सरकार के लिए आसान नहीं है पुरानी पेंशन लागू करने की राह
पुरानी पेंशन योजना लागू करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कर्मचारी धीरे-धीरे लामबंद हो रहे हैं। केंद्र सरकार पर कर्मचारी दबाव बना रहे हैं। उधर राजस्थान और छत्तीसगढ़ से पुरानी पेंशन योजना लागू करने की उठी बात देश के अन्य राज्यों तक पहुँच रही है। नतीजन इस पर राजनीति भी ख़ूब हो रही है। राज्य की सरकारों पर भी इसका दबाव बढ़ता जा रहा है। झारखण्ड भी इससे अछूता नहीं है। यहाँ राज्यकर्मियों ने पुरानी पेंशन योजना लागू करने के लिए सरकार पर दबाव बना रखा है। दबाव में फँसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछले दिनों 15 अगस्त तक पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा कर दी है। अब अधिकारीगण घोषणा को अमलीजामा पहनाने के लिए माथापच्ची कर रहे हैं। जबकि ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि पुरानी पेंशन योजना लागू करने की डगर आसान नहीं है। अगर मामले को सही तरीक़े से नहीं सँभाला गया, तो भविष्य में राज्यकर्मी क़ानूनी दाँव-पेंच में फँस सकते हैं। पेंशन के मामले में न्यायालय की शरण लेना मजबूरी बन सकती है।
कब बन्द हुई पुरानी पेंशन योजना?
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने पुरानी पेंशन योजना की जगह नयी पेंशन योजना को लागू करने का ऐलान किया था। इसके अनुसार 01 अप्रैल, 2004 के बाद जो भी सरकारी नौकरी में आये, उन्हें नयी पेंशन योजना से जोड़ा गया।
नयी पेंशन योजना को शुरू में कुछ राज्यों नें नहीं माना; लेकिन धीरे-धीरे अधिकतर राज्यों ने इसे अपना लिया। हालाँकि नयी पेंशन योजना लागू होने के कुछ साल बाद ही इसका विरोध शुरू हो गया। इस विरोध का राजनीतिक दलों ने $फायदा उठाना शुरू किया। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, राजस्थान समेत कई राज्यों में राजनीतिक दलों ने चुनावी घोषणा में पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा करने लगे।
राज्यकर्मी इसे लेकर धीरे-धीरे लामबंद होने लगे और सरकार पर लागू करने के लिए दबाव बढऩे लगा। झारखण्ड के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार ने चुनाव पूर्व राज्यकर्मियों से पुरानी पेंशन योजना लागू करने का वादा किया था। हेमंत सोरेन की सरकार दिसंबर, 2019 में बनी। अब ढाई साल बाद सरकार पर इसे लागू करने के लिए दबाव बढ़ गया है।
झारखण्ड में लगभग 1.87 लाख राज्यकर्मी हैं। सन् 2004 से पहले नियुक्त हुए कर्मी, जो पुरानी पेंशन योजना में हैं; उनकी संख्या 63,800 है। 01 अप्रैल, 2004 या उसके बाद सेवा में आये कर्मियों की संख्या 1.27 लाख है। जबकि मौज़ूदा में 1.70 लाख पेंशनभोगी कर्मी हैं।
झारखण्ड की राजधानी रांची के ऐतिहासिक मोरहाबादी मैदान में राज्यकर्मी पुरानी पेंशन की माँग को लेकर आन्दोलन कर रहे थे। पिछले दिनों इसी क्रम में पेंशन जयघोष महासम्मेलन के तहत हज़ारों की संख्या में राज्य कर्मी जुटे। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। उन्होंने यहाँ ऐलान किया कि सरकार पुरानी पेंशन योजना राज्य में 15 अगस्त से पहले लागू कर देगी। अगली बार योजना को लागू करने के मौक़े पर कार्यक्रम में शामिल होंगे।
