जानलेवा रही तालाबन्दी

कोरोना महामारी के दौरान 10 फ़ीसदी ज़्यादा लोगों ने आत्महत्या की, यानी हर रोज़ 418 लोगों ने दी जान

देश में आत्महत्याएँ करने की संख्या बढ़ रही है। एनसीआरबी की 2020 की रिपोर्ट में जो इससे भी ज़्यादा चिन्ताजनक बात है वह यह कि कोरोना-काल में हुई तालाबन्दी के दौरान देश भर में आत्महत्याओं का ग्राफ सीधे 10 फ़ीसदी बढ़ गया है। दूसरी चिन्ताजनक बात यह है कि सन् 1967 के बाद सन् 2020 में आत्महत्यायों के सबसे अधिक मामले हुए हैं। अच्छे दिन वाले देश में सन् 2020 में हर रोज़ 418 लोगों ने आत्महत्या कर ली।

चिन्ताजनक पहलू यह भी है कि आत्महत्या करने वालों में ज़्यादातर छात्र और छोटे उद्यमी हैं। ज़ाहिर है अनियोजित तालाबन्दी के नुक़सान के गम्भीर नतीजे अब धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट पूरे साल की घटनाओं पर आधारित है। यह वह कालखण्ड है जब देश में लम्बे और अनियोजित तालाबन्दी के कारण लाखों छोटे उद्योग-धन्धे चौपट हो गये और करोड़ों लोग रोज़गार से हाथ धो बैठे। इनमें से ज़्यादातर को अभी तक दोबारा रोज़गार नहीं मिल पाया है।

एनसीआरबी की रिपोर्ट-2020 के जनवरी से दिसंबर तक में हुई घटनाओं पर आधारित है। रिपोर्ट कहती है कि एक साल में आत्महत्या के कुल 1,53,052 मामले सामने आये। पिछले 53 साल में आत्महत्यायों का यह आँकड़ा सबसे बड़ा हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के चौंकाने वाले आँकड़े कहते हैं कि 2019 के मुक़ाबले 2020 में व्यापारियों की आत्महत्यायों की संख्या चिन्ताजनक 50 फ़ीसदी ज़्यादा हो गयी। आत्महत्यायों की किसी भी श्रेणी में यह सबसे बड़ा उछाल है।

देश में आत्महत्या करने वालों की संख्या 2019 के मुक़ाबले 2020 में बढ़ गयी। आँकड़ों के मुताबिक, देश में 2020 में प्रति लाख आबादी पर आत्महत्या संख्या 2019 के मुक़ाबले 10.4 फ़ीसदी से बढक़र 11.3 फ़ीसदी हो गयी। रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में देश में हर रोज़ 418 लोगों ने अपनी ज़िन्दगी ख़त्म कर ली।

देश में मार्च, 2020 में जल्दबाज़ी में रात 8 बजे घोषित देशव्यापी तालाबन्दी ने करोड़ों लोगों को सडक़ पर ला पटका। रोज़गार से जुड़े लाखों धन्धे बन्द हो गये।

महामारी ने 2020 में ज़मीन पर ज़िन्दगियाँ तो लील ही लीं, करोड़ों ज़िन्दा लोगों के सामने दो जून की रोटी का बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। तबाही का अंदाज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि 2019 की तुलना में 2020 में आत्महत्या करने वालों में किसानों से अधिक व्यापारी रहे। साल 2020 में महामारी के कारण आर्थिक संकट के काले काल के दौरान व्यापारियों की हत्या बताती है कि सरकार लोगों के रोज़गार को नाकाम रही।

एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 के एक ही साल में 10,677 किसानों की तुलना में 11,716 छोटे-बड़े व्यापारियों ने आत्महत्या जैसा क़दम उठाया। इन 11,716 मौतों में आत्महत्या करने वाले 4,356 ट्रेड्समैन थे और 4,226 वेंडर्स यानी विक्रेता थे। बाक़ी मरने वाले लोगों को अन्य व्यवसायों की श्रेणी में रखा गया है। ये तीन समूह हैं, जिन्हें एनसीआरबी आत्महत्या रिकॉर्ड करते समय व्यापारिक समुदाय के रूप में मानता है। सन् 2019 की तुलना में 2020 में कारोबारी समुदाय के बीच आत्महत्या के मामलों में 29 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई। इस बीच व्यापारियों के बीच आत्महत्या 49.9 फ़ीसदी की उछाल के साथ 2019 में 2,906 से बढक़र 2020 में 4,356 हो गयी।

हाल के दशकों में किसानों ने देश में सबसे ज़्यादा आत्महत्याएँ की हैं। यह व्यापारिक समुदाय से कहीं कम थी। आँकड़े साफ़ ज़ाहिर करते हैं कि व्यापारी कोरोना महामारी और तालाबन्दी के बाद पैदा हुए घोर आर्थिक संकट से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए और बड़ी संख्या में उन्हें तनाव या डिप्रेशन झेलना पड़ा। जानकारों के मुताबिक, तालाबन्दी के दौरान छोटे व्यवसायों और व्यापारियों को बड़ा नुक़सान हुआ है और इनमें से कई अपने धन्धे समेटने को मजबूर हो गये।

