झारखंड में चुनावी समर की घोषणा हो चुकी है। देखना है कि ऊंट किस करवट बैठता है। भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती सत्ता विरोधी लहर से खुद को बचाना है। विपक्षी दलों का मानना है कि पांच चरणों में चुनाव का ऐलान भाजपा सरकार की खोखली नीति की खुलासा है। चाहिए तो यह था कि हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली और झारखंड का चुनाव एक साथ करवाती। लेकिन भाजपा अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए पहले महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव करवाती है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में अपनी सरकार होने के बावजूद उनको अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाए हैं। इसी से हतोत्साहित होकर उन्होंने झारखंड में पाँच चरणों में चुनाव का ऐलान करवाकर अपनी जीत सुनिश्चित करवाना चाहती है। संभवत: इसीलिए अभी तक दिल्ली के चुनाव की घोषणा नहीं की है। वह अपने सभी संगठनों की ताकत चरणबद्ध तरीकेसे झोंककर वहाँ अपना जीत सुनिश्चित करना चाहेगी। झारखंड के सत्ताधारी स्थानीय नेता इस बाबत बात करने से कतरारते दिखे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) के झारखंड राज्य के सचिव जी.के. बख्शी ने बताया कि पाँच चरणों के चुनाव का यहाँ की तमाम विपक्षी पार्टियों ने विरोध किया और यहाँ एक या दो चरणों में चुनाव सम्पन्न कराने की माँग की है। लेकिन विपक्षी पार्टी को धता बताते हुए चुनाव आयोग ने पाँच चरणों में चुनाव कराने का फैसला किया है। अब हम खासतौर से वामपंथी पार्टियाँ यहाँ अपना विकल्प देने की कोशिश कर रहे हैं। जहाँ तक रही झारखंड मुक्ति मोर्चा, झारखंड विकास मोर्चा, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, जदयू के साथ-साथ तमाम स्थानीय निकाय की पार्टियाँ सत्तारुढ़ पार्टी के साथ दो-दो हाथ करने की तैयारी में जुट गई हैं।
दूसरी तरफ सत्तारुढ़ भाजपा कोई कोर कसर नहीं छोडऩा चाहती है। जिसके लिए यहाँ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और गृहमंत्री अमित शाह तक झारखंड का दौरा करके वहाँ की जनता को लुभाने का प्रयास किया है। प्रधानमंत्री ने अपने दौरे में उद्घाटनों और शिलान्यास के ज़रिये चुनावी बिगुल फूँका है। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री ने अनेक केन्द्रीय योजनाओं की लॉन्चिंग के ज़रिये झारखंड की पैड का इस्तेमाल किया। बहु-प्रचारित स्वास्थ्य की महत्त्वाकांक्षी योजना-आयुष्मान भारत, किसानों, छोटे दुकानदारों के लिए पेंशन योजना या योग दिवस पर प्रधानमंत्री ने झारखंड को चुना।
मंशा साफ है कि भाजपा यहाँ जीत की कोई कोर कसर नहीं छोडऩा चाहती है। यहाँ के मात्र 14 लोकसभा और 81 विधानसभा के सीटों के प्रति प्रधानमंत्री का इतना ध्यानाकर्षण आम आदमी की समझ से परे है। प्रधानमंत्री की अभिरुचि दो वजहों से हो सकती है। पहली, भाजपा की जीत सुनिश्चि हो, जिससे भाजपा को अधिकाधिक लाभ मिल सके। दूसरी, भाजपा नीति का हिस्सा कि उनको सहयोग करने वाले पूँजीपतियों को अधिकाधिक लाभ पहुँचाया जा सके। जिसका प्रमाण यह है कि 2014 के चुनाव के तुरन्त बाद चुनी हुई सरकार ने राज्य में अडानी को अनेक महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं को सौंप दिया। साथ ही साथ आदिवासी ज़मीन की खरीद फरोख्त पर लगी रोक को लचीला बनाने के लिए एसटी एसपीटी एक्ट को सरकार ने कमाोर किया।
65 पार का नारा बुलंद करने के साथ झारखंड भाजपा प्रदेश का प्रभारी ओम माथुर को बनाया। उन्होंने प्रदेश का दौरा करने के बाद जो रिपोर्ट केंद्रीय नेताओं को सौंपा 65 पार के भाजपा के नारों को हतोत्साहित करने वाला था। उन्होंने सांगठनिक स्तर की कमाोरी के साथ-साथ मंत्रीमंडल के आपसी तालमेल में खामियाँ गिनायीं। सरकार द्वारा किये गये कामों को पार्टी जनता तक पहुँचाने में नाकाम रही है। ऊपर से सत्ता विरोधी लहर का खतरा। माथुर की इस रिपोर्ट के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने चुनाव का प्रचार-प्रसार की कमान अपने हाथों में ले ली है। झारखंड में ही सबसे यादा मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुई हैं, जिससे साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने की तैयारी से विपक्षी दल जोड़ रहे हैं। वहाँ के एक नेता ने बताया कि हाल की मॉब लिंचिंग की घटना में एक युवक की जान चली गई है। दूसरा अस्पताल में भर्ती है। इस तरह की घटना के सहारे वह अपना चुनावी बेड़ा पार लगाना चाहती है। साथ ही उन्होंने बताया कि राम मंदिर के मसले पर अभी उच्चतम न्यायालय का निर्णय आना है। उससे पूर्व भाजपा और उनके तमाम संगठनों ने एक हवा निर्मित कर इस पर एक अभियान सा छेड़ रखा है। इसके बावजूद नय्या पार लगाना आसान नहीं है। भाजपा के लिए रघुवर दास का चेहरा आगे लाना भी ङ्क्षचता पैदा कर रहा है। भाजपा ने घर-घर रघुवर दास का नारा लगाया है। जिसका विरोध भाजपा के अन्दर ही दिखाई देता है। इसका उदाहरण यह है कि उनके इलाके में लगे बैनर और होर्डिंग्स में रघुवर दास का चेहरा नदारद है। उनकी जगह मोदी और अन्य नेताओं की तस्वीर ज़रूर लगी हुई हैं। उनके िखलाफ मंत्रिमंडल के सदस्य सरयू राय ने बगावती स्वर बुलन्द किये हुए हैं। जिन्होंने दर्जन से अधिक मंत्रीपरिषद् की बैठकों में भाग नहीं लिया है। साथ ही एक बार तो कैबिनेट की एक बैठक में एक प्रस्ताव के विरोध में बैठक से नाराज़ होकर चले गये थे। इससे भाजपा की राह आसान नहीं दिख रही है।