तहलका की पड़ताल : एसआईआर का दर्द

एसआईआर की जल्दबाजी में हो रही तकनीकी गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार कौन?

जैसे-जैसे राज्यों में चुनावी सूचियों में विशेष गहन संशोधन का काम यानी एसआईआर किया जा रहा है, बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) लगातार ज्यादा घंटे काम करने को मजबूर हो रहे हैं। कम समय-सीमा और बढ़ते आधिकारिक दबाव के चलते वे तनाव से जूझ रहे हैं और एसआईआर में जल्दबाजी के चलते तकनीकी गड़बड़ियां भी सामने आ रही हैं। तहलका ने अपनी इस रिपोर्ट में मतदाता सत्यापन का काम सौंपे गए बीएलओ के जमीनी स्तर के अनुभवों पर विस्तार से पड़ताल की है, जिससे साफ होता है कि गड़बड़ियों के साथ-साथ चुनाव आयोग के प्रति जनता में अविश्वास भी पनप रहा है। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट –


‘अगर मेरा बेटा वहां नहीं होता, तो मतदाता सूचियों के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) के कारण हुए तनाव से मेरी मृत्यु हो जाती। उसने इस पूरी प्रक्रिया में मेरी मदद की है। मैं 59 वर्षीय सरकारी स्कूल शिक्षक हूं और हृदय रोग से पीड़ित हूं। मेरे दिल में दो स्टेंट लगे हैं। मैं चीनी, तेल या नमक नहीं खा सकता। मेरा शरीर कमजोर हो गया है और मैं समय से पहले सेवानिवृत्ति लेने के बारे में सोच रहा हूँ।’ -उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के बूथ-स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) देवेंद्र पाल सिंह ने यह बात कही।
‘मैंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से कहा कि चूंकि मैं हृदय रोगी हूं, इसलिए उन्हें मुझे एसआईआर ड्यूटी से मुक्त कर देना चाहिए। उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि मैं चुनाव आयोग के काम से जुड़ा हुआ हूं। मुझे सरकार की एसआईआर फॉर्म को घर-घर बांटने की प्रणाली पसंद नहीं है। उन्हें ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए थी, जहां मतदाता बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) के पास जाकर जानकारी प्राप्त कर सकें। एसआईआर के उचित कार्य के लिए छः महीने भी कम हैं।’ -देवेंद्र ने जोड़ा।
‘एसआईआर सरकार की एक साजिश है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची से मुस्लिम और दलित वोटों को हटाना है। हालांकि मेरे किसी भी वरिष्ठ अधिकारी ने मुझसे कभी भी मुस्लिम वोटों को रद्द करने के लिए नहीं कहा है।’ -आगरा, उत्तर प्रदेश के एक बीएलओ साकिब मंसूर ने तहलका रिपोर्टर से कहा।
‘मेरे क्षेत्र में कम से कम 10-15 प्रतिशत मतदाताओं के नाम गायब हैं। मेरे पिता एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे और उन्होंने 2002-03 के चुनावों में बूथ अधिकारी के रूप में काम किया था। लेकिन 2003 की मतदाता सूची में मेरे पिता और माता के नाम गायब थे। मेरे पिता का निधन 2014 में हुआ था।’ -मंसूर ने जोड़ा।
‘सरकार से 5 किलो मुफ्त राशन प्राप्त करने वाले लोग इस बात से भयभीत हैं कि एसआईआर के कारण उनका राशन छीन लिया जाएगा और उनके बैंक खातों से पैसे निकाल लिए जाएंगे। इसी डर के चलते वे भरे हुए एसआईआर फॉर्म वापस जमा नहीं कर रहे हैं।’ -आगरा के एक अन्य बीएलओ वीरेंद्र सिंह ने कहा।
‘यदि हमें कम समय में अधिक काम करना पड़े, तो गलतियां होने की संभावना रहती है। एसआईआर के लिए एक महीना बहुत कम है। हम पर दबाव बढ़ रहा है। आगरा के जिला मजिस्ट्रेट अक्सर हमें वीडियो कॉल करते हैं और हमारे ठिकाने के बारे में पूछते रहते हैं।’ -आगरा के एक अन्य बीएलओ संजय बाबू ने कहा।
‘सरकार ने हमें कगार पर धकेल दिया है। मतदाताओं के लिए आदेश पारित करने के बजाय वे बीएलओ के लिए आदेश पारित कर रहे हैं। यहां तक कि संपन्न लोग भी फॉर्म भरने के बाद वापस नहीं कर रहे हैं। सरकार को मतदाताओं के लिए फॉर्म वापस करना अनिवार्य कर देना चाहिए था। या फिर उन्हें इसे बैंक खातों से जोड़ना चाहिए था और मतदाताओं को चेतावनी दी जानी चाहिए थी कि यदि वे एसआईआर फॉर्म वापस नहीं करते हैं, तो उन्हें अपने बैंक खातों के साथ परेशानी होगी।’ -उत्तर प्रदेश के नोएडा की बीएलओ रेनू चौहान ने कहा।
‘हम दिन में केवल 3-4 घंटे ही सो रहे हैं। हम न केवल फॉर्म अपडेट कर रहे हैं बल्कि मैपिंग भी कर रहे हैं, जिसमें प्रति मतदाता लगभग 15 मिनट का समय लगता है। और इन सब के बदले हमें कोई अतिरिक्त पैसा नहीं मिल रहा है। समय पर वेतन मिलना ही काफी है—हम केवल इतना चाहते हैं कि हमारे साथ दुर्व्यवहार न हो।’ -रेनू ने जोड़ा।
‘मेरे इलाके के लोग भरे हुए एसआईआर फॉर्म वापस जमा नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि अगर उनका वोट रद्द हो गया, तो उन्हें मिलने वाला 5 किलो का मुफ्त राशन बंद हो जाएगा। जब हम मतदाताओं के सामने एसआईआर फॉर्म स्कैन करते हैं, तो उन्हें संदेह होता है कि उनका वोट सीधे मोदी को जाएगा। मेरे क्षेत्र में मतदाता सूची से कुल 25 मतदाताओं के नाम गायब हैं, जहां ज्यादातर दलित और वाल्मीकि समुदाय के लोग रहते हैं। उसके बाद मुस्लिम समुदाय के लोग आते हैं।’ -आगरा के एक अन्य बीएलओ अताउल्लाह अजहर हुसैन ने कहा।
भारतीय चुनाव आयोग ने देश में मतदाता सूची की एसआईआर की घोषणा सबसे पहले बिहार में की और अब भारत के नौ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर किए जाने के बाद से बीएलओ का नाम घर-घर में जाना जाने लगा है। एसआईआर का उद्देश्य मतदाता सूची को ठीक करना है। लेकिन विभिन्न सरकारी या अर्ध-सरकारी सेवाओं से चयनित बीएलओ को स्थानीय स्तर पर मतदाता सूचियों के प्रबंधन के लिए नियुक्त किया गया है, जो कि पूर्णकालिक चुनावी अधिकारी नहीं हैं। यह भूमिका मौजूदा लोक सेवकों को सौंपी गई एक अतिरिक्त जिम्मेदारी है। ये लोग समुदाय और भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के बीच महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करते हैं।
जबसे एसआईआर की घोषणा हुई है, विपक्षी राजनीतिक दलों ने इसे केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा विपक्षी वोटों को कम करने की साजिश बताया है। दूसरी ओर उन राज्यों से दुर्भाग्यपूर्ण खबरें आ रही हैं, जहां एसआईआर की प्रक्रिया चल रही है, जिनमें कथित तौर पर एसआईआर से संबंधित कार्य दबाव के कारण बीएलओ द्वारा आत्महत्या करने की खबरें आ रही हैं। गलत काम करने वाले बीएलओ के खिलाफ की गई कार्रवाई, जिसमें एफआईआर, निलंबन और कारण बताओ नोटिस शामिल हैं; ने भी सुर्खियां बटोरी हैं। वर्तमान एसआईआर अभियान में व्यापक रूप से पूछा जाने वाला एक प्रश्न प्रपत्र जमा करने के लिए दी गई एक महीने की सीमित अवधि के बारे में है। लगभग सभी की यही राय है कि इतनी लंबी प्रक्रिया के लिए एक महीना बहुत कम है, जिससे बीएलओ पर भारी दबाव पड़ता है और कई बीएलओ संकट और तनाव से घिर जाते हैं।
जमीनी हकीकत की जांच करने के लिए तहलका ने मौजूदा एसआईआर में शामिल बीएलओ पर एक रियलिटी चेक करने का फैसला किया। नोएडा, आगरा और अलीगढ़ में तैनात बीएलओ से संपर्क करके उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास किया गया, जिनके कारण कथित तौर पर कुछ बीएलओ की मौत हो गई है। हमने अलीगढ़ के गूलर रोड के रहने वाले 59 वर्षीय देवेंद्र पाल सिंह से बात की, जो एक सरकारी स्कूल में शिक्षक और बूथ नंबर 201 पर तैनात बीएलओ हैं। उनकी कहानी अत्यंत मार्मिक है।
‘मेरे बेटे का हाल ही में सीआईएसएफ में सब-इंस्पेक्टर के रूप में चयन हुआ है और हैदराबाद में 24 नवंबर को होने वाली उसकी ज्वाइनिंग को स्थगित कर दिया गया था। इसलिए उसने एसआईआर के काम में मेरी मदद की और चुनाव आयोग की वेबसाइट पर फॉर्म अपलोड करने का सारा काम किया। बेटे के बिना मैं अपना काम पूरा नहीं कर पाता।’ -देवेंद्र ने यह खुलासा करते हुए यह भी कहा कि वह हृदय रोगी हैं और अगर उनके बेटे ने उनकी मदद न की होती, तो एसआईआर से संबंधित काम के तनाव के कारण उनकी मृत्यु हो जाती।
उन्होंने खुलासा किया कि स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए जब उन्होंने अपने अधिकारियों से एसआईआर ड्यूटी से उन्हें मुक्त करने के लिए संपर्क किया था, तो उनकी सभी अपीलें खारिज कर दी गईं। उन्होंने बताया कि उनकी स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जानते हुए भी उनके वरिष्ठ अधिकारी उन पर दबाव डालना जारी रखे हुए हैं। उन्होंने कहा कि वह दिन में 12 घंटे काम कर रहे हैं और साथ ही यह भी कहा कि एक उचित एसआईआर के लिए छह महीने भी पर्याप्त नहीं होंगे।
निम्नलिखित बातचीत से देवेंद्र पर पड़ने वाले दबाव और तनाव का स्पष्ट पता चलता है कि गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद वह लगातार बारह-बारह घंटे काम कर रहा है। उन्होंने बताया कि अधिकारी जल्दबाजी में जानकारी जमा करने पर जोर दे रहे थे, ओटीपी मांग रहे थे और उन्हें मौके पर ही बैठकर डेटा दर्ज करने के लिए मजबूर कर रहे थे। गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का हवाला देने के बावजूद, ड्यूटी से राहत पाने के उनके अनुरोधों को नजरअंदाज कर दिया गया।

