‘गोवा पुलिस को एक कवि की कुछ ऐसी कविताएं पसंद नहीं आई जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका था। उन्हें वे अश्लील लगीं। नतीजा बेचारा कवि हवालात में। ऐसा ही होगा जब साहित्य का आकलन पुलिस के दरोगा, हवलदार और सिपाही करेंगे। हम यह खबर पढ़ ही रहे थे कि पुलिस ने हम पर ऐसे दबिश दी जैसे किसी आतंकवादी के अड्डे पर ‘रेडÓ की हो। 15-20 पुलिस वाले हथियारों से लैस, हम पर टूट पड़े। जितनी भी कमांडो ट्रेनिग उन्हें कभी मिली होगी उसका इस्तेमाल हम पर हुआ। हमारे घर में दरवाजा तो है पर कोई सांकल नहीं है, इसलिए सीआईडी के ‘दयाÓ की तरह उन्हें दरवाजा तोडऩे की ज़रूरत नहीं पड़ी। हम पर कंबल डाल कर किसी बोरी की तरह पुलिस की गाड़ी की पिछली सीट पर धकेल दिया गया।
बंदूकों के साए में हमें दरोगा के आगे पेश कर दिया गया। हमने हाथ जोड़ कर पूछा,’हजूर आखिर हमारा क्या कसूर हैÓ? दरोगा ने अपनी मूंछों पर ताव देते हुए हमें घूर कर देखा और फिर सिपाही से मुखातिब हो कर बोला,’जा साहब बहादुर को खबर कर दे कि उसे काबू कर लिया है अब सारे षडय़ंत्र का पता चल जाएगा।Ó फिर हमारी तरफ देख कर गुर्राया,’ क्यों बे बहुत चर्बी चढ़ गई है। देशद्रोह का मामला बना है तेरे खिलाफÓ। सारी उम्र चक्की पीसेगाÓ। ‘पर जनाब हमार अपराध तो बताओÓ हमने फिर गुजारिश की। इस बार दरोगा ने एक कागज का टुकड़ा हमारी ओर बढ़ाया, ‘ये सब तूने लिखा है? हमने कागज लेकर पढ़ा, ‘साहब यह तो कविता है। ‘कविताÓ! दरोगा चिल्लाया। हां जी, मैने लिखी है। ‘इसका मतलब हमें भी समझा,’ दरोगा फिर भड़का। ‘साहब यह तो स्पष्ट ही है- ‘जो देखी वह बात लिखेंगे, हम अपने ज़ज़्बात लिखेंगेÓ। दरोगा,’अब बता तूने क्या देखा? कहां देखा? किसी देशभक्त नेता का एमएमएस देखा? पूरी जानकारी दे। हमने कहा-‘जनाब यह तो मेरी अपनी कल्पना है।Ó ‘ओए, कल्पना हो या विमला हमें तो तू सच-सच बता मामला क्या है?Ó पर जनाब जब यह लिखा ही कल्पना के साथ है तो ….। हमारी बात बीच में काट दरोगा दहाड़ा,’ अच्छा तो कल्पना भी तेरी ‘गैंगÓमें है। ओए रामफल, ले इससे कल्पना का ‘अडरेस लेÓ उठा उसे भी। सालों ने पूरा ‘गैंगÓ काम पर लगा रखा हैÓ। ‘तू ज़रा अगली लाइन तो पढ़Ó दरोगा का आदेश था। – जी, हजूर, सिपाही पढऩे लगा – ‘हम अपने ज़ज़्बात लिखेंगेÓ। दरोगा,’ ये ज़ज़्बात क्या होता है?Ó ऐसा लफ्ज हमने तो कभी नहीं सुनाÓ। ‘मैने भी नहीं जनाबÓ, सिपाही बोला- ‘हजूर ये कोई ‘कोड वर्डÓ है इसे थर्ड डिग्री दो जी। सब बताएगा। हम घबरा गए। हाथजोड़ कर हमने कहा,’ माई बाप, ज़ज़्बात का मतलब होता है अपनी फीलिंग जो हम महसूस करते हैंÓ। ‘तो तूने सीधा क्यों नहीं लिखा ‘फीलिंगÓ ये अंग्रेजी में ज़ज़्बात क्यों लिख दिया। हजुर ‘ज़ज़्बातÓ अंग्रेजी का नहीं ‘उर्दूÓ का शब्द है- हमने बात को स्पष्ट किया।Ó