नयी पेंशन योजना के क़ानूनी पेच
छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने पुरानी पेंशन योजना को लागू कर दिया है। झारखण्ड सरकार ने इसका अध्ययन कराया। वहाँ की सरकार ने पुरानी पेंशन योजना तो लागू कर दी; लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ है। मामला अभी भी फँसा हुआ है।
झारखण्ड के वित्त विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, राष्ट्रीय पेंशन योजना के लिए पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीएफआरडीए) का गठन किया गया है। इसके लिए एक्ट भी बनाया गया है। राज्य सरकार और पीएफआरडीए के बीच समझौता भी हुआ है। नयी पेंशन योजना के लिए बने एक्ट और राज्य सरकार व पीएफआरडीए के साथ हुए समझौते के तहत नयी पेंशन योजना को बीच में छोड़कर निकलने का कोई क़ानूनी प्रावधान नहीं है। दूसरी सबसे बड़ी समस्या है कि कर्मियों के वेतन से कटौती और सरकार द्वारा दी गयी राशि की वापसी। सन् 2004 से अब तक लगभग राज्यकर्मियों के 17,000 करोड़ रुपये नयी पेशन योजना के तहत दिये गये हैं। यह राशि अगर वापस नहीं होगी, तो राज्य सरकार के लिए पुरानी पेंशन योजना को लागू करना कठिन होगा। राज्य सरकार के पास 17,000 करोड़ रुपये अपने मद से देने के लिए राशि नहीं है। नतीजतन नयी पेंशन योजना से निकलने के लिए पीएफआरडी और राज्य सरकार के बीच आपसी सहमति ज़रूरी है। नहीं तो मामला क़ानूनी दाँव-पेंच में फँस सकता है।
वित्त विभाग के अधिकारियों की मानें अगर नयी पेंशन योजना को जबरन छोड़कर पुरानी में जाने से मामला लिटिगेशन में भी फँस सकता है। सरकार को न्यायालय जाने की ज़रूरत पड़ सकती है।
केंद्र से मदद की उम्मीद कम
ऐसा नहीं कि पुरानी पेंशन योजना लागू करने का दबाव केवल राज्य सरकार पर है। कर्मी केंद्र सरकार पर भी दबाव बना रहे हैं। देश भर से दिल्ली तक में आन्दोलन किया गया है और केंद्र सरकार से लगातार पुरानी पेंशन को लागू करने की माँग की जा रही है। हालाँकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि पुरानी पेंशन योजना बहाल करने का फ़िलहाल कोई इरादा नहीं है। लोकसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा था कि पुरानी पेंशन योजना को फिर से बहाल करने का कोई भी प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन नहीं है। यानी राज्यों को पुरानी पेंशन योजना में लौटने और जमा राशि की वापसी में केंद्र सरकार से फ़िलहाल मदद की उम्मीद कम ही है।
पेंशन पर राजनीति पड़ेगी भारी!
सरकारी कर्मी किसी भी राजनीतिक दल के लिए वोट बैंक के हिसाब से बड़ा महत्त्व रखते हैं। लिहाज़ा सरकारी कर्मियों के मामले को लेकर राजनीति भी ख़ूब होती है। पिछले आठ साल से पेंशन को लेकर भी राजनीति हो रही है। मगर पेंशन की राजनीति दोधारू तलवार है। जानकारों की मानें, तो देर-सवेर राजनीतिक दलों को इसका ख़ामियज़ा भुगतना होगा। राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति गड़बड़ा सकती है। साथ ही कर्मियों को भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