देवेंद्र : पूरे दिन काम कर रहे हैं सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक।
रिपोर्टर : ऊपर से सरकारी कर्मचारी आप पर प्रेशर बना रहे हैं?
देवेंद्र : प्रेशर तो बहुत बन रहा है। प्रेशर हमने कम कर लिया- काम जल्दी से जल्दी करिए। एक बार तहसील में फॉर्म मंगवा लिए मुझसे। अब ओटीपी मांग रहे थे, वो मैं कैसे दे दूं? उसपे फ्रॉड कॉल भी आ रही हैं। और वहां पर मुझे बिठा लिया- यहां फीड कीजिए। अब मैं हूं हार्ट पेशेंट। मेरी दवाई चल रही है। मैं अपने लड़के की हेल्प ले रहा हूं। मेरे दो स्टंट पड़े हैं पिछले साल, शरीर कमजोर हो रहा है। लेकिन काम मेहनत से कर रहे हैं।
देवेंद्र (आगे) : हमने अपने खंड प्रभारी को बोला- हमारी ड्यूटी कटवा दो। हम हार्ट पेशेंट हैं। हमसे चला-फिरा नहीं जाता। दवाई 3-4 टाइम की चल रही है। तो बोले- आप निर्वाचन आयोग के अधीन हैं।
रिपोर्टर : आपको लगता है कि एक महीने एसआईआर के लिए कम है?
देवेंद्र : हां, कम तो है। अगर ये ढंग से एसआईआर करवाएं, तो छः महीने भी कम पड़ जाएंगे।

