जम्मू में पिछले एक महीने से वकील हड़ताल पर हैं। रजिस्ट्री को राजस्व विभाग में शिफ्ट करने के विरोध में एक महीने से चल रही वकीलों की इस हड़ताल ने अदालती कामकाज पूरी तरह ठप कर दिया है और लोगों को भी बड़ी मुसीबत झेलनी पड़ रही है। उधर जम्मू के जाने-माने सामजिक कार्यकर्ता सुकेश खजूरिया ने इस हड़ताल को गैर-कानूनी बताते हुए इस मामले में सर्वोच्च न्यायलय के प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर दखल देने की गुज़ारिश की है।
हड़ताल को लेकर 3 दिसंबर को जम्मू बार संघ के जनरल हाउस की जो बैठक हुई, उसमें हड़ताल को अनिश्चितकालीन करने का ऐलान कर दिया गया। इसके बाद सम्भावना जतायी जा रही है कि यह मामला लम्बा खिंच सकता है और लोगों की मुसीबत बढ़ सकती है; क्योंकि उनके सभी मामलों की सुनवाई एक महीने बन्द पड़ी है।
‘तहलका’ से फोन पर बातचीत में जम्मू बार संघ के अध्यक्ष अभिनव शर्मा ने कहा कि जब तक उनकी माँग पूरी नहीं हो जाती, तब तक उनकी कामछोड़ हड़ताल जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि हड़ताल को अब अनिश्चितकालीन कर दिया गया है। रजिस्ट्री को राजस्व विभाग में शिफ्ट पर हमारा सख्त विरोध है।
वकीलों के कामकाज ठप करने से अदालतों में चल रहे मामलों की सुनवाई बुरी तरह प्रभावित हुई है। सिर्फ सरकारी वकील ही मामलों को लेकर कोर्ट में पेश हो रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, अकेले निचली अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 62,500 के आसपास है। यह हड़ताल होने से इन मामलों में करीब एक महीने से सुनवाई नहीं हो रही क्योंकि सिर्फ सरकारी वकील ही काम पर हैं। सिविल सोसायटी से भी वकील मिल चुके हैं; लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला है। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से भी मुलाकात हुई; लेकिन मामला किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा। वकीलों का साफ कहना है कि जब तक उनकी माँग पूरी नहीं हो जाती, तब तक उनकी हड़ताल जारी रहेगी। हड़ताल को अब अनिश्चितकालीन कर दिया गया है। वकीलों की हड़ताल पहली नवंबर से शुरू हो गयी थी। उप-राज्यपाल प्रशासन ओर वकीलों के बीच यह गतिरोध एक महीने से बना हुआ है। जे एंड के बार एसोसिएशन, जम्मू के वकीलों की जनरल हाउस बैठक भी बेनतीजा रही। वकीलों की हड़ताल अब आगे ङ्क्षखच जाने से जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट और उसके अधीन्स्थ अदालतों में कामकाज पहली नवंबर से ठप पड़ा है। हड़ताल जम्मू डिवीजन में है।
इस हड़ताल से सबसे •यादा काम जिन निचली अदालतों में ठप पड़ा है, उनमें पैसेंजर कोर्ट, इलेक्ट्रिीसिटी कोर्ट, चीफ ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट, एक्साइज कोर्ट, रेलवे कोर्ट, प्रथम मुंसिफ कोर्ट, प्रथम एडीशनल कोर्ट मुंसिफ, द्वितीय मुंसिफ कोर्ट, तृतीय मुंसिफ कोर्ट, सब रजिस्ट्रार, मैट्रिमोनियल कोर्ट, डिस्ट्रिक्ट सेशन जज, फस्र्ट एडीशनल सेशन कोर्ट, एंटीकरप्शन कोर्ट, फस्र्ट प्रिंसिपल एंटी करप्शन जज, सेकेंड एडीशनल सेशन जज, एनआईए कोर्ट, सीबीआई कोर्ट, एमएसीटी अदालत, कंज्यूमर कोर्ट और उसके अपीलेंट कोर्ट शामिल हैं। इसके अलावा सिटी जज, ट्रैफिक मोबाइल और ट्रैफिक एडीशनल मोबाइल मजिस्ट्रेट और उसके अपीलेंट कोर्ट शामिल हैं। यदि हड़ताल से प्रभावित लोगों, जिनके मामले कोट्र्स में फँसे हैं; की बात की जाए तो यह आँकड़ा करीब एक लाख बैठता है। लोगों का कहना है कि अदालतें तो खुली हैं, मगर वकील न मिलने से दिक्कत पेश आ रही है। वो लोग सबसे •यादा दिक्कत झेल रहे हैं, जिनके ट्रैफिक पुलिस ने चालान काटे हुए हैं। जो लोग इन चालानों, जिनमें कुछ बहुत भारी भरकम हैं; को कोर्ट में चुनौती देना चाहते हैं। लेकिन वकील न मिलने से फँसे हुए हैं। ज़ाहिर है हड़ताल का मामला लम्बा खिंचने से उन्हें जुर्माना भरने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
वकीलों की माँगें
