ज़िन्दगियाँ बचाने में नाकाम,  कमज़ोर स्वास्थ्य व्यवस्था

कोरोना वायरस पिछले साल से भी भयंकर रूप धारण कर चुका है। रो जाना कई राज्यों से दर् जनों लोगों की मौत की  ख़बरें आ रही हैं, जिसके चलते देश में भय का माहौल बना हुआ है। इस डर की वजह जहाँ महामारी है, तो वहीं अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव और लापरवाही की  ख़बरों का सामने आना है। अस्पतालों में लापरवाही का आलम यह है कि समय पर इलाज न मिलने के कारण कोरोना के साथ-साथ अन्य रोगों से पीड़ित मरी ज भी असमय मौत के मुँह में समा रहे हैं। जहाँ देखो अ फ़रा-तफ़री का माहौल है। अस्पतालों में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मची हुई है, जबकि सच्चाई यह है कि बड़े अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगे होते हैं। इसके बावजूद बा जारों से महँगे ऑक्सीजन सिलेंडर  ख़रीदकर सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति की जा रही है। रेमडेसिवीर लगवाने के लिए लोग भटक रहे हैं। दवा के व्यापार में कालाबाज़ारी का बोलवाला बढ़ रहा है। देश में कोरोना के चलते अन्य रोगियों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है। देश का कम जोर स्वास्थ्य सिस्टम अब हाँफने लगा है।

तहलका संवाददाता ने इस अव्यवस्था को लेकर कई डॉक्टर्स और जानकारों से बातचीत की। जानकारों का कहना है कि डॉक्टर्स के तमाम दावों और सुझावों को न जरअंदा ज करते हुए सरकार ने कोरोना को लेकर स ख़्ती नहीं दिखायी, बल्कि कोरोना को लेकर अपनी सियासी  जमीन तैयार की है। कहा जाता है कि जब सियासतदान सियासी लाभ लेने की कोशिश में लगे रहते हैं, तो लोगों की परवाह नहीं करते। इस समय भी सियासतदानों का यही खेल चल रहा है और उनसे जुड़े लोगों के कारोबार  ख़ूब फल-फूल रहे हैं। मास्क, दवा और ऑक्सीजन प्लांट वाले जमकर चाँदी काट रहे हैं। ऑक्सीजन का अचानक अस्पतालों टोटा होना एक साज़िश का हिस्सा है, ताकि ज़्यादा मुनाफ़ा कमाया जा सके। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान (एम्स) के डॉक्टर्स ने तहलका संवाददाता को जनवरी माह में बताया था कि मार्च के महीने से ही कोरोना भयंकर रूप लेगा। ऐसा नहीं कि स्वास्थ्य मंत्रालय और नीति आयोग को इस मामले में जानकारी नहीं थी, बल्कि ब क़ायदा सारा  ख़ाका कोरोना को लेकर तैयार किया गया था। उसकी जानकारी आईसीएमआर स्वास्थ्य मंत्रालय को मुहैया कराता रहा है, फिर भी लापरवाही हुई है और कोरोना को लेकर सियासी साज़िश का खेला हुआ है।

जानकारों का कहना है कि कई मर्तबा सियासतदान अपने तरी क़े से ऐसे बयान देते हैं, जिसके मायने लोग अपने तरी क़े से निकाल लेते हैं। लेकिन कोरोना जैसी महामारी को लेकर इस बार जो सियासत हो रही है, उससे कोरोना वायरस के अस्तित्व पर ही लोग सवाल उठाने लगे हैं। जैसे कि देश के चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कोरोना की चर्चा तक नहीं है और न ही वहाँ सियासतदान रैलियों और जनसभाओं में मास्क लगा रहे हैं। मौ जूदा व क़्त बहुत ना जुक है, लेकिन लापरवाही जारी है, कुछ लोगों की तर फ़ से तो काफ़ी हद तक सरकार की तर फ़ से। सरकार भले ही चेतावनी दे रही है कि अभी कोरोना का कहर यानी तबाही का मं जर अभी जारी रहेगा। लेकिन  ख़ुद सरकार की तरफ़ से बहुत-सी स्थितियाँ बेक़ाबू और अस्पष्ट हैं।

