झारखण्ड की हेमंत सरकार को गिराने के लिए विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त से राज्य की राजनीति में भूचाल आता, उसके पहले ही तीन लोग पुलिस की गिरफ़्त में आ गये। यूँ तो इस मामले में आरोपियों के बयान और तीन विधायकों का नाम सामने आने के अलावा अभी तक कुछ भी ख़ुलासा नहीं हुआ है। लेकिन राजनीतिक गलियारे में इस कांड को लेकर चर्चा ज़ोरों पर है। इसकी तपिश 3 सितंबर से शुरू होने वाले झारखण्ड विधानसभा के सत्र में दिखेगी। झामुमो के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस और राजद गठबंधन वाली हेमंत सरकार को गिराने की साज़िश का आरोप भाजपा पर लग रहा है। लेकिन एक निर्दलीय और कांग्रेस के दो विधायकों के नाम सार्वजनिक होने के बाद मामला दिलचस्प हो गया है। जानकार तो यह भी कर रहे हैं कि इस खेल में इन तीन विधायकों के अलावा परदे के पीछे सत्ताधारी दल के भी कई विधायक हैं। बहरहाल इस कथित साज़िश को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।
झारखण्ड की राजधानी रांची के एक होटल से 22 जुलाई को राज्य पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किये गये अभिषेक दुबे, अमित सिंह और निवारण प्रसाद महतो ने मौज़ूदा गठबंधन की हेमंत सरकार को गिराने की साज़िश का बयान दिया। उन्होंने विधायकों के नाम लिये बग़ैर ख़ुलासा किया कि वे कांग्रेस विधायकों के सम्पर्क में थे। साथ ही बताया कि यह साज़िश महाराष्ट्र भाजपा के नेता चंद्रशेखर राव बावनकुले और चरण सिंह ने व्यवसायी जयकुमार बेलखेड़े के साथ मिलकर रची है। वह तीन विधायकों को लेकर दिल्ली गये। दिल्ली में द्वारिका स्थित होटल विवांक में भाजपा के कुछ नेताओं से मुलाक़ात करवायी। विधायकों को अग्रिम राशि के तौर पर एक करोड़ रुपये देने थे। जब उन्हें राशि नहीं मिली, तो तीनों विधायक नाराज़ होकर वापस लौट गये। इसके बाद फिर से विधायकों से सम्पर्क शुरू हुआ। इसी सिलिसले में आरोपी रांची स्थित होटल में रुके थे। इन सभी बातों के तीनों आरोपियों ने सुबूत भी दिये हैं। पुलिस ने तीनों आरोपियों के ख़िलाफ़ राजद्रोह, धोखाधड़ी, प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट जैसे कई मामलों के तहत मामला दर्ज किया है। लेकिन दिल्ली जाने के हवाई टिकट मिलने, सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें वायरल होने और होटल में जाने के सुबूतों की बिना पर कांग्रेस विधायक इरफ़ान अंसारी व उमशंकर अकेला और निर्दलीय विधायक अमित कुमार यादव का नाम निकलकर सामने आया। चर्चा है कि इस कांड का ख़ुलासा कांग्रेस के ही विधायक जयमंगल सिंह द्वारा रांची के एक थाने में सरकार गिराने की साज़िश की एफआईआर दर्ज कराने के कारण हुआ। हालाँकि एफआईआर में भी किसी का नाम नहीं है। इसी एफआईआर के बाद रांची के होटल से तीन लोग पकड़े गये। विधायक दल के नेता आलमगीर ने कह रहे हैं कि पुलिस मामले की जाँच कर रही, सच्चाई सामने आ जायेगी।
कांग्रेस का आरोप और सफ़ार्इ
हमेशा की तरह कांग्रेस ने भाजपा पर राज्य सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने तो यहाँ तक कह दिया कि भाजपा बंगाल जीत जाती, तो झारखण्ड सरकार को खा जाती।
