अजीब इत्तेफाक है कि जितने फीसदी जल मानव शरीर में होता है, उतने ही फीसदी जल ज़मीन पर भी है। लेकिन अफसोस यह कि हम इंसानों ने इसकी अहमियत को कभी नहीं समझा। अगर हम जीवन में एक छोटी-सी बात गाँठ बाँध लें कि जिस तरह शरीर में पानी की कमी से अनेक रोग जाते हैं, उसी तरह ज़मीन पर पानी कम होने से अनेक आपदाएँ आनी तय हैं, तो शायद हम पानी के महत्त्व को अच्छी तरह समझ सकें और पानी की अनाप-शनाप बर्बादी न करें। लेकिन इस बार दिल्ली सरकार के दिल्ली जल बोर्ड ने इस बात को अच्छी तरह समझ लिया है और पानी की बर्बादी करने वालों के खिलाफ कड़ाई से निपटने के लिए कमर कस ली है। इस सिलसिले में दिल्ली जल बोर्ड के के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा ने कहा है कि अब वह पानी का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ बने कानून को सख्ती से लागू करेंगे। उन्होंने कहा है कि पानी का दुरुपयोग करने वाले दोषियों पर भारी ज़ुर्माना लगाया जाएगा। यह बात उन्होंने हाल ही में दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों की एक बैठक में कही। उन्होंने कहा कि पानी के उपयोग को लेकर सतर्कता बरतने पर ही हम जल संचयन और उसके संरक्षण के बारे में सोच सकते हैं।
राजधानी में पानी की बर्बादी को लेकर दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष ने सम्बन्धित अधिकारियों की फटकार लगायी है। उन्होंने कहा है कि अधिकारी पानी की बर्बादी अथवा दुरुपयोग करने वालों का चालान काटें, इस मामले में कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि पानी की बर्बादी रोकने के लिए दिल्ली जलबोर्ड ज़ुर्माने की रकम बढ़ाने पर विचार कर रहा है। इसके लिए एक महीने का सतर्कता अभियान शुरू किया जाएगा, जिसके तहत अलग-अलग इलाकों में 11 टीमें पानी बर्बाद करने वालों पर कार्रवाई करेंगी। उन्होंने यह भी कहा कि सीवर में गन्दगी डालने वालों के खिलाफ भी तुरन्त सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा घरेलू पानी का कनेक्शन लेकर उसका व्यावसायिक या अन्य तरह से उपयोग करने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। पानी की बर्बादी या दुरुपयोग की पहली गलती पर दो हज़ार रुपये का ज़ुर्माना लगाया जाएगा और गलती दोहराने पर हर रोज़ 500 रुपये के हिसाब से ज़ुर्माना लगाया जाएगा। इसके अलावा गैर-घरेलू काम के लिए पानी का उपयोग करने वाले लोगों पर पहली गलती के लिए एक हज़ार और न मानने पर हर रोज़ 100 रुपये का ज़ुर्माना लगाया जाएगा। जबकि सीवर पाइपलाइन में कचरा डालने वालों से पहली गलती पर पाँच हज़ार रुपये और बार-बार ऐसा करने पर 100 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से ज़ुर्माना वसूला जाएगा। अवैध पानी कनेक्शन या नाले के कनेक्शन से पानी उपयोग करने पर दो हज़ार रुपये तक का ज़ुर्माना वसूला जाएगा।
पानी की बर्बादी करने पर लगाया जाए ज़ुर्माना
सभी देशों की सरकारों और जल बचाने को लेकर काम कर रही सभी संस्थाओं द्वारा पूरी दुनिया में यह संदेश दिया जाता है कि पानी बचाना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि पानी नहीं रहने पर मानव अस्तित्व खतरे में पड़ा सकता है। पिछले दो साल में दुनिया के कई देशों में पानी की कमी को लेकर चिन्ता व्यक्त की गयी है। भारत के कई शहर पानी की कमी से जूझने लगे हैं। यहाँ तक कि यहाँ के 70 फीसदी गाँवों में भी ज़मीन का जल स्तर कम हो चुका है। कई जगह खेती-बाड़ी में सिंचाई की समस्या भी पैदा हो गयी है। अगर अभी से इस ओर ध्यान नहीं दिया गया और पानी को नहीं बचाया गया, तो वह दिन दूर नहीं जब लोग पानी के लिए मरने-मारने पर आमादा हो जाएँगे। वैसे भी इस बात की चेतावनी कई बार दी जा चुकी है कि अगला विश्व युद्ध पानी को लेकर होगा। पिछले वर्षों में दक्षिण अफ्रीका के कुछ इलाकों में पानी की कमी को देखते हुए वहाँ की सरकार ने खुद ऊँटों को मारने का फरमान सुनाया था। इसके पीछे सरकार का बयान था कि ऊँट पानी बहुत पीते हैं और जहाँ पानी घट रहा है, वहाँ के लोगों के जीवन को खतरा है। हम लोगों को नहीं मार सकते, इसलिए ऊँटों को मारना ज़रूरी है।