इतने में रामफल उछला, ‘जनाब यह लिखता है -‘शब्द जाल में बहुत लिख लिया अब हम बिल्कुल साफ लिखेंगे।Ó हमारे दो तमाचे जड़ते दरोगा चिल्लाया,’ ये कौन से जाल बुन रहा है तूÓ। हमने अपना गाल सहलाते हुए कहा,’ जनाब यह तो सिर्फ शब्दों का जाल हैÓ। ‘अच्छा हमें मूर्ख समझता है, शब्दों का भी कोई जाल होता है? तू साफ-साफ लिखने को कह रहा है। अगर तूने नेता जी और सत्तो बाई के बारे में कुछ लिखा तो फेर देख तेरा क्या होगा। ‘पर जनाब मैं तो सिर्फ सच लिखता हूंÓ हमने समझाने की कोशिश की।Ó ओए तभी तो कह रहा हूं क्योंकि हमें सच पता है। इतने में रामफल फिर उछला, Óजनाब यह कोई साधारण अपराधी नहीं, इसकी योजना तो खून खराबा करने की हैÓ। ये साफ लिख रहा है- ‘अश्क हमारे सूख चुके हैं, अब लहू के साथ लिखेंगेÓ। रामफल ये ‘अश्क’ क्या होता है। जो सूख गया है? ‘जनाब मेरे ख्याल में तो खेत हो सकते हैÓ क्योंकि किसान खेत सूखने पर ही खून खराबे की बात करता है। फिर दरोगा ने हमें घूरा और बोला-‘अच्छा तेरी नीयत तो समाज में दहशत फैलाने की है। तू करेगा खून खराबा।Ó मैंने कहा, ‘हजूर ‘अश्कÓ का मतलब होता है- ‘आंसूÓ। ‘अच्छा तो तेरे आंसू सूख गए। रामफल टिका इसके दो ल_ ‘आंसूÓ तो निकाल ज़रा कहता है सूख गए हैं। फेर भाई तू ‘अश्कÓ क्यों लिखता है सीधा आंसू लिखÓ। हमने हाथ जोड़ कहा हजूर आगे से आंसू ही लिखूंगा।
आगे की लाइन पढ़ते ही रामफल चौंका उसने दरोगा की तरफ देख कर कहा-‘जनाब इसका ताल्लुक तो डाकू गज्जन सिंह के गिरोह से लगता है।Ó तुझे कैसे पता? दरोगा घबरा कर बोला। ‘जनाब इसने नंदपुर वाली डकैती का जि़क्र किया है। यह लिखता है- किसने लूटा, कौन लुटा मानव का इतिहास लिखेंगे। Ó तो हजूर हमारे इलाके में तो गज्जन सिंह ही है और नंदपुर में ही डकैती पड़ी थी। पर इसे कैसे पता कि किसने लूटा, और कौन लुटा। लुटा तो लाला गिरधारी लाल था। पर हजुर कहीं इसे ये तो नहीं पता कि उस लूट का हिस्सा किस-किस को गया था, ऐसा करते हैं इसका ‘एनकांउटरÓ कर देते हैं ताकि ‘न रहे बांस न बजे बांसुरीÓ। अब दरोगा मंूछों पर ताव दे कर बोला,’तुझे तो मरना ही पड़ेगा क्योंकि हम अपने पीछे कोई सबूत नहीं छोड़ते। हमने रोनी सी आवाज़ में कहा,’जनाब हमने तो नंदपुर का नाम तक नहीं सुना। -अच्छा नाम नहीं सुनाÓ दरोगा दहाड़ा, फिर तुझे ‘लूटÓ वाली बात कैसे पता चली? हमने कहा,’ हम तो इंसानी लूट की बात कर रहे थे। ‘अच्छा, देख तू सच बता नहीं रहा, और हमने सच जानना है। रामफल ले चल इसे कोठड़ी में। आज हम सलाखों के पीछे बैठे सोच रहे हैं, कि अब देखते हैं बाकी कवि कब साथ रहने आते हैं, क्योंकि दरोगा कह रहा था कि अभी और भी कई कविताएं पढऩी हैं।