इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को वह याचिका खारिज कर दी जिसमें आगरा स्थित ताजमहल में 22 कमरों के सर्वे की मांग की गयी थी। हाईकोर्ट ने कहा कि ताजमहल किसने बनवाया ये तय करना कोर्ट का काम नहीं है। कोर्ट ने कहा कि याचिका समुचित और न्यायिक मुद्दों पर आधारित नहीं है और वह उन पर फैसला नहीं दे सकता।
हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि वह याचिकाकर्ता की मांग के मुताबिक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित नहीं कर सकती। अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
अदालत ने कहा कि उसका काम ऐतिहासिक तथ्यों की पुष्टि और रिसर्च करने का नहीं है। ये काम इसके विशेषज्ञों और इतिहासकारों पर छोड़ देना उचित है। हम ऐसी याचिका पर विचार नहीं कर सकते।
हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की अदालत से मांग और गुहार जिन मुद्दों पर हैं वो न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं हैं। कोर्ट ने आदेश में कहा कि स्मारक अधिनियम 1951 में क्या ये जिक्र या घोषणा है कि ताजमहल मुगलों ने ही बनाया था?
यह याचिका अयोध्या इकाई के मीडिया प्रभारी रजनीश सिंह ने दाखिल की थी। याचिका उन्होंने दावा किया था कि चूँकि ताजमहल को लेकर झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है, वह सच्चाई जानने के लिए उन 22 कमरों में जाकर शोध करना चाहते हैं।
जस्टिस डीके उपाध्याय ने याचिकाकर्ता को नसीहत देते हुए कहा कि पहले किसी संस्थान से इस बारे में एमए पीएचडी कीजिए। तब हमारे पास आइए। अगर कोई संस्थान इसके लिए आपको दाखिला न दे तो हमारे पास आइए। याचिकाकर्ता ने फिर कहा कि मुझे ताज महल के उन कमरों तक जाना है, कोर्ट इसकी इजाजत दे। इस पर भी अदालत के तेवर सख्त ही रहे।