अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार कई बदलाव कर चुकी है। राजनीति में भी अब तक कई ऐसे बदलाव हो चुके हैं कि आम आदमी लाख कोशिशों के बावजूद भी राजनीति में नहीं आ सकता, जब तक कि वह अच्छी राजनीतिक साठगाँठ के अलावा अच्छा पैसे वाला न हो। अब तक यह सब ब्लॉक प्रमुख, निगम पार्षद, नगर पालिका अध्यक्ष, विधायक, सांसद जैसे स्तरों पर होता था। पर अब ग्राम पंचायत स्तर पर भी होने की उम्मीद है। इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों पर नियंत्रण करने से हो सकती है।
हाल ही में केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्यमंत्री संजीव कुमार बालियान ने ग्राम पंचायत चुनाव में प्रत्याशियों की पारिवारिक स्थिति के हिसाब से टिकट देने को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा है। इस पत्र को लेकर कहा जा रहा है कि बालियान ने यह पत्र उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर लिखा है, लेकिन ऐसा लगता नहीं है। क्योंकि अगर ऐसा होता, तो वह जनसंख्या नियंत्रण को लेकर पत्र लिखते, चुनाव को लेकर नहीं। हालाँकि उन्होंने इस पत्र में सहारा जनसंख्या नियंत्रण का ही लिया है। इस पत्र में उन्होंने योगी से कहा है कि उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण का अभियान शुरू किया जाए और इसकी शुरुआत आगामी ग्राम पंचायत चुनाव से की जानी चाहिए। संजीव बालियान ने पत्र में लिखा है कि उत्तराखंड में दो से अधिक बच्चे वाले ग्राम पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकते, यही कानून उत्तर प्रदेश में लागू किया जाना चाहिए। हालाँकि बालियान ने योगी से इस अभियान को विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर शुरू करने को कहा था, लेकिन अभी तक योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस पर कुछ कहा नहीं है।
पिछड़े तबकों को लगेगा झटका
अगर उत्तर प्रदेश में योगी सरकार संजीव कुमार बालियान के सुझाव को लागू करती है, तो पिछड़े तबकों के लोगों को ज़्यादा नुकसान होगा। सम्भव है कि अधिकतर सामान्य वर्ग के लोगों को ग्राम पंचायत चुनाव में टिकट मिलें और पिछड़े वर्ग के लोग सिर्फ दो से अधिक बच्चे होने के चलते चुनाव मैदान में उतर ही न सकें। क्योंकि पिछड़े तबकों के लोगों, जिनमें पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक वर्ग- खासकर मुस्लिमों में अधिकतर के बच्चे दो से अधिक हैं। ऐसे में दो बच्चों की शर्त पर इन वर्गों के लोग आसानी से जनसंख्या नियंत्रण के बहाने से ग्राम पंचायत चुनाव की दौड़ से बाहर हो जाएँगे और अधिकतर सीटों पर सामान्य वर्ग का कब्ज़ा हो जाएगा।
कहीं अपने लोगों को कुर्सी सौंपने की कोशिश तो नहीं
भाजपा और संघ के बड़े नेता पार्टी के सदस्यों, कार्यकर्ताओं, छोटे स्तर के नेताओं का मज़बूत संगठन बनाकर खुद को हमेशा के लिए मज़बूत करना चाहते हैं, ताकि वो हमेशा सत्ता में बने रहें।
कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा उत्तराखण्ड के बाद उत्तर प्रदेश में दो बच्चों वाले प्रत्याशियों के बहाने ग्रामीण स्तर पर अपने लोगों को राजनीति के सबसे छोटे स्तर पर सत्ता में लाकर जनाधार मज़बूत करना चाहती है। क्योंकि पार्टी कमान यह जानती है कि अगर ऐसा हो गया, तो उसे चुनावों के दौरान मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में आसानी होगी।
इसका कारण यह है कि गाँव के अधिकतर लोग प्रधान, ग्राम पंचायत अधिकार, ग्राम पंचायत सदस्यों आदि से अपना काम निकलवाने के चलते उनसे बिगाड़कर नहीं चलते और चुनावों में उनका कहना मानते हैं। ऐसे में अगर निचले स्तर की कुॢसयों पर भाजपा का कब्ज़ा होगा, तो विधानसभा और लोकसभा के चुनाव जीतने में भाजपा को आसानी होगी।