किसानों की दशा ख़राब

 

तमाम सरकारी दावों के बावजूद देश में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला भी बदस्तूर जारी है। एनसीआरबी के आँकड़े ज़ाहिर करते हैं कि सन् 2020 में 2019 की अपेक्षा किसानों (किसान और कृषि मज़दूर) की आत्महत्याओं के मामले लगभग 4 फ़ीसदी बढ़े हैं। यही नहीं देश में कृषि मज़दूरों की आत्महत्या के मामले 18 फ़ीसदी बढ़े हैं। वैसे राज्यों की बात करें, तो महाराष्ट्र 4,006 आत्महत्याओं के साथ सूची में सबसे ऊपर है। इसके बाद कर्नाटक में 2,016, आंध्र प्रदेश में 889, मध्य प्रदेश में 735 और छत्तीसगढ़ में 537 कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों ने आत्महत्या की है।

एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि किसानों और कृषि मज़दूरों में आत्महत्या के मामले रुकने की जगह बढ़ रहे हैं। देश में सन् 2020 के दौरान कृषि क्षेत्र में 10,677 लोगों की आत्महत्या की जो देश में कुल आत्महत्याओं (1,53,052) का 7 फ़ीसदी है। इसमें 5,579 किसान और 5,098 खेतिहर मज़दूरों की आत्महत्याएँ दर्ज हैं।

वैसे 2016 से 2019 के बीच चार साल तक इन आत्महत्यायों में गिरावट दर्ज होने के बावजूद कृषि क्षेत्र में आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। सन् 2016 में कुल 11,379 किसान और कृषि मज़दूरों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2017 में इसमें गिरावट आयी और संख्या 10,655 रह गयी। सन् 2018 में 10,349 तो 2019 में इस तरह के आत्महत्या के कुल 10,281 मामले सामने आये थे, जबकि सन् 2020 में यह मामले 10,677 हो। गये।

कृषि मज़दूरों की हालत भी देश में जगज़ाहिर है। यदि सन् 2019 से सन् 2020 की तुलना करें, तो सन् 2019 में 5,957 किसान और 4324 कृषि मज़दूरों ने आत्महत्या की थी, जबकि सन् 2020 में यह आँकड़ा क्रमश: 5,579 और 5,098 रहा। यानी कृषि मज़दूरों की आत्महत्या के मामले सन् 2020 में बढ़े हैं। सन् 2020 में आत्महत्या करने वाले 5,579 किसानों में से 5,335 पुरुष थे और 244 महिलाएँ थीं, जबकि आत्महत्या करने वाले 5,098 कृषि मज़दूरों में 4621 पुरुष और 477 महिलाएँ थीं। किसान आन्दोलन के गढ़ पंजाब और हरियाणा में भी स्थिति बदतर है। पंजाब में साल भर में 257 जबकि हरियाणा में 280 आत्महत्या मामले दर्ज हुए। पश्चिम बंगाल, बिहार, नागालैंड, त्रिपुरा, उत्तराखण्ड, चंडीगढ़, दिल्ली, लद्दाख, लक्षद्वीप और पुडुचेरी में शून्य आत्महत्या मामले दर्ज हुए। रिपोर्ट में किसानों और कृषि मज़दूरों को विभाजित करके आँकड़े बताये गये हैं। किसान उन्हें बताया गया है जिनके पास ख़ुद की ज़मीन है और खेती करते हैं। कृषि मज़दूर वे हैं, जिनके पास अपनी ज़मीन तो नहीं; लेकिन उनकी आय का साधन दूसरे किसानों के खेत में काम करके अपनी आजीविका कमाना है।

अवसाद बढ़ा

क़रीब 68 दिन के पहले सबसे लम्बे तालाबन्दी ने देश की निचली आबादी की कमर तोड़ कर रख दी। लोगों में इस दौरान अवसाद बढ़ गया और अत्महत्या के मामलों में आश्चर्यजनक उछाल देखने को मिला। रिपोर्ट से यह भी ज़ाहिर होता है कि तालाबन्दी में सबसे अधिक प्रभावित वे छात्र भी रहे, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। इनमें से कई ऐसे थे, जिनके करियर की उम्र ख़त्म हो रही थी और वही सबसे ज़्यादा अवसाद की चपेट में आये।

