आरोप है कि एल्डर फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड कंपनी जो लिक्विडेशन’ में है उसने टोरेंट फार्मास्यूटिकल कंपनी के साथ मिल कर करोड़ों रुपए की आर्थिक जालसाजी की। इसने कई सक्रिय दूसरे क्रेडिटर और 17 क्लियरिंग एंड फारवर्डिग (सी एंड एफ) एजेंट को उनकी वाजिब देनदारी भी नही दी।
‘तहलका’ को अपनी कहानी इन्होंने सुनाई कि किस तरह दोनों ही कंपनियों ने बड़े ही तरीके से सोच-समझ कर कई करोड़ की वित्तीय जालसाजी की। टोरेंट फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड ने एल्डर फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड का सारा काम -धंधा हड़प लिया और उसे सिर्फ एक ‘शेल’ कंपनी बतौर बना दिया। आरोप है कि अधिग्रहण होता उसके पहले ही टोरेंट फार्मा को यहा जानकारी हो चुकी थी कि एल्डर फार्मा की बकाया लायविलिटीज कितनी और क्या है। इसके जरिए उसने बड़े पैमाने पर रुपयों की हेरा-फेरी की जो कई सौ करोड़ रुपए है। दोनों कंपनियों ने मिल कर एल्डर फार्मा के ऑपरेशनल क्रेडिटर्स को भी चूना लगाया।
इन दोनों ही कंपनियों ने इरादतन जालसाजी ‘बिजिनेस ट्रांसफर एग्रीमेंट (बीटीए) 13 दिसंबर 2013 को किया। इस समझौते के पीछे मकसद था एल्डर का पूरा कामकाज अब टोरेंट देखेगी। यानी एल्डर सिर्फ ‘शेल’ कंपनी रह जाएगी जिसके पास न कोई चल-अचल संपत्ति होगी। यह सिर्फ एक ‘शेल’ कंपनी होगी जिस पर भारी -भरकम देनदारी होगी। परेशान हैं सी एंड एफ के 17 एजेंट जो एल्डर फार्मास्यूटिकल्स से जुड़े थे और जिन्होंने 25 लाख से एक करोड़ रुपए उस कंपनी में ‘सिक्यूरिटी ‘ के बतौर जमा कराए थे। इनके तमाम सीएंडएफ समझौते 31 मार्च 2015 तक वैध थे।
बिजिनेस ट्रांस्फर एग्रीमेंट (बीटीए) जिसे टोरेंट फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड के साथ करने की जो तारीख थी उस दिन सीएंडएफ एजेंट में कई को एल्डर फार्मा से देनदारी लेनी थी। इसमें कमीशन, खर्च, ब्याज आदि कई चीजें थी। सीएंड एफ एजेंट का आरोप है कि बीटीए के अमल में आने के दिन (सीएंडएफ एजेंट) से ही उन्हें गलत राय दी गई और एल्डर फार्मा के अधिकारियों ने गलत सूचनाएं तो दीं, साथ ही एल्डर फार्मा के अफसरों ने भी बेबकूफ बनाया। ये कुछ ‘नोवेशन डीड’ पर अमल कर रहे थे जिनके आधार पर इस कंपनी का विलय टोरेंट से हो रहा था, और वे टोरेंट के सीएंड एफ एजेंट हो रहे थे।
लेकिन न तो कभी बीटीए की शर्ते सीएंडएफ को बताई गईं, और न उन्होंने वही माना जो एल्डर फार्मा के अधिकारियों ने बताया। दोनों कंपनियां बीटीए के तहत 13 दिसंबर 2013 को एक हुई और 29 जून 2014 को बिजिनस ट्रांसफर हुआ 2004 करोड़ रुपए का। इसके साथ ही सीएंडएफ एजेंट इस उम्मीद में इंतजार करते रहे कि टोरेंट फार्मा के साथ नोवेशन डीड पर अमल हो जाएगा। सभी 17 सीएंडएफ एजेंट को नोवेशन डीड दी गई(जिस पर टोरेंट को अमल करना था) एल्डर फार्मा की ओर से जिन पर सभी सीएंडएफ एजेंट ने दस्तखत किए और इस पर अमल के लिए उसे टोरेंट को सौंप दिया।
