भारत में जेल को संविधान की सातवीं अनुसूची रखा गया है और इसे राज्य का विषय माना गया है। जेल अधिनियम, 1894 के तहत जेल का प्रबंधन, नियम-कायदे, दिशा-निर्देश व प्रशासन राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। केंद्र सरकार का काम जेलों की सुरक्षा को चाक-चौबंद, पुरानी जेलों की मरम्मत व नवीनीकरण, चिकित्सा सुविधाएँ, महिला अपराधियों को सुविधाएँ, व्यावसायिक प्रशिक्षण, जेल उद्योगों का आधुनिकीकरण, जेल कर्मियों को प्रशिक्षण आदि प्रदान करना है।
हमारे देश में केंद्रीय जेल, ज़िला जेल, महिला जेल, खुली जेल आदि जेलें हैं। दो साल से अधिक की सज़ा मिलने पर मुजरिम को केंद्रीय जेल में रखा जाता है। अच्छे बर्ताव वाले मुजिरिमों को खुली जेल में रखा जाता है। भारत में 31 दिसंबर, 2018 तक सक्रिय जेलों की कुल संख्या 1401 थी, जिनमें कुल 3,96,223 कैदी रह रहे थे। नई दिल्ली में तिहाड़ जेल भारत की सबसे बड़ी है, जिसका परिसर दक्षिण एशिया स्थित सभी जेलों से बड़ा है। इसे तिहाड़ आश्रम भी कहते हैं। इसका निर्माण वर्ष 1957 में हुआ था। इस जेल में 5,200 कैदियों को रखा जा सकता है। जेल में एक रेडियो स्टेशन भी है, जिसका संचालन वहाँ के कैदी करते हैं।
भारत में जेलों का इतिहास काफी पुराना रहा है। पौराणिक कहानियों में भी जेलों का ज़िक्र मिलता है। भगवान कृष्ण के माता-पिता को भी जेल में रखा गया था। ईसा मसीह का भी जेल से सम्बन्ध है। मौर्य काल हो या मुगलकाल या फिर आधुनिक काल, सभी कालखंडों में सज़ायाफ्ता मुजरिमों को जेल में रखा जाता था। आज हर देश में नागरिकों के लिए कानून है, जिसका पालन करना अनिवार्य होता है। देश के कानून का उल्लंघन करने वाले को, अगर वह अदालत में साबित होता है; तो मुजरिम करार देकर उसे सुधारने के लिए जेल भेजा जाता है।
जेलों में निरंतर सुधार हो रहे हैं। लेकिन अभी भी इस दिशा में बहुत-से काम करने बाकी हैं। भारत के जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में भारतीय जेलों में क्षमता से 14 गुना अधिक कैदी बन्द थे। वर्ष 2015 के बाद भी इन आँकड़ों में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिली है; लेकिन जेलों की संख्या में कुछ खास वृद्धि नहीं हुई है।
जेलों में बहुत-सी दूसरी विसंगतियाँ व खामियाँ भी हैं। जैसे- स्वास्थ्यवर्धक भोजन एवं स्वच्छ जल की व्यवस्था, सोने, शौचालय एवं स्नानागार की व्यवस्था आदि कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनमें सुधार की ज़रूरत है। जेल सांख्यिकी, 2015 के अनुसार, वर्ष 2015 में जेलों में अव्यवस्था के चलते 1,584 कैदियों की मौत हुई थी। जेलों की बदहाली का एक प्रमुख कारण अदालतों में बड़ी संख्या में मामलों का लम्बित होना भी है। 2017 तक देश की अदालतों में लम्बित मामले बढक़र 2 करोड़ 60 लाख से अधिक हो गये थे। एक अध्ययन के अनुसार, देश की जेलों में बन्द लगभग 70 फीसदी कैदियों का जुर्म तक साबित नहीं हो सका है। जेलों में कैदियों की अधिकता के कारण उन्हें पौष्टिक आहार व स्वच्छ वातावरण नहीं मिल पाता, जिससे कुछ कैदी अकाल मृत्यु के शिकार हो जाते हैं।