वकीलों की एक माँग यह है कि जानीपुर हाई कोर्ट परिसर को फॉरेस्ट लैंड बाहू रैका में शिफ्ट न किया जाए। हड़ताली वकीलों की बात में तर्क यह है कि अगर हाईकोर्ट परिसर का निर्माण होगा, तो इससे फॉरेस्ट लैंड पर हज़ारों की संख्या में पेड़ों की बलि देनी होगी, जो गलत है। सिर्फ हाई कोर्ट भी शिफ्ट हुआ, तो वकीलों को काफी दिक्कत होगी; क्योंकि एक ही दिन में कुछ केसों के लिए वकील •िाला कोर्ट में पेश होते है, तो कुछ के लिए हाई कोर्ट में। ऐसे में वकीलों के लिए जानीपुर से बाहु क्षेत्र तक दिन के दिन पहुँचना सम्भव नहीं हो पायेगा।
माना जा रहा है कि राज्यपाल प्रशासन हाई कोर्ट परिसर शिफ्ट न करने पर तो सहमति जता सकता है। ज़मीनों की रजिस्ट्री अधिकार राजस्व विभाग से न्यायपालिका को दिये जाने पर सरकार का रुख साफ है और लगता नहीं वह इससे पीछे हटेगी।
बार संघ के वरिष्ठ सदस्यों ने भी रजिस्टरी के अधिकार कोर्ट से लेकर राजस्व विभाग को सौंपने और कोर्ट को जानीपुर से रैका में शिफ्ट करने के विरोध में हड़ताल पर जाने का समर्थन कर दिया है। बार संघ अध्यक्ष अभिनव शर्मा का कहना है कि मुख्य न्यायाधीश ने बार को अवगत करवाया था कि जानीपुर से कोर्ट को रैका में स्थानांतरित करने का कोई निर्णय नहीं किया गया है।
वैसे महीने के शुरु में पीएमओ में मंत्री जितेंद्र सिंह एक कार्यक्रम के सिलसिले में जम्मू में थे। उनसे वकीलों की हड़ताल को लेकर जब पूछा गया, तो उन्होंने साफ कह दिया कि कोई गलतफहमी में न रहे। केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में सभी केन्द्रीय कानून लागू होंगे। सिंह के इस बयान से सरकार का रुख साफ है कि वह इस ज़मीन की खरीद-फरोख्त और अन्य दस्तावेज़ की रजिस्ट्री करने का अधिकार राजस्व विभाग के पास ही रहेंगे।
यह हड़ताल गैर-कानूनी : खजूरिया
वकील जहाँ हड़ताल को लेकर दृढ़ दीखते हैं, वहीं जम्मू के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता सुकेश खजूरिया ने इस हड़ताल को गैर-कानूनी बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एसए बोबड़े को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए एक पत्र भेजा है। खजूरिया ने अपने पत्र में कहा है कि जम्मू के आन्दोलनकारी वकीलों ने उच्च न्यायालय के साथ-साथ अधीनस्थ न्यायालयों और यहाँ तक कि वादियों और आम जनता दोनों के कोर्ट प्रवेश के स्थानों को अवरुद्ध कर दिया है।
इससे आम लोगों की न्याय तक पहुँच अवरुद्ध हुई है। खजूरिया ने सीजेआई को लिखे पत्र में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि वकील हड़ताल पर नहीं जा सकते; क्योंकि इससे न्याय बाधित होता है। उन्होंने कहा कि यह काफी चौंकाने वाली बात है कि एक महीने बीत चुकने के बावजूद जे एंड के उच्च न्यायालय ने हड़ताल को अवैध घोषित करने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की है। उन्होंने कहा कि वकीलों और प्रशासन के इस गतिरोध का नुकसान आम जनता को हो रहा है और जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहा। खजूरिया ने सीजेआई से आग्रह किया है कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करें, ताकि जनता के लिए न्याय जल्दी सुलभ हो सके। खजूरिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने अपने विभिन्न फैसलों में यह स्पष्ट किया है कि वकीलों की हड़ताल और अदालती काम का बहिष्कार अवैध है और इसकी बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाये जाने चाहिए। ‘तहलका’ से बातचीत में खजूरिया ने सेवानिवृत्ति कैप्टेन हरीश उप्पल बनाम केन्द्र सरकार मामले में आये फैसले का उदहारण दिया, जिसमें कोर्ट ने कहा कि वकीलों को हड़ताल पर जाने या बहिष्कार का आह्वान करने का कोई अधिकार नहीं है; यहाँ तक कि टोकन हड़ताल पर भी नहीं। हाँ, वे विरोध यदि आवश्यक हो, तो केवल प्रेस स्टेटमेंट और टीवी इंटरव्यू देकर, बैनर और तिख्तयाँ लेकर, काले या सफेद या किसी भी रंग की हाथ में पट्टी बाँधकर या कोर्ट परिसर से दूर रहकर शांतिपूर्ण विरोध मार्च निकाल सकते हैं। उनकी हड़ताल से किसी भी रूप में कोर्ट के कामकाज में बाधा नहीं आनी चाहिए। खजूरिया के मुताबिक, जम्मू के वकीलों की हड़ताल से वास्तव में नागरिक, जिनके मामले कोर्ट में हैं, भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मौलिक अधिकार की गारंटी से वंचित हो रहे हैं। खजूरिया ने तेहेलका से बातचीत में कहा- ‘मैंने सीजेआई को लिखे पत्र में ताम बिन्दु उठाते हुए उनसे हस्तक्षेप का आग्रह किया है।’