इसे विडम्बना कहें कि सत्ता का नशा कि अपने ही लोगों की जासूसी, वो भी विदेशी एंजेसियों द्वारा? ऐसे में बवाल तो मचना स्वाभाविक था ही। भले ही सत्ता अपने पत्ते न खोले; लेकिन विपक्ष तो सवाल करके सरकार को कठघरे में खड़ा करेगा ही करेगा। संसद से लेकर सडक़ तक पेगासस जासूसी को लेकर हो-हल्ला हुआ। विपक्ष चिल्लाता रहा, सरकार अपने ख़ामोशी वाले अंदाज़ में सारा तमाशा देखती रही और कुछ नहीं हुआ। सवाल वहीं के वहीं हैं कि आख़िर जासूसी किसने करायी? क्यों करायी? सरकार जाँच से क्यों बच रही है?
पेगासस जासूसी को लेकर ख़ूब हंगामा हुआ, जिसके चलते संसद का मानसून सत्र सुचारू रूप से नहीं चल पाया। कई ज़रूरी विधेयक बिना बहस के पास हो गये। पारित हुए विधेयकों पर विपक्ष ने रोष और आपत्ति जतायी।
बताते चलें मीडिया रिपोर्ट के हवाले से यह बात सामने आयी थी कि इजराइली कम्पनी एनएसओ के स्पाईवेयर सॉफ्टवेयर के द्वारा भारत के 300 से अधिक मोबाइल उपयोगकर्ताओं की जासूसी की गयी है। इन लोगों में कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के अलावा कई अन्य नेता, दो केंद्रीय मंत्री और दर्जनों पत्रकार हैं। इस जासूसी कांड को लेकर पत्रकारों और विपक्षी नेताओं में रोष व्याप्त है। उनका कहना है कि सरकार संसद में स्पष्ट क्यों नहीं करती कि उसने एनएसओ समूह की सेवाएँ लीं या नहीं?
कुल मिलाकर पेगासस मामले पर सरकार ने अभी तक कोई रूख़ स्पष्ट नहीं किया है, जिसे लेकर जासूसी के निशाने पर आये तक़रीबन सभी लोगों की उँगलियाँ उधर ही उठ रही हैं। पेगासस को लेकर विपक्ष की तेज़धार को देखते हुए भाजपा सरकार के सहयोगी नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी बोलना पड़ा कि इस मामले में सरकार अपना रूख़ स्पष्ट करें, ताकि सच्चाई को सामने लाया जा सके। यानी इस मामले में विपक्ष को नीतीश का साथ मिला है। इस मामले पर नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि सरकार जानबूझकर बहुत कुछ छिपा रही है। जाँच से भाग भी रही है। यह एक प्रकार का देश का बड़ा घोटाला है। वह बेवजह देश का पैसा बर्वाद करके अपने ही देश के नेताओं और पत्रकारों की जासूसी करवा रही है। ऐसी घटनाएँ देश की छवि को कलंकित करती हैं।
पत्रकार कुमार प्रदीप ने ‘तहलका’ को बताया कि देश की सियासत में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। केंद्र सरकार सत्ता के नशे में इस क़दर चूर है कि वह अपनी कमियाँ छिपाने के लिए अपने ही मंत्रियों की जासूसी करवा रही है। इस मामले को लेकर भाजपा और सरकार के बीच भी मनमुटाव और अंतर्कलह बना हुआ है। इससे गम्भीर बात और क्या हो सकती है कि केंद्रीय मंत्री सफ़ार्इ तो दे रहे हैं; लेकिन संसद में बहस से बच रहे हैं। इससे शंकाएँ और गहरी हो रही हैं। अन्य पत्रकारों का कहना है कि इजराइली कम्पनी एनएलओ के स्पाइवेयर के माध्यम से दुनिया भर की सरकारों ने जासूसी की है। लेकिन मामले के इस क़दर तूल पकडऩे के बावजूद सरकार जासूसी मामले की चर्चा तक नहीं करना चाहती। जबकि इजराइल में इसकी गहनता से जाँच हो रही है। इससे भारत की केंद्र सरकार संदेह के दायरे में है। पत्रकारों का कहना है कि उनका धर्म है कि वे सरकार की कमियों को उजागर करें और उससे सवाल पूछें; चाहे वह किसी भी पार्टी की सरकार हो। लेकिन मौज़ूदा केंद्र सरकार उन्हें अपने निशाने पर ले रही है, जो कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर कुठाराघात है।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि कई बार दूसरों की जाँच के ज़रिये अपनी जाँच भी की जाती है। रही बात जासूसी की, तो पहले भी सरकारें जासूसी और फोन टेपिंग करवाती रही हैं। यह सियासत का हिस्सा है। जो भी हो, मगर यह तो साफ़ कि पेगासस जैसे गम्भीर मामले में सडक़ से लेकर संसद तक हुए विरोध को सरकार को सुनना चाहिए और इसे जाँच के दायरे में लाना चाहिए।
रेल, संचार तथा विद्युदाणविकी (इलेट्रॉनिकी) और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि पेगासस मामले में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। विपक्ष बेवजह दबाव बना रहा है।
वहीं कांग्रेस नेता अमरीश रंजन पांडे का कहना है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगी दल महँगाई, पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी के साथ-साथ किसान आन्दोलन की तरह पेगासस जासूसी मामले को चुनावी मुद्दा बनाएँगे। हम सब जनता के समक्ष सरकार की पोल खोलेंगे कि सरकार अपनों की जाँच विदेशी कम्पनियों से करा रही है, जो देश हित में नहीं है।