देश को कांग्रेस मुक्त करने का नारा देने वाली भाजपा के लिए हाल के महीनों के विधानसभा चुनाव बुरे सपने की तरह साबित हुए हैं। इसकी अंतिम कड़ी झारखंड है, जहाँ भाजपा बुरी तरह हार कार एक साल में पाँचवाँ राज्य खो बैठी है। इस चुनाव से पहले ही जिस तरह भाजपा को उसके सहयोगियों ने छोड़ा वह भी पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हुई। अब 2020 में होने वाले दिल्ली और बिहार विधानसभाओं के चुनाव निश्चित ही भाजपा के लिए बड़ी चुनौती रहेंगे।
भाजपा अभी महाराष्ट्र में मिली चोट से उबरी भी नहीं थी कि झारखंड के चुनाव नतीजे उसे बड़ा झटका दे गये। एक और राज्य भाजपा के हाथ से खिसक गया, पिछले एक साल में पाँचवाँ। जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन को 47 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत मिल गया और भाजपा, जिसने 65 पार का नारा लगाया था, 25 सीटों पर सिमट गयी। हेमंत सोरेन झारखंड में अब नयी सरकार के मुखिया होंगे। नतीजे आने के अगले ही दिन तीन सीटें जीतने वाली जेवीएम ने भी नयी सरकार को बिना शर्त समर्थन का ऐलान कर दिया।
भाजपा के लिए सबसे बड़ा झटका यह भी रहा कि उसके मुख्यमंत्री रघुबर दास तक चुनाव हार गयेे। इस चुनाव में जेएमएम अकेले सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। उसकी सहयोगी कांग्रेस, जिसके पिछली विधानसभा में महज़ छ: सदस्य थे, इस बार अपनी ताकत बढ़ाकर 16 सीटें जीतने में सफल रही। हेमंत सोरेन दो सीटों से चुनाव लाडे और दोनों पर ही जीते।
भाजपा में चुनाव से पहले ही रघुबर दास को मुख्यमंत्री के रूप में दोबारा आगे रखने पर विवाद था; लेकिन आलाकमान ने इसे स्वीकार नहीं किया। नतीजा यह निकला कि वे खुद अपना चुनाव तो हार ही गये, भाजपा की भी लुटिया डूब गयी।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन अब राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे। वैसे इस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत जेएमएम से ज़्यादा रहा; लेकिन उसे उससे सीटें पाँच कम मिलीं। मई, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की बढ़त कहीं ज़्यादा सीटों पर थी, लेकिन विद्यानसभा चुनाव में उसे बुरी तरह हार मिली है। उसका वोट फीसद भी तब 51 था; लेकिन इस चुनाव में घटकर 33.4 पर आ पहुँचा।
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास जमशेदपुर पूर्वी सीट से अपने ही मंत्री रहे और भाजपा के बागी सरयू राय से 15,833 वोटों से पिट गये। हार के बाद रघुबर दास ने हार स्वीकार करते हुए अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया। राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू को उन्होंने 23 दिसंबर को ही इस्तीफा सौंप दिया। वह इसी सीट से लगातार पाँच बार विजयी रहे थे और 2014 के विधानसभा चुनाव में तो वह 70,157 वोटों से विजयी रहे थे।
यही नहीं भाजपा को एक और बड़ा झटका प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा की हार से भी मिला। गिलुवा चक्रधरपुर सीट से झामुमो प्रत्याशी सुखराम उरांव से 12,234 वोटों से हारे। हेमंत सोरेन समेत उनके गठबंधन के कमोवेश सभी बड़े नेता विधानसभा चुनाव में जीतने में सफल रहे। झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष और विजयी गठबंधन के नेता हेमंत सोरेन ने बरहेट और दुमका दोनों सीटों से जीत दर्ज की। उन्होंने बरहेट सीट पर भाजपा के साइमन माल्टो को 25,740 वोटों से पराजित किया, जबकि दुमका में भाजपा की मंत्री रही लुईस मरांडी को 13,188 वोटों से हराया। वैसे 2014 के चुनाव में सोरेन उनसे 4914 वोटों से हार गये थे।