जबकि कई डॉक्टर्स का कहना है कि देश में स्वास्थ्य व्यवस्था म जबूती के साथ आगे बढ़ रही थी, जो अब डगमगाती दिख रही है। आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि जब देश की राजनीति जुमलेबा ज भाषणों से भरी हो, लोगों को गुमराह करने में लगी हो, चुनावी महासमर में लाखों लोगों की रैलियाँ हो रही हों, कुम्भ में लाखों लोगों का आना-जाना हो, तो कोरोना का भयंकर रूप से फैलना स्वाभाविक है। क्योंकि ऐसे हालात में देश की जनता यह मानने लगती है कि जब देश के सियासतदान कोरोना को लेकर फिक्रमंद नहीं हैं, इसका मतलब कोरोना नहीं है। इसलिए लोगों ने कोरोना वायरस से बचाव के लिए जारी दिशा-निर्देशों के पालन में लापरवाही की है। डॉक्टर बसंल का कहना है कि देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पिछले कोरोना-काल से ही कम जोर होने लगी थी, अब यह और भी लचर हो गयी है। कहने को तो सरकार अस्पताल में बेड्स की संख्या बढ़ा देती है, पर ह क़ी क़त कुछ और ही है। अस्तपालों में डॉक्टर्स और पैरामेडिकल कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ायी जा रही है, जिससे बड़ी तादाद में भर्ती मरी जों की ठीक से देखभाल नहीं हो पा रही है। उन्होंने कहा कि देश के बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री बाबाओं की दवा की कम्पनियों को प्रमोट करने, उन्हें बढ़ावा देने में लग जाते हैं कि कोरोना की यह दवा ठीक है, लेकिन अस्पतालों की व्यवस्था ठीक नहीं करते। ऐसे में जनता काफ़ी भ्रमित होती है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया में  ग़ैर-प्रमाणित दवाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। लोगों ने अपने हिसाब से घरों में कोरोना की दवाएँ, यहाँ तक कि ऑक्सीजन के छोटे सिलेंडरों को रख लिया है और मनमािफक़ इलाज कर रहे हैं, जो कोरोना को बढ़ाने में लगा है। आख़िर लोगों में अस्पताल जाने कतराने की वजह क्या है? इन सब पर सरकार को रोक लगानी होगी।

मैक्स अस्पताल की कैथ लैब के डायरेक्टर (निदेशक) डॉ. विवेका कुमार का कहना है कि हृदय रोग एक ऐसा रोग है, जिसमें रोगी को तत्काल पर इलाज न मिलने पर उसकी जान जा सकती है। हृदय के वॉल्व  ख़राबी होने पर रोगियों को चलने-फिरने, साँस लेने में दि क़् क़त होती है। ऐसे में रोगियों को उपचार की  जरूरत होती है। ट्रांसकैथेटर माइट्रल वॉल्व रिप्लेसमेंट (टीएमवीआर) बीमारी का इलाज सरलता से किया जा सकता है।

डॉक्टर विवेका कुमार का कहना है कि टीएमवीआर में रोगी को कमर से पलती तार डालकर आसानी से उपचार किया जाता है, जिससे रोगी को किसी प्रकार की कोई दिक़्क़त नहीं होती है। रोगी भी कम समय में स्वस्थ्य होकर घर चला जाता है। लेकिन कोरोना-काल में हर कोई यह सोचने लगा है कि साँस लेने में दि क़् क़त यानी कोरोना है। जबकि ये हृदय की समस्या के साथ-साथ वॉल्ब में  ख़राबी होने के लक्षण हैं। डॉक्टर विवेका कुमार का कहना है कि कोरोना-काल में टीएमवीआर का इलाज से लोगों को काफ़ी लाभ हुआ है। ऐसे रोगी अब सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं। तहलका संवाददाता ने अस्पतालों में कोरोना-मरीजों के साथ-साथ दूसरे रोगों से पीडि़त मरी जों से बात की, तो उन्होंने रोग से ज़्यादा स्वास्थ्य सिस्टम में फैली लापरवाही के बारे में बताया। लोकनायक अस्पताल में कोरोना के चपेट में आने वाले मरी ज प्रदीप कुमार (38) ने बताया कि ऑक्सीजन की मारामारी उन्होंने ऐसी नहीं देखी कि उसके अभाव में मरी जों को जान के लाले पड़ गये हों। लेडी हार्डिंग अस्पताल में तो स्ट्रेचर भी किसी मरी ज को मिल जाए और डॉक्टर आकर देख जाएँ या ऑक्सीजन मिल जाए, तो समझो कि मरी ज बड़ा ही भाग्यशाली है या फिर बड़ी सि फ़ारिश वाला है। लेडी हार्डिंग में 18 अप्रैल को ज्ञान वाजपेयी कोरोना की शिकायत होने पर अपने दोस्त को लेकर गये, तो उनको अस्पताल में इस  क़दर स्ट्रेचर के लिए जूझना पड़ा जैसे कम जोरी में कोई पहाड़ चढऩा पड़ रहा हो। जैसे-तैसे उनको स्ट्रेचर मिला और उसी पर इलाज मिलना शुरू हुआ। देर रात तक बड़ी मुश्किल से उनको बेड मिला। लेकिन जाँचों में देरी के चलते उन्हें निजी अस्पताल में इलाज कराना पड़ा है।

