जाली प्रचार की खुली पोल!

आज भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और दूसरी राजनीतिक पार्टियां पूरी तौर पर चुनाव प्रचार में जुटी हुई हैं। केंद्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली ने जानकारी दी है कि कैसेएक ही दिन में तीन जाली प्रचार की पोल उन्होंने खोली वह भी एक ही दिन में। बता रहे है। भारत हितैषी

चुनाव प्रचार का तापमान अब भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के चुनावी प्रचार के चलते खासी ऊंचाई पर पहुंच गया है। वित्तमंत्री अरूण जेटली ने 21 मार्च को अपने ब्लॉग पर लिखा है कि ,”मैं लगातार यह मानता रहा हूं कि सच और गलती में जो मूलभूत अंतर होता है’। वह यह है कि सच आपस में जुड़ा रहता है जबकि झूठ बिखर जाता है। ‘कंपल्सियन कंट्रेरियंस’ की ओर एक समय में जो भी जाली प्रचार हुए उससे सच का ही बोलबाला हुआ। यह मतदाताओं का फैसला है या फिर न्यायिक तौर तरीका जिससे फैसला आया।

यूपीए मंत्री और नेताओं ने हिंदू आतंक की एक नई थ्योरी गढ़ी थी। उसे कंपल्सिन कंट्रेरियंस ने अपना लिया। जेहादी आतंक से ध्यान बंटाने की यह चाल है। यह एक साजिश थी जिसके तहत भारत के बहुसंख्यक समुदाय को बदनाम करने की चाल चली गई। आतंकवाद पर हिंदुओं को भी बराबरी पर रखा गया। हिंदू संस्कृति में तो आतंक की कोई जगह नहीं है। हम दुनिया भर में उन कुछ कामयाब देशों मे हैं जिन्होंने आतंक और देश के कई हिस्सो में विद्रोह पर काबू पाया। इसमें एक भी भारतीय न तो मारा गया और न कहीं धमाके के प्रयास में मारा गया या सीमा पार आतंकवादी हिंसा में गिरफ्तार ही हुआ।

जबकि यूपीए की शासन व्यवस्था में एक प्रयास किया गया था ‘हिंदू आतंक’ गढऩे का। इस अकेले प्रयास में एक वास्तविक आतंकवादी गिरफ्तार किया गया। सरकार में जब इस पूरे मामले में राय-मश्विरा हुआ तो एक आरोप पत्र बनाया गया जिसमें हिंदू समुदाय से जुड़े हुए लोगों के खिलाफ-आरोप बने। पिछली जांच से मिले तथ्यों के ठीक विपरीत थी यह प्रक्रिया। समझौता एक्सप्रेस धमाके की जांच में अमेरिकी विदेश विभाग और संयुक्त राष्ट्रसंघ तक ने अपनी जांच में यही संकेत दिया था कि कोई जेहादी संगठन और कुछ लोग 2007 में पानीपत में हुए धमाकों के लिए जिम्मेदार हंै। लेकिन तब की सरकार ने इसे ‘हिंदू साजिश’ करार दिया था। अदालत को अभी कल के फैसले से न्यायिक तौर पर ‘तथाकथित हिंदू आतंक’ की थ्योरी खारिज हो गई है।

 2002 में गोधरा ट्रेन में आग

गोधरा में 2002 में साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी एक प्रयास था राज्य में सामाजिक और संप्रदायिक तनाव बढ़ाने का। इस मामले के आरोपियों की पहचान हो गई है। अच्छा खासा प्रमाण भी मिल गया है। जो आरोपी थे उन्हें अलग-अलग समय पर गिरफ्तार किया गया। उन पर आरोप पत्र दाखिल हुआ। उनकी जमानत के आवेदन खारिज हो गए वे भी सुप्रीम कोर्ट में और कल ट्रायल कोर्ट ने उन्हें सज़ा भी दे दी।

बहुतेरे ‘कप्लसिव कंट्रेरियंस’ जिन्होंने अपना करियर गुजरात में सामाजिक तनाव बढ़ा कर ही बनाया है वे यह कहने लगे कि यह आगजनी या तो अपने आप लगी या फिर उसमें राज्य या फिर कार-सेवकों का हाथ है।