इस दौरान न तो स्कूल-कॉलेज खोले गये और न ही दुकान खोलने की इजाज़त दी गयी। शिक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट ज़ाहिर करती है कि भारत में अभी भी 2.9 करोड़ छात्रों के पास डिजिटल उपकरणों की पहुँच नहीं है। ऑनलाइन शिक्षा जारी रखने के लिए संसाधनों का उपयोग करने में असमर्थता के कारण छात्रों के आत्महत्या करने की कई रिपोट्र्स आयी हैं। हर साल आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या कुल आँकड़ों का सात से आठ फ़ीसदी होता था, जो साल 2020 में बढक़र 21.2 फ़ीसदी हो गया है। इसके बाद प्रोफेशनल लोगों की संख्या 16.5 फ़ीसदी, दैनिक वेतन पाने वाले 15.67 फ़ीसदी और बेरोज़गार 11.65 फ़ीसदी के आसपास थे।

उधर छोटे उद्यमी, जिन्होंने बैंक कज़ऱ् और अन्य माध्यमों से उद्यम शुरू किया था, तालाबन्दी में उनका कामकाज चौपट हो गया। क़र्ज़ का बोझ ऊपर से आर्थिक तंगी। नतीजे में कई उद्यमियों ने आत्महत्या का रास्ता अपना लिया। विशेषज्ञों के मुताबिक, तालाबन्दी तनाव का सबसे बड़ा ज़रिया बना।

महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा आत्महत्याएँ

एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में सबसे ज़्यादा आत्महत्याएँ महाराष्ट्र में हुईं। वहाँ 19,909 लोगों ने अपनी जान दी। तमिलनाडु में 16,883, मध्य प्रदेश में 14,578, पश्चिम बंगाल में 13,103 और कर्नाटक में 12,259 लोगों ने 2020 में आत्महत्या कर ली। एनसीआरबी की रिपोर्ट में मुताबिक, कुल आत्महत्याओं में  अकेले इन पाँच राज्यों में ही 50.1 फ़ीसदी लोगों ने आत्महत्या का रास्ता अपनाया। अन्य आत्महत्या मामले  जो 49.9 फ़ीसदी आत्महत्याएँ अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हुईं। इस लिहाज़ से देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश सही है। वहाँ 3.1 लोगों ने आत्महत्या का रास्ता अपनाया। यह आँकड़े इस लिहाज़ से अपेक्षाकृत कम लगते हैं कि देश की कुल आबादी के 16.9 फ़ीसदी जनता उत्तर प्रदेश में है। केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली में सबसे ज़्यादा 3,142 लोगों ने ख़ुदकुशी की। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 2020 में आत्महत्या करने वाले लोगों में से कुल 56.7 फ़ीसदी लोगों ने पारिवारिक समस्याओं (33.6 फ़ीसदी), विवाह सम्बन्धी समस्याओं (पाँच फ़ीसदी) और किसी बीमारी (18 फ़ीसदी) के कारण आत्महत्या की।

आत्महत्या के कारण

तालाबन्दी बढऩे के बाद देश में आत्महत्या बढऩे के मामले बढऩे का ख़तरा जताया गया था। एक सर्वे के मुताबिक, तालाबन्दी में भारत के लोगों का मानसिक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है। सर्वे के मुताबिक, हर पांच में से एक भारतीय मानसिक बीमारी से जूझ रहा है। लॉकडाउन की घोषणा के बाद कमोवेश पूरी आबादी प्रभावित हुई। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक लाखों लोग बेरोज़गार हुए। इस कारण से लोगों को कई गम्भीर तनावों और रोगों ने घेर लिया है। चिकित्सा जानकारों के मुताबिक, देश में कई ऐसे मामले भी दिखे, जिनमें ऐसे लोगों जो जीवन में कभी मानसिक रोग से नहीं जूझे, वे भी आज परेशानियों का सामना कर रहे हैं। मनोविज्ञानियों के मुताबिक, महामारी के कारण बच्चे भी मानसिक रूप से प्रभावित हुए हैं। इंडियन साइकेट्री सोसायटी (आईपीएस) का एक सर्वे ज़ाहिर करता है कि तालाबन्दी के बाद मानसिक बीमारी के मामले 30 फ़ीसदी तक बढ़े हैं। आज हर पाँचवाँ व्यक्ति मानसिक बीमारी से जूझ रहा है। आईपीएस का कहना है कि बार-बार के तालाबन्दी से आर्थिक परेशानियाँ बढ़ी हैं। इसके अलावा आइसोलेशन ने देश में नया मानसिक संकट पैदा किया है। इन सबसे आत्महत्या के मामले बढ़े हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अब मानसिक स्वास्थ्य का असर दिख रहा है। वैसे यह संकट काफ़ी देर से चल रहा है और लोग भटकते जा रहे हैं। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, बढ़ती घरेलू हिंसा और आइसोलेशन के कारण बच्चों में मानसिक बीमारी बढऩे का ज़्यादा जोखिम है। दिलचस्प बात यह भी है कि तालाबन्दी दौरान भारत में शराब न मिलने के कारण भी लोगों ने आत्महत्या की। वैसे देश में सन् 2017 में केंद्र सरकार ने मेंटल हेल्थकेयर एक्ट लागू किया था। इसके तहत नागरिक सरकारी मदद से अपना मानसिक इलाज करा सकते हैं।