उत्तर प्रदेश में बने कई टोल प्लाजा पर नहीं है कैश लाइन 7 नक़दी देने पर वसूला जाता है दोगुना टोल टैक्स
हरियाणा में टोल प्लाजा पर टैक्स की अनाप-शनाप वसूली के चलते वहाँ किसानों और स्थानीय लोगों ने टोल प्लाजा का इतना विरोध किया कि कई बार सरकार को टोल प्लाजा बन्द करने पड़े। लेकिन उत्तर प्रदेश में टोल प्लाजा पर लूट का खेल बिना किसी रोक-टोक के जारी है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार देश में टोल प्लाजा में बदलाव के लिए नयी तकनीकों पर विचार कर रही है। उसी के तहत परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने संसद के मानसून सत्र में एक सवाल के जवाब में कहा था कि टोल प्लाजा ने ट्रैफिक जाम और लम्बी कतार जैसी कई समस्याएँ पैदा की हैं, जिन्हें सरकार समाप्त करना चाहती है।
इधर बीच-बीच में ऐसी ख़बरें भी आती रहती हैं कि कई लोग टोल टैक्स की चोरी करने के लिए कार एवं हल्के वाहनों के फास्ट टैग स्टीकर अपने भारी-भरकम वाहनों पर लगाकर टोल टैक्स बचाने में कामयाब हो जाते हैं। इस बड़े गड़बड़झाले की वजह से भी सरकार और टोल टैक्स वसूलने वाली कम्पनियों की सिरदर्दी बढ़ी है। इसलिए टोल की दो-तरफ़ा चोरी हो रही है। एक तरफ़ कम्पनियाँ टोल टैक्स की चोरी कर रही हैं, और दूसरी तरफ़ कुछ वाहन चालक तमाम साम, दाम, दण्ड, भेद अपनाते हुए टोल न देने के नये-नये तरीक़े खोज ही लेते हैं।
सरकार इस चोरी से निपटने की तैयारी कर रही है। इसका मतलब है कि उसे टोल प्लाजा की लूट-खसोट की जानकारी है। कहा जा रहा है कि भविष्य में सेटेलाइट के ज़रिये सीधे टोल कटेगा। अगर सरकार की यह योजना कामयाब होती है, तो जिस तरह का वाहन होगा, टोल अपने आप उसी तरह से कट जाएगा। लोग बताते हैं कि टोल प्लाजा पर टोल वसूलने वाली निजी कम्पनियाँ जिनकी हैं, वे टोल वसूली के लिए बाउंसर आदि भी रखते हैं। ये कम्पनियाँ आम आदमी का ख़ून कैसे चूसती है? इसकी एक बानगी ख़ुद भाजपा किसान संघ मोर्चा के वरिष्ठ नेता नरेश सिरोही ने सामने रखी। अपने इस अनुभव को उन्होंने फेसबुक पर लिखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी उसमें टैग किया। इस पूरे घटनाक्रम में वह एक आम आदमी बने और ख़ास आदमी भी। दोनों ही उनके साथ दो तरह का व्यवहार हुआ।
भाजपा किसान संघ मोर्चा के वरिष्ठ नेता ने बताया कि वह 2 अगस्त को ग्रेटर नोएडा से लखनऊ जाने के लिए यमुना एक्सप्रेस-वे के द्वारा अपने निजी वाहन से निकले। उन्होंने बताया कि इस एक्सप्रेस-वे को एक निजी कम्पनी जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड संचालित कर रही है। ग्रेटर नोएडा और आगरा के बीच तीन टोल प्लाजा पड़ते हैं। ख़ैर, उस दिन किसी तकनीकी ख़राबी की वजह से सिरोही की गाड़ी पर लगा फास्ट टैग कार्ड काम नहीं कर रहा था। जब वह पहले टोल प्लाजा पर पहुँचने वाले थे, तो उन्होंने अपने ड्राइवर को कैश वाली लाइन में गाड़ी ले जाने को कहा। लेकिन यहाँ कैश पर्ची कटवाने के लिए कोई लाइन नहीं थी। गार्ड से कैश (नक़दी) वाली लाइन के बारे में पूछने पर कहा कि यहाँ तो सब फास्ट टैग वाली लाइनें ही हैं, कैश वाली एक भी लाइन नहीं है। नरेश सिरोही बताते हैं कि वह एक लाइन में वाहन लेकर पहुँचते हैं और सुपरवाइजर से आगरा तक के टोल की पर्ची काटने के लिए कहते हैं। इस पर सुपरवाइजर कहता है कि साहब आपके पास फास्ट टैग न होने पर आपको तय टोल शुल्क का दोगुना भुगतान करना पड़ेगा। सिरोही ने बिना बहस किये तीनों टोल पर दोगुने पैसे देकर आगे निकलते गये।
इसके बाद भाजपा नेता यूपीईआईडीए यानी उत्तर प्रदेश एक्सप्रेस-वे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एक्सप्रेस अथॉरिटी, आगरा से लखनऊ एक्सप्रेस-वे टोल प्लाजा की तरफ़ बढ़ते हैं। यह टोल उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित है। सिरोही उस कैश (नक़दी) लाइन में अपना वाहन लेकर जाते हैं। लेकिन यहाँ लखनऊ तक जाने के लिए सिंगल पर्ची माँगने पर सुपरवाइजर 650 रुपये की एक पर्ची पकड़ाता है। इसके बाद पुन: लखनऊ से वापस ग्रेटर नोएडा आने के दौरान भाजपा नेता ने प्रदेश सरकार द्वारा संचालित लखनऊ से आगरा एक्सप्रेस-वे के टोल प्लाजा पर 650 रुपये की पर्ची कटवाते हैं और निर्विघ्न आगरा पहुँच जाते हैं। इसके बाद वह निजी कम्पनी जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड