वर्ष 2011 में राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के रूप में शुरू की गयी योजना को वर्ष 2014 में भारतनेट के नाम से पहचान मिली, लेकिन बाद में किसी वजह से इस योजना को मूर्त रूप नहीं दिया जा सका। हालाँकि इस योजना को सफल बनाने के लिए दूरसंचार मंत्रालय ने भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क (बीबीएनएल) नाम से एक कम्पनी का गठन सन् 2012 में किया था, जिसका काम भारतनेट योजना के प्रबन्धन, स्थापना और परिचालन का काम देखना था। उस समय इस योजना का लक्ष्य था देशभर की 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को एक-दूसरे से जोडऩा।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस योजना का विस्तार करके ग्रामीणों को सबल बनाना चाहते हैं। लिहाज़ा, उन्होंने 15 अगस्त को लाल िकले के प्राचीर से 6 लाख गाँवों को 1,000 दिनों के अन्दर ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोडऩे की बात भी कही थी। इसका यह अर्थ हुआ कि इस अवधि में ऑप्टिकल फाइबर के ज़रिये ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी मुहैया करायी जाएगी। इसके तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत को कम-से-कम 100 मेगाबाइट प्रति सेकेंड का बैंडविड्थ उपलब्ध कराया जाएगा। ऐसा करने से हरेक पंचायत में ऑनलाइन सेवाओं को शुरू करना आसान हो जाएगा। ई-गवर्नेंस, ई-कॉमर्स, ई-शिक्षा, ई-बैंकिंग, ई-स्वास्थ्य सेवाओं आदि की सुविधाएँ प्रत्येक ग्रामीण को मिल सकेंगी। इस योजना की मदद से एक देश, एक राशन कार्ड योजना को भी लागू किया जा सकेगा।
आज ग्रामीण क्षेत्रों में कमोबेश बिजली की उपलब्धता है। इसलिए इस योजना को अमलीजामा पहनाना आसान है। कोरोना महामारी के कारण शिक्षा की दशा और दिशा दोनों में आमूलचूल परिवर्तन आया है। गाँव के बच्चे भी आज ऑनलाइन क्लास कर रहे हैं। कोरोना महामारी के समाप्त होने बाद भी गाँव के स्कूलों में ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क की मदद से स्मार्ट क्लास शुरू किया जा सकता है।
गौरतलब है कि इस योजना के दूसरे चरण को अमलीजामा पहनाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जनवरी, 2020 में ही सिफारिश की थी। इस योजना का कुल बजट 42,068 करोड़ रुपये का है, जिसमें से 18,792 करोड़ रुपये को दूसरे चरण में खर्च किया जाएगा। फिलहाल 8 राज्यों ने इस योजना को अपने यहाँ लागू करने का फैसला किया है, जबकि मुश्किल भौगोलिक क्षेत्रों वाले राज्य अपने यहाँ उपग्रह-आधारित मॉडल को लागू करेंगे।
राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क पैनल की सन् 2015 में आयी रिपोर्ट के आधार पर दूसरे चरण की योजना बनायी गयी है, जिसे सरकार, निजी क्षेत्र एवं सार्वजनिक उपक्रम मिलकर मूर्त रूप देंगे। कनेक्टिविटी मुहैया कराने के लिए इस योजना के तहत ऑप्टिकल फाइबर, रेडियो एवं उपग्रह जैसे माध्यमों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा अंतिम चरण की कनेक्टिविटी सुनिचित करने के लिए वाई-फाई तकनीक का सहारा लिया जाएगा, ताकि घर एवं दफ्तर हर जगह इंटरनेट की सुविधा सुचारू रूप से मिलती रहे। माना जा रहा है कि इस योजना को मूर्त रूप देने से डेटा की माँग बढ़ेगी, जिससे दूरसंचार क्षेत्र को सीधे तौर पर फायदा होगा। यह ग्रामीण क्षेत्र में कृषि आधारित उद्योगों के विकास में भी सहायक होगी; क्योंकि इससे किसानों व उद्योग मालिकों के बीच संवाद कायम करना आसान हो जाएगा। कंप्यूटर की मदद से गाँवों में काम करना भी आसान हो जाएगा। एक अनुमान के मुताबिक, डेटा खपत में उछाल आने से भारत विकास के पथ पर दो से तीन साल आगे बढ़ सकता है। हालाँकि कोरोना महामारी के कारण भी ग्रामीण क्षेत्रों में डेटा की खपत दोगुने से भी ज़्यादा बढ़ी है।
