उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव का चुनावी बिगुल भले ही न बजा हो पर, प्रदेश की सियासत दिन व दिन चुनावी रंग में दिखने लगी है। हर रोज नये-नये नारे गढ़े जा रहे है। बिना नाम लिये राजनीतिक तंज कसे जा रहे है। जिससे प्रदेश की जनता चुनावी माहौल का मजा लें रहे ही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गोरखपुर में जनसभा को संबोधित करते हुए बिना राजनीतिक दल का नाम लिये हुये कहा कि, लाल टोपी वालों से बच कर रहना है। लाल टोपी वालों की सियासत कब्जा और दंबगई तक ही है। उनका लाल टोपी का मतलब लाल बत्ती से है। न कि प्रदेश के विकास से है।
लाल टोपी के तंज पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी लाल टोपी का मतलब समाजवादी पार्टी से निकाल कर कहा कि यही लाल टोपी 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से दूर करेगी। लाल टोपी की सियासत पर उत्तर प्रदेश के राजनीति के जानकारों का कहना है कि अभी चुनाव में दो महीनें से ज्यादा का समय बचा है। लेकिन जैसे–जैसे चुनाव नजदीक आते जायेगे। वैसे–वैसे लाल टोपी जैसे तमाम सियासी जुमलें गढ़े जायेगे।
उत्तर प्रदेश की सियासत के जानकार संजीव कुमार का कहना है कि चुनाव में तो मुख्य रूप से चार प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस चुनावी मैदान में है। लेकिन जिस प्रकार चुनावी माहौल बन रहा है उससे तो लगता है कि चुनाव आते-आते सपा और भाजपा के बीच ही कड़ा मुकाबला हो सकता है। क्योंकि प्रदेश की राजनीति में धार्मिक और जातीय समीकरणों के सहारे चुनाव लड़ा जाता रहा है। सो इस बार भी ऐसा होगा।
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भाजपा को हराने के लिये छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन कर रहे है। वहीं भाजपा भी अपने विकास के मुद्दे पर जनता के बीच जाने को तैयार है। संजीव कुमार का कहना है कि अखिलेश यादव पर पहले नल की टोंटी को लेकर तंज कसा जा चुका है अब लाल टोपी को लेकर भी तंज कसा जा रहा है। ऐसे बातों और तंजों से जनता को रस मिलता है। जो चुनाव में एक माहौल बनाता है।