नोएडा के सरकारी अस्पतालों का हाल तो और भी बेहाल है। इन सरकारी अस्पतालों में मरी जों को भर्ती तो कर लिया जाता है, लेकिन डॉक्टर्स की कमी होने के कारण मरी जों की सही से न देखभाल हो पा रही है और न ही उन्हें सही इलाज मिल पा रहा है। तहलका संवाददाता ने डॉक्टर्स से बात करके मरी जों का हाल जानना चाहा, तो उन्होंने मरी जों की पीड़ा के साथ-साथ अपनी पीड़ा सुनानी शुरू कर दी कि अस्पताल में पैरामेडिकल कर्मचारी और डॉक्टर्स की बहुत कमी है, जिसके चलते मरी जों की सही देखभाल नहीं हो पा रही है। ऐसे में डॉक्टर्स से जो हो पा रहा है, वे कर रहे हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि शासन-प्रशासन को सब पता है, लेकिन कोई इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है। सरकार को इससे निपटने के लिए सही इंत जाम करने होंगे, क्योंकि कोरोना की चपेट में तो डॉक्टर्स भी आ रहे हैं।

कहते हैं कि सत्ता में बैठे लोग ही अगर व्यवस्था पर आघात करने लगें, तो एक दिन वे भी इसकी चपेट में आ ही जाते हैं। ‘तहलका’ के पास ऐसे अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की लम्बी लिस्ट है, जो कोरोना-काल में अपने परिजनों को सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती कराने के लिए भटके हैं। सरकारी स्वास्थ्यकर्मियों तक को अपने इलाज के लिए भटकना रहे हैं, लेकिन उनका तक इलाज नहीं हो पा रहा है। सरकार जब लापरवाही बरतती है और अपनी गलतियाँ दूसरों पर मढ़नी शुरू कर देती है, तो सरकारी अधिकारी बिना कोई अड़ंगा लगाये उसकी नीतियों का समर्थन करने लगते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी नौकरी भी बचानी होती है। ऐसा ही मामला जीबी पंत अस्पताल का है, जिसको सरकार ने कोविड सेंटर तो नहीं बनाया है, लेकिन अन्य अस्पतालों के कोरोना रोगियों को सीटी स्कैन और अन्य जाँचों के लिए भेजा जा रहा है। कोरोना रोगियों की बढ़ती संख्या में जल्दबा जी में की जा रही जाँचों के कारण सेनेटाइज तक नहीं किया जा रहा है, जिससे जाँच करने वाले ही कोरोना के चपेट में आ रहे हैं। इतना ही नहीं, अधिकारियों के परिजनों की जाँच होने के बाद भी वे कोरोना के चपेट में आये हैं। मतलब सा फ़ है कि व्यवस्था में कमियों का  ख़ामिया जा उन्हें भी भुगतना पड़ रहा है।

कोरोना वायरस से पीडि़त रामकिशन का कहना है कि वह दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में इलाज कराकर आये हैं। उन्होंने अनुभव किया है कि देश भर में कोरोना वायरस को लेकर जितना हो-हल्ला मचा रखा है, वो एक साज़िश है और झूठ को दबाने का प्रयास है। उन्होंने अस्पतालों में डॉक्टर्स की कार्यशैली देखी है, वे सरकारी महकमे से डरकर इलाज कर रहे हैं। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य कर्मचारी एसोसिशन के पदाधिकारी विजय ने बताया कि इस महामारी के दौर में जो देश में ऑक्सीजन की कमी हुई है, उसके लिए सीधे तौर पर केंद्र सरकार ज़िम्मेदार है और वह अपनी ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकती। इधर हरियाणा और दिल्ली सरकार के बीच ऑक्सीजन को लेकर झगड़ा हो रहा है, जो कि मरी जों के लिए कम, सियासी खेल ज़्यादा दिखता है। इसके चलते मरी ज पिस रहे हैं।

-डॉक्टर विवेका कुमार, मैक्स अस्पताल की कैथ लैब के निदेशक

देश में इस समय सही मायने जागरूकता पर बल देने की आवश्यकता है। लोगों के साथ-साथ डॉक्टर्स को कोरोना के साथ-साथ अन्य बीमारियों पर भी  ग़ैर करना चाहिए, अन्यथा रोग से पीडि़त लोगों को का फ़ी परेशानी हो सकती है। देश में डॉक्टर्स ने तामाम रोगों पर जो शोध किये हैं, उसका लाभ मरी जों को नहीं मिल पा रहा है। अगर सही मायने में देखा जाए, तो पिछले साल शुरू हुए कोरोना-काल से लेकर अब तक इलाज के अभाव में अन्य रोगों से बहुत लोग मरे हैं।’’

 

-डॉक्टर अनिल बंसल, आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव

देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पिछले कोरोना-काल से ही कम जोर होने लगी थी, अब यह और भी लचर हो गयी है। कहने को तो सरकार अस्पताल में बेड्स की संख्या बढ़ा देती है, पर ह क़ी क़त कुछ और ही है। देश के बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री बाबाओं की दवा कम्पनियों को प्रमोट करने, उन्हें बढ़ावा देने में लग जाते हैं कि कोरोना की यह दवा ठीक है। लेकिन अस्पतालों की व्यवस्था ठीक नहीं करते। ऐसे में जनता काफ़ी भ्रमित होती है।’’