इस बातचीत में देवेंद्र कहते हैं कि उनके पास बड़ी संख्या में ऐसे फॉर्म जमा हो गए हैं। कुछ मतदाता फॉर्म वापस नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके क्षेत्र में 984 मतदाता हैं, जिनमें से 150-200 मतदाता अज्ञात कारणों से अपने भरे हुए फॉर्म वापस नहीं कर रहे हैं। वह बताते हैं कि अपने पूरे क्षेत्र में फॉर्म वितरित करने के बावजूद मुश्किल से दो-तिहाई लोगों ने ही फॉर्म वापस भेजे हैं। लोग अनुपलब्ध हैं, अपना स्थान बदल चुके हैं या पारिवारिक परिवर्तनों के कारण कहीं और चले गए हैं।
रिपोर्टर : आप बीएलओ बनकर जो काम कर रहे हैं इलेक्शन कमीशन का उसमें क्या दिक्कत परेशानी आ रही है?
देवेंद्र : जो पर्ची (फॉर्म) हैं करीब 150-200 वो लौटकर नहीं दे रहे, कुछ पर्चियां वापिस ही नहीं आ रही।
रिपोर्टर : ऐसा क्यूं?
देवेंद्र : 72 परसेंट काम हो गया हमारा।
रिपोर्टर : आपका कौन-सा क्षेत्र है अलीगढ़ में?
देवेंद्र : 201, गुलार रोड, हमारे 984 वोटर हैं, सबको फॉर्म बंट गए। ये 72 परसेंट काम हुआ है। फॉर्म आ नहीं रहे भर के।
रिपोर्टर – ऐसा क्यूं?
देवेंद्र : लोग दे नहीं रहे। एक तो मिल नहीं रहे लोग। शहर में कभी रहते थे, छोड़कर चले गए, लड़कियों की शादी हो गई। मैं अलीगढ़ में टीचर हूं सरकारी स्कूल में।  

देवेंद्र के अनुसार, वह अपने बेटे की मदद से एसआईआर का काम पूरा कर रहे हैं और उनके प्रयासों को उनके वरिष्ठों द्वारा भी सराहा जा रहा है।
आगरा के एक अन्य बीएलओ वीरेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार से 5 किलो मुफ्त राशन प्राप्त करने वाले लोगों को डर है कि एसआईआर उनके राशन की आपूर्ति में कटौती कर देगा या उनके बैंक खातों से पैसे निकाल लेगा। इस निराधार भय के कारण वे अपने भरे हुए एसआईआर फॉर्म वापस नहीं कर रहे हैं। निम्नलिखित बातचीत से पता चलता है कि वीरेंद्र बार-बार आने के बावजूद भरे हुए फॉर्म इकट्ठा करने के लिए संघर्ष कर रहा है।
वीरेंद्र : फॉर्म ले लिए हैं पब्लिक ने, मगर वापिस नहीं कर रहे हैं। हम बार-बार चक्कर लगा रहे हैं, कहते हैं- आधार कार्ड नहीं है। बहाने बना रहे हैं। करीब 200-250 वोटर हैं। टोटल 965 वोटर हैं हमारे क्षेत्र में, बूथ नंबर 403…।
वीरेंद्र (आगे) : वैसे क्या है सर! समाझदार नहीं हैं, जानकार नहीं हैं। (उनको डर है) पैसे खाते से न चले जाएं।
रिपोर्टर : मतलब?
वीरेंद्र : मतलब (वो सोचते हैं) कोई गड़बड़ी न हो जाए, हमारा वोट न कट जाए।
रिपोर्टर : ये वो लोग होंगे जिन्हें राशन मिल रहा है 5 केजी?
वीरेंद्र : हां, हां।



नोएडा में रहने वाली एक अन्य बीएलओ रेनू चौहान ने तहलका को बताया कि उन्हें दिन में तीन से चार घंटे से ज्यादा नींद नहीं मिल रही है। उनके अनुसार, न तो अधिकारी और न ही आम जनता उन दबावों को समझ पाती है, जिनका उन्हें सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि इस काम के लिए उन्हें कोई अतिरिक्त वेतन नहीं मिल रहा है, समय पर वेतन मिलना ही पर्याप्त है। उन्होंने आगे कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बीएलओ का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
रेनु : न तो अधिकारियों को पता है, न पब्लिक को। हमें ही पता है, क्यूंकि हमारे ऊपर बीत रही है। सो भी नहीं पाते रात भर। ये काम करते रहते हैं, …लगे रहते हैं।
रिपोर्टर : कितने घंटे काम कर रही हैं मैम?
रेनू : रात को तीन बचे हम ये अपलोड करते हैं। तीन से चार घंटे की नींद ले रहे हैं।
रिपोर्टर : बस? उसका कुछ एक्स्ट्रा पे करेगी गवर्नमेंट?
रेनू : कुछ भी नहीं है, बस अपनी पे आनी चाहिए कम से कम। पर गालियां तो मत दिलवाओ!

रेनू चौहान को नोएडा के सेक्टर-134 में स्थित एक बहुमंजिला आवासीय सोसायटी की देखरेख का जिम्मा सौंपा गया है, जहां शिक्षित लोग रहते हैं। फिर भी यहाँ के निवासी अपने भरे हुए एसआईआर फॉर्म वापस नहीं कर रहे हैं। रेनू के अनुसार, जाने-माने लोग भी फॉर्म जमा नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि घर-घर जाकर प्रचार करते-करते वह थक चुकी हैं और सरकार ने उन्हें कगार पर धकेल दिया है। उन्होंने कहा कि बीएलओ पर और अधिक नियमों का बोझ डालने के बजाय सरकार को एसआईआर को लोगों के बैंक खातों से जोड़ देना चाहिए था और उनसे फॉर्म वापस करने के लिए कहना चाहिए था, अन्यथा उन्हें बैंकिंग संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
रिपोर्टर : लोग नहीं आ रहे?
रेनू : बहुत कम आ रहे हैं। सोसायटी से लोग ही नहीं आ रहे, फॉर्म लेकर बैठ गए हैं।
रिपोर्टर : मतलब, सोसायटी से भी लोग फॉर्म लेकर बैठे हैं?
रेनू : हां, वेल नाउ पर्सन्स। (प्रसिद्ध व्यक्ति)।
रिपोर्टर : अच्छा!
रेनू : ये भी नहीं जिन्हें जानते न हों, वेल नाउ पर्सन?
रिपोर्टर : मतलब, फॉर्म भरकर आपको वापस नहीं कर रहे?
रेनू : हां, पता नहीं क्या चाह रहा है?
रेनू (आगे) : वैसे कह रहे हैं घर-घर जाओ। कितना घर-घर जाएं भाई?
रिपोर्टर : एक महीने में कैसे चला जाएगा आदमी?
रेनू : गवर्नमेंट ने पागल बना रखा है। बल्कि गवर्नमेंट को इसको आपके बैंक अकाउंट से कनेक्ट करना चाहिए और बोलना चाहिए कि आपको वहां परेशानी होगी अगर आप ये (एसआईआर फॉर्म) नहीं करेंगे। उल्टा हमारे लिए उल्टे-सीधे आदेश दे दिए। उनकेे (लोगों के) लिए कोई आदेश नहीं है। आदेश सही से डाले ना, तभी तो लोग निकलकर आएंगे। तभी तो लोग आएंगे ना! कंपल्सरी करो कि आपको देना ही देना है।

