कोरोना महामारी की दूसरी लहर से मचे कोहराम और देश की लडख़ड़ाती स्वास्थ्य सेवाओं ने जिस प्रकार देशवासियों को उदास, निराश किया है। लोगों की जाने गयी हैं, उससे देश में भय का माहौल बना है। कोरोना की महँगी दवाओं, महँगे टीकों और इनके समेत ऑक्सीजन की कालाबाज़ारी ने आम लोगों, ख़ासकर ग़रीबों को और परेशानी में डाल दिया है। ऐसे में आशा की किरण के रूप में एक और स्वदेशी टीका ‘कोरबेवेक्स’ बाज़ार में आने वाला है, जो अभी तक के टीकों में सबसे सस्ता होगा। इस टीके और कोरोना महामारी से बचाव के बारे में देश के जाने-माने डॉक्टरों और चिकित्सा विशेषज्ञों से बातचीत पर आधारित तहलका के विशेष संवाददाता राजीव दुबे की रिपोर्ट :-
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि कोरोना का कहर कम ज़रूर कम हुआ है, लेकिन कोरोना वायरस अभी मौज़ूद है। ऐसे में कोरोना की तीसरी लहर से बचने-बचाने और कोरोना पर क़ाबू पाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण और सुरक्षित तरीक़ा है कि शहरों से लेकर गाँवों तक हर हाल में टीकाकरण हो। डॉक्टर बंसल का कहना है कि देश के ग़रीब-से-ग़रीब लोगों तक वैक्सीन की पहुँच के लिए कोरबेवेक्स वैक्सीन का उत्पादन हैदराबाद की बायोलॉजिस्ट ई कम्पनी कर रही है।
भारत बायोटेक के कोवैक्सीन टीके के बाद यह देश का दूसरा स्वदेशी टीका है। भले ही इसे अभी बाज़ार में आने में समय लगेगा, पर इसके प्रति मरीज़ो, चिकित्सकों और आम लोगों की दिलचस्पी देखने में मिल रही है। लोगों में आशा जगी है कि सस्ता टीका ग़रीबों के लिए बनकर तैयार होने वाला है। डॉक्टर बंसल का कहना है कि वैक्सीन के साथ-साथ जब तक हमारी स्वास्थ्य सेवाएँ मज़बूत नहीं होंगी, तब तक हमें मामूली-से-मालूमी बीमारी से जूझना होगा। माना कि कोरोना वायरस पर क़ाबू पाने लिए टीकाकरण ज़रूरी है, लेकिन टीकाकरण करने के लिए तो डॉक्टरों और पैरामेडिकल कर्मचारियों को बढ़ाना होगा। कोरोना महामारी के दौरान जब शहरों की टूटती साँसों और अस्वस्थ स्वास्थ्य सेवाओं से देश में हाहाकार मची थी, तब देश के महानगरों में सरकारी और निजी अस्पतालों का हाल देश दुनिया ने देखा है। ऐसे में सरकार को टीकाकरण के साथ-साथ शहरों से लेकर गाँवों तक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना होगा। ऑक्सीजन प्लांट के साथ डॉक्टरों की नियुक्तियाँ बड़े पैमाने पर करनी होंगी। देशी-विदेशी कोरोना टीके हासिल करना तो एक उपलब्धि हो सकती है, लेकिन स्वास्थ्य महकमे की सफलता नहीं। क्योंकि स्वास्थ्य महकमे में व्यापक सुधार की ज़रूरत है।
दवा कारोबार से जुड़े और फार्मा कम्पनी के डायरेक्टर अमरीश चावला का कहना है कि हैदराबाद की बायोलॉजिस्ट ई कम्पनी शुरू से ही ग़रीबों के लिए दवाएँ और टीके बनाने का काम करती रही है। सार्स जैसी बीमारी के लिए इसी कम्पनी ने सबसे सस्ता टीका दिया था। कम्पनी के इस प्रयास से ग़रीब आदमी तक को टीका लग सकता है। फ़िलहाल कोरोना टीकों के दाम तो सही-सही तय नहीं हुए हैं, लेकिन अनुमान है कि यह टीका 100 रुपये तक का मिल सकता है। अब सरकार को टीका हासिल करने के साथ देश में दवा कारोबारियों पर नज़र रखनी होगी, ताकि वे इसकी जमाख़ोरी करके कालाबाज़ारी न कर सकें। अमरीश चावला का कहना है कि बाज़ार में अभी कोरबेवेक्स आयी तक नहीं है, लेकिन ड्रग माफिया ने इसमें सेंध लगाने के लिए अपने एजेंट्स को तैयार कर रखा है। सेंधमारों का सबसे बड़ा गढ़ देश की राजधानी दिल्ली का दवा बाज़ार है। बताते चलें भारत सरकार ने 30 करोड़ टीकों के लिए ई कम्पनी को 1,500 करोड़ अग्रिम राशि भी दी है। अगस्त से दिसंबर महीने के बीच इन टीकों की आपूर्ति होने की सम्भावना है।
भारतीय ड्रग कंट्रोलर के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि कोरोना वायरस ने देश में तबाही मचायी हुई है। ऐसे में केंद्र सरकार का दायित्व यही बनता है कि वह देश की कम्पनी को प्रोत्साहन दे। टीकों पर शोध एवं विकास कार्य के लिए आर्थिक सहयोग करे। उसने यह किया भी है, जिससे देश में टीकाकरण कार्यक्रम में तेज़ी आयेगी। मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर डॉक्टर विवेका कुमार का कहना है कि केंद्र सरकार पहले तो स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करे और फिर तेज़ी से टीकाकरण कार्यक्रम चलाए, ताकि कोरोना वायरस की तीसरी लहर दूसरी लहर की तरह तबाही न मचा सके।
एम्स के डॉक्टर आलोक कुमार का कहना है कि कई दवा कम्पनियाँ आज भी ऐसी हैं, जो सेवा भाव के आधार पर दवाओं का निर्माण करती हैं; क्योंकि उनका मक़सद सिर्फ़ पैसा कमाना नहीं होता है। कोरोना के पहले भी पहले सार्स, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों के टीकों और दवाओं को इसी कम्पनी ने बनाया। दूसरी कम्पनियों को भी मोटी कमायी के चक्कर में न पड़कर मुनासिब मुनाफ़े के साथ सेवाभाव से इसी तरह काम करना चाहिए, जो कि देशहित में भी है।