ग्रैंड स्लैम से सानिया मिर्ज़ा के संन्यास से कोर्ट में खलेगी उनकी कमी
अपने अंतिम ग्रैंड स्लैम में सानिया मिर्ज़ा उपविजेता रहीं और जब उन्होंने अपने प्रोफेशनल करियर से विदाई की बात की, उनकी आँखों में आँसू भरे थे। इस्लामोफोबिया के दौर में एक युवा खिलाड़ी के रूप में उनकी शॉर्ट स्कर्ट और टी-शर्ट को लेकर जैसा हल्ला मुस्लिम कट्टरपंथियों ने किया, उससे बिना डरे उन्होंने लड़ाई लड़ी और अंगरक्षकों के साथ चलकर भी टेनिस खेली।
रुढि़वाद के ख़िलाफ़ हिम्मत दिखाने के वैसे उदाहरण कम ही मिलते हैं। सानिया मिर्ज़ा देश की लाखों लड़कियों के लिए खेल में आदर्श बनीं और रमेश कृष्णन के बाद पहली भारतीय खिलाड़ी रहीं, जो एकल (सिंगल्स) में दुनिया की 27वीं रैंकिंग तक पहुँचीं। उनके संन्यास से निश्चित ही हम एक बेहतरीन खिलाड़ी को अब मैदान में नहीं देख पाएँगे। सानिया मिर्ज़ा ने करियर की शुरुआत सिंगल्स से की और काफ़ी आगे तक पहुँचीं। लेकिन घुटने और कलाई की चोट ने उन्हें डबल्स की तरफ़ मोड़ दिया। मार्टिना हिंगिस उनकी सबसे सफल साथी रहीं और दोनों ने एक ही साल में तीन ग्रैंड स्लैम जीते। लाजवाब फोरहैंड सानिया के खेल की सबसे बड़ी ताक़त थी। सानिया अपने स्टाइल के लिए जानी गयीं; कोर्ट में भी और कोर्ट से बाहर भी। जब भी सानिया कोर्ट में उतरीं, वह सबके आकर्षण का केंद्र रहीं। विवाद भी उनके जुड़े; लेकिन अपनी टेनिस से उन्होंने दुनिया भर के लोगों का दिल जीता।
तलाक़ की अफ़वाहों के बीच सानिया मिर्ज़ा के संन्यास पर उनके पति पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ी शोएब मलिक ने लिखा- ‘सानिया खेलों में सभी महिलाओं के लिए एक उम्मीद हैं। आपने जो करियर में हासिल किया है, उसके लिए आप पर बहुत गर्व है। आप कई लोगों के लिए प्रेरणा हो, मज़बूत बनी रहो। आपके अविश्वसनीय करियर के लिए बहुत-बहुत बधाई!’ सानिया ने को भी ग्रैंड स्लैम जीते, वह डबल्स में ही जीते। डबल्स और मिक्स्ड डबल्स में उनके नाम छ: ग्रैंड स्लैम ख़िताब हैं। वह लिएंडर पेस और महेश भूपति के बाद भारत की तरफ़ से सबसे ज़्यादा ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीतने वाली खिलाड़ी हैं।
सानिया का जन्म 15 नवंबर, 1986 को मुंबई में हुआ। उनके पिता इमरान मिर्ज़ा खेल पत्रकार थे। साथ ही एक बिल्डर भी। सानिया जब छ: साल की थीं, जब उन्होंने टेनिस स्टार बनने का सपना देखा था। अपने सपने को पूरा करने के लिए सानिया ने किसी भी चीज़ को अपने रास्ते का रोड़ा नहीं बनने दिया।