कंप्टीशन कमीशन ऑफ इंडिया के सामने अपने एकपक्षीय प्रतिनिधित्व से टोरेंट ने कमीशन की मंजूरी बिजिनेस ट्रांस्फर (काबिनेशन) की ले ली थी। सीएंडएफ एजेंट का आरोप है कि टोरेंट ने गलत प्रतिनिधित्व कम्पटीशन कमीशन के सामने रखा और जालसाजी करके कंप्टीशन कमीशन से बिजिनेस ट्रांस्फर करने का आदेश जारी कराया।
सीएंडएफ एजेंट गलतफहमी में रहे और एल्डर फार्मा के पास अपने बाकाया के लिए दौड़ लगाते रहे। इस संबंध में उन्होंने मध्यस्तथा कार्रवाई शुरू की साथ ही दूसरी सहायक कार्रवाई भी एल्डर के खिलाफ शुरू कीं। बंबई हाईकोर्ट ने एक आदेश पास किया जिसके तहत एल्डर को सीएंडएफ एजेंट के खिलाफ बन रही कुल राशि की बैंक गारंटी बनाने को कहा गया। एल्डर ने आरबिट्रेशन में कहा कि यह बकाया देनदारी है एल्डर फार्मा की। यह पहली बार था कि एल्डर ने यह संकेत दिया कि सीएंडएफ एजेंट की सारी देनदारी को अदा करने की जिम्मेदारी टोरेंट की ही है। जो बीटीए के पहले और समझौते के बाद हुई। आश्चर्य इस बात का है कि आरबिट्रल ट्रिब्यूनल के कई आदेशों के बावजूद एल्डर ने बीटीए की प्रति सीएंडएफ एजेंट को क्यों नहीं दी। इस उस बहाने से एल्डर फार्मा ने बीटीए की प्रति कभी सीएंडएफ एजेंटों को नहीं दी।
कथित तौर पर, शायद योजना के अनुरूप कुछ महीने बाद एल्डर फार्मा बंद हो गया और ‘लिक्विडेशन’ में चला गया। इसके साथ ही तमाम कानूनी प्रक्रिया जो सीएंडएफ एजेंटों ने शुरू की थीं वे ठहरा गईं।
सीएंडएफ एजेंट का दावा है कि अप्रैल 2018 तक सीएंडएफ एजेंट को यह भी नहीं पता था कि बीटीए की स्पष्ट शर्ते क्या है इससे नोवेशन डीड क्यों ज़रूरी है और एस्क्रो समझौता क्या है जिसके तहत बीटीए और दूसरे मध्यस्तथा दस्तावेजों को जानबूझ कर टोरेंट और एल्डर फार्मा ने छिपा क्यों रखा था? लेकिन सीएंडएफ एजेंट ने किसी तरह अप्रैल 2018 में बीटीए और दूसरे दस्तावेज हासिल कर लिया। तब टोरेंट की गैरकानूनी भूमिका और तौर-तरीका और साफ हुआ। पहली बार यह स्पष्ट हुआ कि टोरेंट ने ‘स्लंप सेल बेसिस’ के आधार पर यह उद्योग लिया। साथ ही इस पर अब यह अनिवार्य कर्तव्य (मैंडेटरी ऑब्लीगेशन) है कि वह सीएंडएफ का लेनदेन 17 सीएंडएफ एजेंट के साथ जारी रखे और नोवेशन डीड को अमल में लाए जो बीटीए का हिस्सा है। यानी सभी इरादों के लिए यानी देनदारी देने के लिए भी टोरेंट ने एल्डर फार्मा के ही जूतों में अपने पांव रखे हैं और ‘मैंडेट ऑव लॉ’ के आधार पर उसे 17 सीएंडएफ एजेंटों की वैध देनदारी देनी ही है।
जैसा आरोप है टोरेंट का लुका-छिपी का खेल अब खत्म हो गया है, जब से सीएंडएफ एजेंट, बीटीए की तलाश में कामयाब हुए हैं और अब टोरेंट सेवा शर्तों से नहीं माना। इसके तहत अदालत की व्यवस्था है कि यदि किसी ‘अनसिक्योर्ड क्रेडिटर’ का पैसा टोरेंट फार्मास्यूटिकल्स और एल्डर फार्मायूटिकल्स ने नहीं दिया तो संयुक्त तौर पर एस्क्रो एजेंट को वह धन अनसिक्योर्ड क्रेडिटर को अदा करना होगा। सीएंडएफ ऐजेंटों के मामले में हाईकोर्ट ने यह साफ आदेश जारी किया कि ‘बैंक गारंटी’ बना कर टोरेंट इसे दे।
वे हर हाल बीटीए की शर्ते और दूसरी ऐसीलरी समझौतों के चलते टोरेंट ने उस आदेश पर अमल नहीं किया। बीटीए की जानकारी मिलने के बाद सीएंडएफ एजेंटों ने यह भी पता कर लिया कि टोरेंट ने एक जाली कॉपी नोवेशन डीड की बनाई और कम्पटीशन में दी। यह नोवेशन डीड काफी हद तक अलग है उससे जो सीएंडएफ एजेंटों का मिली थी। ऐसा माना जाता है कि टोरेंट ने ऐसा इसलिए किया जिससे कंप्टीशन कमीशन ऑफ इंडिया से एक सकारात्मक आदेश हासिल हो जाए।
