टेंडर प्रक्रिया के कारण डीआई पाइपों की खरीद में हरियाणा को करोड़ों का नुकसान

हरियाणा लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग द्वारा डीआई पाइपों की खरीद हेतु दो वर्षीय दर अनुबंध राज्य के हित में नहीं है। यह न केवल वित्तीय नुकसान का कारण बनता है, बल्कि प्रतिस्पर्धी बाजार दरों व नई विनिर्माण क्षमताओं का लाभ उठाने में भी बाधा उत्पन्न करता है, जिससे कुछ चुनिंदा निर्माताओं को अनुचित लाभ मिलता है।

हरियाणा लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग द्वारा दो वर्ष की दर अनुबंध (रेट कॉन्ट्रैक्ट) के अंतर्गत डीआई पाइपों की खरीद के लिए अपनाई गई टेंडर प्रक्रिया राज्य के लिए भारी वित्तीय नुकसान का कारण बन रही है। यह तरीका राज्य की वित्तीय स्थिति के लिए हानिकारक है और हरियाणा सरकार के हितों के विपरीत प्रतीत होता है।

हालांकि अनुबंध में मूल्य परिवर्तन (Price Variation) की एक शर्त शामिल है, लेकिन यह बाजार में उतार-चढ़ाव से पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं करती। इसका स्पष्ट उदाहरण रेट कॉन्ट्रैक्ट संख्या 99/HR/RC/E-2/2023-24/4256-59 दिनांक 17.07.2024 से देखा जा सकता है, जो 17.07.2025 तक मान्य था। इस अनुबंध के तहत फरवरी 2025 में लगभग 800 करोड़ रुपये मूल्य के डीआई पाइप ऊंचे दामों पर खरीदे गए।

उदाहरण के तौर पर, 100mm (K-7) पाइप की दर, जो पहले रेट कॉन्ट्रैक्ट के तहत PVC फार्मूले के अनुसार ₹1260 से घटकर ₹1157 प्रति मीटर हो गई थी, वह नई टेंडर प्रक्रिया (28.03.2025 को खुली) में ₹1085 प्रति मीटर तक गिर गई। यानी दरों में करीब 15% तक की गिरावट आई थी, फिर भी विभाग ने पुराने अनुबंध के तहत ऊंची कीमतों पर पाइप खरीदे, जबकि वह अनुबंध 24.07.2025 तक वैध था।

लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के मुख्य अभियंता (Engineer-in-Chief) दविंदर दहिया ने इस पर कोई टिप्पणी करने या आधिकारिक पक्ष साझा करने से इनकार कर दिया। प्राप्त विवरणों के अनुसार, मूल्य परिवर्तन की शर्त के बावजूद विभाग को लगभग 100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। किसी कारणवश यह टेंडर रद्द कर दिया गया और ₹2800 करोड़ के डीआई पाइपों की खरीद के लिए एक नया दो वर्षीय दर अनुबंध 29.08.2025 को खोला गया — ठीक पुराने अनुबंध की समाप्ति के बाद।

नए और पुराने अनुबंध की दरों में लगभग 30% का अंतर था। उदाहरण के लिए, पुराने अनुबंध में 100mm (K-7) पाइप की दर PVC फार्मूले के बाद ₹1157 प्रति मीटर थी, जबकि नई टेंडर में यही दर ₹910 प्रति मीटर रह गई (लगभग 28% का अंतर)। यदि पिछला अनुबंध दो वर्ष के लिए वैध रहता, जैसा कि अब प्रस्तावित किया जा रहा है, तो सरकार अगले एक वर्ष तक लगभग 30% अधिक दरों पर खरीद जारी रखती, जिससे लगभग ₹1000 करोड़ रुपये का नुकसान होता।

डीआई पाइपों की कीमतों में गिरावट का मुख्य कारण मांग में कमी (विशेषकर जल जीवन मिशन परियोजना के अभाव में) और नए व पुराने निर्माताओं की उत्पादन क्षमता में वृद्धि है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब बाजार में कीमतें घट रही हैं, तो दो वर्षों के लिए दरें तय करना कहां तक उचित है? हरियाणा सरकार ने राज्य के बहुमूल्य धन की अनदेखी करते हुए हर साल लगभग ₹400 करोड़ के नुकसान की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।

इन तथ्यों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि दो वर्षीय दर अनुबंध राज्य के हित में नहीं है, क्योंकि इससे आर्थिक नुकसान होता है और सरकार प्रतिस्पर्धात्मक दरों तथा नई उत्पादन क्षमताओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाती है। यह नीति कुछ चुनिंदा निर्माताओं के लिए एकाधिकार (monopoly) का वातावरण भी तैयार करती है। आमतौर पर यह भी देखा गया है कि जब किसी निर्माता को लंबे समय के लिए आपूर्ति करनी होती है, तो वह भविष्य की अनिश्चितताओं को ध्यान में रखकर कीमतें बढ़ा देता है।

लोक स्वास्थ्य विभाग के गोदामों में वर्तमान में लगभग ₹700 करोड़ के डीआई पाइपों का स्टॉक है और ठेकेदारों व आपूर्तिकर्ताओं के प्रति सैकड़ों करोड़ की देनदारी है। विशेषज्ञों का मानना है कि विभाग को अपने दीर्घकालिक दर अनुबंधों की नीति पर पुनर्विचार कर, विशिष्ट मात्रा (specific quantity) वाले टेंडरों की ओर बढ़ना चाहिए ताकि अधिक प्रतिस्पर्धी दरें प्राप्त हो सकें और राज्य के वित्तीय हितों की रक्षा की जा सके।

लोक हित में अधिवक्ता एवं विधिक सलाहकार गौरव दीप गोयल ने इस विषय में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, मुख्य प्रधान सचिव राजेश खुल्लर, मंत्री एवं उच्चस्तरीय क्रय समिति के सदस्य विपुल गोयल और अन्य अधिकारियों को पत्र लिखा है।