रेनू चौहान ने आगे कहा कि वह न केवल फाइलें अपलोड कर रही हैं, बल्कि मैपिंग भी कर रही हैं, जिसमें प्रति मतदाता 15 मिनट का समय लगता है। वह इस बात पर जोर देती हैं कि सत्यापन प्रक्रिया धीमी और जटिल है। उनके अनुसार, एसआईआर का काम पूरा करने के लिए एक महीना पर्याप्त ही नहीं है, यहाँ तक कि पूरा एक साल भी कम पड़ जाएगा।
रिपोर्टर : अपलोड करने में भी दिक्कत आ रही होगी?
रेनू : अपलोड ही नहीं उसके बाद मैपिंग भी करनी है। एक मैपिंग करने में 15 मिनट जाता है। एक बंदे के लिए।
रिपोर्टर : मैपिंग क्या होती है मैम?
रेनू : जो आप डिटेल्स भरकर दे रहे हैं हमें?
रिपोर्टर : हा-हा।
रेनू : वो सारी की सारी चेकर करनी है, क्रॉस चेक करनी है कि वो बंदा वास्तव में वहां से ब्लॉन्ग कर रहा है कि नहीं कर रहा।
रिपोर्टर : आपके हिसाब से कितने महीने का काम है ये? एक महीने का तो है नहीं। कितना होना चाहिए आपके हिसाब से?
रेनू : इसके लिए तो पूरा साल भी कम है।

आगरा कैंट निर्वाचन क्षेत्र के बूथ नंबर 341 से एक अन्य बीएलओ संजय बाबू ने स्वीकार किया कि बीएलओ सरकार के निर्देशानुसार घर-घर नहीं जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन पर भी दबाव है, क्योंकि आगरा के डीएम अक्सर वीडियो कॉल के जरिए उनके ठिकाने की जानकारी लेते रहते हैं। संजय ने आगे कहा कि जब कम समय में अधिक काम करने की उम्मीद की जाती है, तो गलतियां होना स्वाभाविक है।
 रिपोर्टर : आप तो फिर भी घर आ गए, बहुत बीएलओज तो घर घर भी नहीं जा रहे।
संजय : हां, नहीं जा रहे।
रिपोर्टर : दिक्कत क्या आ रही है इसमें?
संजय बाबू : प्रेशर तो हमारे ऊपर भी है, मगर हम काम कर रहे हैं। परिवार है, प्रेशर तो सबके ऊपर है। डेली डीएम मीटिंग ले रहे हैं, …ऑनलाइन वीडियो कॉल कर रहे हैं, मीटिंग लेते हैं, कहां हैं आप अपना स्टेटस दीजिए।
रिपोर्टर : आपको नहीं लगता समय कम है एक महीने का?
संजय : समय कम है काम ज्यादा है। जब समय कम होता है, तो गड़बड़ी होती है।

आगरा के एक अन्य बीएलओ, आकाश नागर एसआईआर कर्तव्यों का निर्वहन करते समय आने वाली व्यावहारिक बाधाओं के बारे में बताते हैं कि कई मतदाताओं ने अपना पता बदल लिया है, कई मकान भी पुराने रिकॉर्ड से मेल नहीं खा रहे हैं और दर्जनों ऐसे लोग भी हैं, जिनका पता ही नहीं लग पा रहा है। उन्होंने कहा कि वे चुनाव आयोग की वेबसाइट पर एसआईआर फॉर्म अपलोड करने के लिए सुबह तीन बजे उठते हैं, क्योंकि शाम को अक्सर सर्वर डाउन रहता है। उन्होंने कहा कि एसआईआर के लिए आवंटित समय बहुत कम है और उनके क्षेत्र में अनुपलब्ध मतदाताओं का पता लगाना बहुत चुनौतीपूर्ण है। आकाश के अनुसार, लोग ऐसे सवाल भी पूछते हैं, जिनका जवाब देना मुश्किल होता है।
रिपोर्टर : प्रॉब्लम क्या-क्या आई आपको?
आकाश : मेन प्रॉब्लम क्या है, कुछ व्यक्ति छोड़कर चले गए, रेंट पर ज्यादा थे, वो जा चुके हैं। हमारे 831 वोटर्स हैं, 40-50 अनट्रेकेबल हैं, बहुत मकान के तो पता ही नहीं चल रहे हैं. बिल्डिंग बन गई हैं, जैसे कश्मीरी बाजार कॉन्स्टीट्वेंसी।
आकाश (आगे) : और समस्या है साइट की, सर्वर डाउन हो जाता है। सुबह तीन बजे उठा हूं, क्यूंकि सुबह नेटवर्क अच्छा होता है। मैं इरीगेशन डिपार्टमेंट में हूं।
आकाश (आगे) : जो करेंट लिस्ट है वोटर्स की, एसआईआर फॉर्म उन्हीं के दिए गए हैं।
आकाश (आगे) : जी सर! टाइम तो कम है, हम लोग तो गाइडलाइन के अकॉर्डिंग ही काम करेंगे। ऊपर से गाइडलाइन है, पब्लिक को समझाना पड़ता है, ऐसे-ऐसे क्वेश्चन पूछते हैं, जिनका जवाब नहीं बनता है।

