डॉक्टरों-नर्सों का सम्मान करना सीखें

दुनिया में कोरोना महामारी का प्रकोप किस कदर जारी है कि काफी कोशिशों के बावजूद इस वैश्विक महामारी से संक्रमित मरीज़ों व मरने वालों की संख्या में हर पल वृद्धि हो रही है। अमेरिका जो कि विश्व में सुपर पॉवर कहलाता है, वहाँ के हालात डरावनी तस्वीर पेश कर रहे हैं। हालात यह हैं कि वे डॉक्टर और नर्सें तक कोरोना वायरस नामक महामारी की चपेट से नहीं बच पा रहे हैं, जो पूरी सुरक्षा और सावधानी के साथ इससे संक्रमित लोगों का इलाज कर रहे हैं। हालाँकि ये डॉक्टर और नर्सें दिन-रात कोरोना संक्रमित लोगों का इलाज करने में जुटे हुए हैं। लेकिन दु:खद कि कई डॉक्टरों, नर्सों की इस दौरान कोरोना वायरस की चपेट में आने से मौत भी हो गयी है। इस खतरनाक वायरस का इलाज ढूँढने की कोशिशें जारी हैं, पर कोई ठोस इलाज अभी तक नहीं मिला है।

ज़िन्दगी बचाने वाले भी सुरक्षित नहीं

चीन में इस वायरस के बारे में बताने वाले डॉक्टर की मौत हो गयी थी। इटली में भी करीब 100 डॉक्टर व नर्सों की कोरोना से मौत हो गयी और करीब 12 हज़ार स्वास्थ्यकर्मी कोरोना से संक्रमित हो गये हैं। स्पेन में करीब 15 हज़ार स्वास्थ्यकर्मियों पर कोरोना वायरस ने हमला बोल दिया है। अमेरिका में भी स्वास्थ्यकर्मी कोरोना की चपेट में हैं। भारत में भी डॉक्टर और चिकित्साकर्मी कोरोना की चपेट में आ रहे हैं, यहाँ भी मौतें हुई हैं। कई अस्पताल के डॉक्टरों व नर्सों को क्वारंटाइन में भेजना पड़ा है।

सेवा की भावना दे रही हिम्मत

दुनिया भर के डॉक्टर, नर्स कोरोना इलाज के दौरान पीपीई की कमी का सामना करते हुए भी कोरोना संक्रमितों के इलाज में अपनी सेवा जारी रखे हुए हैं। डॉक्टरों और नर्सों को शायद यह हिम्मत उनके पेशे में सिखायी गयी सेवा की भावना से ही मिल रही है। ऐसे में हमें न केवल उनका सम्मान करना चाहिए, बल्कि उनकी मदद भी करनी चाहिए। लेकिन डॉक्टरों-नर्सों के प्रति कोरोना संक्रमितों की बदसलूकी और समाज का अछूत नज़रिये ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। यह गलत है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि स्वास्थ्य आपातकाल की इस घड़ी में डॉक्टरों, नर्सों की ज़रूरत सबसे अधिक है और पूरा विश्व पहले से ही डॉक्टरों, नर्सों की कमी से जूझ रहा है।

डॉक्टरों से दुव्र्यवहार ठीक नहीं

भारत आबादी में दुनिया में दूसरे नम्बर पर है और कोरोना महामारी का सामना कर रहा है। यहाँ समाज के द्वारा डॉक्टरों, नर्सों के प्रति दुव्र्यवहार, अछूत रवैया या उनसे दूरी बनाने वाली खबरें चिन्ताजनक हैं। यूँ तो इसकी शुरुआत दिल्ली व अन्य राज्यों की इस खबर से हुई थी कि कई मकान मालिक किराये पर रहने वाले डॉक्टरों को घर खाली करने को मजबूर कर रहे हैं। मकान मालिकों को आशंका थी कि डॉक्टर के ज़रिये कोरोना वायरस उनके घर में न आ जाए।