जब उनका परिवार हैदराबाद गया, तो सानिया मिर्ज़ा ने वहाँ प्रैक्टिस आरम्भ की। तब वह छ: साल की थीं और निजाम क्लब उनकी टेनिस का ठिकाना बना। पिता ने महसूस किया कि बेटी में टेनिस में आगे जाने की प्रतिभा है, लिहाज़ा उन्होंने भी उन्हें प्रोत्साहित किया। उनकी स्कूलिंग नासर स्कूल ख़ैरताबाद में हुई। टेनिस में उनके रास्ते का सबसे पहला रोड़ा ख़ुद उनकी उम्र बनी। प्रशिक्षण में उनकी कम उम्र आड़े आयी। लेकिन सानिया ने हार नहीं मानी। महेश भूपति के पिता सी.के. भूपति उनके शुरुआती प्रशिक्षक रहे। यह दिलचस्प ही है कि बाद में सानिया ने इन्हीं महेश भूपति के साथ पार्टनर बनकर ग्रैंड स्लैम जीता। शुरुआती बात करें, तो सानिया ने सन् 1999 से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलना शुरू किया, जब जकार्ता में वल्र्ड जूनियर चैंपियनशिप में वे भारत की कप्तान बनीं और कांस्य पदक जीता। उनका खेल इतना प्रभावशाली था कि जकार्ता के अख़बारों में उनकी जमकर तारीफ़ हुई और उन्हें भविष्य का चैम्पियन लिखा गया।
सीनियर्स में उनका पहला बड़ा टूर्नामेंट सन् 2003 में विम्बलडन में था, जब उन्होंने भारत की तरफ़ से खेलते हुए जीत हासिल की। यही वहीं दौर था, जब उन्हें उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिए सन् 2004 में अर्जुन पुरस्कार और अगले ही साल न्यू कमर डब्ल्यूटीए अवार्ड मिला। दो साल बाद सानिया को 2006 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद 2009 में उन्होंने ऑस्ट्रेलियन ओपन में मिक्स्ड डबल्स में हिस्सा लिया और ग्रैंड स्लैम जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनीं। यह वही साल था, जब उन्होंने बचपन के दोस्त सोहराब मिर्ज़ा से सगाई की। हालाँकि बाद में यह रिश्ता टूट गया। सानिया ने 12 अप्रैल, 2010 को पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से शादी की। उनके विवाह पर विरोध हुआ, तो सानिया ने कहा कि वह आख़िरी तक भारत की बेटी रहेंगी।
एक जूनियर खिलाड़ी के रूप में सानिया मिर्ज़ा ने 10 सिंगल्स और 13 डबल्स ख़िताब जीते। उन्होंने पूरे करियर में कुल जमा 43 डबल टाइटल जीते। सानिया 13 अप्रैल, 2015 को अपने जीवन की सबसे ऊँची रैंक पर पहुँचीं, जब उन्हें डबल्स में नंबर-1 की रैंकिंग मिली। डबल्स में उनका करियर रिकॉर्ड 531 खेले मैचों में 242 जीत का रहा। सिंगल्स में 271 मैचों में से 161 उन्होंने जीते।
क़रीब दो दशक तक सानिया मिर्ज़ा कोर्ट में छायी रहीं। तमाम कट्टरपंथी दबावों के बावजूद। कभी पीछे नहीं हटीं। अंतिम ग्रैंड स्लैम मैच में उन्हें भावभीनी विदाई मिली, जो उनके रुतबे के अनुरूप है। उन्होंने करियर में भारत के लिए नया इतिहास बनाया है। विजय अमृतराज (सबसे ऊँची 18वीं रैंकिंग) और रमेश कृष्णन (सबसे ऊँची 23वीं रैंकिंग) के बाद भारत की शीर्ष खिलाड़ी बनने का कारनामा भी सानिया ने ही दिखाया था। डबल्स में तो वह नंबर-1 भी रहीं। अब सानिया मिर्ज़ा उत्तर प्रदेश सरकार के साथ मिलकर युवा खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देने का ऐलान कर चुकी हैं।