आगरा के एक अन्य बीएलओ नेत्रपाल सिंह चाहर, जो सिंचाई विभाग के कर्मचारी हैं, अपने क्षेत्र में असामान्य रूप से बड़े क्षेत्र और सबसे लंबी सूची से जूझ रहे हैं। उन्होंने तहलका रिपोर्टर को बताया कि उनके इलाके में लोग भरे हुए एसआईआर फॉर्म वापस नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि अगर उनके वोट रद्द हो गए, तो उन्हें मिलने वाला 5 किलो का मुफ्त राशन भी बंद हो जाएगा। उनके अनुसार, उनके इलाके के कई निवासियों के पास एक से अधिक वोट हैं। उन्होंने आगे कहा कि उनका इलाका कैंट निर्वाचन क्षेत्र में सबसे बड़ा है, जिसमें बड़ी संख्या में मतदाता हैं और 14-15 मंजिला, कई बहुमंजिला इमारतें हैं। प्रत्येक फ्लैट में जाकर फॉर्म एकत्र करने में उनका पूरा दिन लग जाता है।
नेत्रपाल : बहुत ज्यादा लंबा क्षेत्र कर दिया। सबसे बड़ी लिस्ट मेरी है 1362 की, पूरी छावनी (कैंटोनमेंट) में, मैंने 1070 फॉर्म बांट दिए।
रिपोर्टर : कॉपरेट कर रहे हैं लोग?
नेत्रपाल : कॉपरेट तो कर रहे हैं, फॉर्म तो ले जा रहे हैं, मगर वापिस नहीं कर रहे हैं। कई लोगों के 2 जगह वोट हैं। गांव में भी है, यहां भी।
रिपोर्टर : लोगों को ये भी लग रहा है, हमारा 5 केजी राशन न कट जाए?
नेत्रपाल : हां, ये भी सबसे बड़ी बात। मेरी समस्या ये है कि यहां जो फ्लैट हैं 10-12 मंजिल के, मैं अगर फॉर्म लेने जाऊंगा, तो एक दिन तो मुझे उसी में लग जाएगा। घर-घर तो जा ही रहा हूं, 14-15 माले की जो भी बिल्डिंग है अब उसमें मेरा पॉसिबल तो है नहीं एक-एक घर जाऊं। क्यूंकि एक बिल्डिंग में एक है फिर कोई दूसरी बिल्डिंग में है, मेरा पूरा दिन तो इसी काम में लग जाएगा।

नेत्रपाल सिंह चाहर ने तहलका रिपोर्टर को बताया कि उन्होंने आगरा के डीएम को सूचित किया था कि उनके क्षेत्र के आकार के कारण, जिसमें कई बहुमंजिला इमारतें हैं, चुनाव आयोग की वेबसाइट पर एसआईआर फॉर्म अपलोड करने में देरी हो रही है। उन्होंने कहा कि डीएम ने संबंधित सोसाइटियों के अध्यक्षों से संपर्क किया और निवासियों से अपने एसआईआर फॉर्म शीघ्र जमा करने का अनुरोध किया। इसके बावजूद कई बार जाने के बाद भी निवासी अपने फॉर्म वापस नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उनका इलाका काफी बड़ा है और उसमें कई बहुमंजिला इमारतें हैं।


आगरा के मुस्लिम बहुल बूथ नंबर 334 के एक अन्य बीएलओ साकिब मंसूर, जो अहमदिया हनीफिया इंटर कॉलेज में शिक्षक हैं, ने तहलका रिपोर्टर को बताया कि उनके क्षेत्र में 10-15 प्रतिशत मतदाताओं के नाम गायब हैं। उन्होंने आगे बताया कि उनके पिता, जो एक सरकारी स्कूल शिक्षक और 2002-03 के चुनावों में बूथ अधिकारी थे; का नाम 2003 से मतदाता सूची से गायब है। उनके पिता का 2014 में निधन हो गया।
रिपोर्टर : 10-15 लोगों के वोट काटे हैं या 10-15 परसेंट?
मंसूर : 10-15 परसेंट। बहुत सारों के वोट कटे हुए हैं पहले से। अब मेरे वालिद-वालिदा, दोनों के वोट कटे हुए हैं। अब मैं वही तो मानूंगा, वालिद मेरे गवर्नमेंट जॉब में थे, हेडमास्टर थे, 2002-03 में बूथ ऑफिसर अधिकारी भी थे। और जब अबकी लिस्ट आई, उसमें नाम नहीं है। 2014 में डेथ हुई है पापा की। दोनों का नाम नहीं है और ऐसे बहुत सारे लोग हैं।
रिपोर्टर : आपने पूछा नहीं किसी से?
मंसूर : किससे पूछें?
रिपोर्टर : आपने हायर (उच्च) से?
मंसूर : है ही नहीं ऊपर। कहते रहते हैं जो था वो आपको प्रोवाइड करवा दिया।
रिपोर्टर : कितने घंटे काम कर रहे हैं आप?
मंसूर : कम से कम 18-20 घंटे काम कर रहे हैं हम। मैंने सूची दी, अब वो करेंगे ऑनलाइन, उनसे हो ही नहीं रहा है।

निम्नलिखित बातचीत उन स्थानीय मुसलमानों के बीच बढ़ते डर को उजागर करती है, जिनके नाम मतदाता सूचियों से हटा दिए गए हैं।  जब मंसूर से पूछा गया कि क्या मतदाता सूची से गायब मुस्लिम मतदाता अधिकारियों पर सवाल उठा रहे हैं, तो उन्होंने जवाब दिया कि आज मुसलमान डरे हुए हैं और बड़े पैमाने पर अशिक्षित हैं। जब भी वे अपने वोटों के बारे में पूछने के लिए तहसील जाते हैं, तो उन्हें बताया जाता है कि अधिकारी बेबस हैं। मंसूर ने आगरा के एक मुस्लिम व्यापारी का भी जिक्र किया, जिसका नाम 2025 की मतदाता सूची में नहीं है।
रिपोर्टर : जिन मुस्लिम्स के वोट कटे, वो हंगामा नहीं कर रहे?
मंसूर : मुस्लिम जो है आजकल डरा हुआ है। उसको रास्ता नहीं मालूम। ही इज इलिटिरेट। वो तहसील जाता है, वो कहते, हम क्या करें।
रिपोर्टर : और पहले था?
मंसूर : खूब डाल रहे थे।
रिपोर्टर : कब तक डाले उन लोगों ने?
मंसूर :  आरे एक बंदा तो ऐसा है, हर तीन महीने में चेक करता है, अबकी लिस्ट में उसका नाम कट गया, 25 में। जीएम फुटवियर्स कंपनी से, …सब जानते हैं उनको। उनका नाम कट गया।
रिपोर्टर : अच्छा कौन, वो मालिक हैं?
मंसूर : मालिक नहीं हैं वन ऑफ दि पार्टनर्स हैं, सलीम पाशा नाम है।
रिपोर्टर : तो नया बन जाएगा, उसमें क्या दिक्कत है?
मंसूर : नया तो बन जाएगा, पर नाम क्यूं हटाया?