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए वर्ष 2002-03 से नयी जेलों के निर्माण, मौज़ूदा जेलों की मरम्मत व नवीनीकरण, जेलों में स्वच्छता व स्वच्छ जल की आपूर्ति आदि कार्य करने पर निरंतर ज़ोर दिया जा रहा है। सरकार जेलों को डिजिटल बनाने की भी कोशिश कर रही है, ताकि इसकी मदद से जेल प्रबंधन, कैदी सूचना प्रबंधन प्रणाली आदि को मज़बूत बनाया जा सके। इससे कैदियों से सम्बन्धित सूचनाओं को एक जगह संग्रहित करने में भी मदद मिलेगी, जिसका उपयोग अपराधों को नियंत्रित करने में किया जा सकता है।
कैदियों को सुधारने के लिए जेल भेजा जाता है। ऐसे में अगर किसी भी वजह से उनके साथ अन्याय हो रहा है, तो उन्हें न्याय मिलना चाहिए। साथ ही अन्याय के कारणों को दूर करने की ज़रूरत है। वॢतका नंदा जेल सुधार को समर्पित ‘तिनका-तिनका’ आन्दोलन के ज़रिये ये कार्य करने की कोशिश कर रही हैं। वॢतका नंदा ने जेल के ऊपर तीन किताबें भी लिखी हैं, जो कैदियों के जीवन एवं जेल प्रशासन पर केंद्रित हैं। वॢतका यूट्यूब पर नियमित रूप से जेल समाचार अपलोड करती हैं, जिसमें कैदियों विशेषकर महिला कैदियों की समस्याओं एवं उनके द्वारा किये जा रहे कार्यों का विवरण होता है। जेलों में सुधार लाने की कोशिशों के लिए वॢतका को भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ‘नारी शक्ति’ सम्मान से सम्मानित कर चुके हैं। वॢतका को जेल सुधार के कार्यों को दो बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉड्र्स में भी दर्ज किया जा चुका है।
वॢतका के जेल समाचारों से पता चलता है कि कैदी कोविड-19 जैसे संकटकाल में बेहतर कार्य कर रहे हैं। वॢतका के अनुसार, केंद्रीय कारागार होशियारपुर तथा केरल, बड़ोदरा, अहमदाबाद, राजकोट जेलों में कैदी बड़े पैमाने पर मास्क और सेनिटाईजर्स बना रहे हैं; जिसकी आपूर्ति जेल के कैदियों, जेलकॢमयों व आम लोगों को की जा रही है। केरल जेल के कैदियों को वहाँ की सरकार ने मास्क और सेनिटाइजर्स बनाने का ऑर्डर दिया है। यह तो बानगी भर है। अमूमन कैदी कारपेंटर, खेती, पिलम्बर, कुम्हारी, सिलाई-बुनाई आदि का काम करते हैं। कई कैदी जेल में उच्च शिक्षा ले चुके हैं।
जेलों की मुख्य समस्याओं में जेलों में क्षमता से अधिक कैदी होना, विचाराधीन कैदियों की अधिक संख्या, बुनियादी सुविधाओं का अभाव, अपराध होना, महिला कैदियों तथा उनके बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था का अभाव, जेलकॢमयों की कमी, समुचित कानून व्यवस्था के निर्माण की कमी, प्रत्येक राज्य की जेलों में सुधार के लिए प्रतिबद्ध विभाग के गठन की कमी आदि प्रमुख हैं। इन पर काम करने की ज़रूरत है; ताकि कैदियों को समय पर न्याय मिल सके। जेलों में कैदियों के अंतर्मन को शुद्ध करने के साथ-साथ विभिन्न प्रशिक्षणों की भी ज़रूरत है, ताकि जेल से बाहर निकलने के बाद उन्हें रोज़गार मिल सके। इस दिशा में सरकार और तिनका-तिनका आन्दोलन के माध्यम से वॢतका जेल प्रशासन एवं कैदियों के जीवन में सुधार लाने के लिए शिद्दत से कोशिश कर रही हैं।