अगले साल यानी 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार प्रदेश के 40 लाख तेंदूपत्ता संग्राहकों को साडिय़ाँ, जूते-चप्पल, छाता और पानी की बोतलें देने की तैयारी में है। इसकी ज़िम्मेदारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वन मंत्री विजय शाह को दी है।
प्रदेश सरकार द्वारा मध्य प्रदेश लघु वनोपज संघ के माध्यम से जंगल क्षेत्र में तेंदूपत्ता संग्रह करने वाले आदिवासियों एवं परंपरागत वन निवासियों को इस साल साडिय़ाँ, जूते-चप्पल, छाता और पानी की बोतल बाँटने को लेकर प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गयी है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा- ‘2017-18 में हमने यह योजना शुरू की थी। बीच में दूसरी सरकार आयी, जिसने यह योजना बन्द कर दी। लेकिन हम इसे फिर से चालू करेंगे।’
मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार इस तरह से जहाँ आदिवासी वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही है, वहीं विपक्ष ने आदिवासियों-परंपरागत वन निवासियों के लघु वनोपज के हक़ के पैसे यानी लघु वनोपज के शुद्ध लाभ की राशि लगभग 261 करोड़ रुपये का बंदरबाँट करने का आरोप लगाया है।
मध्य प्रदेश के मनावर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक आदिवासी नेता डॉ. हिरालाल अलावा ने मध्य प्रदेश के राज्यपाल को पत्र लिखकर इस सम्बन्ध में अपना विरोध दर्ज कराया है। डॉ. अलावा ने पत्र में लिखा है- ‘लघु वनोपज पर ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायत को भारतीय संविधान की 11वीं अनुसूची, पेसा $कानून-1996 एवं वन अधिकार $कानून 2006 में नियंत्रण, प्रबंधन सहित समस्त अधिकार सौंपे गये हैं। इसके सम्बन्ध में मध्य प्रदेश शासन वन विभाग द्वारा 15 मई, 1998 को जारी आदेश के तहत लघु वनोपजों के व्यापार से प्राप्त लाभांश राशि, जो वर्तमान में लगभग 1500 करोड़ से भी ज़्यादा है; को प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों के माध्यम से संग्राहकों को नक़द वितरित की जानी थी। लेकिन मध्य प्रदेश लघु वनोपज सहकारी संघ लघु वनोपज के व्यापार से प्राप्त लाभांश की राशि का सन् 1998 से लगातार दुरुपयोग करते रहा है। अत: लघु वनोपज के लाभांश की राशि से सामग्री क्रय कर वितरित किये जाने की कार्यवाही को तत्काल रोका जाए और 15 मई, 1998 के आदेशानुसार नक़द राशि संग्राहकों को वितरित किया जाए।’
क्या है मामला?
मध्य प्रदेश लघु वनोपज के अंतर्गत आने वाले तेंदूपत्ते का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। बीड़ी बनाने के काम में आने वाले ये पत्ते जंगल क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों-परंपरागत वन निवासियों को सर्वाधिक मौसमी आय उपलब्ध कराते हैं। लघु वनोपज आदिवासी एवं अन्य परंपरागत वन निवासी समुदायों के जीवनयापन का हमेशा से मुख्य आधार रहा है।
संविधान की 11वीं अनुसूची, पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम-1996 तथा वनाधिकार अधिनियम-2006 के तहत सभी तरह के लघु वनोपज पर समस्त अधिकार, नियंत्रण एवं प्रबंधन ग्राम सभा को सौंपा गया है एवं वन विभाग को इन नियंत्रणों से मुक्त कर दिया गया है। इसके अनुसार 15 मई, 1998 को वन विभाग मंत्रालय मध्य प्रदेश शासन ने मध्य प्रदेश लघु वनोपज सहकारी संघ को आदेश दिया कि लघु वनोपज के व्यापार से प्राप्त शुद्ध लाभ की सम्पूर्ण राशि प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों को प्रदान की जाएगी।
उक्त सहकारी समितियाँ वनोपज के शुद्ध लाभ की सम्पूर्ण राशि का 50 प्रतिशत संग्राहकों को नक़द वितरित करेंगी, 25 प्रतिशत राशि ग्रामीण विकास कार्यों पर ख़र्च करने और शेष 25 प्रतिशत राशि वन विकास कार्यों पर ख़र्च करने का प्रावधान किया गया। जनवरी, 2006 में इसमें आंशिक संशोधन कर संग्राहकों की राशि 60 प्रतिशत, ग्रामीण विकास और वन विकास मद की राशि 20-20 प्रतिशत राशि तथा फरवरी 2012 में पुन: संशोधन कर संग्राहकों की राशि 70 प्रतिशत, ग्रामीण विकास और वन विकास मद की राशि 15-15 प्रतिशत ख़र्च करने का प्रावधान कर दिया गया। लेकिन मध्य प्रदेश लघु वनोपज संघ सन् 1998 से ग्रामीण विकास एवं वन विकास मद की 50, 40 और 30 प्रतिशत की राशियों को आज तक प्राथमिक सहकारी समितियों को नहीं दिया और उक्त राशियों को मनमाने ढंग से ख़र्च करता रहा है। अब उसी राशि में से सामग्रियाँ ख़रीदने व वितरित करने के मामले में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी है।