यूपीए सरकार के दौर में रेल मंत्रालय लालू प्रसाद यादव के जिम्मे था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से बिना राय-बात किए ही सुप्रीम कोर्ट के ही सेवानिवृत जस्टिस यूएन बनर्जी को रेलवे जांच का कमिश्नर नियुक्त कर दिया। जज ने भी फिर सरकार और उसकी राजनीतिक रूचि का सम्मान किया। एक रपट जमा की गई जिसमें बताया गया कि भीड़ ने कोई आगजनी नहीं की थी। आग डिब्बे के अंदर ही लगी थी जहंा हिंदू तीर्थयात्री थे। मैं मानता हूं कि एक अपराध को ढांपने की यह यूपीए सरकार पर पर लगा एक धब्बा था। इसके लिए तब की सरकार और उसके प्रधानमंत्री जिम्मेदार हैं। इस रिपोर्ट में साक्ष्यों तक अभाव है इसलिए उसका कोई महत्व नहीं। कल ट्रायल कोर्ट ने तमाम प्रमाणों की पड़ताल के आधार पर एक और आरोपी को सज़ा दी है।

नीरव मोदी की गिरफ्तारी

बैंकों से नीरव मोदी की धोखाधड़ी का पता केंद्र में भाजपा सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में पता लगा। हालांकि वह 2011 से ही सरकारी उपक्रमों के बैंकों को चूना लगा रहा था। अब वह विदेश भाग निकला। भारत सरकार के अनुरोध पर ब्रिटेन की स्कॉटलैंड यार्ड की पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया।

भारत में नीरव की अचल संपत्ति पर सरकारी कब्जा है। कुछ को नीलाम करके बैंक की ‘रिकवरी’ की कोशिश हो रही है। भारतीय जांच एजेसियां अपने कायदे -कानून के बरक्स छानबीन और कार्रवाई कर रही हैं। भारत सरकार को उम्मीद है कि देर-सवेर नीरव को भारत के हवाले ब्रिटिश सरकार कर देगी फिर अगली कार्रवाई होगी।

हमारे अनुरोध पर उसे गिरफ्तार किया गया उसे जमानत भी नहीं मिली। यह कहना गलत है कि वर्तमान सरकार उसका पक्ष ले रही है। गलत मुद्दों पर भरोसा करना उचित नहीं है।

अरूण जटेली ने अलग पोस्ट में लिखा है कि प्रिंट मीडिया पारंपरिक तरीके ही अपनाती है। हर खबर जो संवाददाता लाता है उसकी सत्यता की पुष्टि होनी चाहिए। पूरी सावधानी ज़रूरी है। दस्तावेज देखे जाने चाहिए। वैकल्पिक स्त्रोतों को टटोलना चाहिए। जबकि टेलीविजन ने यह परंपरा तोड़ी है। वहां टीआरपी पाने की जुगत में हर खबर खास न्यूज हो जाती है। सोशल मीडिया तो इन सब बातों को मानता तक नहीं। मानहानि एक अधिकार है और जिसे निशाना बनाया जा रहा है उसके सम्मान की कोई अहमियत नहीं। यदि किसी भी भाषण का एक हिस्सा प्रकाशन के लायक है तो सम्मान और इज्जत के साथ रहना भी जीवन का अधिकार है। दोनों ही जन्मसिद्ध अधिकार हैं।

गलत से मुकाबले के प्रयोग

गलत से मुकाबला करने की एक कोशिश गोधारा ट्रेन कांड में हुई थी। ‘आग अंदर ही लगी’ मूर्ख बनाया। इशरत जहां के मामले में जहां लश्कर-ए-तोएबा की साजिश को खुफिया विभाग ने नाकाम किया और सुरक्षा एंजेसियां कामयाब हुई। लेकिन आज जो गलत खबरों का सिलसिला है वह पीछे लगा रहा। उनका प्रचार जारी रहा। इसी तरह विजय माल्या और नीरव मोदी के मामले में। राफेल भी वैसा ही है। लेकिन राफेल और नीरव की कजऱ् माफी का हंगामा आज के दिनों के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। जेटली ने लिखा है कि निजी तौर पर वे बहुत ही दुखी हैं जब वे देखते हैं कि मीडिया का एक घराना राफेल की तुलना बोफोर्स जांच से कर रहा है।

 गलत बयानी से जालसाजी तक

मीडिया रपट से यह स्पष्ट है कि राजनीतिकों और दूसरे लोगों जिनके पास इतनी नकदी है जो वे बांटते रहते हैं। उनके खिलाफ ‘काला धन’ के तहत प्रचार किया जा रहा है। मीडिया में ही खबरों में आया कि कांग्रेस के एक नेता के पास इस संबंध में एक डायरी में पूरा ब्यौरा मिला है। इस डायरी में कांग्रेस पार्टी के परिवार को भी दूसरों की तरह पैसे मिले।