मंसूर ने तहलका रिपोर्टर को बताया कि चुनाव आयोग की वेबसाइट अक्सर खराब हो जाती है, जिससे उनके जैसे बीएलओ को एसआईआर फॉर्म देर रात अपलोड करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
रिपोर्टर : डिजिटाइज करने में कोई दिक्कत?
मंसूर : एप काम नहीं करता, रात को लेकर बैठते हैं हम, साइट डिस्टर्ब होती है।

मंसूर ने हमारे रिपोर्टर को बताया कि उनके बूथ पर 100 से अधिक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में कई बार दर्ज हैं। इससे पता चलता है कि डुप्लीकेट प्रविष्टियाँ कितनी व्यापक हैं, मंसूर ने ऐसे सौ से अधिक मामलों की ओर इशारा किया है।
रिपोर्टर : कितने वोटर्स हैं जिनके दो जगह नाम हैं?
मंसूर : बहुत हैं, मोर दैन 100।
रिपोर्टर : काटा आपने उनका नाम?
मंसूर : हमने तो 30 के काटे हैं, दोनों रख दिए उनके सामने, मैंने कहा बताओ कौन-सा काटना है?

अब मंसूर ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि एसआईआर सरकार की एक साजिश है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची से मुस्लिम और दलित वोटों को हटाना है। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम वोटों को रद्द करने के लिए उन पर अपने वरिष्ठों की ओर से कोई दबाव नहीं है।

रिपोर्टर: आपको लग रहा है साजिश है गवर्नमेंट की वोट काटने की मुसलमानों के और दलित्स के?

मंसूर : क्यूं नहीं है, और जगह भी कट रहे हैं।

रिपोर्टर : कट रहे हैं? कंफर्म?

मंसूर: हां।

रिपोर्टर : यहां का जो दलित एरिया है, उसके बीएलओ का क्या कहना है?
मंसूर : ये थे तो साहब अताउल्लाह, इनके पास दलित हैं, और शुजाउद्दीन के पास बनिए हैं ज्यादा। उनमें एक का भी नहीं कटा।

रिपोर्टर : बनियों में एक का भी नहीं कटा?

मंसूर : नहीं

रिपोर्टर : मुस्लिम्स में कितने लोगों के वोट कट गए होंगे आपके एरिया में?

मंसूर : 150-200…।

रिपोर्टर : आपके ऊपर कोई प्रेशर है कि मुसलमानों के वोट काटने हैं?

मंसूर : नहीं, बिलकुल नहीं।

मंसूर ने भी आम धारणा को दोहराते हुए कहा कि एसआईआर के लिए आवंटित समय बहुत कम है और उन्हें एसआईआर प्रशिक्षण बेहद भ्रामक लगा। मंसूर कार्यभार की तुलना छोटे राज्यों से करते हुए कहते हैं कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में दी जाने वाली समय सीमा आश्चर्यजनक रूप से कम है। वह याद करते हैं कि कैसे शुरुआती प्रशिक्षण ने भी अधिकारियों को असमंजस में डाल दिया था और पर्यवेक्षक बुनियादी सवालों के जवाब देने में असमर्थ थे।

रिपोर्टर : आपको क्या लगता है ये टाइम जो मिला है, ठीक है?

मंसूर : बिलकुल कम, बिहार जैसे छोटे राज्य में 4 महीने में हुआ, ये (यूपी? बिहार से 3 गुना आबादी है।

मंसूर (आगे) : स्टार्टिंग में हुई थी ट्रेनिंग, ट्रेनिंग देने वाला बिलकुल कंफ्यूजिंग था।

रिपोर्टर : वो कैसे?

मंसूर : बता कुछ रहा है, है कुछ,  बाद में कह रहा है ऐसे नहीं, ऐसे। कहने का मतलब ये है, लोगों के पास आंसर नहीं था, जो बैठे हुए थे। एसडीएम थे, पर,उनके पास आंसर नहीं था।

मंसूर (आगे) : आप अपना काम करेंगे, बेस्ट करेंगे आप। मैं क्लीयर आदमियों का काम कर रहा हूं।

अब मंसूर ने अपनी बीमारी के लिए व्यस्त एसआईआर प्रक्रिया को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि उचित नींद की कमी के कारण उन्हें सर्दी, बुखार, उल्टी और अत्यधिक थकान हुई, क्योंकि वह दिन में केवल कुछ घंटे ही सोते हैं। उन्होंने बताया कि उनके क्षेत्र में 4,500 मतदाता हैं और चार मतदान अधिकारी तैनात हैं। मंसूर ने तहलका रिपोर्टर को बताया कि 01 दिसंबर, 2025 तक उन्होंने 3,900 फॉर्म वितरित कर दिए थे, बाकी अभी भी लंबित हैं।
मंसूर : कल भी तबीयत खराब हो गई हमारी, बुखार, नजला, उल्टी और कोल्ड, …जबरदस्त।
रिपोर्टर : इसी बीएलओ के काम की वजह से?
मंसूर : अजी रात-दिन 2-2.30 घंटे सो रहे हैं हम लोग, थकान ऐसे लग रहा है, जैसे किसी ने पीठ पर बोरे लाद दिए हों। सुबह हम वहीं थे, जब आपका फोन आया, तब आए हम निबटा के।
रिपोर्टर : कितने वोटर्स हैं आपके एरिया में?
मंसूर : होंगे कोई 4,500 के आसपास, 4 बीएलओ लगे हैं उसी बूथ पर।
रिपोर्टर : आपका बूथ नंबर क्या है?
मंसूर : 324…।
रिपोर्टर : कितने फॉर्म्स बंट गए होंगे 4,500 में से?
मंसूर : मान लीजिए कि 3,900 बंट चुके, और कुछ तो हैं।