13 जनवरी, 2023 को वन विभाग के अपर मुख्य सचिव जे.एन. कंसोटिया की अध्यक्षता में मध्य प्रदेश लघु वनोपज संघ के संचालक मंडल की बैठक में 261 करोड़ रुपये के साडिय़ाँ, जूते-चप्पल, छाता, पानी की बोतल की क्वालिटी, डिजाइन और ख़रीदी की मंज़ूरी दे दी गयी। बैठक में कहा गया कि 2022 में तेंदूपत्ता जमा करने का काम करने वाले कार्डधारी संग्राहकों को ही ये सामग्री दी जाएगी। संग्राहकों के 15 लाख 24 हज़ार परिवारों को 285 रुपये वाली पानी की बोतल एवं 200 रुपये वाला छाता दिया जाएगा, जबकि परिवार के एक पुरुष को 291 रुपये का जूता एवं एक महिला को 195 रुपये की चप्पल दी जाएगी, जबकि परिवार की सभी 18 लाख 21 हज़ार महिला सदस्यों को 402 रुपये वाली साड़ी वितरित की जाएगी। जीएसी, परिवहन एवं वितरण पर 40 करोड़ 51 लाख रुपये व्यय किये जाएँगे।
उक्त सामग्री लघु उद्योग निगम के माध्यम से हस्त शिल्प व हथकरघा विकास निगम, खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड और पॉवरलूम बुनकर सहकारी संघ बुरहानपुर से ख़रीदी जाएगी। इन संस्थाओं से एनओसी लेने की तैयारी चल रही है। उक्त सामग्रियों की ख़रीदी एवं वितरण हेतु रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी भागवत सिंह को छ: माह के लिए सलाहकार बनाने की स्वीकृति दे दी गयी है। सन् 2018 में भागवत सिंह के माध्यम से ही चरण पादुका योजना का क्रियान्वयन किया गया था।
ज्ञात हो कि वर्ष 2018 में राज्य विधानसभा चुनाव के पूर्व भी चरण पादुका योजना के तहत 261 करोड़ रुपये की सामग्री तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासियों-परंपरागत वन निवासियों को बाँटकर लुभाने का प्रयास किया गया था; लेकिन कांग्रेस ने बाँटे गये जूतों से कैंसर फैलने की बात उठाकर माहौल को गरमा दिया था।
संग्राहकों के पक्ष में उतरे विधायक
डॉ. अलावा का आरोप है कि ग्रामीण विकास मद की लगभग 1,000 करोड़ और वन विकास मद की 500 करोड़ रुपये से ज़्यादा राशि मध्य प्रदेश लघु वनोपज सहकारी संघ ने प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों को उपलब्ध नहीं करवायी और उस राशि का दुरुपयोग कर अपव्यय करता रहा है। प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों द्वारा ग्रामीण विकास एवं वन विकास मद की राशि से करवाये जाने वाले कार्यों के पारित प्रस्तावों को बुलवाकर उन पर आपत्ति लगाने, निरस्त करने का कार्य भी संघ करता रहा है, जबकि संघ को किसी भी $कानून, नियम या उपविधि में ऐसा कोई अधिकार नहीं है। डॉ. अलावा का कहना है कि मध्य प्रदेश लघु वनोपज सहकारी संघ के अधिकारियों ने शुद्ध लाभ की राशि का मनमाने ढंग से अपने सुख-सुविधा और अर्दली भत्ता देने पर ख़र्च किया, जबकि यह राशि संग्राहकों की है और उनमें ही वितरित की जानी चाहिए।
मध्य प्रदेश के निवास विधानसभा क्षेत्र से विधायक डॉ. अशोक मर्सकोले के एक विधानसभा प्रश्न के जवाब में 30 दिसंबर, 2020 को वन मंत्री कुँवर विजय शाह ने स्वीकार किया कि वनोपज के लाभांश को स्थानीय संग्राहकों में वितरित किया जाना चाहिए। विधानसभा में वन मंत्री शाह का उत्तर निम्नानुसार है- ‘पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में राज्य शासन के ज्ञापन दिनांक 15 मई, 1998 द्वारा ग्राम सभाओं को लघु वनोपज का स्वामित्व सम्बन्धी निर्देश जारी किये हैं।
ग्राम स्वराज लागू करने के सम्बन्ध में जारी निर्देश में लघु वनोपज के संरक्षण, संग्रहण एवं विपणन के समस्त अधिकार ग्राम सभा को दिये गये हैं। लघु वनोपज का अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 में समुदाय के अधिकार के रूप में मान्यता देने की विधिक व्याख्या की गयी है, जिसके कारण यह अधिकार स्वत: विभाग के नियंत्रण से मुक्त हो चुके हैं। वर्तमान में राष्ट्रीयकृत लघु वनोपज तेंदूपत्ता का केवल व्यापार मध्य प्रदेश लघु वनोपज संघ के माध्यम से किया जा रहा है, जिससे प्राप्त लाभांश स्थानीय समुदाय में वितरित किया जाता है।
डॉ. अलावा ने राज्यपाल से माँग की है कि लघु वनोपज संघ भोपाल के द्वारा ग्रामीण विकास मद एवं वन विकास मद की राशि प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों को देने के बजाय संघ के स्तर पर अन्य कार्यों में ख़र्च करने, राशि का अपव्यय करने तथा राशि का दुरुपयोग करने वाले संघ के अधिकारियों के विरुद्ध लोकायुक्त से जाँच कराकर आपराधिक प्रकरण न्यायालय में प्रस्तुत किये जाए।
पूर्व में भी भोपाल स्थित ग़ैर-लाभकारी संस्था, किसान जागृति संगठन के कार्यकर्ता इरफ़ान जाफ़री की शिकायत पर 26 जून 2019 को मध्य प्रदेश लोकायुक्त ने राज्य में लघु वनोपज के व्यापार और विकास के लिए ज़िम्मेदार मध्य प्रदेश लघु वनोपज संघ के खिलाफ़ मामला दर्ज किया था, जिसके कारण कई अधिकारियों के पसीने छूट गये थे। हालाँकि यह मामला अभी भी लोकायुक्त के समक्ष लम्बित है।