किसानों की आय दोगुनी करने के वादे को नहीं निभा पा रही केंद्र सरकार, किसानों पर बढ़ रहा क़र्ज़
परेशानी और क़र्ज़ से बचने के लिए महँगी उर्वरक खादों की जगह जैविक खाद का उपयोग करें किसान
सरकार द्वारा 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा कब पूरा होगा यह कहना अब मुश्किल लगने लगा है। क्योंकि पिछले दिनों डाई अमोनियम फास्फेट यानी डाई पर एक साथ बढ़े 58.33 फ़ीसदी की बढ़ोतरी से यह तो तय है कि किसानों को कमरतोड़ महँगाई जीने नहीं देगी। पिछले दिनों से कुछ किसान यह कहते नज़र आ रहे हैं कि अब डाई लगाकर खेती करना बस की बात नहीं, फिर से गोबर की खाद बनाकर खेतों में डालनी होगी। किसान जिस खाद को खेतों में डालने की बात कर रहे हैं, उसे जैविक खाद कहते हैं। जैविक खाद लगाने से फ़सलें भी जैविक होंगी। पूरी दुनिया में इस बात पर लम्बे समय से ज़ोर दिया जा रहा है कि मानव स्वास्थ्य के लिए जैविक खाद्य पदार्थों की पैदावार करना बहुत ज़रूरी है।
इसमें कोई दो-राय नहीं कि फ़सलें उगाने के लिए जबसे उर्वरक खादों का उपयोग शुरू हुआ है, जो कि दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, तबसे बीमारियाँ भी तेज़ीसे बढ़ती जा रही हैं। इन दिनों कोरोना वायरस की महामारी से लडऩे के लिए डॉक्टर लोगों की रोगों से लडऩे की क्षमता यानी इम्युनिटी पॉवर की बात कर रहे हैं, जो कि अब लोगों में बहुत कम हो चुकी है। क्योंकि अब शुद्ध भोजन बहुत कम लोगों को नसीब हो पाता है। उर्वरक खादों से खेती करने का नतीजा यह है कि अब खाद्य पदार्थों में पहले जैसा स्वाद भी नहीं बचा है। ऐसे में अगर किसान उर्वरक खादों से खेती करने की बजाय जैविक खादों का उपयोग करेंगे, तो किसानों को महँगी खेती से निजात मिलने के अलावा क़र्ज़ से भी मुक्ति मिलेगी। किसानों का रोना यह है कि प्रधानमंत्री बनने से पहले जो नरेंद्र मोदी किसानों के हित की बातें करते थे, उनकी आय दोगुनी करते थे, अब कुछ और ही कर रहे हैं। उनके कार्यकाल में जिस तरह किसानों को सडक़ों पर उतरना पड़ा है, पहले कभी नहीं हुआ।
हाल यह है कि जो किसान एकजुट होकर मोदी पर भरोसा करके उन्हें दो-दो बार चुनकर संसद पहुँचा चुके हैं, वे अब किसी भी हाल में मोदी को सत्ता में नहीं देखना चाहते। इसकी वजह केवल बढ़ती महँगाई ही नहीं, बल्कि तीन नये कृषि क़ानून भी हैं, जिन्हें वे किसानों की ज़मीन छीनने का हथियार मान रहे हैं और इन सभी क़ानूनों को ख़त्म करने की माँगकर रहे हैं। यह अलग बात है कि डाई, उर्वरक, उन्नत बीजों, कीटनाशकों और डीज़ल के बढ़ते दामों के ख़िलाफ़ किसान अभी खुलकर नहीं बोल रहे हैं; लेकिन उनका विरोध अन्दर-ही-अन्दर पल रहा है, जो कि कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आन्दोलन के ज़रिये कभी भी फूट सकता है। मोदी सरकार इसे काफ़ी हल्के में ले रही है।
जैविक खेती से होगा फ़ायदा
कृषि विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट इरफ़ान कहते हैं किसानों को यह डर रहता है कि अगर वे खेतों में जैविक खादों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं करेंगे, तो फ़सल की पैदावार कम होगी और वह ख़राब भी हो जाएगी; लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। जैविक खेती अगर सही तरीक़े से की जाए, तो किसानों को अच्छी पैदावार मिल सकती है और फ़सलों में कीड़े भी नहीं लगेंगे। इरफ़ान कहते हैं कि दरअसल किसानों ने उर्वरक खादों और कीटनाशकों के उपयोग से भूमि को इतना कमज़ोर कर लिया है कि अगर वे सीधे जैविक खेती करना चाहें, तो हो सकता है कि उसमें एक-दो फ़सलें ख़राब भी हो जाएँ। मगर इससे उन्हें घबराना नहीं चाहिए, बल्कि फ़सलों की कटाई के बाद, जैसा कि अभी रवि की फ़सलें खेतों से लगभग उठ चुकी हैं; जैविक खाद डालें और खेत की जुताई करके उसकी एक बार सिंचाई कर दें और जब मिट्टी में हल्की नमी रह जाए, तो फिर एक बार अच्छी तरह खेतों की जुताई कर दें। इसके अलावा खेतों में चारे वाली फ़सलें बोकर उनके एक से दो फुट लम्बे होने पर उन्हें खेतों में जोतकर सिंचाई कर सकते हैं। ऐसा करने से खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और आगामी ख़रीफ़ की फ़सलों के लिए खेत अच्छी तरह तैयार हो जाएँगे। साथ ही किसान ध्यान रखें कि जहाँ तक सम्भव हो शुद्ध और प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करें, ताकि फ़सलों में कीट न लगें। इरफ़ान का कहना है कि किसानों को जानबूझकर उर्वरक खेती करने की ओर अग्रसर किया जाता है, ताकि उर्वरक खादों, कीटनाशकों और उन्नत बीजों के नाम पर ख़राब बीजों की बिक्री बढ़ायी जा सके।
