मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस्तीफ़े की उठी माँग, चर्चा है कि फिर कौन बनेगा मुख्यमंत्री?
पिछले कुछ वर्षों में देश के राजनीतिक माहौल में तेज़ी से बदलाव आया है। समाज में अन्तिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के जीवन में कोई सुधार नहीं आया है। राजनीतिक दलों के समानता का अधिकार देने के वादे, सबको छत, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार और अन्न आदि देने के दावे ज़मीनी हक़ीक़त से कोसों दूर हैं। समाज सेवा के लिए बनी राजनीति अब कहीं-न-कहीं पेशे का रूप ले रही है। झारखण्ड भी इससे अछूता नहीं है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री और मंत्री जैसे गरिमामयी पदों पर बैठे लोगों की सदस्यता पर भी प्रश्न चिह्न लग रहे हैं। राज्यपाल और चुनाव आयोग के साथ-साथ मामले न्यायालय तक पहुँच रहे हैं। नतीजतन राजनेता से लेकर नौकरशाह तक सभी इसी में उलझे हुए हैं। झारखण्ड में पिछले एक महीने से विकास के मुद्दे गौण हैं। प्रदेश के हालात पर बता रहे हैं प्रशांत झा :-
झारखण्ड एक बार फिर नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है। मौज़ूदा हेमंत सरकार में भूचाल आया हुआ है। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री और विधायक अपनी-अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं। मुख्यमंत्री, एक अन्य मंत्री और दो विधायकों की सदस्यता पर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। वहीं सरकार के एक मंत्री कोरोना प्रोत्साहन राशि में गड़बड़ी के विवाद में फँसे हुए हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। सरकार हिलडुल रही है। विकास का बाट जोह रही जनता अँधेरे में है। हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री रहेंगे या नहीं? सरकार रहेगी या गिरेगी? अगर गठबंधन की सरकार रहेगी, तो अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? क्या भाजपा तोडफ़ोड़ कर सरकार बनाएगी? क्या राज्य में एक बार फिर राष्ट्रपति शासन लगेगा?
ये तमाम सवाल राजनीतिक गलियारे से लेकर आम लोगों के बीच तैर रहे हैं। सभी अपनी-अपनी दलीले दे रहे हैं। यह हो सकता है, वो हो सकता है। इस सियासी तूफ़ान के बीच एक आईएएस पूजा सिंघल पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की छापेमारी और करोड़ों रुपये मिलने ने आग में घी का काम कर दिया है। क्योंकि आईएएस पूजा सिंघल खान एवं उद्योग विभाग की सचिव हैं। पूर्व सरकार में तो गहरी पैठ थी ही, वतर्मान सरकार में भी पहुँच कम नहीं है। कई और आईएएस अधिकारियों के ईडी के राडार पर होने की सूचना प्राप्त हो रही है। इस सियासी और ब्यूरोक्रेसी तूफ़ान पर राज्य के साथ-साथ पूरे देश की नज़र टिकी हुई है और ऊँट किस करवट बैठता है? इसका इंतज़ार हो रहा है।
मुख्यमंत्री की सदस्यता पर सवाल
झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता ख़तरे में हैं। उन्होंने रांची के अनगड़ा में 88 डिसमिल (3,562.24 वर्ग मीटर) ज़मीन पर दिसंबर, 2021 में स्टोन माइनिंग का लीज लिया है। ख़ास बात यह है कि खान विभाग मुख्यमंत्री के अधीन ही है। पूर्व मुख्यमंत्री सह भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने इस मामले को उजागार किया। उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर अपने पद का दुरुपयोग करते हुए माइंस लेने का आरोप लगाया। भाजपा की ओर से इसकी शिकायत राज्यपाल रमेश बैस से की गयी। मुख्यमंत्री की सदस्यता पर सवाल उठाते हुए उन्हें बर्ख़ास्त करने की माँग की गयी। राज्यपाल ने सारे मामले से चुनाव आयोग को अवगत कराया और सलाह माँगी।
चुनाव आयोग ने भेजा नोटिस
चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजकर यह बताने के लिए कहा कि अपने पक्ष खदान का पट्टा जारी करने के लिए उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए? जो प्रथम दृष्टया लोक जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-9(ए) का उल्लंघन करती है। धारा-9(ए) सरकारी अनुबंधों के लिए किसी सदन से अयोग्यता से सम्बन्धित है। इससे पहले आयोग ने दस्तावेज़ की सत्यता प्रमाणित करने लिए राज्य के मुख्य सचिव से रिपोर्ट माँगी थी। मुख्य सचिव से रिपोर्ट मिलने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजा गया। इस बीच मुख्यमंत्री ने खनन पट्टा वापस कर दिया है।
मुख्यमंत्री ने दिया जवाब
मुख्यमंत्री ने 9 मई को चुनाव आयोग को जवाब दे दिया है। उन्होंने अपनी माँ की गम्भीर बीमारी का हवाला देते हुए ज़िक्र किया है कि वह लगातार उपचार के सिलसिले में हैदराबाद में थे। इस वजह से आयोग द्वारा भेजे गये नोटिस का अध्ययन नहीं कर पाये। रिपोर्ट का ठीक से अध्ययन करने उस पर क़ानूनी सलाह लेने के लिए वक़्त की ज़रूरत है। हेमंत सोरेन ने चुनाव आयोग से एक माह का समय माँगा, ताकि वह नोटिस का अध्ययन कर क़ानूनी विशेषज्ञों से राय लें सकें। अब चुनाव आयोग उनकी बातों से कितना सन्तुष्ट होता है और क्या क़दम उठाता है? राज्यपाल को क्या सलाह देता है? इसका इंतज़ार है।
हेमंत के बचाव में उतरा झामुमो
इस बीच झामुमो कई फ्रंट पर काम कर रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पार्टी झामुमो उनके बचाव में उतर गया है। मुख्मंत्री हेमंत सोरेन के इस्तीफ़ा देने की स्थिति में वैकिल्पक रास्ता भी तलाशा जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और भाजपा को घेरने का प्रयास चल रहा है। झामुमो ने हेमंत सोरेन के बचाव में राज्यपाल को ज्ञापन भी दिया गया। झामुमो नेताओं का कहना है कि माइनिंग लीज धारा-9(ए) के तहत नहीं आता है। साथ ही मुख्यमंत्री ने इस पर काम भी शुरू नहीं किया है। उन्होंने लीज सरेंडर भी कर दिया है। पार्टी द्वारा कहा जा रहा है कि अगर मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ असंवैधानिक क़दम उठाये जाते हैं, तो वह सर्वोच्च न्यायालय जाएँगे। अगर मुख्यमंत्री हेमंत को पद से इस्तीफ़ा देना ही पड़ा, तो गठबंधन की सरकार में किसे मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है? इसकी भी अंदरख़ाने क़वायद चल रही है। इधर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास पर कई आरोप लगाये जा रहे हैं। उनके ख़िलाफ़ जाँच की माँग की जा रही है। भाजपा पर सरकार को अस्थिर करने और जनता को दिग्भ्रमित करने का आरोप लगाया जा रहा है।
हेमंत के भाई पर भी संकट
