पिछले कुछ वक्त से झारखंड में सियासी नौटंकी पूरे शबाब पर है. वहां सरकार गिरने, राष्ट्रपति शासन लागू होने, फिर सरकार बनने की संभावना पैदा होने व उस पर विराम लगने की घटनाएं एक के बाद एक हो रही हैं. लेकिन इस किरकिरी से इतर एक और बात राज्य की छवि को धूमिल कर रही है. वह है जनप्रतिनिधियों की फरारी. मजेदार बात यह है कि तीनों फरार प्रतिनिधि खासे नामचीन हैं लेकिन पता नहीं उनकी तलाश कैसे की जा रही है कि वे पकड़ में ही नहीं आ रहे हैं.
पहला नाम सीता सोरेन का है, जो झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रमुख शिबू सोरेन की बहू होने के अलावा संथाल परगना के जामा विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी हैं. इन्हें लेकर अदालत ने तमाम आदेश जारी किए. कभी गिरफ्तारी का आदेश, कभी कुर्की का तो कभी गिरफ्तारी पर रोक का और अब जमानत का आदेश. उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट 19 फरवरी को जारी हुआ था. सीता अपने सहयोगी रहे विकास पांडेय नामक शख्स को अपहृत करके बंधक बनाने, मारने-पीटने के आरोप में पिछले ढाई महीने से फरार रहीं. जब सीता पर नोट फॉर वोट मामले में सीबीआई की जांच शुरू हुई थी, उनका सहयोगी विकास पांडेय सरकारी गवाह बन गया था. दर्ज मामले के अनुसार सीता के लोगों ने विकास पांडेय को घर से उठाया और सीता सोरेन के घर ले जाकर उसके साथ मारपीट की. इतना सब होने पर जब पुलिस और कुछ मीडियावाले उनके आवास पहुंचे तो विकास को विधायक के घर से छुड़वाया जा सका था. हालांकि अब सीता सोरेन को जमानत मिल गई है इसलिए तकनीकी तौर पर अब वह फरार नहीं कही जा सकतीं लेकिन बीच की पूरी अवधि वह फरार रहीं.
दूसरी चर्चित फरार प्रतिनिधि हैं रमा खलखो. रमा राजधानी रांची की महापौर रह चुकी हैं. गत माह जब महापौर चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई तो चुनाव के ठीक एक दिन पहले यानी सात अप्रैल को रांची के एक होटल से 21 लाख 90 हजार रुपये की जब्ती हुई. इस सिलसिले में रमा के दो सहयोगियों को गिरफ्तार भी किया गया. इस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत के भाई सुनील सहाय का भी नाम आया. अगले दिन रमा फरार हो गईं, तब से लेकर अब तक उनका कोई अता-पता नहीं है. चार मई को उनके रांची आवास पर कुर्की- जब्ती का इश्तहार भी लगाया जा चुका है.
दो फरार महिला प्रतिनिधियों के बीच एक चर्चित पुरुष नेता भी फरार चल रहे हैं. इनका ताल्लुक भी झारखंड मुक्ति मोर्चा से ही है. ये हैं संथाल परगना के शिकारीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र के विधायक नलिन सोरेन. वे मंत्री भी रह चुके हैं. नलिन को साढ़े बारह करोड़ रुपये के बीज घोटाले का आरोपित मानकर उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है. इसके बाद खाद घोटाले में भी उनका नाम आया है.
[box]तीनों फरार प्रतिनिधि खासे नामचीन हैं लेकिन पता नहीं उनकी तलाश कैसे की जा रही है कि वे पकड़ में ही नहीं आ रहे हैं[/box]
बहरहाल, इन प्रमुख प्रतिनिधियों के फरार होने की घटना से राज्य के राजनीतिक प्रहसन में एक नया अध्याय जरूर जुड़ा है. कहा जा रहा है कि राज्यसभा चुनाव में नोट फॉर वोट मामले में कुछ और प्रतिनिधि फरारी को तैयार हैं. वे प्रतीक्षा में हैं कि उनके खिलाफ मुकदमा खुले और वे अदृश्य हो जाएं.
झारखंड की राजनीति में यह कोई नई बात नहीं है. गत वर्ष कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सावना लकड़ा भी एक हत्याकांड में कई माह फरार थे. भाजपा के नेता व पूर्व मंत्री सत्यानंद भोक्ता की फरारी भी चर्चा में रही है. स्वास्थ्य मंत्री रह चुके भानुप्रताप देहाती भी एक वक्त फरार होकर खूब चर्चित हुए थे.
भाकपा माले विधायक विनोद सिंह कहते हैं, ‘न्यायालय ने भले ही राहत की बात की हो लेकिन जहां तक सरकार की बात है तो वह इतनी कमजोर नहीं है कि विधायक या किसी अन्य को गिरफ्तार न कर सके. यह सब सरकार और पुलिस की मिलीभगत से हो रहा है. सरकार सख्त हो तो वारंट निकलने के बाद लोगों को दुनिया के किसी कोने से खोजा जा सकता है. रमा खलखो के यहां जब छापा पड़ा तो रमा और सुबोधकांत भी थे पर उन्हें भगा दिया गया.’
वहीं विधायक बंधु तिर्की कहते हैं, ‘ये सब फरार कहां हैं? नलिन सोरेन रोज चश्मा लगाकर घूमते दिखते हैं. रमा भी घर के पास ही रहती हैं और रोज सुबह घर आती हैं. यह कहना सही होगा कि सरकार इन्हें गिरफ्तार नहीं करना चाहती.’
आशा थी कि पुलिस अधिकारी इन मामलों पर कुछ रोशनी डालेंगे लेकिन वे कुछ भी स्पष्ट कहने से कतराते नजर आए, आईजी (प्रोविजन) आरके मल्लिक ने प्रक्रिया की जानकारी देते हुए कहा कि जो भी व्यक्ति फरार होता है उसके घर एक माह का नोटिस लगाकर एक माह के अंदर कुर्की होती है. फिर उसकी समीक्षा होती है और उसके बाद उनकी संपत्ति को जब्त किया जाता है या कानूनी कार्रवाई की जाती है. उन्होंने भी इन मामलों के बारे में कोई खास मालूमात होने से इनकार किया. वहीं पुलिस प्रवक्ता रिचर्ड लाकड़ा से तमाम कोशिशों के बावजूद संपर्क नहीं हो सका.