झारखण्ड, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्य जहाँ चुनाव पूर्व राजनीतिक दल ने पुरानी पेंशन योजना लागू करने का वादा किया और बाद में सरकार बनने पर दवाब में लागू करना पड़ रहा है। वहाँ राह में कई रोड़े आने वाले हैं। जबरन पुरानी पेंशन को लागू कर क़ानूनी लड़ाई में मामला फँसा, तो फ़ैसला किस पक्ष में जाएगा? यह कहना मुश्किल है। दूसरी बात अगर क़ानूनी लड़ाई न लड़कर राज्य सरकार अपने मद से एनपीएस में जमा राशि को कर्मियों को देगी, तो राज्य पर वित्तीय संकट आएगा। अगर मामले को छत्तीसगढ़ और राजस्थान की तरह भविष्य में निपटारे के आधार पर छोड़कर लागू कर दिया गया, तो रिटायर करने वाले कर्मियों पर संकट आएगा। क्योंकि अगर कर्मिंयों की सेवानिवृत्ति तक मामला नहीं निपटा, तो उनकी पेंशन की कुछ राशि एनपीएस में, और कुछ राशि पुरानी पेंशन में रहेगी। ऐसी स्थिति में पेंशन भुगतान में समस्या होगी। सम्भव है कि कर्मियों को व्यक्तिगत क़ानूनी लड़ाई लडऩी पड़े। झारखण्ड में अभी तक इन झंझावतों से निकले का रास्ता नहीं मिला है। मामला पेचीदा है और लटका हुआ है। जिस आसानी से पुराने रास्ते लौटने की घोषणा की गयी, उतनी आसानी से लौटना सम्भव नहीं है।
नयी और पुरानी पेंशन योजना में अन्तर
जीपीएफ की सुविधा।
पेंशन के लिए वेतन से कटौती नहीं।
सेवानिवृत्ति पर निश्चित पेंशन यानी अन्तिम वेतन का 50 फ़ीसदी गारंटी।
पूरी पेंशन सरकार देती है।
सेवानिवृत्ति पर ग्रेच्युटी (अन्तिम वेतन के अनुसार) में 16.5 माह का वेतन।
सेवाकाल में मृत्यु पर डेथ ग्रेच्युटी की सुविधा जो सातवें वेतन आयोग ने 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दी।
सेवाकाल में मृत्यु होने पर आश्रित को पारिवारिक पेंशन एवं नौकरी।
हर छ: माह बाद महँगाई भत्ता, जीपीएफ से ऋण लेने की सुविधा।
जीपीएफ निकासी (रिटायरमेंट के समय) पर कोई आयकर नहीं।
सेवानिवृत्ति के बाद मेडिकल भत्ता, सेवानिवृत्ति के बाद मेडिकल बिलों की प्रतिपूर्ति।
“वित्त विभाग पुरानी पेंशन स्कीम में लागू करने पर काम कर रही है। इसे कैसे लागू किया जाए, इसके लिए रास्ता निकाला जा रहा है। अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा गया है। किसी नतीजे पर पहुँचने के बाद ही कैबिनेट मंज़ूरी समेत अन्य प्रक्रियाओं को पूरा किया जा सकेगा।”
अजय कुमार सिंह
प्रधान सचिव, वित्त विभाग
नयी पेंशन योजना
जीपीएफ की सुविधा नहीं है।
वेतन से प्रतिमाह 10 फ़ीसदी कटौती।
निश्चित पेंशन की गारंटी नहीं।
यह पूरी तरह शेयर बाज़ार व बीमा कम्पनियों पर निर्भर होगी।
नयी पेंशन बीमा कम्पनी देगी। यदि इसमें कोई समस्या आती है, तो पेंशन धारक को बीमा कम्पनी से ही लडऩा पड़ेगा।
सेवानिवृत्ति के बाद मेडिकल भत्ता बन्द, मेडिकल बिलों की प्रतिपूर्ति नहीं होगी।
पारिवारिक पेंशन खत्म।
लोन की कोई सुविधा नहीं (विशेष परिस्थितियों में जटिल प्रक्रिया के बाद ही केवल तीन बार रिफंडेबल लिया जा सकता है)
सेवानिवृत्ति पर अंशदान की जो 40 फ़ीसदी राशि वापस मिलेगी, उस पर आय कर (इनकम टैक्स) लगेगा।
पेंशन स्कीम पूरी तरह शेयर बाज़ार पर पर आधारित, जो जोखिम पूर्ण हो सकता है।
महँगाई व वेतन आयोग का लाभ नहीं मिलेगा।