पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग़ नरसंहार कांड सभी भारतीयों में एक दर्द भर देता है। इस नरसहांर को बुधवार को 103 साल पूरे हो गए। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1919 के जलियांवाला बाग़ नरसंहार में शहीद होने वालों को श्रद्धांजलि दी है। उधर अमृतसर में आज के दिन कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है और वहां शहीदों को श्रद्धांजलि दी जा रही हैं।
जलियांवाला बाग के नरसंहार की घटना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1919 के जलियांवाला बाघ नरसंहार में जान गंवाने वाले लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा – ‘उन शहीदों का अद्वितीय साहस और बलिदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।’
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्विटर पर लिखा – ‘साल 1919 में आज ही के दिन जलियांवाला बाग में शहीद होने वाले लोगों को श्रद्धांजलि। उनका अद्वितीय साहस और बलिदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। पिछले साल जलियांवाला बाग स्मारक के पुनर्निर्मित परिसर के उद्घाटन के मौके पर दिया गया अपना भाषण साझा कर रहा हूं। ‘
याद रहे पंजाब के अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग नरसंहार 13 अप्रैल 1919 को वैशाखी के दिन हुआ था। जलियांवाला बाग में रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी। ये सभा पंजाब के दो लोकप्रिय नेताओं की गिरफ्तारी और रोलेट एक्ट के विरोध में रखी गई थी। यह भारत में ब्रिटिश हुकूमत की सबसे क्रूर कार्रवाई में से एक था। रॉलेट एक्ट ब्रिटिश हुकूमत को दमनकारी शक्तियां प्रदान करता था।
अंग्रेज जनरल डायर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं। बता दें इस नरसंहार को भारतीय इतिहास के सबसे घातक हमलों में से एक के रूप में याद किया जाता है। अंग्रेजों के आंकड़े बताते हैं कि जलियांवाला बाग कांड में 379 लोगों की जान गयी थी। हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रेकॉर्ड के मुताबिक, उस दिन एक हजार से ज्यादा लोग शहीद हुए थे और करीब दो हजार गोलियों से घायल हुए थे।
ब्रिटिश सैनिकों ने महज दस मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाईं। इस दौरान जलियांवाला बाग में मौजूद लोग उस मैदान से बाहर नहीं निकल सकते थे, क्योंकि बाग के चारों तरफ घर बने थे। बाहर निकलने के लिए मात्र एक संकरा रास्ता था। भागने का कोई रास्ता न होने के वजह से लोग वहां फंस कर रह गए।