दुनिया की सबसे खतरनाक और खौफनाक बीमारी बन चुके कोरोना वायरस का इलाज अभी तक नहीं मिल पाया है। इसका तोड़ या इलाज तो फिलहाल नहीं मिला है, लेकिन डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने इस वायरस की आसान जाँच के दावे करने शुरू कर दिये हैं। हालाँकि, दुनिया भर में इस वायरस से निपटने के लिए की गयी खोजों में भी अभी एक ही नतीजा सामने आ रहा है और वह है कोरोना वायरस की चपेट में आने से खुद को बचाना। इसी बीच भारत में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) और अखिल भारतीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद् (एआईसीटीई) ने कोराना वायरस पर विभिन्न रिसर्च और प्रयोगात्मक सफलता के बाद कुछ खोजों और जाँच के साधन ईजाद करने का दावा किया है। खोजकर्ताओं ने दावा किया है कि खोज के ज़रिये ईजाद किये गये सभी साधन आसानी से उपलब्ध हैं। एआईसीटीई की मानें, तो मुम्बई के एक स्टार्टअप संस्था अभया इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी एलएलपी ने एक डिवाइस बनायी है, जो महज़ 5 मिनट में कोरोना वायरस के लक्षणों की 90 फीसदी सही जानकारी दे सकती है। यह डिवाइस हृदय की गति (दिल की धडक़न) और फेफड़ों में पाये जाने वाले तरल पदार्थ की जाँच करती है।
अभया इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी एलएलपी स्टार्टअप ने कहा है कि इस डिवाइस में हार्टबीट नाम का एक छोटा-सा उपकरण है, जो छाती पर लगाया जाता है। यह डिवाइस धडक़नों की गिनती और फेफड़ों में मौज़ूद तरल पदार्थ का आकलन करता है। इसका डाटा मोबाइल एप के ज़रिये प्राप्त किया जाता है। एप मरीज़ तथा डॉक्टर के पास होता है। इसके ज़रिये डॉक्टर दूर बैठकर भी जाँच रिपोर्ट प्राप्त कर सकता है।
ऑक्सीजन सप्लाई के लिए बनी नयी डिवाइस
कहते हैं कि कभी-कभी कुछ ढूँढो और कुछ मिल जाता है। इसी तरह इस बार जब कोरोना की दवा और पीडि़तों के इलाज में ज़रूरी चीज़ों की खोज की जा रही है, एक ऐसी डिवाइस की खोज सामने आयी है, जो ऑक्सीजन सिलेंडर की तरह मरीज़ को ऑक्सीजन देने के काम आयेगी। यह डिवाइस सेना के लिए रोबोट बनाने वाले पुणे के स्टार्टअप कॉम्बेट रोबोटिक्स इंडिया ने बनायी है। वेंटिलेटर की तरह ऑक्सीजन देने वाली अंबू एयर नाम की इस डिवाइस से कोरोना पीडि़तों को ऑक्सीजन सप्लाई की जाने की उम्मीद जगी है। एमएचआरडी के मुताबिक, इस खोज के बारे में सभी जानकारियाँ डीएसटी और टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट बोर्ड से साझा की गयी हैं। पुणे की इस कम्पनी ने कहा है कि इस डिवाइस को ऑटो मोबाइल इंडस्ट्री में उपयोग होने वाले पाट्र्स की मदद से बनाया गया है। इस डिवाइस की खासियत यह है कि यह बिजली और बैटरी दोनों से चलती है।
बीएचयू का 100 फीसदी सही जाँच का दावा
इधर, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस की 100 फीसदी जाँच का दावा किया है। यह जाँच का दावा बीएचयू में शोध-छात्राओं द्वारा रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज पॉलीमर चेन रिएक्शन (आरटी- पीसीआर) नाम की एक तकनीक विकसित किये जाने के बाद किया गया है। शोध छात्राओं की मदद से इसे डिपार्टमेंट ऑफ मॉलीकुलर एंड ह्यूमन जेनेटिक्स की प्रो. गीता राय ने तैयार किया है। उनका दावा है कि इस तकनीक के ज़रिये एक से चार घंटे के अन्दर जाँच रिपोर्ट आ जाती है। इस तकनीक से कोरोना वायरस के प्रोटीन की जाँच की जाती है। दावे में कहा गया है कि आरटी-पीसीआर केवल ऐसे प्रोटीन सिक्वेंस को पकड़ती है, जो सिर्फ कोविड-19 (कोरोना वायरस) में मौज़ूद है, इसलिए इसका 100 फीसदी सही परिणाम आयेगा। प्रो. गीता राय ने तकनीक का पेटेंट फाइल कर दिया है। भारतीय पेटेंट कार्यालय के मुताबिक, देश में इस सिद्धांत पर आधारित अब तक ऐसी कोई किट नहीं बनी है, जो कि ऐसे प्रोटीन सिक्वेंस की जाँच कर सके। सूत्रों की मानें, तो प्रो. गीता राय ने जल्द-से-जल्द कोरोना पीडि़तों की जाँच में तेज़ी लाने और राहत पहुँचाने के मद्देनज़र सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) और इंडियन काउंसिल मेडिकल रिसर्च ऑफ इंडिया (आईसीएमआर) को इस तकनीक का प्रस्ताव भेज दिया है। बताया जा रहा है कि इस तकनीक से कोरोना वायरस की जाँच आसान और सस्ती होगी। प्रो. गीता राय के मुताबिक, इस तकनीक के माध्यम से आसानी से अस्पतालों में उपलब्ध जाँच मशीनों के ज़रिये कोरोना वायरस की जाँच की जा सकती है।
न जाने कौन है पीडि़त? इसलिए दूर रहना ही एक मात्र रास्ता!
हाल ही में एक मेडिकल स्टोर पर दवा विक्रेता में कोरोना वायरस संदिग्ध पाया गया। समय पर पता चलते ही उस दवा विक्रेता को चिकित्सकों की निगरानी में भेज दिया गया। मेडिकल को भी सील कर दिया गया। हालाँकि, वह दवा विक्रेता निगेटिव निकला और उसे छोड़ दिया गया, मेडिकल भी अब खुल रहा है। दरअसल, कोरोना वायरस के पीडि़त का पता शुरू के पाँच-छ: दिन तक नहीं चल पाता। ऐसे में खौफ यही रहता है कि अगर कोई किसी कोरोना वायरस पीडि़त के सम्पर्क में गलती से भी आ गया, तो उसे तो वायरस होगा ही, उसके भी सम्पर्क में आने वालों को हो जाएगा।
अत: दूसरे के सम्पर्क से आने से बचाव ही खुद को और अपने सम्बन्धियों को बचाने का सबसे बढिय़ा रास्ता है। भारत में लॉकडाउन इसी के मद्देनज़र किया गया है। लेकिन अफसोस कुछ लोग मजबूरी में, तो कुछ लोग जानबूझकर इसका पालन नहीं कर रहे हैं। जानबूझकर लॉकडाउन तोडऩे के कई बड़े उदाहरण हमारे सामने आये। लॉकडाउन तोडऩे की इन घटनाओं ने न केवल कोरोना पीडि़तों की संख्या बढ़ायी, बल्कि बाकी लोगों में खौफ भी पैदा किया। इसके उदाहरणों में कनिका कपूर की पार्टी, मध्य प्रदेश में सरकार गठन के दौरान इकट्ठे लोग, निजामुद्दीन मरकज में इकट्ठे लोग और अपने घर जाने के लिए सडक़ों पर उतरे भूखे और मजबूर लोगों की भीड़ को लिया जा सकता है।