पिछले दिनों देश के प्रधानमंत्री ने कुछ स्कूली बच्चों के बात की। इनमें डिस्लेकसिया से प्रभावित बच्चे भी थे। इनमें से कुछ छात्रों के साथ बातचीत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिस्लेकसिया और उससे पीडित लोगों का जिस तरह उपहास किया उसे समाज में सराहना नहीं मिल सकी। उस बातचीत के दौरान एक छात्र ने कहा था कि वह डिस्लेकसिया से पीडि़त बच्चों के साथ होने वाले दुव्र्यवहार को रोकना चाहती है और उनके लिए काम करने चाहती है। देश में साढ़े तीन करोड़ बच्चे इस अक्षमता के शिकार हैं। प्रधानमंत्री ने इस पर कहा कि क्या बड़ी उम्र के लोग भी ठीक हो सकते हैं। उनका इशारा राजनीतिक था। उन्होंने कहा फिर मां बहुत खुश होगी।
मां-बेठी की टीम ने प्रधानमंत्री को सलाह भेजी है कि हमारे प्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी, डिस्लेकसिया कतई न तो उपहास लायक है और न ही इसमें शरमाना ही चाहिए। डा. गीत ओबेराय विशेष प्रशिक्षक है जो विभिन्न तरह की अक्षमताओं का अध्ययन करती हैं और उनसे प्रभावित लोगों को स्वस्थ रहने और समाज में जीना सिखाती है। उनकी 14 साल की बेटी इंडिया ओबेराय को डिस्लेकसिया है। लेकिन इसके बावजूद वह पढऩे में तेज हैं। मैं एक एडल्ट हूं जिसे डिस्लेकसिया है। मेरी बेटी डिस्लेकसिया है। इसमें जागरूकता काफी कम होती है। यदि हम कोई मजाक करं या इस अक्षमता पर कोई उपहास करे तो यह अक्षमता दूर नहीं होगी। इससे बात बनेगी नहीं। कहती है डा. ओबेराय। यह एक ऐसी अक्षमता है जिसमें बच्चे को पढऩे और लिखने में परेशानी होती है। तकरीबन साढ़े तीन करोड़ बच्चे इस अक्षमता के शिकार हैं।
इसका यह अर्थ न निकाला जाए कि डायलेक्सिक बच्चे बुद्धिमान नहीं होते। कई ऐसे भी मामले देखे गए हैं जहां डिस्लेकसिया के बच्चों का आईक्यू बहुत ही जबरदस्त है। वे दूसरे बच्चों की तुलना में कहीं ज़्यादा योग्य होते हैं। इनमें प्रमुख हैं प्रसिद्ध वैज्ञानिक एलबर्ट आइनसटाइल, चित्रकार पबालो पिकासो, अभिनेता टाम क्रूज़ औरहेनरी विंकलर, फिल्म स्टीवन स्पीलबर्ग।
डाक्टर गीत ने बताया कि उनकी बेटी इंडिया को भी बहुत परिश्रम करके डिस्लेकसिया पर हावी होना पड़ा। यदि एक अच्छा माहौल दिया जाए तो उसके जैसे ढेरों बच्चे अपनी अक्षमता पर काबू पा सकते हैं।
इंडिया ने बताया कि अपने स्कूल की फुटबाल टीम की मैं कैप्टन हूं। मैं पिछले दस साल से घुड़सवारी सीखती रही हूं। मुझे कई मेडल भी मिले हैं। दूसरे बच्चों की तरह मैं एक जगह बैठकर लिख नहीं सकती। लेकिन मौखिक तौर पर मैं सारे सवालों का जवाब जानती हूं। बताती है इंडिया जिसे अटेंशन -डिफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएडी) भी है।
बच्चों को यदि यह सिखाया जाए कि वे कैसे अपनी मनोयोग से अपनी ताकत और बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए समस्या पर काबू पा सकते हैं तो वे जीवन में भी सफल हो सकते हैं। यह सरकार और व्यवस्था पर है कि स्कूलों में सभी बच्चों की उचित तरीके से छानबीन की जाए। उनकी कमियों को जाना समझा जाए और उनकी समस्याओं का निदान किया जाए। सब की तरह ही दिखने वाले बच्चों में भी पढऩे और सीखने का तौर तरीका कुछ बच्चें का काफी अलग होता हैं। उनका उपहास नहीं उड़ाना चाहिए। बल्कि अध्यापकों को इस तरह प्रशिक्षित किया जाए कि वे उन बच्चों को उस तरह से पढ़ाए-सिखाएं कि वे ठीक से पढ़-लिख और तेज हो। कहती हैं डा. गीत।