गुरुद्वारे की पहल सराहनीय

जब मकान मालिकों द्वारा डॉक्टरों को निकालने की बात सामने आयी, तो दिल्ली में दिल्ली गुरुद्वारा प्रबधंक कमेटी और पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रंबधक कमेटी ने सराहनीय पहल की। इन कमेटियों ने गुरुद्वारा प्रांगण में बने आवासों में डॉक्टरों के रहने के लिए व्यवस्था करने का ऐलान कर दिया।

आधी-अधूरी सी सरकारी पहल

डॉक्टरों और चिकित्साकॢमयों को घरों से निकालने की खबर पर सरकार थोड़ी सख्त हुई। राज्य सरकारों ने मकान मालिकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को भी कहा, कहीं-कहीं कार्रवाई हुई भी; लेकिन कोई खास नतीजा नहीं निकला। हाल ही में बिहार के बेगूसराय में एक महिला नर्स जब अस्पताल से घर लौटी, तो मोहल्ले वालों ने उसे घेर लिया और उसके वहाँ रहने का विरोध किया। उन्होंने बताया कि अब वह अपनी नर्स सहकर्मियों के साथ ठहरी हुई हैं और ड्यटी पर आती हैं। बिहार के ही नांलदा मेडिकल कॉलेज में केवल कोविड-19 के मरीज़ों का इलाज हो रहा है। वहाँ काम करने वाली एक महिला नर्स ने बताया कि उसका अपना मकान है, लिहाज़ा उन्हें कोई दिक्कत नहीं हो रही है। लेकिन उसकी कई सहकर्मी, जो किराये पर रहती थीं; उनसे मकान मालिकों ने यह कहकर घर खाली करवा लिये कि जब कोरोना खत्म हो जाए, तब लौट आना। उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद के एमजीएम अस्पताल में क्वारंटाइन में रखे गये 13 कोरोना संदिग्धों पर महिला मेडिकल स्टाफ के साथ अश्लील हरकतें करने के आरोप लगने वाली खबरें भी सामने आयीं। इस अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक ने पुलिस को दी गयी शिकायत में उन 13 लोगों पर वार्ड के अन्दर अश्लील गाने सुनने, महिला कर्मचारियों से बीड़ी-सिगरेट माँगने, नर्स व अन्य महिला मेडिकल स्टाफ को देखकर फब्तियाँ कसने का भी आरोप लगाया है। इसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उस वार्ड में पुरुष स्वास्थ्य कर्मियों को तैनात करने का आदेश जारी किया। पुलिस ने भी ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है। हालाँकि सरकारों की यह पहल आधी-अधूरी महसूस होती है। क्योंकि डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों की सुरक्षा से लेकर उनको सुरक्षित रखने तक की ज़िम्मेदारी सरकारों की है।

विदेशियों का सम्मानजनक नज़रिया

डॉक्टरों-नर्सों से अभद्रता को लेकर एनडीटीवी के प्राइम टाइम कार्यक्रम में रवीश कुमार ने इंग्लैड की डॉक्टर वीणा झा से बातचीत की। डॉक्टर वीणा ने बताया कि वहाँ के लोगों का डॉक्टरों, नर्सों के प्रति व्यवहार अच्छा है। सरकार भी उनका ध्यान रख रही है, जैसे कि सुपर मार्केट में सामान लाने के लिए डॉक्टरों को लाइन में नहीं लगना पड़ता। उन्हें तुरन्त सामान दे दिया जाता है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्यकर्मियों पर हो रहे हमलों की निन्दा की है और दुनिया को स्वस्थ रखने में डॉक्टरों, नर्सों के योगदान के महत्त्व को समझने की लोगों से अपील की है।

आखिर नर्सों का क्यों नहीं होता सम्मान?

गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाता है। इसका मकसद लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाना है। इस बार 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर कोरोना महामारी के संकट के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नर्सों व मिडवाइफ की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए टेग लाइन दी- ‘स्पोर्ट द नर्सेस एंड मिडवाइफ’। यह कड़ुवी हकीकत है कि नर्सों व मिडवाइफ के काम को कमतर आँका जाता है और उन्हें उतना सम्मान नहीं मिलता, जितना मिलना चाहिए। जबकि स्वास्थ्य सेवाओं में नर्सों और मिडवाइफ की अहम भूमिका होती है। मरीज़ों की देखभाल करने में यह पहले और अकेले अहम् बिन्दु हैं। ज़्यादातर स्थितियों में इन्हें फ्रंटलाइन स्टाफ के तौर पर काम करना होता है। क्योंकि किसी भी स्वास्थ्य व्यवस्था में ज़्यादातर इन्हें ही मरीज़ों के सम्पर्क में रहना होता है और उनकी देखभाल में अधिक समय लगाना पड़ता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की बेहतर पहल

स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सों को अहम कड़ी के रूप में स्वीकारते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में विश्व में इनकी स्थिति पर द स्टेट ऑफ द वल्डर्स नॄसग 2020 रिपोर्ट जारी की है। यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है। यह भी बता दें कि 2020 में विश्व प्रसिद्ध फ्लोरेंस नाइटिगेल के जन्म के 200 साल पूरे हो रहे हैं। उन्हें आधुनिक नॄसग आन्दोलन की जन्मदाता के तौर पर जाना जाता है। उनकी याद में विश्व स्वास्थ्य संगठन 2020 को अंतर्राष्ट्रीय नर्स व मिडवाइफ वर्ष के तौर पर मना रहा है।

नर्सों की कमी चिन्ताजनक

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ‘दुनिया भर में 60 लाख नर्सों की कमी है। अगर विश्व को 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को हासिल करना है, तो नर्सों व मिडवाइफ की भर्ती बढ़ाने, उन्हें प्रशिक्षण और ढाँचागत सुविधाएँ देने, उनके वेतन में वृद्धि करने और उन्हें सुरक्षित माहौल देने के लिए राष्ट्रों को निवेश करना होगा। नर्सें व मिडवाइफ स्वास्थ्य तंत्र की मज़बूत कड़ी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2020 में हम हर राष्ट्र से नर्सों व मिडवाइफ पर निवेश करने का आह्वान किया है। गौरतलब हैं कि 2015 में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने स्थायी विकास लक्ष्य यानी एसडीजी को 2030 तक हासिल करने के लिए प्रतिबद्धता जतायी थी। 2030 तक सभी की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच हो, इसके लिए ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार वाली सूची में नर्सों की संख्या में इजाफे वाला बिन्दु भी अहम् है। अगर 2030 तक सभी देशों में नर्सों की कमी को दूर करना है, तो इसके लिए हर साल ग्रेजुएट नर्सों की दर को औसतन 8 फीसदी बढ़ाना होगा। दुनिया भर में 27.9 मिलियन नर्सें हैं, जिसमें 19.3 मिलियन पेशेवर नर्स हैं। 2030 तक विश्व को 5.9 मिलियन और नर्सों की ज़रूरत होगी। 80 फीसदी नर्सें विश्व की 50 फीसदी आबादी की सेवा में रहती हैं। विकसित मुल्कों में नर्सों की तादाद विकासशील मुल्कों की तुलना में बेहतर है। अफ्रीका में नर्सों की बहुत कमी है। भारत में 3.07 पंजीकृत नर्सें हैं। यूँ तो भारत से बड़ी संख्या में नर्सों का पलायन अमेरिका, इंग्लेड, कनाडा, आस्ट्रेलिया, खाड़ी के मुल्कों में होता है, लेकिन यहाँ नर्सों की भारी कमी है। नर्सों की कमी से स्वास्थ्य सेवा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मरीज़ों की देखभाल सही से नहीं हो पाती, सेवाओं की क्षमता, स्वास्थ्य गुणवत्ता प्रभावित होती है। अंतत: इसका बोझ पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर पड़ता है और रोगी को पूर्ण स्वस्थ करने वाला नतीजा भी हासिल नहीं हो पाता। नर्सों पर अधिक कार्यभार रहता है, जिसका असर उनके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। अब देखना यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा नर्सों व मिडवाइफ के लिए की गयी सिफारिशों को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय कितनी तव्ज्जोह देता है। अगर दुनिया के राष्ट्र 2020 में इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाते हैं, तो यह फ्लोरेंस नाइटिंगेल को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।