सरकार गिराने के मामले में भाजपा पर बहुत-से आरोप हैं। लेकिन यह भी सच है कि कांग्रेस में अंदरूनी कलह कम नहीं है। सरकार के गिरने की चर्चा जब भी आती है, तो सबसे कमज़ोर कड़ी कांग्रेस विधायकों को ही माना जाता है। इसकी मुख्य वजह पार्टी के राष्ट्रीय व प्रदेश नेतृत्व से उनकी नाराज़गी मानी जा रही है। सरकार से नाराज़गी तो है ही। विधायकों में असन्तुष्टि इस बात से ज़ाहिर है कि वे अपने ही प्रदेश अध्यक्ष, मंत्री और सरकार के ख़िलाफ़ बोलने से भी नहीं चूकते। हालाँकि कांग्रेस विधायक दल नेता आलमगीर आलम ने तो यह तक कह दिया कि कोई भी कहीं जा सकता है। साथ जाने का मतलब यह तो नहीं कि सरकार गिराने की साज़िश चल रही थी। हमारे विधायक एकजुट हैं। गठबंधन की सरकार मज़बूत है और अपना कार्यकाल पूरा करेगी। वहीं कांग्रेस के दोनों विधायक इरफ़ान अंसारी और उमाशंकर अकेला ख़ुद को साज़िश के तहत फँसाने की बात कहकर ख़ुद को कांग्रेस का सच्चा सिपाही बता रहे हैं। वे दिल्ली जाने की वजह व्यक्तिगत कार्य बता रहे हैं।
भाजपा पर सन्देह की वजह
जिन राज्यों में भाजपा विपक्ष में अच्छी स्थिति में है, वहाँ सरकार गिराने का आरोप उस लगता रहा है। मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गोवा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल इसके गवाह हैं। हालाँकि भाजपा सभी आरोपों का हमेशा खण्डन करती रही है। झारखण्ड में सरकार गठन के लिए 41 विधायक चाहिए। मौज़ूदा सरकार के पास झामुमो के 30, कांग्रेस के 18 (झाविमो से गये प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को मिलाकर), राजद का एक और राकांपा के एक विधायक को मिलाकर 50 विधायकों का समर्थन है। सीपीआई और दोनों निर्दलीय विधायक स्पष्ट रूप से सरकार के साथ नहीं हैं। हालाँकि दोनों निर्दलीय विधायकों ने राज्यसभा में भाजपा उम्मीदवार का साथ दिया था। भाजपा के 26 विधायकों (झाविमो से गये बाबूलाल मरांडी को मिलाकर) के साथ मुख्य विपक्षी दल है। भाजपा का गठबंधन आजसू के साथ है, जिसके दो विधाय हैं। यानी भाजपा को सरकार बनाने के लिए कम-से-कम 13 विधायकों के समर्थन की ज़रूरत होगी। वहीं सरकार को अल्पमत में लाने के लिए कम-से-कम 10 विधायकों को तोडऩा होगा।
भाजपा कांग्रेस पर ही आक्रामक
इस प्रकरण को लेकर कांग्रेस दो हिस्सों में बँटी है। एक हिस्सा सरकार के साथ मिलकर 20 सूत्रीय कार्यक्रम और निगरानी समिति के बँटवारे के ज़रिये इस मामले को शान्त करने और टिप्पणी से बचने के प्रयास में लगा है। वहीं दूसरे हिस्से के लोग कांग्रेस की फ़ज़ीहत और बदनामी से नाराज़ हैं। वे सरकार को बाहरी समर्थन देकर मामले का पटाक्षेप चाहते हैं। कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय कह रही हैं कि कांग्रेस का चीरहरण हो रहा है।
वहीं भाजपा कांग्रेस पर ही आक्रामक रवैया अपनाये हुए है। भाजपा नेताओं का कहना है कि सरकार के गठबंधन दलों में मतभेद है। सभी एक-दूसरे के ख़िलाफ़ हैं। यह सरकार ख़ुद गिर जाएगी। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कह रहे हैं कि अगर पकड़े गये तीनों आरोपी हैं, तो तीनों विधायक कैसे आरोपी नहीं हैं? पुलिस उनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज क्यों नहीं कर रही?