सवाल यह है कि अगर ज़मीन में पानी ज़्यादा कम हो जाएगा या खत्म हो जाएगा, तब क्या इंसान ज़िन्दा रह सकेगा? शायद नहीं। इसलिए ज़रूरी है कि पानी को बचाया जाए। क्योंकि जबसे इंसान ने ज़मीन के पानी का दोहन शुरू किया है, तबसे ज़मीन का पानी लगातार कम होता जा रहा है, जिसे रोकना ज़रूरी है। इसके लिए शहरों में पानी बर्बाद करने वालों के खिलाफ दिल्ली की तर्ज पर भारी ज़ुर्माना लगाया जाना चाहिए। साथ ही लोगों में पानी बचाने को लेकर चेतावनी के साथ जागरूकता फैलाना चाहिए, ताकि लोग पानी की बर्बादी न करें।
पानी की कमी से बिगड़ जाएगा संतुलन
पानी की कमी शरीर में हो या ज़मीन पर संतुलन बिगड़ जाएगा। अगर ज़मीन पर पानी की कमी होगी, तो न तो फसलें उग सकेंगी और न ही बनस्पति। लोगों को खाने के लिए भरपूर और पोष्टिक आहार न मिलने से अनेक बीमारियाँ स्वत: पनप जाएँगी, जिसमें कुपोषण सबसे बड़ी समस्या है। डॉक्टर भी इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं कि शरीर के स्वास्थ्य के लिए साफ-सुथरा पानी भरपूर पीना ज़रूरी है। इसी तरह ज़मीन में पानी की कमी होने से भूकम्प आने से लेकर अनेक प्राकृतिक आपदाएँ, जैसे सूखा, तूफान, ऊष्णता, गर्म हवाएँ चलने और जगह-जगह भूस्खलन होने के साथ-साथ ज़मीन बंजर होने के हालात पैदा होंगे।
ज़रूरी है जल संचयन और संरक्षण
अगर हमें अपना भविष्य और अस्तित्व सुरक्षित करना है, तो जल संचयन से लेकर जल संरक्षण पर पूरा ध्यान देना होगा। आपको हैरानी होगी कि इज़राइल भारत के दो बड़े शहरों के बराबर है। लेकिन पानी के सदुपयोग, संचय और बूँद-बूँद पानी से उन्नत खेती की तकनीक ईज़ाद की है, जिससे पूरी दुनिया हैरान है। राजस्थान के जयपुर के पास एक किसान खेमाराम भी बारिश का पानी संचय करके आज रेगिस्तान में खीरे की खेती से हर साल एक करोड़ से अधिक रुपये कमाते हैं। खेमाराम जैसे अगर हर व्यक्ति की सोच हो जाए और सभी पानी बचाने के महत्त्व को समझें, तो पानी की िकल्लत कम हो सकती है। हालाँकि जल संचय हर कोई बड़े पैमाने पर नहीं कर सकता; लेकिन जितना सम्भव हो लोगों को जल का संचयन और संरक्षण करना चाहिए। जैसे छोटे किसान गड्ढा खोदकर बारिश का पानी जमा कर सकते हैं, तो आम लोग अपनी छतों का पानी किसी टैंक या टंकी में इकट्ठा करके उपयोग में ला सकते हैं। वाटर हार्वेटिंग टैंक और तालाब जल संचयन का सबसे बेहतर उपाय हैं। इसके लिए सरकार को आगे आना होगा।
बहुत कम बचे हैं तालाब
एक दौर था, जब हर गाँव, हर कस्बे और हर शहर के आसपास दो-चार तालाब होते थे। इन तालाबों में हर साल होने वाली बारिश का पानी इकट्ठा हो जाता था, जो लोगों के उपयोग के अलावा धीरे-धीरे ज़मीन में रिस जाता था। बारिश के इस पानी की बदौलत न सालभर लोगों को पानी की दिक्कत होती थी और न ज़मीन का जलस्तर कम होता था। लेकिन अब शहरों की तो बात ही अलग, कस्बों और गाँवों में भी तालाब न के बराबर ही रह गये हैं। बारिश का बहता हुआ पानी एकत्र करना हमारे लिए कितना ज़रूरी है, इसे केवल इस बात से समझ लेना चाहिए कि जहाँ पानी नहीं होता, वहाँ हरियाली नहीं होती। मध्य प्रदेश और राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों से जिन किसानों ने तालाब बनाकर पानी इकट्ठा कर खेती शुरू की है, वे काफी खुश हैं।
