रूप से स्थापित किये जाने चाहिए।
जाँच एजेंसियों में सीसीटीवी कैमरे लगने से उन लोगों को सुरक्षा ज़रूर मिलेगी, जो बिना कारण या गलत तरीके से उन अधिकारियों या कर्मियों के गुस्से का शिकार हो जाते हैं, जिनकी हिरासत में कोई व्यक्ति होता है।