सीएंडएफ एजेंट मानते हैं कि उन्होंने अभी एक सिरा भर ढूंढा है भ्रष्टाचार और जाली कामों जो दोनों कंपनियों कर रही थीं। ये धोखाधड़ी कर रही थीं उन तमाम फर्म और कंपनियों के साथ जो एल्डर के क्रेडिटर थे और जिन्हें एल्डर से टोरेंट में व्यापार के बदली होने तक कोई जानकारी न तो शुरू में और न उस दौरान ही कभी मिली।
सीएंडएफ एजेंट मानते हैं कि इस सारे मामले की जांच सीबीआई, एसएफआईओ या ईओडब्लयू करे जिससे सारे गोलमाल और उसके तौर तरीकों का पता चले। जिसके तहत एक कंपनी अपना व्यापार दूसरी कंपनी को सौंप देती है। सीएंडएफ ने यह सवाल भी उठाया है जो जनता के लिए भी ज़रूरी है कि ‘क्या एक कंपनी को यह अनुमति है कि वह अपना व्यापार किसी और कंपनी को दे दे बिना अपनी देनदारी का हिसाब-किताब लिए और इसकी देनदारी इसके क्रेडिटर को पूरी तौर पर दिलाई जानी चाहिए या नहीं।
टोरेंट ने हमें जवाब दिया तहलका ने टोरेंट फार्मास्यूटिकल लिमिटेड के सुधीर मेहता, समीर मेहता और अशोक मोदी को नौ जुलाई और 27 जुलाई 2018 को पत्र भेजे थे। इस पर कार्यकारी निदेशक जयेश देसाई ने जो जवाब दिया। उसके मुख्य हिस्से – एल्डर ने कई सीएंडएफ एजेंटस की नियुक्ति फार्मास्यूटिकल फारम्यूलेशंस के वितरण के लिए की थी। इन एजेंटस का यह आरोप है कि उनका कमीशन, सिक्यूरिटी डिपॉजिट आदि एल्डर ने नहीं दिया। यह साफ है कि बिजिनेस ट्रांस्फर एग्रीमेंट (बीटीए) और उससे जुड़े नोवेशन डीड के तहत सीएंडएफ एजेंट के तमाम बकाए का समाधान एल्डर को समझौते की आखिरी तारीख 29 जून 2014 तक करना था। उसे टोरेंट के जिम्मे नहीं किया जा सकता। यह ध्यान दें कि सीएंडएफ एजेंट का समझौता पूरी तरह से एल्डर के ही साथ हुआ था। सीएंडएफ या एल्डर ने भी अपनी कानूनी कार्रवाई में कभी टोरेंट को नहीं जोड़ा और न ही यह कहा कि टोरेंट फार्मा की इसकी कोई जिम्मेदारी ही है। इसी तरह एस्क्रो एकाउंट के तहत बंबई हाईकोर्ट के आदेश के तहत आए आदेश के संबंध में उल्लेखनीय है कि यह एक अलग आदेश था उन सपेसिफाइड अनसिक्योर्ड क्रेडिटर्स के दावों पर न कि सभी अनसिक्योर्ड क्रेडिटर्स पर। इस संबंध में एल्डर का पत्र न तो प्रासंगिक है और न एस्क्रो समझौते की शर्तों के ही तहत है। |
हमारे 31 जुलाई 2018 के मेल के जवाब में आया जवाब है-
नोवेशन डीड का मसविदा बीटीए का ही हिस्सा है। बीटीए की शर्तों के तहत, एल्डर के लिए ज़रूरी था कि वह नोवेशन डीड पर सीएफए के दस्तखत एक निश्चित तारीख तक करा ले। चूंकि वह शर्त मानी नहीं गई। हमने उस पर फिर जोर नहीं दिया। |
‘तहलका’ ने 13 दिसंबर 2013 को एक पत्र टोरेंट फार्मास्यूटिकल्स को स्कैन कर बीटीए का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज भेजा था। इस पर टोरेंट और एल्डर दोनों के ही दस्तखत थे। टोरेंंट के जयेश देसाई न इस पर जवाब दिया-
हमें उस पत्र की जानकारी है। विक्रेता की ओर से कुछ करार ज़रूरी थे। जिनकी जानकारी हमने आप के दूसरे नंबर के सवाल का जवाब देते हुए दे दी है। |