जाऊं कि न जाऊं!

जाऊं कि न जाऊं! जाने पर खतरा है न जाने पर भी खतरा! करूं तो क्या करूं! जाने दो, छींटाकशी तो रोज की बात है. हां, मगर कल तो छेड़खानी हुई है, बाकायदा छेड़खानी. टच करने की कोशिश की है! अगर ऐसे ही चुप रही तो कल को बात और बढ़ जाएगी! तो फिर क्या करूं, चली जाऊं क्या?

क्या जाऊं! इस बात की क्या गारंटी कि वे भी इसे गंभीरता से लेंगे. आजकल छेड़खानी को कौन गंभीरता से लेता है. अगर लोग इसे गंभीरता से लेते तो ऐसी घटना आम नहीं होती. ऐसी घटनाओं पर जिम्मेदारों का तब तक ध्यान नहीं जाता है, जब तब वह वीभत्स रूप न ले ले या फिर जिसके साथ घटना हुई हो, वह कोई विशिष्ट हो. तो फिर न जाऊं! हाय राम! मैं ऐसा सोच भी कैसे सकती हूं! अकेले जाने का ख्याल आया भी तो आया कैसे! किसी को अपने साथ ले लेती हूं, मगर कौन चलेगा मेरे साथ. हर किसी को अपनी जान प्यारी होती है. कई तो मेरे जैसे होते हैं जिनको जान से ज्यादा अपनी इज्जत प्यारी होती है. फिर कोई वहां क्यों जाना चाहेगा? क्या करूं! अगर मैं वहां गई और मां-बाप को पता चल गया, तो मेरी घर वापसी का टिकट कटना तय है. घर वापस चली जाऊं! क्या रखा है यहां. दिन भर खटने के बाद आखिर मिलता ही कितना है. घर वापस जाकर करूंगी भी क्या. कैसा समाज है, कैसे लोग हैं. कल जब मैंने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार का विरोध किया था, वहां कौन बोला था. अगर लोग बोलने लगे, तो हम जैसों को क्या जरूरत है, वहां जाने की. इत्ते बेवकूफ तो नहीं है हम कि बैल से कहें कि आ बैल मुझे मार!

मगर ऐसा कितने दिनों तक चलेगा? वहां जाना तो पडे़गा ही. अरे कोई जबरदस्ती है क्या भाई! जाओ नहीं जाती. हां, मगर कल को फिर कोई ऐसी-वैसी घटना हो गई तो! तब मैं क्या करूंगी! कहीं कोई कांड हो गया, तो कल को लोग यही कहेंगे कि आप हमारे पास आई क्यों नहीं. सही बात है, तो चली जाती हूं. चली ही जाती हूं! वहां चली तो जाऊं, मगर न जाने कैसे-कैसे सवाल पूछेंगे. कैसे पूछेंगे! कैसी नजरों से देखेंगे! मेरे बारे में क्या सोचेंगे! वहां जा कर पछताना न पडे़! कहीं पूछताछ के बहाने बार-बार बुलाए न! यह भी हो सकता है कि पूछताछ के बहाने रात-बिरात घर ही आ धमके! कहीं वहां मेरे साथ ऐसा-वैसा कुछ हो गया तब! तब कहां जाऊंगी!

मैं आज की नारी हूं. अपने अधिकारों को अच्छी तरह से जानती हूं. मैं नहीं लडूंगी तो कौन लडे़गा. अगर वहां कुछ ऐसा-वैसा मेरे साथ हुआ, तो उन्हें मुंहतोड़ जवाब दूंगी. मगर ऐसी नौबत ही क्यों आए. जब यही करना है, तो वहां जाने की जरूरत ही क्या है! हां, तो वे अपनी तनख्वाह भी हमें दे, जब उनका भी काम हमें ही करना है! अरे यार, मैं वहां जाने की सोच ही क्यों रही हूं! ऐसा करती हूं बॉडी गार्ड रख लेती हूं. तब जाती हूं वहां पर. सेफ रहूंगी. या फिर ऐसा करती हूं कि पहले एक गन खरीदती हूं, फिर वहां जाती हूं. अरे यार कैसे-कैसे आइडिया आ रहे हैं! क्या करूं! अकेले जाऊं या किसी को साथ ले जाऊं ? पहले किसी से फोन करवा देती हूं. मगर किससे! मेरे जाने में इतने रुतबे वाला कौन है! छोड़ो! कल देखते हैं. कल अगर ऐसा हुआ तो चलेंगे थाने में रपट लिखाने. नहीं यार, कल छेड़खानी न हो जाए! रपट लिखाने जाऊं तो कहीं रपट ही न जाऊं! उफ! पता नहीं छेड़खानी समस्या है कि उसकी रपट लिखवाना!  वह न जाने कब से थाने जाने के बारे में सोच रही है और न जाने कब तक सोचती ही रहेगी…

-अनूप मणि त्रिपाठी