लोकतांत्रिक देश में सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा खासी महत्वपूर्ण होती है। इसकी निष्पक्षता, विश्वसनीयता और सच्चाई को बनाए रखने के लिए जस्टिस, पूर्व जस्टिस और एडवोकेट अब बेहद सक्रिय हैं।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की ही एक कर्मचारी ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर आरोप लगाया ‘सेक्सुअल हैरेसमेंट’ का। मुख्य न्यायाधीश ने फौरन अदालत की विशेष बैठक बुलाई। एक इन हाउस कमेटी बनी जिससे जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एनवी रामना, और जस्टिस इङ्क्षदरा बनर्जी थीं। कमेटी ने शिकायतकर्ता को नोटिस भेजी। उसने एक पत्र लिखा जिसमें चाहा कि यह कमेटी विशाखा गाइडलाइंस के अनुरूप सुनवाई करे। पत्र में ही कहा गया कि जस्टिस रामना का मुख्य न्यायाधीश से पारिवारिक संपर्क है इसलिए उसे लगता है कि उसने साक्ष्य और एफिडेविट के साथ न्याय नहीं हो सकेगा। जस्टिस रामना ने खुद ही यह कमेटी छोड़ दी। उनकी जगह जस्टिस इंदु मल्होत्रा हुईं।
दूसरी ओर वकील उत्सव बैंस ने सुप्रीम कोर्ट में अपना एफिडेविट दायर करके कहा था कि यह सब मुख्य न्यायाधीश को फंसाने की चाल है। ‘सेक्सुअल हेरॉसमेंट’ का उन पर मामला बनाने और प्रेस से बात कराने के लिए खुद उन्हें लगभग रु पए डेढ़ करोड़ मात्र तक की रकम देने का प्रस्ताव दिया गया था। इस आरोप के पीछे बड़े कॉरपोरेट हैं। इस मामले पर एक बेंच जस्टिस अरु ण मिश्र, जस्टिस आर एफ नरिमन और जस्टिस दीपक गुप्ता की बनी। वकील को बेंच ने साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए कहा। जवाब में वकील ने लिखा कि उसके पास साक्ष्य हैं और वे पेश किए जाएंगे लेकिन उसकी जान को खतरा है। दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को बुला कर समुचित सुरक्षा व्यवस्था के लिए कहा गया।
बाद में मुद्दे की गहराई को जानते समझते हुए इस बेंच ने सेवानिवृत्त जस्टिस एके पटनायक को साजिश के दावों की पड़ताल की जि़म्मेदारी सौंपी। उन्हें सहयोग देने के लिए दिल्ली के पुलिस कमिश्नर इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक और सीबीआई प्रमुख को इस काम में पूरा सहयोग देने के लिए आमंत्रित किया गया।
बेंच ने यह बात ज़रूर साफ कर दी जो जांच जस्टिस पटनायक करेंगेे उसका कोई असर किसी भी तरह ‘सेक्सुअल हेरॉसमेंट’ की शिकायत के मामले पर न पड़े।
जस्टिस पटनायक अब वकील बैंस के आरोपों की सत्यता की पड़ताल करेंगे। वकील बैंस का आरोप था कि मुख्य न्यायाधीश को भ्रष्ट कारपोरेट, दलाल, और अदालत के निलंबित नाराज़ कर्मचारी दबाव में लेने की कोशिश कर रहे है। अपनी जांच के आधार पर जस्टिस पटनायक इस अदालत को अपनी एक रपट पेश करेंगे। उस रिपोर्ट के मिल जाने के बाद कोर्ट सुनवाई करेगा।
अपनी एफिडेविट में बैंस ने कहा उसे सूचना मिली थी कि कुछ दलाल लोग जो अवैध तरह से नकदी के बदले फैसले जारी कराने में लग रहते हैं। वे इस साजिश में शामिल हैं कि मुख्य न्यायाधीश ने ऐसे दलालों के खिलाफ कर कमर कस ली है।
फैसला सुनाते हुए जस्टिस मिश्र ने कहा कि ‘बड़े ही सुनियोजित तरीके से अदालत को प्रभावित करने की कोशिश हो रही है। अब समय आ गया है जनता और देश के ताकतवर रईस समझ लें कि वे इस अदालत पर काबिज नहीं हो सकते। आप आग से नहीं खेल सकते।’