अपने आख़िरी ग्रैंड स्लैम ऑस्ट्रेलियन ओपन में भले वे ख़िताब नहीं जीत पाएँ और रोहन बोपन्ना के साथ उपविजेता रहीं, उनके पास फरवरी में दुबई ओपन में जीत हासिल कर टेनिस से अपनी विदाई जीत के साथ करने का अवसर रहेगा।
सानिया के उद्गार
सानिया ने रिटायरमेंट के अपने नोट में दिलचस्प बातें लिखीं और अपने जीवन की वो जानकारियाँ दीं, जो लोगों को पता नहीं थीं। सानिया ने लिखा- ‘30 साल पहले हैदराबाद की एक छ: साल की लडक़ी निजाम क्लब के टेनिस कोर्ट पर पहली बार अपनी माँ के साथ गयी और कोच ने बताया कि टेनिस कैसे खेलते हैं। कोच को लगा था कि टेनिस सीखने के लिए मैं बहुत छोटी हूँ। मेरे सपनों की लड़ाई छ: साल की उम्र में ही शुरू हुई। मेरे माता-पिता और बहन, मेरा परिवार, मेरे कोच, फिजियो समेत पूरी टीम के समर्थन के बिना यह सम्भव नहीं था, जो अच्छे और बुरे समय में मेरे साथ खड़े रहे। मैं उनमें से हर एक के साथ अपनी हँसी, आँसू, दर्द और ख़ुशी साझा की है। उसके लिए मैं सभी का धन्यवाद देना चाहती हूँ। आप सभी ने जीवन के सबसे कठिन दौर में मेरी मदद की है। आपने हैदराबाद की इस छोटी-सी लडक़ी को न केवल सपना देखने की हिम्मत दी, बल्कि उन सपनों को हासिल करने में भी मदद की। आप सभी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।’
ग्रैंड स्लैम
1. मिक्स्ड डबल्स : ऑस्ट्रेलियाई ओपन (2009) – फाइनल में महेश भूपति के साथ मिलकर नथाली डेच्य-एंडी राम की जोड़ी को 6-3, 6-1 से हराया।
2. मिक्स्ड डबल्स : फ्रेंच ओपन (2012) – फाइनल में महेश भूपति के साथ क्लॉडिया जॉन्स- इग्नासिक गोंजालेज को 7-6, 6-1 से हराया।
3. मिक्स्ड डबल्स : यूएस ओपन (2014) – ब्रूनो सोअरेस के साथ मिलकर अबीगैल स्पीयर्स – सेंटिआगो गोंजालेज को 6-1, 2-6 और 11-9 से हराया।
4. महिला डबल्स : विम्बलडन (2015) – मार्टिना हिंगिस के साथ मिलकर फाइनल में एकातेरिना माकारोवा-एलेना वेस्नीना को 5-7, 7-6 और 7-5 से हराया।
5. महिला डबल्स : यूएस ओपन (2015) – मार्टिना हिंगिस के साथ मिलकर फाइनल में कैसे देलैका- यारोस्लावा श्वेदोवा को 6-3, 6-3 हराया।
6. महिला डबल्स : ऑस्ट्रेलियन ओपन (2016) – मार्टिना हिंगिस के साथ मिलकर फाइनल में एंड्रिया हलवाकोवा-लूसी हरडेका को 7-6, 6-3 से हराया।
“मैं ख़ुद को बहुत धन्य मानती हूँ कि मैंने अपने सपने को जिया है। साथ ही अपने गोल्स को भी हासिल किया। मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ रहा। ज़िन्दगी चलती रहनी चाहिए। मुझे नहीं लगता कि यह अन्त है। यह अन्य यादों की शुरुआत है। मेरे बेटे को मेरी काफ़ी ज़रूरत है और मैं उसे अच्छी ज़िन्दगी और ज़्यादा समय देने का और इंतज़ार नहीं कर सकती।’’
सानिया मिर्ज़ा