मंसूर के बाद उसी दिन तहलका रिपोर्टर ने आगरा में एक अन्य बीएलओ अताउल्लाह अजहर हुसैन से मुलाकात की। अताउल्लाह बूथ नंबर 291 के 1,214 मतदाताओं के सर्वेक्षक हैं। इन वोटर्स में अधिकतर वोटर्स दलित, वाल्मीकि और मुस्लिम हैं। उन्होंने तहलका रिपोर्टर को बताया कि उनके क्षेत्र के मतदाता न केवल नाराज हैं, बल्कि एसआईआर प्रक्रिया से डरे हुए भी हैं। उन्हें डर है कि अगर उनका वोट रद्द कर दिया गया, तो वे अपना 5 किलो का मुफ्त राशन खो सकते हैं। अताउल्लाह ने आगे कहा कि पढ़े-लिखे मतदाताओं की तुलना में निरक्षर मतदाताओं को अपने दस्तावेज सुरक्षित रखने में अक्सर कठिनाई होती है।
रिपोर्टर : दिक्कत क्या आ रही है?
अताउल्लाह : फॉर्म्स सब्मिट करने में आ रही है, जनता फॉर्म देना नहीं चाह रही है, ये सबसे बड़ी दिक्कत है।
रिपोर्ट : वजह?
अताउल्लाह : वजह लापरवाही, किसी-किसी के दिल में खुराफात भी चलती है- क्यूं हमें परेशान किया जा रहा है। …हम कहते हैं, ये चुनाव प्रक्रिया है, हम किसी से राब्ता नहीं रखते, न कीचड़ उछालते हैं। अब हम बीएलओ हैं, उनको समझाते हैं, कुछ लोगों को ये भी शिकायत रहती है अगर हम उनका वोट कटवा देंगे, तो उनका राशन बंद हो जाएगा सरकार से। तो इसलिए बताना नहीं चाहते कि हमारा वोट कट जाएगा।
अताउल्लाह (आगे) : पब्लिक क्या है, ये सब करवाना नहीं चाहती। कागजी तौर पर अपने आप को मजबूत नहीं रखती। जो पढ़े-लिखे हैं, वो रखते हैं। लेकिन जो पढ़े-लिखे नहीं है, उसमें दिक्कत है।
रिपोर्टर : आपका एरिया कौन-सा है?
अताउल्लाह : 291 है, और एरिया थोड़ा बड़ा है। और दिक्कत का क्या है, पहुचाने जाते हैं हम, लोग मिलते नहीं हैं। लेकिन आमतौर से जो मिल रहे हैं, फॉर्म उनके भर रहे हैं।
रिपोर्टर : कितने वोटर्स हैं आपके एरिया में?
अताउल्लाह : 1,214….।
रिपोर्टर : किस टाइप के लोग ज्यादा हैं?
अताउल्लाह : जाटव, वाल्मीकि समाज से हैं, और फिर मुस्लिम।

अताउल्लाह ने कहा कि उनके इलाके के कुछ मतदाता 2025 की मतदाता सूची में शामिल नहीं हैं, जबकि 2024 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने मतदान किया था। कुछ निवासियों को केवल एक ही फॉर्म मिला, जबकि अन्य को दो फॉर्म मिले- एक उनके लिए और एक चुनाव आयोग के लिए। अताउल्लाह ने बताया कि वह सुबह 9 बजे से आधी रात तक काम करते हैं। 01 दिसंबर, 2025 तक जब तहलका के पत्रकार ने उनसे मुलाकात की, तब तक उनके क्षेत्र के लगभग 40 प्रतिशत फॉर्म डिजिटाइज हो चुके थे।
रिपोर्टर : 2024 में लोगों ने वोट डाला और 2925 में उनका नाम नहीं है?
अताउल्लाह : हां, ऐसे भी हैं, …लेकिन जब अंदर से खंगालो तो कुछ न कुछ झोल निकलता है, जैसे 10 साल से उनका पहचान पत्र नहीं है, पुराना पहचान पत्र है दो साल से वोट नहीं डाल रहे थे। ये भी आई है शिकायत कि पिछला वोट हमने नहीं डाला तो इस बार हमारे पास फॉर्म नहीं आया। अब जैसे कि दो फॉर्म्स दिए हैं और एक हमें अपने पास रखना है, एक उनको देना है। कुछ के पास सिर्फ एक फॉर्म आया है, तो हम उनको समझाते हैं कि आप एक फॉर्म की फोटोकॉपी अपने पास रख लेना। ताकि आप मेरे को इल्जाम न लगा सकें कि इन्होंने हमको फॉर्म नहीं दिया था, ना आप सरकार को इल्जाम लगा सकते हैं कि मेरे पास फॉर्म नहीं आया। और अगर फोटो कॉपी नहीं रखवाना है, तो आप भरे हुए फॉर्म की फोटो खींचकर अपने पास रख लें।
रिपोर्टर : आप कितने घंटे काम कर रहे हो?
अताउल्लाह : मैं सुबह 9 बजे से रात 12 बजे तक।
रिपोर्टर : कितने फॉर्म डिजिटाइज हो गए?
अताउल्लाह : मेरे 584, लगभग 40 परसेंट।

अताउल्लाह ने कहा कि प्रशिक्षण के दौरान उन्हें जो कुछ भी समझाया गया, वह पूरी तरह से समझ में नहीं आया। वह कहते हैं कि उन्होंने इस प्रक्रिया को सही मायने में तभी सीखा, जब उन्होंने इस क्षेत्र में काम करना शुरू किया। उन्होंने दलित मतदाताओं के प्रभुत्व वाले और मुस्लिम आबादी की कम संख्या वाले मिश्रित क्षेत्र में लापता वोटों के बारे में लगभग 25 शिकायतों की जानकारी दी है।
रिपोर्टर : ट्रेनिंग आपकी ठीक हुई?
अताउल्लाह : हां, ठीक हुई। चार-पांच बार बुलाया हमको, लेकिन हमें कुछ समझ में आया, कुछ नहीं भी आया। समझ में आया जब हम काम करने लगे।
रिपोर्टर : कितने वोट कट गए होंगे?
अताउल्लाह : लगभग 25 मेरे पास शिकायत आई हैं।
रिपोर्टर : आपके एरिया दलित डोमिनेटेड हैं?
अताउल्लाह : हैं मुस्लिम और दलित। लगभग 300 वोट मुस्लिम्स के होंगे, 900 से ऊपर दलित वोट होंगे।