द्वारा संचालित यमुना एक्सप्रेस-वे के पहले टोल प्लाजा पर पहुँचकर बूथ पर मौज़ूद सुपरवाइजर से नक़दी लेने को कहते हैं। लेकिन सुपरवाइजर कैश लाइन होने इनकार करता है और दोगुने पैसे देने को कहता है। इस बार सिरोही अपने ख़ास आदमी होने का परिचय देते हुए टोल प्लाजा के मैनेजर को बुलाने का आग्रह करते हैं। सुपरवाइजर फोन द्वारा मैनेजर से बात करके आने का आग्रह करता है और भाजपा नेता का परिचय बताता है। लेकिन मैनेजर वहीं से बैठे-बैठे कहता है कि गेट खोल दो और जाने दो, क्यों पंगा ले रहे हो। भाजपा नेता इस तरह बिना टोल पर्ची कटवाये दूसरे टोल की तरफ़ बढ़ जाते हैं। दूसरे टोल प्लाजा भी उनसे दोगुने पैसे माँगे जाते हैं। भाजपा नेता आम आदमी की तरह दोगुने पैसे देकर पर्ची कटवाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। यही क्रम तीसरे टोल प्लाजा पर भी दोहराया जाता है। उन्होंने दोगुनी टोल वसूली करने वाले सुपरवाइजर से और जहाँ अपना परिचय दिया वहाँ भी सुपरवाइजर से बातचीत की।
यह तो एक ख़ास आदमी की बात रही, जिन्होंने दोनों तरह से टोल प्लाजा की स्थितियों का जायज़ा लिया। लेकिन उन यात्रियों का क्या, जिनसे ख़ुद उत्तर प्रदेश सरकार टोल बढऩे के नाम पर टिकट के पैसे से ज़्यादा लगवाकर अलग से वसूली करवा रही है। जी हाँ, यह बात ख़ुद उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग की रोडवेज बस के एक कंडक्टर ने एक यात्री से कही। यात्री ने बताया कि जब वह मीरगंज-मिलक के बीच से पीलीभीत से दिल्ली जाने वाली बस में बैठा, तो बस कंडक्टर ने उसके टिकट में मशीन से कटे किराये के बाद 7 रुपये पेन से और जोड़ दिये। और 308 रुपये के टिकट के 315 रुपये वसूल किये। जब कंडक्टर से इस बारे में हील-हुज्जत की, तो उसने कहा कि नयी मशीनें अभी बरेली मण्डल में नहीं आयी हैं; लेकिन किराया बढ़ गया है। अगर आपको दिक़्क़त है, तो आप रोडवेज अधिकारियों से बात कर सकते हैं। यह पैसा हमारी जेब में नहीं जाता, हम तो एक रुपया भी फ़ालतू नहीं ले सकते। यह ऊपर से आदेश है और पिछले छ:-सात महीने से ऐसा ही चल रहा है। क्योंकि टोल बढ़ गया है।
सवाल यह है कि टोल बढऩे पर, डीजल और पेट्रोल बढऩे पर सरकार जब किराया बढ़ा देती है, तो न तो इसकी सूचना यात्रियों को पहले से दी जाती है और न ही कोई पक्का टिकट काटने का समय पर इंतज़ाम होता है।
नरेश सिरोही कहते हैं कि ज़ाहिर है कि एक आम किसान होने ग्रामीण पृष्ठभूमि से भली-भाँति परिचित होने के नाते वह आज भी ज़मीन से जुड़े हुए हैं और अपने पद या पार्टी के नाम पर रुतबा दिखाने का शौक़ नहीं रखते। वह आम आदमी की तरह ही साधारण रहना पसन्द करते हैं। उन्होंने कहा कि आम आदमी के इस महँगाई के दौर में हल्कान होने से वह भली-भाँति परिचित हैं। टोल प्लाजा पर हो रही अवैध वसूली वाले पूरे घटनाक्रम को देखकर उनके मन में आज भी द्वंद्व चल रहा है कि निजी कम्पनियाँ, जिन्हें सरकारें बेहतर सुविधा के देने के नाम पर बढ़ावा देती हैं, वो किस तरह अवसर मिलते ही आम आदमी का ख़ून चूसती हैं। हालाँकि आत्म सन्तोष इस बात को लेकर है कि वर्ष 1990 के बाद जब उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण दौर की शुरुआत हुई, तबसे ही राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी, पूज्य सुदर्शन, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी, मदन दास, बजरंग लाल गुप्ता, गोविंदाचार्य, किसान मसीहा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत, प्रोफेसर नजुद्दा स्वामी तथा कुछ वामपंथी विचारधारा से जुड़े महानुभावों के नेतृत्व में जिस व्यवस्था के ख़िलाफ़ हम लड़ाई लड़ रहे थे, वह ठीक थी। पिछले कई दिनों से दिल्ली और लखनऊ की यात्रा के बीच सफ़र करने आत्ममंथन और आकलन करने और इस पूरे घटनाक्रम को देखकर मैंने यह निष्कर्ष निकाला कि ये निजी कम्पनियाँ कुछ ख़ास लोगों का मुँह बन्द रखने के लिए उनकी मुँह पर गुड़ चिपकाकर उपकृत कर देती हैं। लेकिन उसके बदले सामान्य लोगों से खुली लूट करती हैं।
बहरहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और यूनियन परिवहन मंत्री को इस गम्भीर विषय पर तत्काल विचार विमर्श करने की आवश्यकता है, ताकि आमजन को राहत मिल सके।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)