जातीयता पर बँटी भारतीय राजनीति

गाँधी जयंती पर बिहार द्वारा जारी किये गये जाति सर्वेक्षण में 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले राजनीतिक कथानक को नया रूप देने की क्षमता है। 2024 के आम चुनाव से पहले विपक्ष द्वारा भाजपा की वैचारिक राजनीति पर पहचान की राजनीति करने के लिए यह एक ‘मेक या ब्रेक’  का हथकंडा लगता है।

‘तहलका’  के मौज़ूदा अंक की कवर स्टोरी इसी राजनीतिक गुगली पर केंद्रित है, जिसके कारण विभिन्न जातियों के लिए उनकी आबादी के अनुपात में कई राज्यों में संशोधन के लिए जाति स्तर पर जनगणना की माँग अब उठने लगी है। राजस्थान पहले ही राज्य में राजनीतिक विमर्श को प्रभावित करने के लिए जाति सर्वेक्षण कराने की घोषणा कर चुका है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलावा तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। जातिगत जनगणना का मुद्दा इन राज्यों में विमर्श को प्रभावित करने वाला है; क्योंकि यह सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लक्षित वितरण और कोटा के आधार पर शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण में आनुपातिक हिस्सेदारी की माँग को प्रभावित कर सकता है।

यह सब संभवत: तीन दशक से अधिक समय के बाद ‘मंडल-2.0’ राजनीति की शुरुआत का संकेत देने के क़रीब है। इससे पहले 7 अगस्त, 1990 को तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने सन् 1980 के मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की घोषणा की थी। जब सन् 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य श्रेणी में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत कोटा के लिए 2019 के संविधान संशोधन को बरक़रार रखा, तो ओबीसी कोटे की सीमा बढ़ाने की माँग उठ रही थी। इस क़दम के निहितार्थ बहुत बड़े हैं; क्योंकि बिहार सर्वेक्षण के आँकड़ों ने राज्य में पिछड़े वर्गों की आबादी 63.13 प्रतिशत बतायी है। सरकारी सर्वेक्षणों के अनुसार, जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें राजस्थान में ओबीसी की आबादी 42 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 48 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 43.5 प्रतिशत है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सभी राजनीतिक दल ओबीसी की आवाज़ उठा रहे हैं।

सरकारी योजनाओं के पिछड़े लाभार्थियों और भगवा पार्टी में ओबीसी को राजनीतिक स्थान देने के आँकड़ों को सामने रखकर सत्तारूढ़ दल ने विपक्ष के ओबीसी आन्दोलन का जवाब देने की योजना बनायी है और कहा है कि जहाँ तक भाजपा का सवाल है, उसके 29 प्रतिशत सांसद और उसके क़रीब 40 प्रतिशत विधायक और विधान परिषद् सदस्य ओबीसी हैं। इसी तरह 75 केंद्रीय मंत्रिपरिषद् में से 27 ओबीसी हैं।

हाल तक सभी दलों और राज्यों में जनकल्याणवाद एक आम विषय के रूप में उभरा था; लेकिन जातिगत जनगणना लोगों को मुफ़्त उपहार देने वाली पार्टियों से ध्यान हटाकर उन्हें और विभाजित कर सकती है। अब तक जाति सर्वेक्षण की माँग राजनीतिक और सामाजिक रूप से अस्थिर आबादी में एक और असंतोष पैदा करने के समान प्रतीत होती है। विचार यह होना चाहिए कि सामाजिक न्याय के उद्देश्य की सेवा की जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लाभ क्रीमी लेयर तक सीमित रहने के बजाय समाज के सबसे वंचित वर्गों तक पहुँचे। और दरारें पैदा करने के बजाय समावेशी लोक कल्याण सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर ज़ोर हो।