प्रकरण पर सवाल
झारखण्ड सरकार गिराने की साज़िश और विधायकों के ख़रीद-फरोख़्त मामले में सवालों की झड़ी लग रही है। मसलन, तीनों विधायकों का एक साथ जाने का कार्यक्रम कैसे बन गया? तीनों का एक ही पीएनआर पर हवाई टिकट कैसे बुक हुआ? तीनों विधायक दिल्ली में द्वारिका स्थित होटल विवांता में क्या कर रहे थे? दिल्ली में किन भाजपा नेताओं से मुलाक़ात हुई? इरफ़ान, अकेला और अमित साज़िश की बात कर रहे हैं। आख़िर ये साज़िशकर्ता कौन हैं? तीन विधायकों से सरकार गिर नहीं सकती है, तो क्या इस कांड में और भी विधायक हैं? और अगर हैं, तो कौन-कौन हैं? एफआईआर दर्ज कराने वाले विधायक जयमंगल सिंह को किस-किस पर शक था? इस पूरे प्रकरण का मुख्य किरदार कौन है? मुम्बई के दो नेताओं का झारखण्ड से क्या लेना-देना? उनका भाजपा में क्या किरदार है और कितनी पहुँच है? इन सवालों का जवाब देने से सभी दल कतरा रहे हैं, तो पुलिस जवाब तलाशने में धीमी गति से काम कर रही है।
ठंडे बस्ते में मामला!
निर्दलीय विधायक सरयू राय ने इस प्रकरण को लेकर एक ट्वीट में लिखा- ‘विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त से झारखण्ड में सरकार गिराने का बहु-प्रचारित मामला अंतत: राजनीतिक नादानी का नायाब उदाहरण साबित होगा। जाँच अधिकारी अपना काम पूरा कर लेंगे। सम्भव है कि निश्चित निष्कर्ष पर भी पहुँच जाएँगे। मगर इसके पीछे की असली बात सामने लाने में रुचि न सरकार की होगी, न प्रतिपक्ष की।’
सरयू राय की यह बात धीरे-धीरे सही भी लगने लगी है। यह सोचने वाली बात है कि अगर कोई व्यक्ति सरकार गिराने के लिए विधायकों को लेकर दिल्ली जाएगा, तो वह हवाई अड्डे से तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल करेगा? पुलिस की कहानी कितनी हास्यास्पद है?
इस बात का अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि रांची के एक होटल में अपनी असली पहचान के साथ विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त के लिए कोई रुकेगा और तोलमोल करेगा? अभी तक जो भी बातें सामने आयीं हैं, वो सीधे-सीधे गले नहीं उतर रहीं।
दिल्ली और मुम्बई से पुलिस घूमकर वापस लौटी, पर कोई अधिकारिक बयान नहीं दे रही है। अभी तक जिन तीन विधायकों के नाम सामने आये हैं, उनसे कोई पूछताछ नहीं हुई है।
सूत्रों की मानें, तो पुलिस भी मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश कर रही है। हालाँकि इस मामले में न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दाख़िल की गयी है। अगर न्यायालय का हस्तेक्षप नहीं हुआ, तो हो सकता है कि इस कांड पर से परदा न भी उठे।
“यह गठबन्धन के अंतर्विरोध का सबसे निकृष्ट उदाहरण है। झामुमो कांग्रेस को अपने नियंत्रण में रखना चाहता है। सत्ता के लिए कांग्रेस कितना समझौता करेगी? कांग्रेस पार्टी कितने दिन अपमान सहती है? यह झारखण्ड की जनता देखना चाहती है। सरकार गिराने की साज़िश और विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त एक स्क्रिप्टेड स्टोरी से ज़्यादा कुछ भी नहीं है। इस स्क्रिप्टेड स्टोरी के लेखक ही सारा माजरा बता सकते हैं।”
दीपक प्रकाश,भाजपा प्रदेश अध्यक्ष
“अपने विधायकों से बातचीत करके प्रथम दृष्टया विधायक दल के नेता को जो लगा, उन्होंने मीडिया में वह बयान दिया। वह अपनी रिपोर्ट आलाकमान को भी देंगे। पुलिस अपना काम कर रही है। उस पर कोई दबाव नहीं है; वह जाँच करे। विधायकों के टूटने की कोई बात नहीं। कांग्रेस के विधायक एकजुट हैं। भाजपा सरकार को अस्थिर करना चहती है। लेकिन यह सम्भव नहीं है। इसलिए शासन में धौंस जमाने के लिए सरकार गिराने की अफ़वाह फैलाती रहती है।”
राजेश ठाकुर, कार्यकारी अध्यक्ष कांग्रेस