आप जैसे ही जोधपुर में प्रवेश करते हैं तो मालूम हो जाता है कि आप गहलोत के ठिकाने में हैं। शहर मुख्यमंत्री गहलोत के बेटे और कांग्रेस उम्मीदवार वैभव गहलोत के पोस्टर, कटआउट और बोर्डों से अटा पड़ा है। तभी एक नज़र देख लगता है मानो बेटे के लिए जोधपुर से दिल्ली की सत्ता का रास्ता साफ है। राहुल गांधी और कांग्रेस भी पोस्टर, हार्डिंग में बहुत प्रमुखता से है। जैसे उत्तर प्रदेश या दिल्ली में चौतरफा नरेंद्र मोदी के फोटो मिलते है वैसे जोधपुर की सड़कों पर राहुल गांधी मुस्कुराते हुए सर्वत्र मिलते हैं। और हां, राजस्थान में यही अकेला शहर मिला जहां ‘चुनाव’ का शोर भी सुनाई दिया।
जोधपुर की लड़ाई को चुनाव 2019 की प्रमुख लड़ाई माना जाना चाहिए। वैभव गहलोत कांग्रेस का चेहरा हैं, और भाजपा के मौजूदा सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत दूसरी तरफ है। दोनों के बीच यह बड़ा और कांटे का मुकाबला है। दोनों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है और यह लड़ाई इसलिए भारी है क्योंकि प्रदेश के मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री से परोक्ष मुकाबले में हर कोई मान रहा है। लड़ाई के लिए जिस तरह का करो-मरो बना हुआ है उससे वह समझा जा चुका है कि मुकाबला कोई आसान नहीं है।
गजेंद्र सिंह शेखावत पर दबाव उनके आत्मविश्वास के रूप में देखा जा सकता है। चुनाव प्रचार के उनके और पार्टी के कुछ प्रचार बोर्ड देख कर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। वैभव के अचानक इस सीट पर आ जाने को लेकर उनके भीतर की बेचैनी, उत्तेजना और आवेश छिपा नहीं रह रहा है। यह उनकी चिंता को दर्शाने के लिए काफी है। गजेंद्र सिंह ने 2014 में जोधपुर सीट चार लाख दस हजार इक्यावन वोटों के अंतर में जीती थी। उनकी ऐसी ज़ोरदार जीत का कारण तब मोदी लहर थी। लेकिन आज मोदी लहर गायब है और वैभव गहलोत का चेहरा सामने है। जोधपुर में अपने नए घर पर नया इंडिया के साथ एक मुलाकात में गज्जू बन्ना (आमतौर पर उन्हें इसी नाम से पुकारा जाता है) ने कहा – जोधपुर के लोगों से मेरा जुड़ाव सहज और पुराना है और इसीलिए मुझे पूरी उम्मीद है कि लोग मुझे पहले की तरह ही जिताएंगे।
क्या उन्हें वैभव गहलोत के चुनाव में उतरने से चुनौती नहीं मिल रही है, यह पूछे जाने पर गज्जू बन्ना कहते हैं – कोई खतरा या चुनौती नहीं है, सिर्फ एक बाधा है।
वे वैभव को अशोक गहलोत की छाया के रूप में देखते हैं, इसलिए उन्हें कोई खतरा नजर नहीं आता। वे इस बात को भी मानने को तैयार नहीं हैं कि यहां मोदी लहर नहीं है। बल्कि गज्जू बन्ना तो यह कहते हैं कि अगर 2014 में मोदी लोगों के लिए उम्मीद की एक किरण थे तो आज 2019 में यह उम्मीद की किरण एक विश्वास में तब्दील हो चुकी है। इसलिए उन्हें इस बात को लेकर पूरा विश्वास है कि नरेंद्र मोदी और जोधपुर की जनता से उनका पुराना जुड़ाव उन्हेें इस सीट पर एक बार फिर अच्छी जीत दिलाएगा।
लेकिन भाजपा में हर किसी के भीतर ऐसा भरोसा नज़र नहीं आ रहा है जैसा गज्जू बन्ना में है। स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं को इस बात का अहसास हो गया है कि इस बार भाजपा के लिए यहां की लड़ाई आसान नहीं है। ये मान रहे है कि इस बार यहां मोदी की पहली जैसी हवा नहीं है। तभी पार्टी कार्यकर्ताओं में भी कोई खास उत्साह नहीं है, बल्कि हताशा का भाव ही नज़र आ रहा है, खासतौर से उन लोगों के भीतर जो संघ से जुड़े रहे हैं। लोगों से बात करे तो उसमें भी लगता है कि हालात आज 2014 से उलट हैं।
तब नरेंद्र मोदी का जलवा अपने आप बनता चला गया था, जबकि आज वैसा ही जलवा बनाने के लिए कार्यकर्ताओं को जमकर मशक्कत करनी पड़ रही है, खासा वक्त और ऊर्जा लगानी पड़ रही है। जोधपुर में भी फिर से जाति के नाम चुनाव हो रहा है और यही सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है।
इन सबसे गज्जू बन्ना इत्तेफाक नहीं रखते है। वे इन सारे दावों को खारिज करते हैं। उनका स्पष्ट तौर पर स्थानीय मुद्दों में नंबर एक पर मानना है कि पीने के साफ पानी का मुद्दा सबसे बड़ा है। मोदी के संकल्प पत्र में नल से जल का वादा पूरा करने की बात है। वे अपना अभियान इसी के इर्दगिर्द चला रहे हैं। लेकिन हाल में जरा पटरी से उतर गए और एक चुनावी भाषण में उन्होंने राजस्थान सरकार के अफसरों को धमकी दे डाली। इससे वे आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में घिर गए और चुनाव आयोग ने उन्हेें नोटिस थमा दिया। मैं जिस दिन उनसे मिली थी, उस दिन वे इस नोटिस का जवाब तैयार करने के लिए अपनी टीम के साथ काम में जुटे थे। एक पीडि़त के तौर पर वे बोले – देखिए, मेरे खिलाफ सरकारी मशीनरी का कैसा दुरु पयोग किया जा रहा है।
तब ऐसे में क्या अशोक गहलोत को वे एक खतरे के रूप में देखते हैं? क्या अशोक गहलोत का निजी आकर्षण उनकी जीत के लिए रोड़ा बनेगा? उससे अवसर क्या मुश्किल बने है?
इस पर गज्जू बन्ना ने कहा – 22 अप्रैल को नरेंद्र मोदी जोधपुर आ रहे हैं। तब आपको पता चल जाएगा कि किसके अवसर मुश्किल या आसार है? कौन किसको झटका देगा?