भारत में लोकसभा चुनाव के बीच मशहूर अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ”टाइम” ने पीएम नरेंद्र मोदी को अपने कवर पर जगह दी है हालांकि इसके शीर्षक में मोदी के लिए ”इंडियास डिवाइडर इन चीफ” अर्थात ”भारत के प्रमुख विभक्तकर्ता” लिखा है। भाजपा के लिए इसे इस लिहाज से एक बड़ा झटका माना जाएगा कि पिछले ४-५ साल में पार्टी मोदी के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बहुत लोकप्रिय नेता होने की छवि पेश कर चुनावों में भुनाती रही है।
मोदी की कवर पर तस्वीर छाप कर ”टाइम” ने शीर्षक के रूप में विवादित ”उपाधि” भी दे दी। पत्रिका के एशिया एडिशन में लोकसभा चुनाव और पिछले पांच साल में मोदी सरकार के कामकाज पर कवर स्टोरी की है। अंग्रेजी में इसका शीर्षक है – ”केन द वर्ल्डस लार्जेस्ट डेमोक्रेसी एंड्योर अनदर फाइव ईयर्स आफ ए मोदी गवर्मेंट?” कुलमिलाकर इस अंक का लब्बोलुआब मोदी के लिए आलोचनात्मक कहा जाएगा।
कवर पेज पर ही मोदी की फोटो के साथ ”इंडियास डिवाइडर इन चीफ” लिखकर पत्रिका ने मोदी की छवि समाज को बांटने वाले नेता की तरह पेश कर दी है। जाहिर है भाजपा को यह तल्ख़ शीर्षक कतई पसंद नहीं आएगा लिहाजा इसपर विवाद हो सकता है। हालांकि, कांग्रेस सहित विपक्ष की दूसरी तमाम पार्टियां पहले से ही भाजपा पर समाज को बांटने का आरोप लगाती रही हैं।
इस मशहूर पत्रिका ने कवर स्टोरी में भी मोदी के पांच साल के शासन पर आलोचनात्मक आलेख लिखा है। दरअसल पत्रिका ने मोदी के कामकाज पर आलोचनात्मक टिप्पणी करते हुए नेहरू के समाजवाद और भारत की मौजूदा सामाजिक परिस्थिति का तुलनात्मक अध्ययन किया है। लेख में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के जिक्र में पत्रिका ने लिखा है – ”साल २०१७ में उत्तर प्रदेश में जब भाजपा चुनाव में विजयी रही तो भगवा पहनने और नफरत फैलाने वाले एक महंत को मुख्यमंत्री बना दिया।”
टाइम ने यह भी लिखा है कि हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे को मजबूत करने के लिए इच्छाशक्ति कतई नहीं दिखाई गयी। मुख्य लेख में कहा गया है – ”मोदी ने भारत की महान शख्सियतों, जैसे की नेहरू, पर राजनीतिक हमले किए। मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं। उन्होंने कभी भी हिन्दू-मुसलमानों के बीच भाईचारे की भावना मजबूत करने के लिए कोई इच्छाशक्ति नहीं दिखाई।
पत्रिका ने आगे लिखा है – ”मोदी का सत्ता में आना इस बात को इंगित करता है कि भारत में जिस कथित उदार संस्कृति की चर्चा की जाती थी वहां पर दरअसल धार्मिक राष्ट्रवाद, मुसलमानों के खिलाफ भावनाएं और जातिगत कट्टरता पनप रही थीं।” टाइम के इस लेख में १९८४ के सिख दंगों और २००२ के गुजरात दंगों का भी जिक्र है। लेख में कहा गया है कि ”हालांकि कांग्रेस नेतृत्व भी १९८४ के दंगों को लेकर आरोप मुक्त नहीं है लेकिन फिर भी इसने दंगों के दौरान उन्मादी भीड़ को खुद से अलग रखा, लेकिन नरेंद्र मोदी २००२ के दंगों के दौरान अपनी चुप्पी से उन्मादी भीड़ के दोस्त साबित हुए।”
आलेख में लिखा गया है कि २०१४ में लोगों के बीच पनप रहे गुस्से को नरेंद्र मोदी ने आर्थिक वादे में बदल दिया। उन्होंने नौकरी और विकास की बात की, लेकिन अब ये विश्वास करना मुश्किल लगता है कि ये उम्मीदों का चुनाव था। आलेख में कहा गया है कि मोदी के आर्थिक चमत्कार लाने के वादे फेल हो गये। यही नहीं उन्होंने देश में जहर भरा धार्मिक राष्ट्रवाद का माहौल तैयार करने में जरूर मदद की।
हालांकि पत्रिका के इसी अंक के एक और आलेख में मोदी की आर्थिक नीतियों की खूब तारीफ की गई है। लिखा है कि ”मोदी ही वो शख्स है जो भारत के लिए डिलीवर कर सकता है। लेख में यह भी कहा गया है कि भारत मोदी के नेतृत्व में चीन, अमेरिका और जापान से रिश्ते सुधरे और उनकी घरेलू नीतियों की वजह से करोड़ों लोगों की जिंदगी में ”सुधार” आया है।