थाईलैंड-कंबोडिया सीमा विवाद में हिंदू देवता की प्रतिमा को ध्वस्त करने पर भारत की चिंता

सीमा विवाद में हिंदू देवता की प्रतिमा का ध्वस्त होना यह स्पष्ट करता है कि भूमि और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े अंतरराष्ट्रीय विवादों में धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों का सम्मान बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। जैसे-जैसे कूटनीतिक प्रतिक्रिया जारी है, भारत का संवाद और आपसी सम्मान की अपील शांतिपूर्ण समाधान की उम्मीदों को उजागर करती है।

भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने हाल ही में थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद के संदर्भ में एक हिंदू देवता की प्रतिमा को ध्वस्त करने पर गहरी चिंता और असंतोष व्यक्त किया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जयस्वाल ने इस कृत्य को “असम्मानजनक” बताते हुए कहा कि इसने दुनिया भर में हिंदू समुदाय के अनुयायियों की भावनाओं को आहत किया है।

यह प्रतिमा, जो हिंदू समुदाय के लिए सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थी, कथित तौर पर थाईलैंड और कंबोडिया के बीच विवादित क्षेत्र में स्थित थी। सीमा विवाद वर्षों से दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना हुआ है, लेकिन धार्मिक प्रतीक की ध्वस्तीकरण ने स्थिति को और बढ़ा दिया है, जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा हो रही है।

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद कई दशकों से चल रहा है और यह प्रेह विज्हार मंदिर के पास स्थित एक छोटे लेकिन सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण भूमि के स्वामित्व के आसपास केंद्रित है। यह क्षेत्र, जो ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध है, दोनों देशों के लिए धार्मिक महत्व रखता है, और मंदिर स्वयं हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र स्थान है, खासकर शैव धर्म से जुड़े अनुयायियों के लिए।

प्रतिमा, जो भगवान शिव की एक मूर्ति मानी जाती थी, दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक थी। यह प्रेह विज्हार मंदिर के आसपास के क्षेत्र में स्थित थी, जो विवाद का मुख्य केंद्र है। 2008 में विश्व न्यायालय ने कंबोडिया को मंदिर का स्वामित्व दिया, लेकिन थाईलैंड इस निर्णय का विरोध करता है और इस क्षेत्र की संप्रभुता को लेकर असहमत है।

हाल के महीनों में, सीमा पर फिर से तनाव बढ़ गया है, और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक आदान-प्रदान और सैन्य गतिविधियाँ बढ़ी हैं। प्रतिमा का ध्वस्त होना इस बढ़ते तनाव का दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम प्रतीत होता है।

इस घटना के जवाब में, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जयस्वाल ने इस कृत्य को सांस्कृतिक सम्मान और अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन बताया। “एक धार्मिक प्रतिमा का ध्वस्त होना, विशेषकर एक इतनी महत्वपूर्ण प्रतिमा का, बेहद दुखद है। यह न केवल हिंदू समुदाय के लिए अपमानजनक है, बल्कि उन सभी लोगों के लिए भी जो आपसी सम्मान, सहिष्णुता और सांस्कृतिक धरोहर के मूल्यों में विश्वास करते हैं,” जयस्वाल ने कहा।

MEA ने थाईलैंड और कंबोडिया से अपने सीमा विवाद को शांतिपूर्वक और कूटनीतिक तरीकों से हल करने की अपील की। “हम दोनों पक्षों से आग्रह करते हैं कि वे रचनात्मक संवाद में संलग्न हों और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार शांतिपूर्ण समाधान प्राप्त करें,” जयस्वाल ने कहा। भारत का यह आह्वान कूटनीतिक समाधान और क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता देने की भारत की नीति को दर्शाता है।

प्रतिमा का ध्वस्त होना हिंदू धार्मिक नेताओं और वैश्विक हिंदू समुदाय में आक्रोश का कारण बन गया है। कई लोग सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी और निराशा व्यक्त कर रहे हैं, और मजबूत कूटनीतिक हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं। कई प्रमुख हिंदू संगठन इस कृत्य की निंदा कर चुके हैं, और यह दावा किया है कि यह न केवल हिंदू धर्म का अपमान है, बल्कि आपसी सम्मान और समझ के व्यापक सिद्धांतों को भी कमजोर करता है।

“यह केवल एक धार्मिक प्रतीक पर हमला नहीं है, बल्कि उन मूल्यों पर हमला है जो शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को बढ़ावा देते हैं,” रमैश रेड्डी, हिंदू धार्मिक अधिकारों के वकील ने कहा। “हिंदू देवता, विशेषकर भगवान शिव, न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में बहुत महत्वपूर्ण हैं, और इस कृत्य ने दुनियाभर के लाखों हिंदुओं को आहत किया है।”

भारत, अमेरिका, और ब्रिटेन जैसे देशों में हिंदू मंदिरों और सांस्कृतिक संगठनों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराने की मांग की है। कुछ ने तो प्रतिमा के पुनर्निर्माण के लिए एक वैश्विक अभियान चलाने की भी याचना की है।

हिंदू प्रतिमा के ध्वस्त होने से थाईलैंड और कंबोडिया के बीच पहले से तनावपूर्ण रिश्तों में और वृद्धि हो सकती है। हालांकि दोनों देशों ने अपने रिश्तों को शांतिपूर्ण बनाए रखने की इच्छा जताई है, लेकिन प्रेह विज्हार मंदिर और इसके आसपास के क्षेत्र पर नियंत्रण को लेकर बढ़ता तनाव कूटनीतिक चुनौतियां पैदा कर रहा है।

हाल के वर्षों में सीमा पर छोटे-छोटे संघर्ष और कूटनीतिक विवाद सामान्य रहे हैं, लेकिन इस नवीनतम घटना ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। एक पवित्र धार्मिक प्रतीक को ध्वस्त करने का कृत्य अब न केवल द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहों में भी आ गया है।

आगे का रास्ता

दोनों देशों से अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से भारत, कूटनीतिक वार्ता और सैन्य टकराव के बजाय शांतिपूर्ण समाधान को प्राथमिकता देने का आह्वान कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका अहम हो सकती है, जो शांतिपूर्ण वार्ता के लिए मंच प्रदान कर सकते हैं।

इस बीच, भारत शांति और स्थिरता की वकालत करना जारी रखे हुए है, और हिंदू समुदाय इस मुद्दे पर त्वरित और न्यायपूर्ण कार्रवाई का इंतजार कर रहा है। यह मामला सांस्कृतिक प्रतीकों और धार्मिक धरोहर का सम्मान बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण अनुस्मारक बन गया है।