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के छोटे भाई विधायक बसंत सोरेन भी संकट में हैं। उनकी सदस्यता पर भी सवाल उठाया गया है। बसंत सोरेन पर दुमका में माइनिंग लीज लेने का मामला है। भाजपा ने इस सन्दर्भ में भी राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा था। भाजपा ने राज्यपाल को सौंपे पत्र में कहा था कि विधायक बसंत सोरेन मेसर्स ग्रैंड माइनिंग नामक कम्पनी चलाते हैं। पश्चिम बंगाल की कम्पनी मेसर्स चंद्रा स्टोन में पार्टनर हैं। पाकुड़ की इनकी माइनिंग कम्पनी पर सरकार का 14 करोड़ रुपये बक़ाया है। राज्यपाल ने उनका भी मामला चुनाव आयोग को भेजा था। चुनाव आयोग ने मुख्य सचिव से बसंत सोरेन के बारे में भी रिपोर्ट माँगी थी, जो आयोग को उपलब्ध करा दिया गया। इसके बाद पिछले दिनों आयोग ने बसंत सोरेन को भी नोटिस भेजते हुए पूछा है कि क्यों न आपकी सदस्यता रद्द की जाए? वह भी क़ानूनी सलाह ले रहे और जल्द ही आयोग को जवाब देंगे।
मंत्री मिथिलेश भी निशाने पर
झारखण्ड सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर की सदस्यता का भी मामला चुनाव आयोग पहुँचा है। विधानसभा चुनाव के समय उनके द्वारा ठेका कम्पनी संचालित किये जाने तथा इसे लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-9(ए) के दायरे में आने की शिकायत मिलने के बाद आयोग ने राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी से इस पर नियमानुसार कार्रवाई करने को कहा है। शिकायतकर्ता सुनील महतो ने आरोप लगाया है कि विधानसभा चुनाव के दौरान मिथिलेश ठाकुर द्वारा भरे गये फार्म-26 में इसका ज़िक्र है कि वह चाईबासा के सत्यम् बिल्डर्स के पार्टनर हैं। यह कम्पनी सरकारी ठेका लेने का काम करती है। विधानसभा चुनाव के दौरान उनकी राज्य सरकार के साथ की गयी कई संविदाएँ अस्तित्व में थीं। शिकायत में ऐसी कई संविदाओं का उल्लेख भी किया गया है। शिकायतकर्ता ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत उनकी सदस्यता रद्द करने की माँग की है।
भाजपा विधायक भी घेरे में
भाजपा विधायक समरीलाल भी इन सभी के पीछे-पीछे चल रहे हैं। उनकी सदस्यता को लेकर भी आरोप लग रहे हैं। समरीलाल ने आरक्षित सीट से चुनाव लड़ा था। उनके जाति प्रमाण-पत्र को अवैध करार दिया गया है। उनकी सदस्यता को रद्द करने का आग्रह किया गया है। समरीलाल ने राज्य सरकार के उस आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में याचिका दाख़िल की है, जिसमें उनका अनुसूचित जाति प्रमाण-पत्र रद्द कर दिया गया है।
कल्याण सचिव की अध्यक्षता में गठित जाति छानबीन समिति ने सुरेश बैठा की शिकायत की जाँच के बाद उनका जाति प्रमाण-पत्र गलत पाया था। इसके बाद इस मामले को आवश्यक कार्रवाई के लिए राजभवन भेज दिया गया था। अब राजभवन कोर्ट के $फैसले का इंतज़ार कर रहा है।
कांग्रेस कोटे से मंत्री विवाद में