बढ़त का यह दौर आगे भी कायम रहने वाला है। सन् 2025 तक भारत का कुल डेटा उपभोग दोगुना होने और प्रति उपभोक्ता मासिक उपभोग 25 जीबी होने का अनुमान है। यह ज़रूरी भी है। आज डिजिटल ढाँचे को विकसित करने के लिए निवेश करना उतना ही ज़रूरी है, जितना भौतिक ढाँचे का विकसित करना। इससे निजी क्षेत्र को भी फायदा होगा। डिजिटलीकरण की तरफ ग्रामीणों का रुझान बढऩे से वे अपने कारोबार को बढ़ा सकेंगे। इससे ई-शिक्षा, ई-स्वास्थ्य और ई-गवर्नेंस जैसे आवश्यक सुविधाओं तक ग्रामीणों की पहुँच को भी सम्भव बनाया जा सकेगा। ग्रामीण भारत के सूचना एवं शिक्षा सम्पन्न होने से ग्रामीणों के लिए रोज़गार एवं उद्यमशीलता के अधिक अवसर पैदा होंगे, जिससे ग्रामीण क्षेत्र की आर्थिक वृद्धि सम्भव हो सकेगी। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, मई 2020 तक देश भर में ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं की संख्या 68.37 करोड़ थी। सरकारी दूरसंचार कम्पनी बीएसएनएल समेत पाँच बड़े सेवा प्रदाताओं का बाज़ार के 98.93 फीसदी हिस्से पर कब्ज़ा है। भारत के पास ऑप्टिकल फाइबर के विनिर्माण की पर्याप्त घरेलू क्षमता है; लेकिन भारतीय कम्पनियाँ 4जी उपकरणों के लिए विदेशी कम्पनियों पर निर्भर हैं। हालाँकि भारतीय कम्पनियों को विश्वास है कि वे आगामी दो साल में 4जी उपकरणों के उत्पादन की क्षमता को हासिल कर सकते हैं। ग्रामीण भारत का एक बड़ा हिस्सा विगत 70 साल से बुनियादी दूरसंचार सुविधाओं से महरूम है। अगर सरकार अगले 1,000 दिनों में इस योजना को पूरा करना चाहती है, तो उसे कनेक्टिविटी के लिए घरेलू स्तर पर निर्मित मौज़ूदा 2जी या 3जी तकनीकों का उपयोग करना होगा। इससे सरकार के मेक इन इंडिया संकल्प को भी मज़बूती मिलेगी। इस दिशा में आगे बढऩे के लिए यह आवश्यक भी है, क्योंकि फिलहाल भारत 4जी उपकरणों का निर्माण करने में सक्षम नहीं है।
आज देश में इंटरनेट कनेक्टिविटी के अलावा दूसरों कारणों से भी लोग इंटरनेट का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। स्मार्टफोन की कमी, देश के दूर-दराज इलाकों में मोबाइल टॉवर का नहीं होना, देश में ब्रांडबैंड की सीमित उपलब्धता आदि ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से मौज़ूदा समय में देश में शत-प्रतिशत डिजिटलाइजेशन के सपने को मूर्त रूप देना सपना बना हुआ है।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था मैरी मीकर ने इंटरनेट के इस्तेमाल पर 2019 में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके अनुसार भारत में चीन के बाद सबसे अधिक इंटरनेट का इस्तेमाल किया जाता है। अमेरिका मामले में तीसरे स्थान पर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में लगभग 3.8 अरब लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। अप्रैल, 2020 के आँकड़ों के अनुसार, चीन में 85 