एडवोकेट उत्सव बैंस के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट आरोपों की तह तक जाकर पूरी छानबीन करेगा। जस्टिस बैंस ने कहा था कि कुछ लोगों ने उससे संपर्क किया था। वे चाहते है कि सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर यौनिक प्रताडऩा का झूठा आरोप अदालत में और प्रेस कांफ्रेस के जरिए लगाया जाए। आरोप लगाने वाले वे कॉरपोरेट के लोग हैं।
इस पर सुनवाई के लिए सुप्रीमकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच गठित हुई। इसमें शामिल जस्टिस अरूण मिश्र, रोहिन्टन नरिसन और जस्टिस दीपक गुप्ता हैं। जस्टिस मिश्र ने कहा, हम पूरे कथित मामले की जांच करेंगे। हम ऐसे तमाम मामलें की तह तक नहीं गए तो हममें कोई बचेगा भी नहीं। हमारी व्यवस्था में इस तरह की ‘फिक्सिंग’ की कोई भूमिका नहीं है। हम इस पूरे मामले को फिर खत्म करेंगे।
बेंच इस पूरे मामले की सुओ-मोटो सुनवाई कर रही है। जिसकी याचिका एडवोकेट बैंस ने लगाई थी। उनका कहना था कि कुछ खास लोग मुख्य न्यायाधीश को इस मामले में फंसाना चाहते हैं। इस संबंध में उन्होंने एफीडेविट दायर की थी जिसमें यह दावा किया गया था कि उनसे अजय नाम के व्यक्ति ने संपर्क किया था और डेढ़ करोड़ रु पए की पेशकश भी की थी। उनसे कहा गया था कि वे सुप्रीमकोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी का मामला उठाएं जिसने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पर उसे परेशान करने का आरोप लगा रखा है। बैंस ने बुधवार को एफिडेविट दाखिल किया था।
तहलका ब्यूरो
‘जांच से पहले ही मेरी चरित्र हत्या’
सुप्रीमकोर्ट की जांच कमेटी (मुख्य न्यायाधीश पर लगे आरोप पर) को लिखे अपने पत्र में अदालत में ही पहले काम करने वाली महिला ने जो चिट्ठी में भय और आशंकाएं जताई हैं। इन हाउस जांच कमेटी को लिखे पत्र में बताया है कि मुख्य न्यायाधीश ने शनिवार को सुनवाई की थी जिसमें उसके पत्र को उन्होंने अपने खिलाफ एक ‘बड़ी साजिश’ करार दिया था।
पत्र में लिखा है कि विशाखा गाइड लाइंस के तहत ही मामले की सुनवाई होनी चाहिए। गाइड लाइंस के तहत जांच कमेटी में पुरु षों की तुलना में महिलाओं की संख्या ज्य़ादा हो।
इन हाउस जांच की पहली कमेटी में जस्टिस एमए बोबडे, एनवी रामना, और इंदिरा बनर्जी थे। शिकायत कर्ता ने मंगलवार को अदालत से मिले नोटिस के जवाब में जो चिट्ठी भेजी है उसमें वित्त मंत्री अरूण जेटली के ब्लाग (रविवार ) का भी हवाला है, ‘उन्होंने इन घटनाओं के लिए मेरी निंदा की है। मैं काफी डरी हुई हूं और अलग-थलग पड़ गई हूं और हताश हूं।’
मैं सिर्फ यही चाहती हूं कि मेरी सुनवाई के समय मेरे डर और आशंका का ध्यान रखा जाए। मैंने बहुत कुछ झेला है। मुझे उम्मीद है कि मेरी तकलीफों और मेरे परिवार का सताना बंद हो। मुझे यह जानकारी है कि मेरा कोई स्थान या दर्जा नहीं हैं। मेरे पास सिर्फ सच है जो मैं आपके सामने रखने को हूं।
शिकायतकर्ता ने दावा किया कि जस्टिस रामना मुख्य न्यायाधीश के करीबी हैं। उनके पारिवारिक सदस्य जैसे है। इसलिए उसे डर है कि उसकी एफिडेविट और साक्ष्यों पर ध्यान नहीं दिया जा सकेगा। इस पत्र में 20 अप्रैल को हैदराबाद में हाईकोर्ट की इमारत के 100 साल होने पर जस्टिस रामना ने जो भाषण दिया था। उससे भी पत्र में उदधारण है। जस्टिस रामना की जगह अब जस्टिस इंदू मल्होत्रा जांच कमेटी में हैं।