इन चुनावों में जो अन्य बड़े नेता जीते उनमें आजसू के अध्यक्ष सुदेश महतो भी हैं, जो सिल्ली से 20,195 मतों के बड़े अन्तर से झामुमो की उम्मीदवार सीमा महतो को हराकर जीते। इससे पहले वे उप चुनाव में उनसे हार गये थे। याद रहे 2014 में सीमा के पति झामुमो के उम्मीदवार अमित महतो ने सुदेश को 29,740 वोटों से पराजित किया था।
इसी तरह झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने धनवार सीट से भाजपा के लक्ष्मण प्रसाद सिंह को 17,550 वोटों से मात दी। पिछले चुनाव वे इसी सीट से हारे थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने कांग्रेस के ही पूर्व अध्यक्ष और अब भाजपा में चले गये सुखदेव भगत को 30,150 वोटों के बड़े अन्तर से मात दी।
यह विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए किसी बुरे सपने की तरह साबित हुआ है। पिछले एक साल में भाजपा पाँच राज्यों में हार चुकी है। इसकी शुरुआत राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष रहते मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधासभा चुनाव से हुई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 37 सीटें जीते थीं; लेकिन इस बार 12 सीटें खोकर 25 पर पहुँच गयी।
पिछले चुनाव में उसकी सहयोगी रही आजसू की भी भाजपा जैसी ही हालत हुई। इस बार भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ा था; लेकिन इसका न तो उसे फायदा मिला न ही आजसू को। आजसू पिछली बार आठ सीटें जीती थीं; लेकिन इस बार 53 सीटों पर लडक़र दो ही जीत पायी।
उधर झारखंड मुक्ति मोर्चा 30 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है। कांग्रेस ने भी इस चुनाव में अपनी ज़मीन काफी हद तक हासिल करने में सफलता हासिल की है। कांग्रेस ने 16 सीटें जीते हैं और उसका उप मुख्यमंत्री नयी सरकार में होगा। इसी गठबन्धन की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने एक सीट जीती। निर्दलीय के खाते में दो सीटें गयी हैं। आठ सीटों पर झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) (जेवीएम-पी), एक पर सीपीआई-माले और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने भी एक सीट जीती।
झारखंड में हार के बाद निश्चित ही भाजपा खेमे में अब बिहार की चिन्ता पैदा हुई है, जहाँ 2020 के आिखर में विधानसभा चुनाव होने हैं। पड़ोसी देश होने के नाते झारखंड के नतीजों का बिहार पर भी असर पड़ सकता है।
भाजपा के लिए यह चुनाव हार इसलिए भी चिन्ताजनक है; क्योंकि इस चुनाव में पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने धारा 370 से लेकर नागरिकता संशोधन कानून तक को भुनाने की बहुत कोशिश की थी। लेकिन लोगों से भाजपा को समर्थन नहीं मिल पाया। विपक्ष ने आरोप भी लगाया था कि भाजपा झारखंड में हार देखकर अपने घटिया एजेंडे को सामने कर रही है।
हालाँकि, भाजपा के कुछ नेताओं ने नतीजों के बाद कहा कि आिखर के चरण में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा, जो इस बात का सबूत है कि लोगों ने नागरिकता कानून के हक में भाजपा को वोट दिया। लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र में भी भाजपा ने अपनी सीटें धारा-370 के बाद खोयी हैं। पीएम मोदी ने डबल इंजन की सरकार की बात भी की थी, जो जनता के गले नहीं उतरी। भाजपा को उसके मुख्यमंत्री रघुबर दास की विवादित छवि भी महँगी पड़ी है, जिनके िखलाफ विपक्ष लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहा था। लेकिन भाजपा ने इसके बावजूद दास पर भरोसा जताया और अंतत: उसे हार झेलनी पड़ी।
चुनाव में किसका कितना वोट शेयर?
भाजपा 33.37 प्रतिशत
जेएमएम 18.72 प्रतिशत
कांग्रेस 13.88 प्रतिशत
जेवीएम 5.45 प्रतिशत
आजसू 8.10 प्रतिशत
राजद 2.75 प्रतिशत
किसको कितनी सीटें
जेएमएम 30
कांग्रेस 16
भाजपा 25
राजद 1
जेवीएम 3
आजसू 2
अन्य 4