जुटे हैं अच्छा करने में

भारत के ढेरों पड़ोसी हैं। लेकिन पाकिस्तान अलग है। यह एक ऐसा पड़ोसी है जो अकेले ही भारत को तकलीफ देने अैर परेशान करने में जुटा रहता है। उसे इसकी भी परवाह नहीं होती कि इससे उसे लाभ होगा या इसके अपने हितों को नुकसान पहुंचेगा। इसके एक पूर्व प्रधानमंत्री ने तो कहा था कि भारत से अगर एक हज़ार साल भी लड़ाई छिड़ी रही तो घास खाकर भी गुजारा कर लेंगे।

ऐसे पड़ोसी से निभा पाना सहज नहीं है। भारत ही नहीं दूसरे पड़ोसी भी यही मानते हैं। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद में शिकायत की थी कि किस तरह यह अफगानिस्तान सरकार की अनदेखी करके तालिबान से सीधे संपक में है। यह न केवल तमाम शांति प्रयासों की अनदेखी करता है बल्कि अफगानिस्तान का सार्वभौमिकता और संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा प्रस्ताव 1989 का हनन भी करता है।

अभी हाल ईरान के 27 रिवाल्यूशनरी गार्ड मारे गए। रिवाल्यूशनरी गाडर््स के प्रमुख मेजर जनरल मोहम्मद अली जाफरी ने अपराधियों को सुरक्षित राह दिखाने के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। ‘क्यों पाकिस्तान की सेना और सुरक्षा बल क्रांतिविरोधी समूहों का साथ देते हैं? पाकिस्तान को ज़रूर एक बड़ी कीमत चुकानी होगी।’ जाफरी ने कहा।

पाकिस्तान आज एक कैनटोनमेंट या कहें मिलिट्री की बैरक की तरह है। जिसे इसकी सेना या आईएसआई नेतृत्व चला रही है। सैनिक-औद्योगिक कांप्लेक्स एक तरह की पाकिस्तान की सेनाओं में एक है जहां इस्लाम, राष्ट्रीय गौरव, भारत और अमेरिका पर संदेह का सिलसिला चल रहा है। यह दशकों से लिखा है स्टीव कोल ने डायरेक्टोरेट एस में। सेना में इस्लामी बदलाव और भारत के बात के चलते दशकों में भारत में आतंक का सिलसिला रहा। जुल्फिकार अली भुट्टो ने उस भारत की तस्वीर उभारी थी जिसमें भारत पर कटाव के हजारों जख्म लगे है और उनसे खून रिस रहा हो। पाकिस्तान आज भी उसी नीति पर चल रहा है। बिना यह देखते हुुए कि आज किसके पास राजनीतिक ताकत है, एक ताकत जो सिर्फ ख्याली पुलाव नहीं है। क्योंकि यह ताकत सेना और आईएसआई के पास है।

पाकिस्तान आज आतंकवाद का एक तरह से वैश्विक भूकंप का केंद्र बना हुआ है जो अब न तो रहस्य है और न गोपनीय ही है। सारी दुनिया यह जानती है। कोई भी इस बात को अमेरिकी ब्हाइट हाउस के बयान में पड़ सकता है जो सीआरपीएफ के दस्ते पर हुए हमले के बाद जारी हुआ।

‘संयुक्त राष्ट्र पाकिस्तान से कहना है कि वह सारे आतंकवादी समूहों को संरक्षण और समर्थन देना बंद करे जो इसकी धरती से सक्रिय हैं।

इनका कदम सिर्फ पूरे क्षेत्र में हिंसा और आतंक फैलाना है। ट्रंप के प्रेस सेके्रटरी की ओर से जारी इस बयान में यह कहा गया है। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने पाकिस्तान का नाम ज़रूर नहीं लिया लेकिन खुल कर जैश-ए-मोहम्मद को जिम्मेदार तो ठहराया है। यह एक संगठन है जो बहावलपुर पाकिस्तान में सक्रिय या पुलवामा हमले में।

पाकिस्तान को अब बदलना चाहिए। यह वैश्विक बदलाव की बात करता है। दुख तो यह है कि हमारे पास आतंकवाद की परिभाषा पर भी वैश्विक मतैक्य नहीं है। अपने हितों का ध्यान रखते हुए अमेरिका और चीन ने पाकिस्तान में इस राक्षस को संरक्षण देना बंद कर दिया है, खास कर सैन्य आईएसआई संस्थान को। पाकिस्तान के नेतृत्व ने दूहरी बातें करना और बातों से छकाने की कला में महारत हासिल कर ली है।

