राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस की खिंचाई से खीजी हुई मोदी सरकार अगस्ता वेस्टलेैंड सौदे के टूटे पंखों के सहारे उडऩे का प्रयास कर रही हेै। अगस्ता वेस्टलैंड सौदे में बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल का भारत प्रत्यर्पण नरेन्द्र मोदी का राहुल गांधी पर जवाबी फायर है जो राफेल सौदे में मोदी को कटघरे में खड़ा करते हुए आरोप लगा रहे हैं कि, ‘मोदी चौकीदार नहीं चोर है।’’ सैन्य उड्डयन क्षेत्र का सौदा विधानसभा चुनावों से पहले क्यों उठाया गया? सूत्रों का कहना है कि, पांच राज्यों मेंं आशंका से कहीं ज्यादा खराब प्रदर्शन के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अरब अमीरात (यूएई) से डील कर ली थी कि चुनावों से एन पहले मिशेल का प्रत्यर्पण कर दिया जाए। मिशेल को दुबई से प्रत्यार्पित कर भारत लाना एक तरह से राफेल के जवाब में कांग्रेस केा शर्मिन्दा करने के सियासी दांव की तरह खेला गया है। यही वजह रही कि पिछले दिनों सुमेरपुर की चुनावी रेली में मोदी बड़ी धोंस-डपट के साथ नेहरू-गांधी परिवार पर पलटवार करते नजर आए कि, ‘एक राजदार हाथ लग गया है जो हिन्दुस्तान के नामदारों के दोस्तों को ‘कटकी’ देता था।’ उधर मिशेल फिलहाल सीबीआई की हिरासत में है, लेकिन भारत प्रत्यर्पण से पहले मिशेल ने मोदी सरकार को यह कहते हुए कटघरे में खड़ा कर दिया कि, ‘उन्होंने कांग्रेस की मनमोहन सिंह नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के साथ हैलीकॉप्टर खरीद का सौदा किया इसलिए मोदी सरकार ने उन्हें इस मामले में जानबूझकर घसीटा है।
वरिष्ठ पत्रकार शिवेश गर्ग की मानें तो, असल में वर्ष 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने अगस्ता वेस्टलैंड से एक दर्जन वीवीआईपी हैलीकॉप्टर खरीदने का सौदा किया था। आरोप है कि एंग्लो-इटेलियन कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड ने इस सौदे को हासिल करने के लिए मिशेल को कथित रूप से अपना बिचौलिया बनाया था और उसके जरिए भारतीय राजनेताओं, रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों, नौकरशाहों समेत वायुसेना के दूसरे अधिकारियों को रिश्वत दिलवाई थी। आरोप है कि, मिशेल को रिश्वत के तौर पर 225 करोड़ दिए गए थे जिसका उन्होंने कई नेताओं में बंटवारा किया। कोडवर्ड में इसका जिक्र है, जिसमें फैमिली भी है। भाजपा इसे गांधी परिवार से जोड़ रही है। मिशेल पर यह आरोप भी है कि उसने वायुसेना के तत्कालीन प्रमुख एस.पी. त्यागी और दूसरे अभियुक्तों के साथ मिलकर आपराधिक षडयंत्र किया। इस मामले में सियासी गर्माहट तब पैदा हुई जब प्रधानमंत्री मोदी ने राजस्थान की एक चुनावी रैली में मुद्दे को सोनिया गांधी से जोडऩे की कोशिश की। उधर इस मामले मेें उछाल तब आया जब यूथ कांग्रेस के लीगल सेल से जुड़े अल्जो के. जोसेफ स्पेशल सीबीआई कोर्ट में मिशेल के वकील बनकर पेश हुए। नतीजतन आग भड़की तो कांगे्रस ने जोसेफ को पार्टी से निकाल दिया।
पहला सवाल तो यह है कि हेलीकॉप्टर्स की जरूरत कैसे महसूस हुई? दरअसल 1999 में एम आई-8 हेलीकॉप्टर के पुराने हो जाने के कारण भारतीय वायुसेना को वीवीआईपी शख्सियतों के लिए नए हैलीकाप्टर्स की ज़रूरत महसूस की गई। यह कारगिल युद्ध के बाद का दौर था और बेहद सक्रिय रहने वाले तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीज हर दो माह बाद सियाचिन का दौरा कर रहे थे। ऐसे में 6 हजार मीटर तक ऊंची उड़ान भरने वाले हेलीकॉप्टर्स की ज़रूरत महसूस की गई। लेकिन तब केवल एक कंपनी ही आगे आई तो तत्कालीन एयर चीफ मार्शल एस. कृष्णास्वामी सौदा आगे बढ़ाने से पीछे हट गए। लेकिन जब नए सिरे से कोशिशें शुरू हुई तो प्रधानमंत्री को सुरक्षा देने वाली एसपीजी ने प्रस्ताव रखा कि, ‘हैलीकॉप्टर की सीलिंग इतनी ऊंची हो कि अंदर कोई भी व्यक्ति खड़ा हो सके? तब ऊंचाई और सीलिंग की शर्तो को देखते हुए तीन कंपनियां आगे आई, जिनमें अगस्ता वेस्टलेंड भी एक थी।