एक दूसरे कांग्रेसी के यहां कई स्थानों पर पड़े छापे में और भी जानकारियां सामने आई। मीडिया रपट के अनुसार उसका बैंक में खाता भी देखा गया। सीबीडीटी बयान के अनुसार अलग-अलग कागजों में लिखा ब्यौरा एक कांगे्रस नेता ने ही दिया था। जिसे बीएस येदुरप्पा की डायरी बता दिया गया। येदुरप्पा ने अपना आपा नहीं खोया और सब कुछ सही बता दिया। उन्होंने अपनी लिखावट और हस्ताक्षर भी अधिकारियों को छानबीन के लिए सौंपे। कांग्रेस नेता ने अब खुद को उन दस्तावेजों से निकाल लिया है। वह अब उस दस्तावेज की सच्चाई के बारे में कोई पुष्टि भी नहीं कर रहे हैं।

इन दस्तावेजों पर अब आरोप है कि ये कांग्रेस पार्टी और उसके नेता की ओर से की गई जालसाजी ही है। जिसे बीएस येदुरप्पा की डायरी की फोटा प्रति बता कर प्रचारित किया गया।

गलतबयानी और जालसाजी चुनावों को प्रभावित नहीं करती। मतदाता राजनीतिकों से ज़्यादा बुद्धिमान होते हैं। अरुण जेटली पूछते हैं, क्या कांग्रेस पार्टी अपनी विरासत के अनुरूप करम कर रही है? उन्होंने कहा, हमेशा वे यह मानते रहे हैं कि ‘डायनेस्टी’ परिवारवाद वाली राजनीतिक पार्टियां तीन दशकों से दुर्भाग्य की शिकार हुई हैं। फिर इस विचारधारा की बुनियाद कांग्रेस ने रखी थी। परिवारों ने हमेशा सांगठनिक ढांचे बर्बाद किए हैं। वे कभी प्रतिभाशाली नेताओं या ज़्यादा लोगों को पार्टी से नहीं जोड़ पाते। परिवार वाली पार्टियों में जहां लोकतांत्रिक ढांचा खत्म हो जाता है तो जब परिवार खत्म होता है तो परिवार के साथ भीड़ ही खड़ी दिखती है। चौधरी चरण सिंह ने सही लिखा था” दुनिया भर में पार्टियां नेता चुनती हैं। भारत में नेता ही पार्टियां बनाते हैं। जहां भी नेता जाते हैं। उनके साथ पार्टी भी चलती है।’

पारिवारिक पार्टियों में सबसे बड़ी एक कमी होती है। यदि आज की पीढ़ी ज़्यादा प्रतियोगी, करिश्माई है, और उसका भरोसा तो परिवार में ज़्यादा जीतें हासिल करना होता है। ऐसे नेता के पीछे पार्टी खड़ी रहती है। लेकिन यदि वर्तमान पीढ़ी करिश्माई नहीं है, लोगों का भरोसा नहीं जीत पाती है तो परिवार के साथ खड़ा जनसमूह निराश भी होता है। यही आज हाल है आज कांग्रेस का।

 कांग्रेस

पिछले पांच साल से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। इसके नेताओं और कार्यकर्ताओं को दफ्तर में ही रहने की आदत है। वे एक दूसरे की हार के अंदेशे में ही डरे रहते हैं। वे अपने राजनीतिक सलाहकारों पर भी यकीन नहीं करते। लेकिन कुछ जो गैर-पारंपरिक है वे कांग्रेसी नेताओं से भी अलग हैं। चूंकि किसी भी मुद्दे पर नेता ही बोल सकता है इसलिए भविष्यवाणी करने की संभावना भी बनी रहती है।

जो कांग्रेसी नेताओं को करीब से जानते हैं वे उन बयानों को बाहर सुनाते हैं। कुछ उदाहरण देखें ‘मैं क्या कर सकता हूं। वह सुनता भी नहीं’, ’24 मई के बाद तो हमारी राजनीति शुरू होगी।’, ‘मेरी इच्छा तो इस्तीफा देने की होती है।’’

‘हमारी चुनावी योजना पिछड़ रही है। अंकल बेग आ जाते तो संभल लेते’’।

”हमें 2024 की तैयारी करनी चाहिए’’।

ये संवाद बताते हैं कि परिवार की एक पीढ़ी हताश है।

भारत में तीन पार्टियां हैं जो गैर परिवारदवाद की कही जाती हैं। पिछले कुछ दशकों में भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी सरीखे नेता दिए। जब वामपंथी दलों में नई पीढ़ी ने कमान संभाली तो उसमें प्रकाश करात और सीताराम येचुरी नजऱ आए। लेकिन उनका प्रभाव सीमित है। हालांकि उनका दशकों का अनुभव और वैचारिक सोच है। फिर है जनता दल (युनाइटेड) यह भी गैर परिवारवादी पार्टी है। इसमें नीतीश कुमार बतौर मुख्यमंत्री तीसरी अवधि पूरी करेंगे। उनकी ही यह काबिलियत है कि उन्होंने बिहार में शासन की संस्कृति बदली।

