भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर की प्रारम्भिक रिपोर्ट से पता चलता है कि पूरा जोशीमठ शहर, जो हिमालय में धार्मिक स्थलों का प्रवेश द्वार माना जाता है और जो सामरिक दृष्टि से काफ़ी महत्त्व रखता है; डूब सकता है। यहाँ सेना छावनी चीन सीमा के क़रीब है। इसरो की तरफ़ जारी सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि जोशीमठ-औली सडक़ धँसने वाली है।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ के साथ देहरादून में काफ़ी साल पहले रिपोर्टिंग करते हुए मैंने विस्तार से लिखा था कि दशकों से वैज्ञानिकों और भू-वज्ञानिकों की तरफ़ से जारी ख़तरे की चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया गया है। शुरुआती ख़तरे की घंटी मिश्रा आयोग की रिपोर्ट के रूप में सामने आयी थी, जिसमें चेतावनी दी गयी थी कि पर्यावरण की दृष्टि से यह संवेदनशील क्षेत्र उच्च दर की भवन निर्माण गतिविधि नहीं सह सकता है। हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में इसके ठीक विपरीत हुआ है। बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और शंकराचार्य मन्दिर की ओर जाने वाले सैलानियों का केंद्र बनने के कारण यहाँ हुए बेतरतीब निर्माण और पनबिजली परियोजनाओं के जारी रहने से गम्भीर ख़तरे उत्पन्न हो गये हैं।
देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने अध्ययनों में पाया कि ‘आज की स्थिति प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों कारणों का नतीजा है, क्योंकि यहाँ की मिट्टी कमज़ोर है; जिसमें ज़्यादातर भूस्खलन से पैदा हुआ मलवा है और यह क्षेत्र अत्यधिक भूकम्पीय प्रभाव वाला क्षेत्र भी है।’ यह क्षेत्र कभी ग्लेशियरों के अधीन था और सतह के नीचे नरम क्रिस्टल युक्त चट्टानों में पानी के रिसाव ने चट्टानों को और कमज़ोर कर दिया है।
हाल के महीनों में भूमि धँसने से चमोली से जोशीमठ तक के क़रीब 10,000 निवासियों में दहशत फैल गयी है, जिनके घरों में दरारें आ गयी हैं। इसरो के उपग्रह चित्रों से ज़ाहिर होता है कि 2 जनवरी को ज़मीन धँसने की एक घटना के बाद यह हिमालयी शहर केवल एक पखवाड़े में 5.4 सेंटीमीटर से ज़्यादा धँस गया। इससे पहले भी अप्रैल और नवंबर, 2022 के बीच जोशीमठ 8.9 सेमी तक धँस गया था। उभरता हुआ संकट विकासात्मक परियोजनाओं और उन्हें क्रियान्वित करने के दौरान नाज़ुक हिमालय पर्वत प्रणाली की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ करने का नतीजा है। प्रभावित इलाक़ों से लोगों को निकालने के बाद क़स्बे को कैसे बचाया जाए? यह बड़ा सवाल है। क्योंकि इसमें मानवीय जीवन भी जुड़ा है। यह घटना समस्या के स्थायी समाधान की आवश्यकता को उजागर करती है। यह समान स्थिति का सामना कर रहे अन्य सभी पहाड़ी क़स्बों की मैपिंग करने की ज़रूरत का संकेत भी देती है।
‘तहलका’ के इस अंक में एक खोजी रिपोर्ट ‘टैक्स बचाने के रास्ते’ है। ‘तहलका एसआईटी’ की जाँच रिपोर्ट से पता चलता है कि कैसे क्रिकेट के दिग्गज तेंदुलकर ने कथित तौर पर टैक्स में एक बड़ी राहत पाने के लिए $खुद को ‘अभिनेता’ की भूमिका में प्रस्तुत किया। कितने ही क्रिकेट खिलाडिय़ों में कर क़ानून (टैक्स लॉ) के $गलत पक्ष में जाने की अनोखी आदत है। क्रिकेटरों को तो भूल ही जाइए, भारत में क्रिकेट चलाने वाली संस्था बीसीसीआई भी टैक्स चोरी के मामले में कथित रूप से फँस चुकी है। क्योंकि राजस्व विभाग ने 462 करोड़ रुपये की वसूली के बाद बीसीसीआई से 1,303 करोड़ रुपये का एक और बक़ाया आयकर भुगतान करने को कहा है। संसद में वित्त मंत्रालय की तरफ़ से प्रस्तुत विवरण में यह जानकारी दी गयी है। निश्चित ही यह एक विचारणीय और गम्भीर विषय है!