इस तमाम फसाद का केंद्र बिंदु है कश्मीर। दुर्भाग्य से भारत की बड़ी समस्या कश्मीर घाटी में  क्षेत्रीय आख्यान से है। जिसका लाभ पाकिस्तान को मिलता है।  यह अख्यान है अलगाव का – सहज या असहज – यह हालात पर निर्भर  है यानी अलगाव और बलिदान। कश्मीर के स्थानीय क्षेत्र अब भी इस बात से पूरी तरह रच-बस नहीं पाए हैं कि 70 साल बाद भी आज वे भारत के अभिन्न अंग हैं और देश के किसी भी नागरिक की ही तरह हैं। वे भारत के साथ अपने संबंध को खास मानते हैं। जिसके लिए उन्होंने बड़ा बलिदान 1948 में दिया था। उन्होंने पाकिस्तान के साथ नहीं बल्कि भारत के साथ रहने का फैसला लिया था। जिसके कारण भारत देश और लोग उनके हमेशा आभारी है।

कश्मीरियों की कई पीढिय़ां कश्मीर के क्षेत्रीय नेतृत्व के झूठ पर यकीन करती रहीं हैं। उनका मानना है कि अब जम्मू और कश्मीर ही नहीं बल्कि 540 आजाद राज्यों और रियासतों ने 1947-48 में उसी दस्तावेज के तहत शामिल होने का फैसला किया गया था जिसे ‘इंस्ट्रमेंट ऑफ एक्सेशन’ कहते हैं। आज ये देश के अभिन्न हिस्से हैं। लेकिन घाटी में अपने लोगों को यह नहीं समझाया जाता। इसकी बजाए उन्हें दर्जे की बात कही जाती है। वे भारतीय संविधान की धारा 370 का उल्लेख करते हैं। यह धारा अस्थाई और क्षणिक व्यवस्था थी। जो काफी समय चली। इससे घाटी में न केवल विमुख्ता बल्कि अलगाववाद को ही बल मिला। और ध्यान मे रखिए यह धारा पूरे जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए है। जम्मू और लद्दाख के भी उसी के हिस्से हैं वहां ऐसा क्यों नहीं है। क्योंकि इन क्षेत्रों के नेतृत्व ने यहां की जनता को यह बता रखा है कि पूरे देश की जनता की ही तरह वे भी भारत के अभिन्न अंग हैं।

एक आम कश्मीरी देश के किसी भी और नागरिक की ही तरह है। लेकिन नेता उसे आतंकवादी या अलगाववादी या पत्थर फेंकने वाले में तब्दील कर देते हैं। धारा 370 तब खत्म हो जब वहां की सरकार फैसला ले। लेकिन घाटी के इन नेताओं को साधना ज़रूरी है जो लगातार अलगाव का राग अलापते रहते हैं।

हमने इन्हें काफी वक्त दिया। इस उम्मीद से ज्य़ादा कामकाज होगा तो समन्वय खासा बनेगा दुर्भाग्य से कश्मीरी लोगों ने तो खुले दिल-दिमाग से अपने भारतीय होने को पसंद किया लेकिन क्षेत्रीय नेताओं ने हमेशा अलगाववाद की लौ जलाए रखी। अब समय आ गया है जब हम उन्हें घाटी में महत्वहीन कर दें। वैसे  ही जैसा राज्य के दो क्षेत्रों में कर पाए।   घाटी में वही आख्यान होना चाहिए जो भारतीय होने का है।

अब यह जिम्मेदारी देश की है। इसके नेताओं और जनता की। देश के लोगों को यह याद रखना चाहिए कि जब वे कहते हैं कि ‘कश्मीर हमारा है’ तो इसका यह भी मतलब है कि ‘हर कश्मीरी हमारा है’ यदि उसे बहकाया गया है, यदि वह शैतानी करे तो उसे सजा दो यदि वह धोखेबाज है तो उसे निकाल बाहर करो। लेकिन उसे बताओ कि वह भारतीय है। उसमें भारतीयता है। 125 करोड़ की जनसंख्या इतनी अशक्त नहीं है कि वह मुट्ठी भर आतंकवादियों और उनके मालिकों को दुरूस्त न कर सके। लेकिन असली ताकत किसी से घृणा में नहीं बल्कि उसके साथ सही राह पर चलने में है।

लेखक भाजपा के राष्ट्रीय सचिव

साभार: इंडियन एक्सपे्रस

letters@tehelka.com