नेेता जब अपनी क्षमता को गलत आंकते हैं

परिवार हमेशा नेता थोपते हैं। ये नेता कभी महान नहीं होते। महानता उन पर थोपी जाती है। अपनी क्षमता का सही आकलन न कर पाने के कारण उनके अंदर खुद को महान समझने की एक आदत पड़ जाती है। इससे दूसरे लोगों का वे ठीक आकलन कभी नहीं कर पाते। यही स्थिति आज कांग्रेस पार्टी में जान पड़ती है।

उम्मीदवारों की छानबीन

भाजपा की पहली सूची में दुबारा चुनाव लडऩे जा रहे उम्मीदवारों में 150 लोग हैं। इनमें 128 सांसद हैं। दूसरे 146 उम्मीदवार नए हैं। उनमें 34 ऐसे हैं जिन्होंने 2014 में (ज़्यादातर आंध्र में) चुनाव नहीं लड़ा। काफी सांसद ऐसे है जो दुबारा चुनाव नहीं लड़ेंगे। इनमें भी पांच सीटें जनता दल (यू) को बिहार में दी गई हे। इनमें एक सीट है जहां उपचुनाव नहीं हुआ था जब भोला सिंह की मौत हो गई थी। कुछ करिश्माई नेता लालकृष्एा आडवाणी, बंदारु दत्तात्रेय, कार्यामुडा और शांता कुमार चुनाव मैदान में नहीं है। अपनी इच्छा से उमा भारती और सुषमा स्वराज भी इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगी।

भाजपा ने कई वर्तमान सांसदों को फिर बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक में उतारा है। जिन स्थानों पर भाजपा ने 2014 में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया उन्हें बदला गया।

उधर कांग्रेस ने ज़्यादातर नए चेहरे उतारे हैं। इसमें 150 नए प्रत्याशी मनोनीत किए है। इनमें वे 11 सीटें भी हैं जहंा 2014 में इन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। सिर्फ 68 कांग्रेसी उम्मीदवार जो 2014 में उम्मीदवार थे वे चुनाव लड़ रहे हैं इनमें 22 सांसद हैं। आठ सांसद बाहर हैं जिनमें केबी थामस और केसी वेणुगोपाल केरल के है। और मौसम नूर पश्चिम बंगाल से हैं। कांग्रेस ने आंध्र, केरल, महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश में काफी नए चेहरे उतारे हैं।

महिलाओं के लिए स्थान

महिला प्रतिनिधत्व के मामले में दोनों ही पार्टियों ने ंगभीरता से काम नहीं किया। भाजपा ने 2014 में 38 महिला उम्मीदवारों (सभी प्रत्याशियों में 8.9 फीसद) को उतारा। जबकि कांग्रेस ने 60 महिलाओं को (सभी प्र्रत्याशियों का 12.9 फीसद) चुनाव क्षेत्र में उतारा।

भाजपा अब तक 36 टिकट महिला उम्मीदवारों को दे सकी है। जबकि कांग्रेस इस बार पिछड़ी है। इसने 26 टिकट दिए हैं।

मुस्लिम उम्मीदवार

कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवारों को 32 टिकट दिए थे। जबकि भाजपा ने सात को ही स्थान दिया। अब तक कांग्रेस ने 18 मुस्लिम उम्मीदवारों को स्थान दिया है। इनमें उत्तरप्रदेश (आठ) आंध्र (चार) बंगाल (तीन)। जबकि भाजपा ने पहले मुस्लिम उम्मीदवारों को ही टिकट दिए हैं। इनमें कश्मीर (तीन) आंध्र, बंगाल और लक्षद्वीप में एक ही है।

प्रचार कार्य में आगे है भाजपा

चुनाव एकदम करीब आ गए हैं। भारतीय जनता पार्टी बड़ी तेजी से विभिन्न माध्यमों से चुनाव प्रचार में लगी है। भाजपा राष्ट्रीय सुरक्षा, विकास कार्यो पर विशेष फोकस कर रही है।

कांग्रेस का प्रचार

भाजपा के मुकाबले कांग्रेस अपने पारंपरिक तरीके से चुनाव प्रचार कर रही है। कांग्रेस गरीबी हटाओ पर प्रमुखता देगी। बेरोजग़ारी, नोटबंदी, जीएसटी आदि इसके खास मुद्दे हैं।

मुकाबला रोचक है।

भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां चुनाव मैदान में हैं। भाजपा खासे मुकाबले में हैं। विपक्षी दलों चुनाव से पहले ‘महागठबंधन’ नहीं कर सकें। इसका लाभ भाजपा को होगा। भाजपा के साथ महागठबंधन में 29 पार्टियां हैं। इसका लाभ मिलेगा। कांग्रेस के साथ सिर्फ 17 पार्टियां हैं जिनका मकसद मोदी को परास्त करना है।