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं, जबकि अमेरिका में यह संख्या लगभग 30 करोड़ है। ऑनलाइन बाज़ार का इस्तेमाल करने के मामले में भी भारत का स्थान दूसरा है। पहले स्थान पर चीन काबिज़ है। यह स्थिति तब है, जब भारत में इंटरनेट की पहुँच लगभग 40 फीसदी आबादी के बीच है। चीन में इंटरनेट की पहुँच 61 फीसदी आबादी के बीच है, जबकि अमेरिका में यह 88 फीसदी आबादी के बीच है। भारत के महानगरों में इंटरनेट की पहुँच 65 फीसदी आबादी के बीच है, जबकि इंटरनेट के सक्रिय उपभोक्ताओं की संख्या कुल आबादी का लगभग 33 फीसदी ही है। सक्रिय इंटरनेट उपभोक्ता उसे कहते हैं, जो एक महीने में कम-से-कम एक बार इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं।
आज दुनिया में इंटरनेट के कुल उपभोक्ताओं में भारत की हिस्सेदारी 12 फीसदी है, जिसका एक बड़ा कारण रिलायंस जियो द्वारा उपभोक्ताओं को पहले मुफ्त और बाद में सस्ती दर पर मोबाइल डेटा उपलब्ध कराना है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया एंड नीलसन द्वारा नवंबर, 2019 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 23 करोड़ इंटरनेट के सक्रिय उपभोक्ता थे, जबकि शहरों में इंटरनेट के सक्रिय उपभोक्ताओं की संख्या 21 करोड़ है। इस प्रकार इंटरनेट के सक्रिय शहरी उपभोक्ताओं की तुलना में ग्रामीण लोग इंटरनेट का 10 फीसदी अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं।
भारत की कुल आबादी के मुकाबले इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है; लेकिन विगत 5 वर्षों से इस संख्या में तेज़ी आ रही है, जिसका कारण चीन की मोबाइल कम्पनियों द्वारा कम कीमत पर भारत में स्मार्ट मोबाइल हैंडसेट बेचना है। फिर भी गरीबी और निरक्षरता की वजह से भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो रही है। दिसंबर, 2019 के अन्त तक भारत में लगभग 50 करोड़ लोगों के पास स्मार्टफोन था; लेकिन इनमें से कुछ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कभी-कभार या कभी भी नहीं कर रहे थे।
कहा जा सकता है कि देश में समावेशी विकास का रास्ता तभी प्रशस्त हो सकता है, जब ग्रामीण क्षेत्र को सभी सुविधाओं से युक्त किया जाएगा। इंसान तभी प्रगति कर सकता है, जब उसके शरीर का हर अंग स्वस्थ हो। इसी तरह भारत भी तभी विकास के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है, जब ग्रामीण क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत बनाया जाए। बदले परिवेश में डिजिटलीकरण समय की माँग है। कोरोना महामारी ने डिजिटलीकरण की महत्ता को अभूतपूर्व तरीके से बढ़ाया है। इस संकट के दौर में सोशल डिस्टेंस की संकल्पना का अनुपालन महत्त्वपूर्ण हो गया है। आज लोग बैंकिंग लेन-देन, खरीदारी, डॉक्टर से सलाह-मशविरा आदि वाइस या वीडियो कॉल के ज़रिये कर रहे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 1000 दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों को ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोडऩे की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। अगर इस योजना को अमलीजामा पहनाने में सरकार कामयाब होती है, तो ग्रामीण क्षेत्र में विकास के दरवाज़े पूरी तरह से खुल जाएँगे और ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करने में सरकार को आसानी होगी।