क्या सेल्फ डिफेंस से लड़कियाँ सुरक्षित रहेंगी? न्याय में तत्परता भी तो ज़रूरी है?
सेल्फ डिफेंस लड़कियाँ विपरीत परिस्थिति में खुद को बचाने में कामयाब होंगी। सेक्स एजुकेशन से छोटी बच्चियों को भी समझ में आ जाएगा कि उनको छूने वाले की मंशा क्या है? और सुपर जजमेंट सिस्टम के तहत रैपस्टो को फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए कठोर सज़ा मिलेगी। फाँसी जैसी सज़ा से अपराधियों में खौफ पैदा होगा ।
एनकाउंटर का कानून में भी कोई प्रावधान है?
कानून में कोई प्रावधान नहीं है कि एनकाउंटर करो। यह तो एक एक्सीडेंट है, जो अचानक होता है। यदि 100 सीपीआरसी का प्रोटेक्शन है पुलिस को और ऐसे में उन पर कोई अटैक करता है, तो पुलिस सेल्फ डिफेंस में फायर करती है। कोई भी इसका अनुमोदन नहीं करेगा। लेकिन जो कुछ हम लोगों ने टीवी पर देखा, उससे तो यही लगा कि जवाबी फायर में वे लोग मारे गये। एक कॉन्स्टेबल और एक सब इंस्पेक्टर भी घायल हुए हैं। वैसे भी हर एनकाउंटर की एक जुडिशल इंक्वायरी होती है। जो कुछ हुआ हम उसका सपोर्ट नहीं कर सकते; लेकिन जो भी पुलिस ने किया वह कानून के दायरे में रहकर किया। लेकिन यह भी सच है। क्योंकि हम घटनास्थल पर नहीं गये हैं; न हमने कोई इंक्वायरी की है, तो हम किसी डिसीजन पर नहीं पहुँच सकते कि वह एनकाउंटर फेक था या कुछ और बात थी। दूसरी बात यह है कि यदि अपने प्रोटेक्शन में पुलिस फायर नहीं करती, तो पुलिस ऑफिसर एनकाउंटर में शहीद हो जाते और आरोपी भाग जाते। वह कंडीशन खराब हो जाती। लोग कहते हैं कि देखो पुलिस के हाथ से अपराधी भाग गये। इससे पुलिस की क्षमता पर संदेह होता किया जाता।
एनकाउंटर के अलावा कोई दूसरा रास्ता है अपराध रोकने का?
महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी पोस्को के तहत कनविक्ट अपराधियों को मर्सी पिटिशन न देने की बात कही है। वहीं उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी त्वरित न्याय की बात कही है। इधर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने ऐसे मामलों में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने की बात कही है। उम्मीद है कि न्याय प्रक्रिया में तेज़ी आयेगी।
पुलिस अधिकारियों को दी गयी उनकी सलाह काबिल-ए-गौर है। उन्होंने कहा कि पुलिस को शक्ति का उपयोग केवल तब करना चाहिए, जब बहुत आवश्यक हो। कभी-कभी आम नागरिक भी उचित माँग करने के लिए अहिंसक तरीके से सडक़ों पर उतरते हैं। उस समय सामने आये गम्भीर अपराधों को छोडक़र पुलिस को संयम बरतना चाहिए।
एनकाउंटर हमेशा ठीक नहीं होते हैं। इस मामले में पुलिस के दावे के मुताबिक आरोपी बंदूक छीनकर भाग रहे थे। ऐसे में शायद उनका फैसला ठीक है। हमारी माँग थी कि आरोपियों को फाँसी की सज़ा मिले, लेकिन कानूनी प्रक्रिया के तहत। हम चाहते थे कि स्पीडी जस्टिस हो। पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत ही कार्रवाई होनी चाहिए। आज लोग एनकाउंटर से खुश हैं। लेकिन हमारा संविधान है, कानूनी प्रक्रिया है।