इन सब के बीच हेमंत सरकार में कांग्रेस कोटे के मंत्री बन्ना गुप्ता भी विवादों में फँस गये हैं। उनके पास स्वास्थ्य विभाग है। निर्दलीय विधायक सरयू राय ने मंत्री बन्ना गुप्ता पर कोरोना के लिए प्रोत्साहन राशि में गड़बड़ी का आरोप लगाया। उन्होंने दस्तावेज़ पेश करते हुए कहा कि बन्ना गुप्ता समेत उनके कार्यालय के 58 कर्मचारियों ने कोरोना-काल में काम के लिए प्रोत्साहन राशि ख़ुद ले ली है। बन्ना गुप्ता ने आनन-फ़ानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और राशि भुगतान नहीं होने की बात कही। हालाँकि राशि लेने के लिए काग़ज़ी कार्रवाई पूरी हो गयी थी। बन्ना गुप्ता ने सरयू राय के ख़िलाफ़ न्यायालय में मानहानि का दावा किया है। साथ ही मंत्री बन्ना गुप्ता के अवर सचिव विजय वर्मा ने विधायक सरयू राय पर ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी है।
सड़क पर भाजपा-झामुमो
राज्य के ब्यूरोक्रेसी में 6 मई को बड़ी हलचल हुई। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आईएएस पूजा सिंघल और उनके क़रीबियों के लगभग दो दर्ज़न ठिकानों पर एक साथ छापा मारा। झारखण्ड के रांची, खूँटी के अलावा बिहार, राजस्थान, दिल्ली-एनसीआर, कोलकाता आदि जगहों पर टीम पहुँची। पूजा सिंघल के सरकारी आवास उनके पति अभिषेक झा और सीए सुमन कुमार के घर पर छापा मारा गया। पति अभिषेक और सीए सुमन कुमार के घर से 19 करोड़ रुपये नक़द बरामद हुए। इसके अलावा करोड़ों के निवेश और शैल कम्पनियों के सुबूत मिले हैं। सुमन कुमार को गिरफ़्तार कर लिया गया है। पूजा सिंघल और अभिषेक झा से पूछताछ चल रही है। पूजा सिंघल वर्तमान में खान एवं उद्योग विभाग की सचिव हैं। इसलिए भाजपा सरकार पर हमलावार हैं। वहीं पूजा सिंघल पर जिन मामलों (मनरेगा राशि और माइंस मामले) को लेकर कार्रवाई चल रही है, वह भाजपा के शासन काल का है। उस वक़्त वह उपायुक्त थीं। लिहाज़ा झामुमो भी हमलावार है। दोनों तरफ़ से बयानबाज़ी और सड़कों पर धरना-प्रदर्शन जारी है। झामुमो केंद्र सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं पर दुरुपयोग का आरोप लगा रही। वहीं भाजपा राज्य सरकार की विफलता, सरकार के संरक्षण में भ्रष्टाचार पनपने और पूजा सिंघल के मामले को सीबीआई जाँच कराने की माँग कर रही है।
सियासी घमासान में जनता गौण
राज्य में सियासी घमासान पिछले एक महीने से मचा है। सभी की नज़र राजभवन पर टिकी हुई है। हालात बाता रहे है कि आने वाले दिनों में झारखण्ड पर से संकट के बादल छँटने के आसार कम ही हैं। क्योंकि चर्चा है कि जल्द ही दो और मामलों में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चुनाव आयोग से नोटिस भेजे जाने की उम्मीद है।
उधर मुख्यमंत्री हेमंत सोरने के माइनिंग लीज का मामला, उनके परिवार में आय से अधिक सम्पत्ति का मामले को लेकर झारखण्ड उच्च न्यायालय में पीआईएल दाख़िल है। जिस पर जल्द ही सुनवाई शुरू होने वाली है। वहीं, आईएएस पूजा सिंघल मामले में कई ख़ुलासे होंगे। साथ ही पिछले दिनों आरोपित आईएएस और आईपीएस की सूची राजभवन ने सरकार से माँगी थी। जो राजभवन को उपलब्ध करा दिया गया है। इसमें आधा दर्ज़न अधिकारियों के नाम हैं। इनके ख़िलाफ़ भी जल्द ही जाँच एजेंसियाँ क़दम उठाएँगी। पिछले एक महीने से राज्य इन्हीं सब में उलझा हुआ है। नया वित्तीय वर्ष का एक महीना बीत चुका है। पिछले एक महीने में विकास की बात कहीं से निकलकर नहीं आ रही। जनमुद्दे, जनसमस्या और विकास गौण है। जनता पाँच साल के लिए चुने जनप्रतिनिधियों की तरफ़ विकास और अपना हित करने के लिए मुँह ताक रही है। उनके पास एक ही सवाल है- आख़िर राज्य की स्थिति कब और कैसे बदलेगी?