अब अताउल्लाह ने खुलासा किया है कि एसआईआर फॉर्म में एक क्यूआर कोड होता है। वह कहते हैं कि जब उन्होंने मतदाताओं के सामने फॉर्म स्कैन किए, तो लोगों ने मान लिया कि उनके वोट प्रधानमंत्री मोदी को जा रहे हैं और उनकी पार्टी भाजपा को मजबूत कर रहे हैं। परिणामस्वरूप उन्होंने अब मतदाताओं के सामने फॉर्म स्कैन करना बंद कर दिया है। अब वह पारदर्शिता और आश्वासन के बीच संतुलन बनाए रखने और वोटर्स की आशंकाओं को दूर करने के लिए फॉर्म वापस सौंपने से पहले उन्हें सावधानीपूर्वक स्कैन करते हैं।
अताउल्लाह : फॉर्म्स दो आए हैं, या नहीं आए हैं, कुछ की शिकायत ये हमारे साथ धोखा है, कुछ की ये भी आई, हम उनका फॉर्म स्कैन कर रहे हैं, वो ये समझ रहे थे ये मोदी को जा रहा है, स्कैन किया हमने कुछ लोगों को ये भी लगा गारंटी वाला वोट मोदी को जा रहा है।
रिपोर्टर : जब आप स्कैन कर रहे हो फॉर्म तो लोगों को लगता है ये मोदी के पास जा रहा है?
अताउल्लाह : हां, लगता है ऐसा।
रिपोर्टर : मतलब, मोदी को वोट पड़ेगा?
अताउल्लाह : हां, मगर ऐसा नहीं है। स्कैन सिर्फ इसलिए होता है िक हमने फॉर्म आपको दे दिया, फॉर्म के अंदर क्यूआर कोड है। पहले में फॉर्म डेटा था, फिर स्कैन करता था। लेकिन अब में स्कैन करके फिर फॉर्म देता हूं। उनके सामने नहीं करता, क्यूंकि फिर हमें भी घेरते हैं वो लोग।

अताउल्लाह ने फिर कहा कि एसआईआर के लिए एक महीना बहुत कम है और यह कम से कम दो महीने का होना चाहिए था। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उनके मतदान केंद्र के कुछ मतदाताओं को 2002 में मतदान करने के बावजूद 2003 की मतदाता सूची में अपना नाम नहीं मिला।
अताउल्लाह : कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने 2003 में वोट डाला था, मगर लिस्ट में नाम नहीं है।
रिपोर्टर : आपके हिसाब से एक महीने का टाइम सही है?
अताउल्लाह : कम है, दो महीने होना चाहिए था कम से कम।

अताउल्लाह ने बताया कि एक बार उन्हें उनके वरिष्ठ अधिकारी ने निर्धारित समय के भीतर काम पूरा न करने पर कार्रवाई की चेतावनी दी है। वह कहते हैं कि उन्होंने अधिकारी से कहा कि अगर उन्हें लगता है कि उन्होंने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया है, तो वह कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं। अताउल्लाह ने उन पर्यवेक्षकों के दबाव के बारे में बताया, जो कभी-कभी डिजिटलीकरण का काम पूरा न करने पर उन पर भड़क उठते हैं। वह इस बात पर जोर देते हैं कि जनता की चिंताओं को समझना और उनका समाधान करना तकनीकी पूर्णत: जितना ही महत्वपूर्ण है। जिम्मेदारी सौंपने के सुझावों के बावजूद वह स्वयं काम का प्रबंधन करने पर जोर देते हैं।
अताउल्लाह : मुझसे बहुत जगह पूछा गया- आपका डिजिटाइज हुआ कि नहीं? हमने कहा- जनता की बातें समझने में दिक्कत हो रही है हमको, और जनता के बीच रहना है, हम जनता की आशाओं को ध्यान में रखकर काम करेंगे और फॉर्म देंगे भी। तो बोले कि एकाध आप पर कार्रवाई करें? मैंने कहा- आपको लगता है कार्रवाई का काम किया है, तो आप कार्रवाई कर दें। मैंने कहा- अगर आपको लग रहा है मैं काम नहीं कर पा रहा हूं, तो आप कार्रवाई कर दें।

संकटग्रस्त बीएलओ को लेकर काफी हंगामा होने के बाद 04 दिसंबर, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों पर यह जिम्मेदारी डाल दी कि वे उन कर्मचारियों की जगह नए कर्मचारियों की नियुक्ति करें, जो बीएलओ के काम के दबाव को सहन करने में असमर्थ हैं। अदालत ने यह भी कहा कि राज्य बीएलओ की संख्या बढ़ाने और उनके कार्यभार को कम करने के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों को भी नियुक्त कर सकते हैं।
09 दिसंबर को शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार ने चुनाव सुधारों के व्यापक दायरे के तहत एसआईआर पर संसदीय बहस के लिए विपक्ष की सर्वसम्मत मांग पर सहमति व्यक्त की। तहलका रिपोर्टर ने जिन सभी बीएलओ से बात की, उन्होंने कई चुनौतियों को उजागर किया, जिनमें तीन प्रमुख थीं- एसआईआर के लिए अपर्याप्त समय, मतदाताओं में उनका मुफ्त 5 किलो राशन खोने के डर, जिससे वे भरे हुए फॉर्म वापस नहीं कर रहे और यह व्यापक गलत धारणा कि एसआईआर फॉर्म पर क्यूआर कोड को स्कैन करने से प्रधानमंत्री मोदी के हाथ मजबूत होंगे और उनकी पार्टी भाजपा को फायदा होगा। ये बार-बार सामने आने वाली समस्याएं इस बात को रेखांकित करती हैं कि किस प्रकार प्रक्रियात्मक कमियां और सार्वजनिक रूप से फैलाई गई गलत सूचनाएं एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक कार्य के लिए नियुक्त अग्रिम पंक्ति के अधिकारियों पर दबाव को बढ़ा रही हैं।