ज़मीन से अतिरिक्त जल-दोहन रोकना ज़रूरी
पहले के ज़माने में नहाने, कपड़े धोने, सिंचाई और दूसरे कार्यों के लिए 80 फीसदी लोग बारिश, झरनों और पोखरों के पानी का उपयोग करते थे। जबकि पीने के लिए भी केवल 60 फीसदी लोग ही कुआँ आदि के पानी का उपयोग करते थे। लेकिन अब 90 फीसदी लोग ज़मीन के पानी का उपयोग करते हैं। केवल पीने के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य कामों के लिए भी। यही वजह है कि ज़मीन से अनाप-शनाप पानी का दोहन किया जाता है। पहले जिन गाँवों, कस्बों में ज़मीन में 30 से 35 फीट नीचे पानी निकल आता था अब वहाँ 70 से 90 फीट नीचे पानी मिल पाता है, कई जगह उसका भी प्रेशर काफी कम होता है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को ज़मीन से किये जा रहे अतिरिक्त जल दोहन को सख्ती से रोकना होगा। अन्यथा अगर इसी तरह ज़मीन का जलस्तर गिरता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब ज़मीन में पानी की मात्रा बहुत कम हो जाएगी और मानव जीवन खतरे में पड़ जाएगा।
बदल रहीं बारिश की स्थितियाँ, बढ़ रहा कार्बन
पिछले पाँच दशक से बारिश में बहुत अधिक बदलाव आया है। अब पहले की अपेक्षा कम बारिश होती है; लेकिन वहीं जहाँ पहले अधिक बारिश होती थी, वहाँ अब कम और जहाँ पहले कम बारिश होती थी, वहाँ अब अधिक बारिश होती है। इसके अलावा बेमौसम अधिक बारिश और कभी बहुत लेट तथा कभी बहुत पहले बारिश होना भी अब एक समस्या बनती जा रही है। अब नदियों में बाढ़ उतनी अधिक नहीं आती और न ही साल भर बड़े तालाब जल से भरे रहते हैं। देश की कई नदियाँ सूखने के कगार पर हैं। इस बारे में कई बार चिन्ता व्यक्त की जा चुकी है। इतना ही नहीं भू-क्षरण से 50 फीसदी अधिक कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है।
पिछले कुछ वर्षों से दुनिया भर के जलवायु वैज्ञानिकों ने पॉजिटिव फीडबैक लूप नामक चिन्ता व्यक्त की है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह वह प्रक्रिया है, जब किसी एक चीज़ में मात्रात्मक बदलाव होने पर दूसरी चीज़ में स्वत: परिवर्तन आ जाता है। इससे ज़मीनी और शारीरिक तौर पर काफी कुछ परिवर्तित होता है, जिससे काफी नुकसान होने का खतरा रहता है। पिछले तीन-चार दशक से मिट्टी में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा बढ़ी है, जिससे तेज़ी से गर्मी बढ़ती जा रही है। ताज़ा आँकड़े बताते हैं कि पूरी दुनिया में 3.6-4.4 बिलियन टन कार्बन (कुल उत्सर्जन का 10-12 फीसदी) उत्सर्जन भू-क्षरण के कारण हो रहा है। भू-क्षरण तब होता है, जब ज़मीन पर पानी कम होता है। यानी यह समस्या पानी की कमी से पैदा हो रही है, जिसे जल संचयन और जल संरक्षण के अलावा ज़्यादा-से-ज़्यादा पौधे लगाकर कम किया जा सकता है।
भू-विज्ञानियों का कहना है कि जंगलों का नुकसान रोककर और ज़्यादा-से-ज़्यादा नये पौधे लगाकर हम 2020 से 2050 के बीच 150-200 बिलियन टन कार्बन कम कर सकते हैं, जो कि मानव हित में होगा। नेशनली डिटर्मिंड कंट्रीब्यूशन (एनडीसी) में कार्बन सिंक बढ़ाने में दिलचस्पी दिखायी है। एनडीसी का एक विश्लेषण बताता है कि 100 से ज़्यादा देशों ने जलवायु सुधार के लिए जल और वन संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया है।
भारत प्राकृतिक सम्पदाओं से सम्पन्न देश है; लेकिन पानी के दुरुपयोग और जंगलों के अनाप-शनाप कटान के चलते यहाँ भी जलवायु सम्बन्धी कई समस्याएँ पैदा हुई हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि केंद्र सरकार के साथ-साथ सभी राज्यों की सरकारें जल, जंगल, ज़मीन की सुरक्षा को लेकर सजग हों और लोगों को भी सजग करें।