इतना ही नहीं इसकी आड़ में नक़ली खादों, नक़ली कीटनाशकों और नक़ली बीजों की कालाबाज़ारी भी ख़ूब होती है। सीधे-साधे किसान इस षड्यंत्र को भाँप नहीं पाते हैं और अधिक पैदावार के लालच में इसका शिकार हो जाते हैं। इससे उनकी फ़सल भी ख़राब होती है और खेती भी महँगी पड़ती है।
महँगी होती खेती
पिछले ही दिनों सरकारी खाद कम्पनी इंडियन फॉर्मर फर्टीलाइजर कॉपरेटिव लिमिटेड यानी इफको ने डाई के एक 50 किलो के कट्टे पर सीधे 58.33 फ़ीसदी की बढ़ोतरी करके उसकी क़ीमत 1200 रुपये से बढ़ाकर 1,900 रुपये कर दी थी, लेकिन हंगामा होने पर इसे 1500 रुपये का कर दिया है। वहीं कुछ खादों पर 45 फ़ीसदी की बढ़ोतरी की है। इससे पहले दो कम्पनियों पारादीप फॉस्फेट लिमिटेड (पीपीएल) और गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर्स कॉर्पोरेशन (जीएसएफसी) ने डाई के क़ीमत 300 रुपये प्रति कट्टा बढ़ा दी थी। इफको द्वारा खादों के बढ़े हुए दामों की सूची इस प्रकार है :-
हालाँकि इफको ने यह भी कहा है कि नयी क़ीमतें बाज़ार में बेचने के लिए नहीं हैं और न ही इन्हें फ़िलहाल लागू किया जा रहा है। लेकिन जब खादों की क़ीमतें बढऩे की बात खुलकर सामने आयी है, तो यह तो तय है कि उर्वरक की क़ीमतें आज नहीं तो कल बढ़ेंगी-ही-बढ़ेंगी। क्योंकि इफको ने यह बात तब कही थी, जब इसका पूरे देश में जमकर विरोध हुआ। इफको ने यह भी सफ़ाई पेश की थी कि नये रेट नये स्टाक पर लागू होंगे। मज़े की बात यह है कि सरकार इस पर कुछ नहीं बोल रही है। किसान इसे किसानों के ख़िलाफ़ बड़ी साज़िश बता रहे हैं।
इफको ने ख़ुद कहा है कि उसके पास 11.26 लाख टन उर्वरक का पुराना स्टॉक है। अगर देश में डाई की सालाना खपत की बात करें, तो वह क़रीब 103 लाख मीट्रिक टन से अधिक है। इस हिसाब से इफको के पास का पुराना स्टाक तो कब का ख़त्म हो गया होगा। इरफान कहते हैं कि खेती में इन चीज़ो के इस्तेमाल के बाद किसान विवश हो जाते हैं और उर्वरक खादों की खपत बढ़ती जाती है। इरफ़ान की बात सही है, क्योंकि 2016-17 में देश में डाई की माँग 100.57 लाख टन थी, जो अब क़रीब तीन गुना हो चुकी है। इससे खेती अब महँगी होती जा रही है। यही वजह है कि किसान घर में पैदा होकर भी बच्चे गर्व महसूस नहीं करते और खेती से दूर भागते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि दिन-रात की मेहनत के बाद उनके परिवार नितांत अभाव की ज़िन्दगी जीते हैं। सवाल यह है कि अगर उर्वरकों के दाम बढ़ाये जा रहे हैं, तो सरकार फ़सलों के दाम क्यों नहीं बढ़ा रही? इसके अलावा सरकार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी क्यों नहीं दे रही है? यह भी बड़ा सवाल है कि जब किसानों के द्वारा उगाये गये खाद्य पदार्थों से कम्पनियों के द्वारा बनाये गये खाद्य पदार्थों पर अधिकतम समर्थन मूल्य छपा होता है, तो किसानों के साथ ठगी क्यों? किसानों से सस्ते में ख़रीदी गये खाद्य पदार्थों की क़ीमतें बाज़ार में आते-आते तीन से पाँच गुनी क्यों बढ़ जाती हैं?
जैविक खेती से होगी बचत
इरफ़ान कहते हैं कि जैविक खेती करने से किसानों की आर्थिक दशा बड़े आराम से सुधर सकती है। क्योंकि जैविक खाद्य पदार्थ महँगे बिकने के अलावा किसानों को जैविक खेती सस्ती पड़ती है। इसके लिए उनके घरों में पलने वाले पशु ही पर्याप्त हैं। घर में पशु-पालन से किसानों को दूध आदि से आमदनी होगी और उनके गोबर तथा मूत्र से बेहतर खेती करने में मदद मिलेगी, जो कि उन्हें उर्वरक खादों से बहुत ही सस्ती पड़ेगी। इससे उर्वरक खादों को ख़रीदने वाला किसानों का पैसा बचेगा और कीटनाशकों का पैसा भी बचेगा।