दौड़ में शामिल आधा दर्जन कंपनियोंं में से दो को शार्टलिस्ट किया गया, एक अगस्ता और दूसरी अमेरीकन कंपनी साइकोरस्की। इनका ट्रायल अमेरिका ओर ब्रिटेन में हुआ, जबकि नियम के खिलाफ भारत में इनका परीक्षण नहीं हुआ? उस समय त्यागी एयर चीफ मार्शल थे। त्यागी के नेतृत्व में भारतीय वायुसेना में आठ वीवीआईपी हेलीकॉप्टर्स का प्रस्ताव सरकार को दिया था, तब वाजपेयी सरकार अस्तित्व में थी। बाद में त्यागी ने जरूरत में इजाफा करते हुए एक दर्जन हैलकॉप्टर्स की जरूरत बता दी। हालांकि साइकोरस्की कंपनी का हैलीकॉप्टर भी सभी परीक्षणों पर खरा उतरा था, लेकिन तब तक अगस्ता का सौदा पक्का हो चुका था। सूत्र कहते हैं कि इस मामले में सोनिया गांधी का नाम होना सियासी साजिश की तरफ इशारा करता है? ऐसा क्यों? सूत्रों की मानें तो, ‘दलाल मिशेल ने मार्च 2008 में एक कथित पत्र अगस्ता के भारतीय प्रमुख को लिखा था। जिसमें कहा गया था कि, ‘सोनिया गांधी इस सौदे की ड्राइविंग फोर्स है, आगे से वे एम-18 में उड़ान नहीं भरेगी।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट चिराग गुप्ता की मानें तो, इस सौदे में सरकारी खजाने को किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं पहुंची है। फिर अगर दलाली का पैसा विदेशी कंपनी का था तो मिशेल पर भारत में अपराध कैसे बनता है?अलबत्ता मिशेल मनी लांडरिंग के अपराध में घिर सकते हैं। दिलचस्प बात है कि 3600 करोड़ के इस सौदे में से लगभग 1600 करोड का भुगतान तो अगस्ता को कर दिया गया था, जबकि लगभग दो हजार करोड़ की वसूली सरकार ने कर ली है…सूत्र कहते हैं तो फिर इसमें सोनिया गांधी के फंसने का मामला कहां बनता है?
वरिष्ठ पत्रकार शिवेश गर्ग कहते हैं, जिस तरह मोदी सरकार अगस्ता सौदे को राफेल सोदे की काट की तरह पेश कर रही है, क्या यह कवायद राफेल के मुकाबले वाकई भाजपा को फायदा पहुंचा सकती है? मोदी सरकार भले ही लोकसभा चुनावों में फायदा उठाने के लिए सोनिया-राहुल गांधी को निशाने पर ले सकती है, लेकिन इससे तो भाजपा ही संकट में फंसती नजर आएगी। क्योंकि भाजपा जितना इस मसले पर कांग्रेस को घेरने की कोशिश करेगी वह खुद अपना बोझ बढ़ाती जाएगी। नतीजतन मोदी सरकार पर राफेल सौदे में जांच करने का दबाव बढ़ेगा ही बढ़ेगा। क्योकि हेलीकॉप्टर सौदे में 2013 में ज्यो ही रिश्वत की बात सामने आई, त्यों ही तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के.एंटनी ने न केवल सौदा रद्द किया, बल्कि सीबीआई जांच के भी आदेश दे दिए। उधर इस मामले में भाजपा का एक और तमाशा नजर आता है कि, ‘वर्ष 2017 में अरब अमीरात में गिरफ्तारी के बाद मिशेल ने अपने वकील और बहन के जरिए सनसनीखेज खुलासा किया था कि सीबीआई ने दबाव बनाकर उससे कबूल करवाया था कि वे विमान सौदे में मोल भाव के लिए 2010 में यूपीए चेयपर्सन सोनिया गांधी से मिले थे। मिशेल का यह कथन पूरी तरह इस बात को नकार देता है कि, ‘मेरी सोनिया गांधी से जीवन में कभी मुलाकात हुई ही नहीं। वरिष्ठ पत्रकार शिवेश गर्ग कहते हैं कि, ‘गजब तो यह है कि सीबीआई जो खेल कर रही है, उससे तो उसकी अपनी साख ही सवालों के घेरे में आ गई है?
सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि, मिशेल को प्रत्यर्पित करने के अभियान का नाम ‘यूनिकार्न’ रखा गया था। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की निगरानी में चलाया गया। अभियान को सफल बनाने के लिए डोभाल सीबीआई के प्रभारी निदेशक नागेश्वर राव के संपर्क में थे। उधर तेलंगाना के चुनावी प्रचार के दौरान जब पत्रकारों ने अगस्ता घोटाले में बिचौलिए मिशेल के बारे में पूछा तो राहुल का जवाब था, ‘पहले प्रधानमंत्री यह तो साफ करें कि उन्होंने राफेल सौदे में 30 हजार करोड़ रुपए अनिल अंबानी को क्यों दिए?
उधर वरिष्ठ पत्रकार गुलाब कोठारी का कहना है कि ‘विश्व के लगभग सभी देश प्रत्यर्पण संबंधी अपनी नीतियों नियमों का पूरा पालन करते हैं लेकिन भारत में इस मामले में दशकों से मनमानी चलती आई है। कोठारी यहां अरब अमीरात की राजकुमारी शेख लतीफा की नजीर देते हैं, जो देश से भाग कर भारतीय तट पर पहुंच गई थी और भारत से शरण मांग रही थी। लेकिन भारत सरकार ने उसे पकड़ कर आनन-फानन में अरब अमीरात के हवाले कर दिया? दरअसल अरब अमीरात ने कूटनीतिक चालाकी दिखाते हुए राजकुमारी के अपहरण की शिकायत दर्ज कराई थी। नतीजतन भारत ने शिकायत पर तेजी से अमल किया। मानव अधिकार संगठनों का कहना है कि, ‘भारत को राजकुमारी का पक्ष सुनना चाहिए था?
उधर राजकुमारी लतीफा ने अंदेशा जताया था कि उसे पकड़ लिया गया तो उसके साथ कुछ भी हो सकता है। अब अगर 8 मार्च के बाद लतीफा कहीं भी नहीं दिखाई दे रही तो इसका क्या मतलब लगाया जाना चाहिए? कोठारी कहते हैं, ‘अरब अमीरात में तो राजशाही है, वहां मनमानी चल सकती है, लेकिन भारत में तो लोकतंत्र है, उसकी व्यवहारिक श्रेष्ठता का पालन ठीक से क्यों नहीं हो रहा?
कोठारी यह आशंका जताने से इंकार नहीं करते कि राजकुमारी को देकर अरब अमीरात से अगस्ता वेस्टलैंड सौदे में रिश्वत के आरोपी मिशेल को भारत प्रत्यार्पित कराया गया है? कोठारी इसे शर्मनाक बताते हुए कहते हैं कि ‘हम निर्दोष राजकुमारी के बिना कायदे प्रत्यार्पण और एक आरोपी अपराधी के बाकायदा प्रत्यर्पण को एक ही तराजू में रख रहे हैं? हम अरब अमीरात से एक ब्रिटिश नागरिक मिशेल को प्रत्यार्पित करा लाए हैं और दुनिया में अपनी बढ़ती ताकत से अभिभूत हैं,किन्तु क्या हम ब्रिटेन का विरोध झेल पाएंगे? बहरहाल राफेल और अगस्ता मुद्दे पर जो सुर्खियां आने को उत्सुक नजर आई, फिलहाल तो फुसफुसी बारूदों से भरी हुई ही लगती है?