इस बारे में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (दक्षिण-पश्चिम कमान) के डिप्टी डायरेक्टर जनरल मुथा अशोक जैन से बातचीत करने पर उन्होंने ड्रग्स तस्करी के फैले जाल और उससे निपटने के बारे में तहलका संवाददाता को विस्तार से बताया। प्रस्तुत हैं कुछ अंश ड्रग्स के िखलाफ लड़ाई लडऩे के लिए दो महत्त्वपूर्ण पार्ट हैं। पहला है- सप्लाई रिडक्शन और दूसरा है- डिमांड रिडक्शन। सप्लाई रिडक्शन का मतलब है जड़ को उखाडऩा, कारोबारियों को पकडऩा, उनके नेटवर्क को ट्रेस कर उसे तो खत्म करना हमारी प्राथमिकता होती है। इस काम में इन्वेस्टिगेशन एजेंसी जैसे हम हैं नारकोटिक्स ब्यूरो, डीआरआई, पुलिस, एक्साइज डिपार्टमेंट और बहुत सारी जाँच एजेंसीज हैं, जो मिलकर काम करती हैं।
यह तो हो गया सप्लाई रिडक्शन, लेकिन उतनी ही ज़रूरी है डिमांड रिडक्शन। इसके लिए जागरूकता पैदा करना, काउंसलिंग करना, इलाज करना, रिहेबिलिटेट करना, जिससे डिमांड कम हो जाए। जब तक डिमांड है और पैसा है तब तक यह लोगों को आकर्षित करता रहता है। यह भी एक महत्त्वपूर्ण पहलू है इस कारोबार की कमर तोडऩे के लिए।
डिमांड रिडक्शन को मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस और मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ सँभालते हैं। सप्लाई रिडक्शन के फ्रंट पर देश की होम मिनिस्ट्री, स्टेट की पुलिस, एक्साइज और फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन मिलकर तैनात हैं। ड्रग्स भी कई प्रकार के होते हैं। कुछ होते हैं नेचुरल पारम्परिक ड्रग्स जैसे ओपियम, कैनबीज। सेमी सिंथेटिक जैसे हीरोइन, ओपियम से बनाया जाता है। लेकिन तैयार करने में केमिकल प्रोसेस का इस्तेमाल किया जाता है। कोकीन भी नेचुरल प्लांट से बनाया जाता है। मैंफेड्रोन, एलएसडी, एक्सटेसी जो पूरी तरह से सिंथेटिक है यानी केमिकल है। मार्केट में बहुत किस्म के ड्रग्स हैं। जो कई प्रकार के केमिकृस को मिलाकर बनाये जाते हैं और यह सोशल इकोनॉमिक प्रोफाइल को देखते हुए तैयार किये जाते हैं ।
आप देखेंगे कि जहाँ पर हीरोइन बिकती है, वहाँ पर कोकीन के खरीदार नहीं होते। पिछले कई दशकों में केमिकल ड्रग्स तेज़ी से अपनी मार्केट बना रहे हैं। उसकी वजह है इनकी कीमतों का कम होना और आसानी से उपलब्ध हो जाना। नये-नये केमिकल को मिलाकर इस तरह के। तैयार किए जाते हैं, जो •यादा असरदार होते हैं और नवीनता लिए भी होते हैं, इसलिए इन्हें ट्रेस कर पाना आसान नहीं होता यह बड़ा चैलेंज है
एक संस्था है इंडियन इंटरनेशनल नारकोटिक्स ब्यूरो, जो हर साल एक मीटिंग करती है और इसमें तय किया जाता है कि किस ड्रग को बैन किया जाए। उसे हर देश को फॉलो करना पड़ता है। और हम भी उन इस को फॉलो करते हैं। उदाहरण के तौर एक ड्रग है ट्रामाडोल कई देशों में बैन है। बेहतर शब्दों में कि कई देशों में इसकी बिक्री पर कंट्रोल है। हिंदुस्तान में आप बिना प्रिसक्रिप्शन से इसे मेडिकल स्टोर से नहीं खरीद सकते। लेकिन ऐसे भी कई देश है जहाँ पर इस पर बैन नहीं है। यह ड्रग्स के कारोबारी इस बात का फायदा उठाते हैं। जहाँ पर यह बहन नहीं है वहाँ से दवाइयाँ खरीद उसे ड्रग्स में तब्दील कर मार्केट में भेज देते हैं। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो भारत सरकार की अपैक्स एजेंसी है, जो कि ड्रग्स के मामले में हर प्रकार से डील करने के लिए अधिकृत हैं। हम ऑपरेशंस, पॉलिसी मेकिंग और अंतर्राष्ट्रीय तौर पर कोआर्डिनेशन करते हैं। अन्य अंतर्राष्ट्रीय एजेंसीज से हमारी बातचीत होती है। एक-दूसरे से इनपुट शेयर करते हैं, एक्शन लेते हैं। सभी संस्थाएँ मिलजुल अंतर्राष्ट्रीय तौर पर फैले गिरोह के साथ लड़ाई लड़ रही हैं।
सिर्फ गोवा, मुम्बई में ही नहीं बेंगलूरु, दिल्ली सारे देश में ही विदेशी गिरोह इस कारोबार में लिप्त हैं। उसमें से कई लोग हैं, जिनकी पासपोर्ट की अवधि खत्म हो गयी है या फिर जाली पासपोर्ट के सहारे वह अनधिकृत तौर पर रहते हैं। इस नशे के इस कारोबार में जो बदलाव आया है, वह यह है कि इस कारोबार का संचालन कोई एक शख्स नहीं करता। कोई एक मास्टरमाइंड नहीं है, जैसे की िफल्मों में दिखाया जाता है। दरअसल, इसके कारोबारी कुकुरमुत्तों की तरह उगते चले जा रहे हैं।
एक ही साथ पैरेलल तौर पर अलग अलग देशों में, देश के ही अलग-अलग जगहों पर यह कारोबारी अपना काम कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन से जुड़े हुए लोग भी आपस में एक-दूसरे को नहीं पहचानते हैं। आपने एक गिरोह को पस्त कर भी दिया, तो दूसरा गिरोह आराम से अपना काम कर रहा होता है। इजी मनी के चक्कर में लोग इससे जुड़ जाते हैं। उन्हें पता नहीं चलता कि वह किस मकडज़ाल में फँसते जा रहे हैं। यहाँ पर मिनिमम सज़ा 10 साल की होती है और फाँसी तक की सज़ा का प्रावधान कई देशों में है। एम्स की रिपोर्ट के अनुसार यूथ •यादा ड्रग्स की चपेट में आ रहे हैं। इसकी कई वजह है क्यूरोसिटी, पियर प्रेशर, डिप्रेशन, पढ़ाई का प्रेशर, पारिवारिक कलह आदि। डिमांड रिडक्शन के तहत अवेयरनेस कैंपेन, स्पोट्र्स, आट्र्स ,हेल्थी एक्टिविटीज भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। पेरेंट्स, एजुकेशनल इंस्टीट्यूट और समाज को इनिशिएटिव लेना होगा इस गम्भीर मसले पर।